हमारे देश में जनसंख्या स्थिरीकरण के उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रजनन एवं शिशु स्वास्थय कार्यक्रम के विस्तृत आयाम को प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है| इसमें सिर्फ परिवार नियोजन के लिए स्थायी गर्भ निरोध का लक्ष्य ही नहीं निर्धारित किया गया बल्कि अन्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए भी कार्यक्रम शुरू किए गए
मुख्य मुद्दे : उच्च यद्यपि झारखण्ड की वर्त्तमान स्थिति में पिछले 4-5 वर्षों में प्रजनन दर (3.49) में कमी आयी है| झारखण्ड के गांवों का कूल प्रजनन दर 3.59 है तथा शहरों का कुल प्रजनन दर 2.75 है| झारखण्ड की जनसंख्या के 75.5% लोग परिवार नियोजन के इसी भी साधन का इस्तेमाल नहीं करते हैं| केवल 24.5% लोग ही किसी एक साधन का इस्तेमाल करते हैं| यहाँ 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में सबसे ज्यादा प्रचलित महिला बंध्याकरण है जो कि 19.2% महिलाओं द्वारा अपनाया गया है| केवल 1.4% महिलाएँ ही आधुनिक अन्तराल विधि (जैसे- कंडोम, गर्भरोधक, गोलियां, आई. यु. डी.) का इस्तेमाल करती हैं| उच्च शिशु मृत्यु दर- झारखण्ड का वर्त्तमान शिशु मृत्यु दर लगभग 73 प्रति 1000 जीवित जन्में शिशुओं में से है जो कि कुछ राज्यों, केरल (16.3% प्रति 1000) से कहीं बहुत ही अधिक है| झारखण्ड में यह बड़ी संख्या निम्नलिखित कारणों से है :-
क) कम उम्र में गर्भधारण करना
ख) बच्चों के बीच अन्तराल की कमी
ग) ज्यादा गर्भधारण करना
उच्च मातृ मृत्युदर:
झारखण्ड में प्रतिवर्ष 100,000 गर्भ धारण करने वाली महिलाओं में 540-600 की मृत्यु हो जाती है| पूरे भारत के लिए यह औसत संख्या 540 है| झारखण्ड में यह संख्या भारत के औसत संख्या से ज्यादा है लेकिन यह संख्या विश्व के अन्य निर्धन देशों से भी कहीं अधिक ज्यादा है जो हमसे निर्धन तो हैं परन्तु स्वास्थ्य के मामले में कहीं बेहतर हैं| इसके कई कारणों में से यह भी है कि कम उम्र की महिलाओं में ज्यादा एवं जल्दी-जल्दी गर्भधारण करना तथा बहुत हद तक अनचाहा गर्भधारण करना इत्यादि|
आज जरूरत है कि अस्थायी गर्भरोधक के उपायों को अपनाया जाए ताकि जनसंख्या में स्थिरता आए एवं माँ एवं बच्चे भी सुरक्षित एवं स्वस्थ्य हो|
समस्याएँ : अधिकतर ग्रामीण महिलाओं में आमतौर पर पायी जानी वाली कुछ समस्याएँ हैं –
मासिक संबंधी – अनियमित मासिक, अत्यधिक रक्त स्राव, मासिक के दौरान पेडू, कमर और जांघो में दर्द
खून की कमी (एनीमिया) – हीमोग्लोबिन की कमी
प्रजनन मार्ग में संक्रमण (ल्यूकोरिया)
पेडू में सूजन (पी. आई. डी.)
यूटेरस- प्रोलेप्स (बच्चेदानी बाहर निकलना)
स्वयं- गर्भपात इत्यादि |
कारण : इन समस्याओं की मुख्य वजह यह है कि अधिकांश महिलाओं को निम्न स्थितियों से गुजरना पड़ता है-
यदि समस्या की जड़ को विश्लेषित करें तो दो मुख्य कारण उभर कर सामने आते हैं –
भारत में परिवार कल्याण कार्यक्रम का क्रमिक विकास – परिवार नियोजन कार्यक्रम 1951 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य मात्र जनसंख्या का नियोजन करना था| लेकिन बाद में जन – शिक्षा और प्रसार घटकों को भी इसमें शामिल कर लिया गया ताकि परिवार नियोजन कार्यक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके| सत्तर के दशक में परिवार नियोजन कार्यक्रम में मुख्यत: स्थायी साधनों पर जोर दिया गया और लक्ष्य-निर्धारित कर दृढ़ता से नीति का कार्यान्वयन किया गया जिसके परिणाम स्वरूप इस कार्यक्रम कुछ गतिरोध पैदा हो गया| बाहरहल, यह कार्यक्रम पूरी तरह स्वैच्छिक आधार पर चलाया जा रहा है और सरकार का भी मुख्य प्रयास यही रहा है कि एक ओर तो वह सेवाओं का उपयोग करने के लिए सूचना, शिक्षा तथा सम्प्रेष्ण गतिवधियों द्वारा नागरिकों को प्रोत्साहित करें|
देश और विदेश की अनुभवों से यह पूरी तरह सिद्ध हो चुका है कि जनसंख्या वृद्धि की समस्या को कारगर ढंग से हाल करने में प्रजनन आयुवर्ग की महिलाओं और छोटे बच्चों (5 वर्ष की आयु तक) के स्वास्थ्य का विशेष महत्व है| इसलिए, इस कार्यक्रम का स्वरूप परिवार नियोजन से बदलकर परिवार कल्याण किया गया| सातवीं योजना का कार्यान्वयन 1984-89 के दौरान किया गया था उसी समय से परिवार कल्याण कार्यक्रमों में जहाँ एक तरफ प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं तथा 5 वर्ष से कम आयु वाली बच्चें की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों पर ध्यान दिया जाता रहा है वहीं दूसरी तरफ इच्छुक दंपतियों को गर्भ – निरोधकों एवं बच्चों के जन्म में अंतर रखने के तरीकों की सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती रही है| आरंभ से भी परिवार कल्याण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यही रहा है कि देश की जनसंख्या को राष्ट्रीय विकास की जरूरतों के अनुरूप स्थिर रखा जाए|
सातवीं योजना के दौरान मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के अंतर्गत अन्य विभिन्न कार्यक्रम भी लागू किए गए| इन सभी कार्यक्रमों का उद्देश्य माताओं तथा छोटे बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार करना और प्रमुख बीमारियों की रोकथाम करना तथा उपचार के लिए सुविधाएँ उपलब्ध कराना था| यद्यपि ये कार्यक्रम लाभदायक सिद्ध हुए| फिर भी हरेक कार्यक्रम की अलग पहचान उनके प्रभावकारी प्रबंधन में बाधाएँ उत्पन्न कर रही थी और इससे वांछित परिणामों में भी कुछ कमी आ रही थी| समान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अलग- अलग चलाए जा रहे कार्यक्रमों को एक साथ जोड़कर चलाने की प्रक्रिया को सी.एस.एस.एम. के साथ शुरु किया गया था उसे 1994 में काहिरा (मिस्र) में आयोजित “जनसंख्या एवं विकास” विषय आयोजित सम्मेलन में और भी मजबूती प्रदना की गई| इस सम्मेलन में सम्मिलित सभी देशों को यह निर्देश दिया गया कि “प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य” पर उन्हें एक समान कार्यक्रम लागू करना चाहिए| इस सम्मेलन में यह भी सलाह दी गयी कि आर. सी. एच. का प्रयास यह होना चाहिए कि यह लोगों की जो क्षमता है, उसे सुनिश्चित करें| लोगों के पास क्षमता है कि-
इस प्रकार हमारे देश में जनसंख्या स्थिरीकरण के उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रजनन एवं शिशु स्वास्थय कार्यक्रम के विस्तृत आयाम को प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है| इसमें सिर्फ परिवार नियोजन के लिए स्थायी गर्भ निरोध का लक्ष्य ही नहीं निर्धारित किया गया बल्कि अन्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए भी कार्यक्रम शुरू किए गए, जैसे-
- सुरक्षित प्रसव
- बाल – मृत्यु को कम करना
- गर्भ निरोधक ने अस्थायी एवं स्थायी साधनों की उपलब्धता
- यौन संक्रमण एवं यौन संचारित रोगों की देखभाल
- किशोरावस्था की देखभाल आदि
इस प्रकार प्रजनन एवं शिशु स्वास्थय कार्यक्रम (आर.सी.एच.) के अंतर्गत जो सेवाएँ दी जाती हैं उसमें महत्वपूर्ण हैं-
गर्भावस्था की देखभाल – जिसमें
- प्रसव के समय कम से कम तीन जाँच
- टेटनस का टिका लेना
- आयरन –फौलिक एसिड की कम से कम 100 गोलियां खाना
- पोषण संबंधी सलाह
- गर्भावस्था के खतरनाक लक्षणों की पहचान
- संस्थागत प्रसव
- आपातकालीन जाँच
बाल स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए-
गर्भ निरोध के स्थायी एवं अस्थायी साधनों की उपलब्धता
यौन संक्रमण एवं यौन संचारित रोगों से बचाव एवं इलाज
किशोरावस्था के स्वास्थ्य की देख-भाल आदि कार्यक्रम शामिल हैं|
आर.सी.एच. कार्यक्रम का उद्देश्य –
आर.सी.एच. विशेषता –
आर.सो.एच के लक्षित समूह-
1) किशोर/किशोरी – 10-19 वर्ष
2) योग्य दम्पति – 15-49 वर्ष
3) गर्भवती महिला
4) शिशु - 0-5 वर्ष
काहिरा (मिस्र) सम्मलेन में प्रजनन स्वास्थ्य को इस प्रकार परिभाषित किया गया –
प्रजनन स्वास्थ्य का अर्थ सिर्फ बीमारियों का इलाज नहीं है बल्कि प्रजनन से संबंधित सभी बातों में शरीरिक, मानसिक एवं समाजिक रूप से स्वस्थ रहने की दशा ही प्रजनन स्वास्थ्य है| अर्थात, प्रजनन स्वास्थ्य के अंतर्गत –
इन कार्यक्रमों में दम्पति के प्रजनन संबंधी मूल अधिकार निम्न प्रकार बतलाएं गये हैं-
स्वास्थ्य संबंधी इन कार्यक्रमों को लागू करने से जन्मदर (सी.बी.आर.) कूल प्रजनन दर (टी.एफ.आर.) मातृमृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर आदि को कम किया जा सकता है एवं कारगर दम्पति सुरक्षा दर (सी.पी.आर.) को बढ़ाया जा सकता है, जो हमारे जनसंख्या स्थिरीकरण संबंधी कार्यक्रम का लक्ष्य है|
शिश्न (लिंग) : यह संभोग के लिए पुरूष का अंग है| पुरूष में संभोग की इच्छा जागती है तो शिश्न की कोशिकाओं में खून का संचार होता है| वह खून से भर जाता है| इस कारण शिश्न कड़ा होकर तन जाता है और संभोग के लिए तैयार हो जाता है| अपनी सामान्य स्थिती में यह पेशाब को शरीर से बाहर निकालने का काम करता है|
पेशाब की नली (मूल नलिका): शिश्न के अंदर एक पतली नली होती है जो मूत्र नलिका या पेशाब की नाली कहलाती है| परंतु संभोग के समय पुरूष का वीर्य (बीज) और वीर्य में मौजूद शुक्राणु भी इसी रास्त से स्त्री के शरीर में प्रवेश करते है| शरीर से पेशाब इसी नली द्वारा बाहर आता है|
अंडकोश की थैली : यह एक थैली होती है जिसमें दोनों अंडकोश रहते हैं| यह शिश्न के पीछे तथा दोनों तरफ स्थित होती है|
वीर्य नलिकाएँ : यह संख्या में दो होती हैं| अंड-कोशों से एक-एक नलिका निकलती है और जाकर पेशाब की नली से मिल जाती है|
पुरूष में पेशाब और वीर्य को बाहर लाने का एक ही रास्ता है| स्त्रियों में ऐसा नहीं होता| उनके जनन अंगों की रचना इससे अलग है|
स्त्री के प्रजनन अंग है:
दो अंडकोश – एक बाई और एक दायीं ओर| इनमें स्त्री के अंडों का उत्पादन होता है|
एक गर्भाशय जो नाशपाती फल के आकार की एक छोटी थैली है, जहाँ नौ महीने बच्चे का विकास होता है|
गर्भाशय की दो नालियाँ – एक बाई और एक दायीं ओर| नली में गर्भधारण होता है|
गर्भाशय का गला – जहाँ पूरे महीने धात का उत्पादन होता है|
गर्भाशय के अंदर का अस्तर – जो हर महीने फट कर गिरता है| (इसके कारण हर महीने खून बहता है; जिसे माहवारी के नाम से जाना जाता है)
गर्भाशय द्वार – जो बच्चे के जन्म का नहर है|
योनि – जो बच्चे के जन्म के नहर का बाहरी अंग है|
किशोरावस्था
लड़की – 10-16 वर्ष में
लड़का – 12-19 वर्ष में
- एक स्वस्थ एवं उत्तरदायी माता-पिता बनना
- समाज के भावी नागिरक
- एक महान मानव संसाधन
भ्रांति : एक बार के संभोग से स्त्री गर्भवती नहीं हो सकती है|
सच : हर बार संभोग से गर्भवती होने का खतरा है|
भ्रांति : दो मासिक धर्मों के बीच का समय संभोग के लिए सबसे सुरक्षित है क्योंकी उस समय गर्भधारण का डर नहीं होता|
सच : ज्यादातर स्रियों में (जिनका मासिक चक्र 28 दिनों का है) सबसे उर्वरक अवधि मासिक धर्मों के बीच 2 से 6 दिनों की होती है यानी 28 दिनों के मासिक चक्र के 10वें से 18वें दिन तक| इन दिनों को ‘बच्चे वाले दिन’ या ‘उर्वरक दिन’ कहा जाता है|
भ्रांति : परिवार नियोजन और प्रजनन स्वास्थय के बारे में जानकारी प्राप्त करना बुरी बात है|
सच : परिवार नियोजन के बारे में जानकारी या ज्ञान होने से असुरक्षित संभोग के बुरे नतीजों का पता रहता है और अनचाहे गर्भावस्था तथा यौन रोगों से बचा जा सकता है प्रजनन स्वास्थय का ज्ञान हो तो अपनी देह के बारे में पूर्ण जानकारी होती है, उसके कामों को जानने तथा उसकी देखभाल करने में सहूलियत होती है| इसलिए इनका ज्ञान प्राप्त करने से कई लाभ प्राप्त होते है|
भ्रांति : सोते समय वीर्य का खुद व खुद बाहर निकलना (स्वप्न दोष) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है|
सच : सोते समय वीर्य का खुद व खुद बाहर निकलना किशोरावस्था की एक स्वभाविक और सहज क्रिया है| यह हानिकारक नहीं है|
भ्रांति : मासिक धर्म के दौरान स्त्री गंदी हो जाती है और से छूना नहीं चाहिए|
सच : सभी स्त्रियों में मासिक धर्म एक स्वाभाविक प्रक्रिया है उनकी योनि से जो खून बाहर निकलता है; वह गंदा नहीं होता है|
भ्रांति : मासिक धर्म के समय नहाना नहीं चाहिए|
सच : मासिक धर्म चूंकि एक स्वाभाविक क्रिया है, इसलिए नहाने को लेकर कोई पाबन्दी नहीं हैं सच तो यह है कि इस समय शरीर को स्वच्छ रखना बहुत जरूरी है, जिससे प्रजनन अंगों में संक्रमण न होने पाए|
भ्रांति : अगर हाईमेन (योनिछेद या योनि-पर्दा) फट जाए तो लड़की कुँवारी नहीं मानी जाएगी|
सच : यह सही नहीं हैं| क्योंकि हाईमेन (पर्दा) बिना संभोग के भी फट सकता है, मसलन खेलकूद से बोझ उठाने से, गिर जाने से या मासिक धर्म के वक्त| यदि योनि में पैड्स रखे जाएँ तब भी परदा फट जाता है| कभी-कभी हाईमेन स्वत: ढीला होता है, या होता ही नहीं है और
भ्रांति : अगर स्त्री में यौन उत्तेजना नहीं होती तो वह गर्भवती नहीं हो सकती है|
सच : स्त्री उत्तेजित हो या नहीं, अगर पुरूष उसकी योनि में या योनि के आस पास वीर्य गिरा देता है तो स्त्री गर्भवती हो सकती है|
भ्रांति : किशोरावस्था में सेक्स की कल्पना करने से, या मूड बदलने से नुकसान होता है|
सच : किशोरावस्था में घटित होने वाले ये महज स्वाभाविक भावनात्मक परिवर्तन हैं|
भ्रांति : परिवार नियोजन स्वास्थय के लिए नुकसानदेह है|
सच : परिवार नियोजन, परिवार के स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थय की बेहतर के लिए अपनाया जाने वाला तरीका है|
भ्रांति : हस्तमैथून स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और वह क्षमता को कम करता है|
सच : किशोरों और वयस्कों में हस्तमैथून, यौन इच्छा को संतुष्ट करने के लिए एक स्वाभाविक के है और यह किसी के स्वास्थ्य या प्रजनन क्षमता पर कोई बुरा असर नहीं डालता|
मासिक धर्म के आंरभ होने पर एक बलिका स्त्री में परिवर्तित हो जाती है| इस सारे घटना चक्र में बीज ग्रंथियां मुख्य भूमिका निभाती है| ई एवं पी नामक हार्मोन इन्हीं ग्रंथियों में बनते व बाहर निकलते हैं| हमारे मस्तिष्क में पिट्यूटरी नाम की एक नन्हीं सी ग्रंथी है जो शरीर की दूसरी ग्रंथियों से निकलने वाले ई एवं पी हार्मोनों की मात्रा शरीर में कम व अधिक होती रहती है| गर्भाशय में इसी के अनुसार प्रतिक्रिया होती है जो मासिक धर्म के रूप में प्रकट होती है|
जब कोई लड़की मासिक धर्म की उम्र को पहूँचती है तो इसके मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि उसके डिम्ब ग्रंथियों को रासायनिक संकेत भेजती है| इन संकेतों के मिलने पर डिम्ब ग्रंथियों ई हार्मोन को रक्त में भेजती हैं| यह हार्मोन शरीर में कई परिवर्तन पैदा करता है| इनका मुख्य प्रभाव गर्भाशय पर पड़ता है| इसके द्वारा गर्भाशय के भीतर एक झिल्ली का अस्तर तैयार होता है| इसका आप यूं समझिए जैसा वर्षा से पहले बीज बोने के लिए जमीन तैयार की जाए| यह प्रतिक्रिया पहले दो हफ्तों तक होती है| ई हार्मोन के कुछ गौण प्रभाव होती हैं जैसर स्तनों का भारी होना, शरीर में चर्बी बनना और शरीर कुछ नमक व पानी का इकट्ठा होना| इसके अलावा बगल और गुप्तांग के आस – पास बालों पर उगना भी ई हार्मोन के प्रभाव के कारण ही होता है| यह हार्मोन इन स्थानों पर बाल उगाता है और चेहरे पर बाल उगने से रोकता है| इसलिए स्त्रियों के चेहरे पर दाढ़ी मूंछे नहीं पाई जाती|
दस दिन बाद शरीर में ई हार्मोन का स्तर गिरने लगता और पी का स्तर बढ़ने लगता है| पी गर्भाशय गर्भित डिम्ब को अपने अंदर रखने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है| अगर इस दौरान स्त्री का डिम्ब गर्भित नहीं होता है तो बेकार जाता है| इसी तरह गर्भाशय की पूरी तैयारी भी बेकार हो जाती है| समय पूरा हो जाने पर गर्भाशय में जो झिल्ली तैयार हुई थी वह उखाड़ने लगती है| उसके साथ कुछ खून भी बाहर आता है| यह 2 से 4 दिनों तक आता रहता है| यही माहवारी है| इसके समाप्त होने पर ई हार्मोन फिर सक्रिय हो जाता और अगले चक्र की तयारी करने लगता है| चक्र 28 दिन का होता है|
मासिक धर्म या माहवारी 12 सर 15 वर्ष की उम्र आरंभ होती है| स्त्री गर्भवती हो तो यह माहवारी गर्भ के पूरे 9 महीनों तक रूक जाती है| 45-50 की उम्र के बीच यह धीरे धीरे बंद हो जाती है| इसलिए स्त्री के लिए गर्भवती होने और बच्चे पैदा करने की उम्र 15 से 45 बीच है|
ऊपर 28 दिन के जिस चक्र वर्णन किया गया है उसके बीच में किसी समय स्त्री का डिम्ब बाहर आता है| इसका जीवन 48 घंटो का होता है| पुरूष के शुक्राणु या बीच का जीवन काल भी 24 से 28 घंटे है| हर माहवारी चक्र में डिम्ब के बाहर आने की तिथि 1 से तीन दिन के बीच हो सकती है| इसलिए गर्भ धारण का संभावित समय मासिक चक्र के बीच 4 से 6 दिन का होता है| परिवार नियोजन के प्राकृतिक तरीकों की भाषा में इसे असुरक्षित समय कहा जाता है| इस समय स्त्री के गर्भवती होने की पूरी संभावना होती है|
प्रजनन क्षमता की जाँच के लिए योनि स्राव की जाँच भी की जा सकती है| स्त्री स्वयं उसे दो उँगलियों के बीच लेकर देख सकती है| यदि ऊँगली अलग करने पर वह साफ और धागे की तरह खींचता दिखाई दे तो गर्भ धारण करने की लिए यह समय उपयुक्त है| दुसरे समय में जिसमें जनन क्षमता नहीं है, और जिसे सुरक्षित कहा जाता है, डिम्ब गर्भ धारण करने के लिए तैयार नहीं होता| माहवारी आरंभ होने के पहले व बाद के 8-10 दिन आम तौर पर सुरक्षित रहते हैं| इन दिनों में योनि स्राव गाढ़ा, सफेद व अपारदर्शी हो जाता है| खींचने पर इसमें धागा नहीं बनता|
डिम्ब ग्रंथि से डिम्ब बाहर आने की प्रक्रिया डिम्ब उत्सर्ग कहलाती है| इस समय स्त्री के शरीर में कुछ बदलाव आते है| इन पर ध्यान दिया जाए तो यह अनुमान लगाना संभव हो सकता है कि डिम्ब किस दिन बाहर आ रहा है| यह बदलाव कुछ इस प्रकार है :
आमतौर पर रक्त स्राव आरंभ होने के दिन को माहवारी का आरंभ माना जाता है| आमतौर पर माहवारी का खून पहले धब्बों के रूप में बाहर आता है| फिर इसके मात्रा बढ़ जाती है| अब महिला को कपड़े की गद्दी लेने की आवश्यता होती है| दूसरे या तीसरे दिन से रक्तस्राव में कमी आने लगती है| अगले एक या दो दिन में यह समाप्त हो जाताहै इस तरह रक्त 2 सर 5 दिन तक जारी रह सकता है| अलग अलग स्रियों में रक्त की मात्रा अलग अलग हो सकती है| यदि हम इसे गद्दी बदलने के अनुसार नापें तो 24 घंटों में 1 से 3 गद्दियाँ बदली जा सकती है| मासिक धर्म की यह भिन्नता सामान्य है|
माहवारी के रक्त को सोखने और स्वयं को साफ रखने के लिए स्त्रियाँ कई तरीके अपनाती है| उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
माहवारी के दौरान सबसे महत्वपूर्ण है सफाई| धुले तथा धुप में सुखाए हुए सूती कपड़े को कई तहों में मोड़ कर इस्तेमाल करना रक्त को सोखने के लिए काफी है| यह कपड़ा साफ न हो तो किटाणुओं को खूब पोषण देती है| साफ रहने के लिए महिला को चाहिए कि वह गुप्तांग और आस-पास के स्थान को दिन में कई बार धोए| माहवारी के दौरान रोज नहाने से कोई नुकसान नहीं होता| इसलिए नियमित रूप से नहाना चाहिए|
परंपरागत रूप से हमारे देश में माहवारी को अशुद्ध माना जाता है| कई जगहों पर तो स्त्री को अलग रहने के लिए कहा जाता है| अलग थलग किए जाने से उसके मन पर बुरा असर पड़ता है| महिलाओं और लड़कियों के लिए यह रिवाज बड़ा ही असुविधाजनक है| हमें चाहिए कि लोगों को माहवारी की वास्तविकता बताएँ ओर उन्हें समझाएँ कि इसके दौरान स्त्रियों को अलग शरीर की रचना और माहवारी का कारण समझ लेने के बाद इस रूढ़ी को मानने का कोई आधार नहीं रह जाता है| हाँ, माहवारी के दिनों में संभोग से बचने का रिवाज ठीक है| उन दिनों में संभोग करने से संक्रमण का खतरा बढ़ता है| इसके अलावा खून डिम्ब नालों की ओर जा सकता है| इसलिए स्त्री को अशुद्ध मानने का विचार त्याग देना चाहिए| परन्तु माहवारी हो रही हो तो स्वास्थ्य सिद्धांतो के अंतर्गत संभोग से बचना उचित होगा|
असलियत तो यह कि हर महीने महिला के शरीर सर होने वाला यह रक्तस्राव उसके गर्भाशय को शुद्ध बनाता है| यह उसकी अंदरूनी झिल्ली के साथ ही गर्भाशय के छोटे-छोटे संक्रमण भी साफ कर देता है| इस तरह संक्रमण के पुराने और असाध्य होने से बचाव हो जाता है यहाँ यह याद दिला देना उचित होगा कि गर्भाशय की झिल्ली के गिरने में डिम्बनालों की कोई भूमिका नहीं होती| इसलिए डिम्बनालों में संक्रमण होने पर इलाज न किया जाए तो संक्रमण पुराना होकर गंभीर रूप से ले सकता है|
कौशल 1: गर्भ धारण करने का समय जानने का तरीका
महिलाओं को प्राय: अपनी जनन क्षमता का एहसास हो जाता है| अगर उन्हें समझाया जाए तो वे उसे अच्छी तरह व्यक्त कर सकती है ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मी को चाहिए कि वह महिलाओं को समझाए कि वे अपने मासिक धर्म को उसके विभिन्न चरणों में ध्यान से देखें| योनि स्राव और श्लेष्मा (कफ के सामान चिपचिपा पदार्थ) को वे ऊँगली और अंगूठे के बीच लेकर उसके जाँच कर सकती हैं| महिला स्वास्थ्यकर्मी को चाहिए वह उन्हें निम्नलिखित सुझाव देकर योनि स्राव की जाँच करना सिखायें :
कौशल 2: घर पर माहवारी के लिए गद्दियां (पैड) कैसे बनाएं
महिलाएँ को माहवारी का रक्त स्राव सोखने के लिए कपड़े या रूई की आश्यकता होती है| इनकी गद्दियां घर पर बनाई जा सकती हैं| इनको इस्तेमाल करने से कपड़े ख़राब नहीं होते| महिलाएँ घर से बाहर निकलने में कोई परेशानी नहीं होती| गद्दी इस्तेमाल करने से योनि तथा त्वचा के रोगों से भी बचाव होता है| घर पर गद्दी तैयार करने के लिए रूई और साफ सूती कपड़े की जरूरत होती है|
घर पर गद्दी या पैड बनाते समय महिला को चाहिए कि –
माहवारी न होना या देर से आरंभ होना
कुछ लड़कियों को सोलह वर्ष की उम्र तक मासिक धर्म नहीं होता| इसके लिए डॉक्टरी सलाह दिलवानी चाहिए| हो सकता है उसके शरीर के अंदर ही कहीं यह खून इकट्ठा हो रहा हो| यह भी हो सकता है कि उसके जनन – अंगों या हार्मोन - ग्रंथियों में कुछ दोष हो|
कम आयु में माहवारी
कुछ लड़कियों में माहवारी जल्दी आरंभ हो जाती है, कभी – कभी तो केवल 9-10 साल की उम्र में ही| इससे कोई स्वास्थय समस्या नहीं पैदा होती लेकिन इस उम्र की लड़कियों को माहवारी की पूरी जानकारी देना जरूरी है| उसे डिम्ब उत्सर्ग और लिंग उत्पीड़न होने पर गर्भ ठहरने के खतरे से अवगत करा देना चाहिए| माहवारी आरंभ हो जाने पर कद बढ़ना कम हो जाता है| सन्तुलित भोजन और व्यायाम से कद कुछ बढ़ सकता है| खून की कमी से बचने के लिए भी सन्तुलित भोजन जरूरी है|
छोटे चक्र
कुछ महिलाओं का दो माहवारियों के बीच का समय कम होता है| 21 दिन से कम समय में दुबारा रक्त स्राव हो और नियमित रूप से ऐसा होता रहे तो उसे छोटा चक्रे कहते है| स्त्री के शरीर में डिम्ब का उत्सर्ग सामान्य रूप से होता है और उसकी प्रजनन क्षमता भी सामान्य रहती है| इन स्त्रियों में डिम्ब उत्सर्ग का समय जानने के लिए अगली माहवारी की अपेक्षित तिथि से 12 दिन पहले की तिथि निकालिए| (उदहारण के तौर अगर अगली माहवारी 24 तारीख को आने की उम्मीद है तो डिम्ब 12 तारीख को बाहर आने की संभावना होगी|) कुछ महिलाओं में माहवारी आरंभ होने के एक दो सालों तक मासिक चक्र छोटा होता है| परंतु धीरे-धीरे समान्य हो जाता है|
लम्बे चक्र
कुछ स्त्रियों, विशेषकर उन कम उम्र की लड़कियों का जिन्हें हाल में माहवारी आरंभ हुई है, मासिक चक्र लंबा हो सकता है| अगर दो माहवारियों के 45 दिनों से बढ़ा अंतराल हो तो वह लंबा चक्र कहलाता है| हो सकता है इन महिलाओं में डिम्ब का उत्सर्ग ही न रहा हो| इन्हें डॉक्टरी सलाह देनी चाहिए|
रक्त स्राव की कमी
कुछ महिलाओं को माहवारी के समय बहुत कम खून जाता है| वह समझती है कि इससे उनका गर्भाशय पूरी तरह साफ नहीं हो पाता| लेकिन माहवारी का समय होने पर कुछ धब्बे रह जाएँ तो कभी कभी इसका कारण गर्भाशय से बाहर का गर्भ भी हो सकता है| इसकी जाँच करवानी चाहिए|
भरी रक्त स्राव
कुछ महिलाओं को माहवारी के दौरान बाहरी रक्त स्राव होता है| उन्हें एक दिन में सामान्य से ज्यादा गद्दियाँ बदलने की जरूरत होती है| या रक्त स्राव कई दिनों तक जारी रहता है या यह दोनों समस्याएँ साथ होती हैं| इन स्त्रियों को खून की कमी की शिकायत हो सकती है| इन्हें डॉक्टरी सलाह की आवश्यकता है| उनसे कहिए कि जब माहवारी न हो रही हो उस समय वह डॉक्टर के पास जाएँ| माहवारी के दौरान जाने पर डॉक्टर उनकी जाँच नहीं कर सकेंगे| भारी रक्त स्राव कभी-कभी गर्भाशय में गांठ या रसौली के कारण भी हो सकती है| प्राय: इसका हार्मोन की गड़बड़ी होती है| कुछ स्त्रियों का इलाज ई और पी हार्मोन द्वारा हो जाता है परन्तु कुछ में गर्भाशय निकालने की आवश्यकता पड़ सकती है|
एक स्त्री के जीवन में गर्भाशय और प्रसव सामान्य प्राकृतिक अवस्थाएं हैं, फिर भी कई स्रियाँ गर्भावस्था और प्रसव के दौरान पैदा हुई जटिल, परिस्थितियों से मर भी जाती हैं| बहरलाल, बहुत थोड़े से लोग, जिनमें स्त्रियाँ भी शामिल है, उन खतरों के बारे में नहीं जानते जो बच्चे को जन्म देने से जुड़े हुए है| भारत जैसे विकासशील देश में संतान को जन्म दे सकने वाली उम्र की स्त्रियों की मृत्यु अधिकतर गर्भावस्था और प्रसव की जटिल परिस्थितियों के कारण ही होती है| इसे मातृ मृत्यु दर (माताओं की मृत्यु) की संज्ञा दी गई है|
भारत में मातृ मृत्यु दर 540 है यानी एक लाख जीवित बच्चों को जन्म देने वाली माताओं में से 540 स्त्रियाँ हर साल मर जाती हैं| माताओं की यह ऊँची मृत्यु दर साफ बताती है कि माता को गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव के बाद जैसी देखभाल मिलनी चाहिए; वह नहीं मिल पाती और उसका जीवन खतरे में पड़ जाता है| स्त्रियों को बचाने के लिए सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम को प्राथमिकता देनी चाहिए यानी ‘सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम के जरिए स्त्रियों को बचाने का कम भूत जरूरी है|
1. रक्तचाप बढ़ जाता है|
2. पैरों और मुख पर सूजन आ जाती है
3. दौरे पड़ सकते हैं|
इनमें से कोई अवस्था खरतनाक गर्भावस्था मानी जाती है|
माताओं के आलवा 12 महीने तक के बहुतेरे शिशु भी हर वर्ष मरते हैं| शिशु मृत्यु दर 73 (बिहार में) है, यानी प्रत्येक हजार जीवित जन्म लेने वाले शिशुओं में लगभग 73 बच्चे जीवन के पहले वर्ष में मर जाते हैं|
शिशुओं की मृत्यु के कारण दस्त और साँस की तकलीफें हैं| कुपोषण इन्हें और भी जटिल बना देता है| जिन शिशुओं का वजन जन्म के समय कम होता है, यानी 2.5 किलो से कम, उनकी मृत्यु की आंशका अधिक रहती है|
बिहार में 54.4 प्रतिशत शिशु कम वजन के पैदा होते हैं| इसका कारण यही है कि माताएं जल्दी जल्दी और कई बार गर्भवती होने से कुपोषण का शिकार हो जाती हैं
1992 में प्रारंभ राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम का उद्देश्य मातृ दर एवं शिशु दर में कमी लाना था|
गर्भधारण एक नये जीवन की शूरूआत है जो डिम्ब नलिका में शुक्राणु और डिम्ब के मिलने पर होती है|
भूर्ण गर्भाशय की ओर बढ़ता है और उसकी भीतरी सतह से जुड़ जाता है, जहाँ एक मोटा और गूदगुदा अंग बनाता है| इसे प्लेसेंटा कहते है| प्लेसेंटा का एक हिस्सा गर्भाशय की भीतरी दिवार से जुड़ता है| दूसरा हिस्सा नाल से जुड़ता है| भ्रूण यानी विकसित हो रहे बच्चा इसी नाल द्वारा प्लेसेंटा से जुड़ता है| भ्रूण को खून की सप्लाई माँ के शरीर से, प्लेसेंटा के जरिए ही मिलती है|
भ्रूण के चारो ओर पानी की एक थैली होती है, जो उसे झटकों, धक्कों और बाहरी चोटों से बचाती है| लगभग नौ महीनों में, अंडा एक पूरी तरह विकसित मानव-शिशु का आकार पा जाता है, जो अब जन्म लेने के लिए तैयार है| इसका वजन लगभग तीन किलो होता है|
गर्भावस्था के दौरान स्त्री कई शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों से गुजरती है| शरीरिक परिवर्तन इसलिए होते हैं कि उसके शरीर को grbhaawगर्भावस्था, प्रसव और स्तनपान के समय, शिशु की कई जरूरतों को पूरा करना पड़ता है|
शिशु को, पानी की थैली को, और प्लेसेंटा को संभालने के लिए गर्भाशय लगातार बड़ा होता जाता है| 12 हफ्तों के बाद शिशु इतना बड़ा हो जाता है कि पेट के बिलकुल निचले हिस्से में, (जहाँ योनि के पास के बालों की शुरूआत होती है), उसे छूकर महसूस किया जा सकता है| इस समय के आड़ वह 36वें हफ्ते तक 2 अंगूलियों की चौड़ाई के बराबर प्रतिमाह बढ़ता रहता है| भ्रूण का बढ़ना, गर्भाशय के बढ़ने से मालूम किया जा सकता है| 20 हफ्ते पूरे होने पर इसे नाभि के पास महसूस किया जा सकता है| 36वें हफ्ते तक गर्भ छाती की पसलियों तक उठ जाता है| इसके बाद वह 2 या 2 अंगूलियों तक उठ जाता है| फिर वह 2 या 3 की चौड़ाई के बराबर कम भी हो सकता है, क्योंकि भ्रूण पेडू में उतरने लगता है|
शिशु की बढ़ती हुई जरूरत को पूरा करने के लिए, और स्त्री के बढ़े हुए आकार के अनुपात में, खून की मात्रा 30 प्रतिशत बढ़ जाती है, इससे रक्त ‘पतला’ हो जाता है और एनीमिया हो जाता है| यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो कुछ सप्ताह बाद ठीक हो जाती है क्योंकि तब तक लाल खून के सेल रक्त की ‘कमी’ को, या उसके पनीलेपन को पूरा करने के लिए बढ़ जाते हैं| लाला खून के सेल बढ़ाने के लिए स्त्री को अच्छी खुराक लेनी चाहिए जिसमें आयरन, फौलिक एसिड और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में हो| जैसे – हरी पत्तेदार सब्जियाँ, दालें, फलियाँ, आंवला, केला, अमरुद, और सेब जैसे फल आदि| बहरहाल केवल खुराक के द्वारा स्त्रियों की बढ़ी हुई जरूरतों को पूरा करना कठिन होता है, और कई स्त्रियाँ जब गर्भ धारण करती हैं तो वे पहले से ही कमजोर होती हैं इसलिए खुराक की कमी को आयरन और फोलिक एसिड गोलियां से पूरा करें|
स्तन बड़े और भारी हो जाते हैं| यह परिवर्तन इसलिए होता है कि स्तन दूध पिलाने के लायक हो जाएँ| निप्पल के पास की त्वचा काली हो जाती है और निप्पल ऊपर की ओर उठ आते हैं| गर्भावस्था के शुरू होने के साथ ही कई बार निप्पल से एक पीला द्रव रिसने लगता है| शुरू का दूध वसा और प्रोटीन से भरा होता है| प्रसव के बाद इसकी मात्रा बढ़ती जाती है|
प्रथम तीन माह में – माहवारी बंद होना, जी मिचलाना-चक्कर आना, स्तनों में भारीपन व दर्द, जल्दी जल्दी पेशाब आना|
चौथे माह से आठ माह तक- पेट बढ़ना, स्तन बढ़ना, दूध रिसना, बच्चा पेट में घूमने लगता है|
आखिरी तीन माह में- पेट काफी बड़ा हो जाता है| बच्चे के अंग ऊपर से टटोले जा सकते है| बच्चा पेट में घूमता है|
अन्य परिवर्तन:
मासिक धर्म बंद हो जाना
जैसे-जैसे भ्रूण बढ़ता है, स्त्री का वजन भी बढ़ने लगता है| हर महीने उसका वजन 1 किलोग्राम से डेढ़ किलोग्राम तक बढ़ जाता है| इसमें शिशु का, प्लेसेंटा का, पानी की थैली का, बढ़े हुए स्तनों का और खून की बढ़ी हुई मात्रा का वजन शामिल रहता है| अगर वजन कम बढ़े तो यह खतरे का लक्षण है, क्योंकि इसका मतलब यह भी हो सकता है कि भ्रूण का विकास सामान्य नहीं है|
गर्भावस्था के जोखिम :
प्रसव
बच्चे को कई खतरनाक रोगों से बचाने का एक सरल तरीका है टीकाकरण
प्रतिरक्षक कार्यक्रम के अंतर्गत सभी शिशुओं को क्षय रोग, गलघोंटू, काली खाँसी, टेटनस, पोलियो और खसरे का टीका लगाया जाना चाहिए| गर्भवती महिलाओं को परिवार कल्याण कार्यक्रम के अंर्तगत टेटनस का टीका लगाया जाना चाहिए| बच्चों और गर्भवती महिलाओं का प्रतिरक्षण तभी होता है जब उनको टीकों की पूरी संख्या दी जाए|
टीकाकरण ए. एन. एम्, द्वारा किया जाता है| यह सभी सरकारी अस्पतालों में भी उपलब्ध है|
यह भी महत्वपूर्ण है कि टीकाकरण 100% अर्थात सभी को और समय पर किया जाए और जो छूट गए हों, उनका पता लगा कर उन्हें लगाया जाना चाहिए|
स्वास्थय संस्थान में जन्म लेने वाले सभी बच्चों को बी.सी.जी. और पी.वी. (पोलियो) की खुराक जन्म के तुरंत बाद दी जानी चाहिए|
गर्भावस्था के प्रारंभ में टेटनस टोक्साईड – 1 या बूस्टर इंजेक्शन
टेटनस टोक्साईड -1 के एक माह बाद टेटनस टोक्साईड – 2 इंजेक्शन
प्रतिरक्षा सूची : बच्चों के लिए
क्र.सं |
आयु |
टीका |
बीमारी से बचाव |
1 |
जन्म पर अथवा 48 घंटे के अंदर |
पोलियो खुराक बी.सी.जी. |
पोलियो तपेदिक (टी.बी.) |
2 |
डेढ़ माह पर |
डी.पी.टी., पोलियो |
गलघोंटू काली खाँसी, टेटनस, पोलियो |
3 |
ढाई माह पर |
डी.पी.टी., पोलियो |
गलघोंटू काली खाँसी, टेटनस, पोलियो |
4 |
साढ़े तीन माह पर |
डी.पी.टी., पोलियो |
गलघोंटू काली खाँसी, टेटनस, पोलियो |
5 |
नौ माह पर
|
मीजल्स |
खसरा |
6 |
15-18 माह पर
|
एम.एम.आर. |
खसरा, कनफेड़, जर्मन खसरा |
7 |
16-24 माह पर |
डी.पी.टी., पोलियो (बूस्टर खुराक) |
गलघोंटू कनफेड़, जर्मन खसरा |
8 |
5 साल पर |
डी.पी.टी. (बूस्टर खुराक) |
गलघोंटू व टेटनस |
गर्भधारण के मतलब है- गर्भवती होना और गर्भनिरोधक का अर्थ है स्त्री पुरूष तो मिलें परंतु उनके शुक्राणु और अंडे/डिम्ब का मिलन न हो| एक स्त्री के गर्भधारण के लिए या गर्भवती होने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ जरूरी है
- अंडे का बीजदानी से निकलना
- गर्भाशय की खुली हुई नलिका
- पुरूष के वीर्य में शुक्राणुओं का मौजूद होना
- शुक्राणु ओं का योनि में पहूँचना
- गर्भाशय के द्वार से शुक्राणु का गर्भाशय में प्रवेश करना
- शुक्राणुओं का ऊपर की ओर तीव्र गति से दौड़ना जिससे कि वह फैलोपियन नलिका से होते हुए बीच तक पहुंच सकें|
- गर्भाशय की नर्म और गूदगूदी अंदरूनी सतह (जो स्त्री हार्मोन के सामान्य संतूलन से बनती है) जिसमें भ्रूण घूस सके और एक शिशु के रूप में विकसित हो सके|
गर्भधारण के लिए जरूरी उपरोक्त स्थितियों में सी कोई स्थिति बदल दी जाए तो गर्भावस्था से बचा सा सकता है या उसे रोका जा सकता है| कोई ऐसा उपाय जो अंडा को शुक्राणु से मिलने से रोक दे, गर्भ निरोधक कहलाता है|
गर्भनिरोधक के प्रचलित तरीके
- बाह्य वीर्यपात
- उर्वरक दिनों का पहचान
- स्तनपान / लैम
- स्थायी
1. पुरूष नसबंदी
2. महिला बंध्याकरण
- अस्थायी
1. डॉक्टरी तरीके
2. स्वयं इस्तेमाल करने के तरीके
प्राक्रतिक तरीके : इसमें पुरूष संभोग की प्रक्रिया के दौरान स्त्री की योनि में होने वाले वीर्यपात को बाहर गिराता है| ध्यान रखना चाहिए कि वीर्य योनि के ऊपर या अगल - बगल भी नहीं गिरे|
उर्वरक दिनों की पहचान – मासिक धर्म शुरू होने के लगभग 14 दिन पूर्व अंडा विसर्जन होता है| इस दिन के तीन पहले और दो दिन अंडा विसर्जन होता है| इस दिन के तीन दिन पहले और दो दिन बाद तक यौन संबंध बनने पर गर्भधारण की संभावना रहती है| इसे बच्चेवाला दी या उर्वरक काल कहता हैं जो संभोग के लिए असुरक्षित काल है| बाकी के दिन सुरक्षित काल कहलाते हैं |
ये दोनों तरीके भरोसेमंद नहीं हैं क्योंकि यह संयम, पुरूष की क्षमता और मासिक चक्र के नियमित होने पर निर्भर करता है|
स्तनपान
स्तनपान कराने वाली उन औरतों के लिए लैम एक असरदार, सुरक्षित और प्राकृतिक गर्भ निरोधक का अस्थायी तरीका है जो निम्नलिखित तीन शर्ते पूरी करती हों:
अगर तीनों का जवाब ‘हाँ’ में है तो लैम 98 प्रतिशत तक असर करेगा|
लैम के फायदे
सुरक्षित और बहुत असरदार (पहले 6 महीनों में 100 में केवल 2-3 स्त्रियाँ गर्भवती होती है)
लैम विधि का कोई बुरा असर पड़ता है ?
लैम से संबंधित भ्रांतियाँ :
मिथ्या : लैम परिवार नियोजन का भरोसमंद तरीका नहीं है|
सच: अगर लैम से जुड़ी 3 शर्तें पूरी की जाएँ तो यह 98 प्रतिशत तक असर करता है|
मिथ्या : शिशु को केवल माँ का दूध पिलाना व्यवाहरिक नहीं है|
सच: एक बार अगर माँ यह बात अच्छी तरह समझ ले कि इससे बच्चे को स्वयं उसे कितने फायदे हैं तो ऐसा करना मुश्किल नहीं है|
मिथ्या : अगर माँ बच्चे को केवल अपना दूध पिलाती है, या ज्यादातर समय अपना ही दूध पिलाती है तो वह बहुत कमजोर और कुपोषित हो जाएगी|
सच: अगर माँ इस संदेश को स्पष्ट रूप से समझ लेती है कि “माँ खाएगी तो बच्चा भूखा नहीं होगा” और वह सन्तुलित भोजन करती है तो वह स्वस्थ रहेगी और बच्चे को पूरी तरह दूध पिला सकेगी|
मिथ्या : ज्यादातर माताओं में इतना दूध ही नहीं बनता कि ये पूरी तरह से बच्चों को दूध पिला सकें|
सच: बच्चा माँ के स्तनों से दूध जितना ज्यादा पियेगा, माँ में दूध भी उतना ज्यादा उतरेगा| माँ को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए| बल्कि स्तनों से दूध पिलाते रहना चाहिए जिससे कि ज्यादा से ज्यादा दूध बनता रहे| उसे अच्छी तरह भोजन करना चाहिए, वह सब जो उसके इलाके में मिलता है और खाया जाता है|
मिथ्या : शुरू के 6 महीने, में केवल माँ के दूध से बच्चे का विकास नहीं हो सकता और उसे अन्य चीजें भी खिलानी पिलानी चाहिए|
सच : शुरू के 6 महीनों में अगर बच्चा केवल माँ का दूध पीता है तो उसे पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व मिलता है और उन 6 महीनों में इसी से शिशु की सभी जरूरतें पूरी जो जाती हैं| इससे शिशु को कोमल देह में रोगों से लड़ने-भिड़ने की क्षमता बढ़ जाती है|
गर्भनिरोध के वे तरीके जिसमें किसी बाहरी या कृत्रिम चीज का इस्तेमाल किया जाए उसे कृत्रिम अस्थायी तरीका कहते हैं|
यह दो बच्चों के बीच अन्तराल रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है|
इसमें एक महत्वपूर्ण तरीका हैं कंडोम :-
कंडोम :
यह कई ब्रांडो (यानी नामों) में उपलब्ध है
कंडोम पुरूषों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला गर्भनिरोधक है, जो थोड़ी देर तक काम आता है| यह रबर का बना हुआ महीन कवच है, जिसे सहवास के दौरान पुरूष अपने लिंग पर चढ़ा लेता है| कंडोम के इस्तेमाल का इतिहास बहुत पुराना है| अठारवीं शताब्दी में भी लोगों द्वारा यौन रोगों और अनचाहे गर्भ की समस्याओं से बचने के लिए कंडोम के इस्तेमाल का प्रमाण मिलता है| उन दिनों कंडोम जानवरों के चमड़े से तैयार किया जाता था|
आधुनिक कंडोम रबर या विशेष प्रकार के ऊतकों की बनी एक महिन पतली झिल्ली होती है| दुनियाँ भर में बनने वाले कंडोम में आकार, उनकी मोटाई, चिकनाई की मात्रा और शुक्राणुनाशक की उपस्थिति के अनुसार थोड़ा अंतर होता है|
आकार –
कंडोम सीधा या चपटा, मुलायम या महीन धारीदार चिकनाई रहीत, पारदर्शी और रंगीन अनेकों प्रकार के होते है| समान्यत: कंडोम एक आकार के ही होते है जिसकी लम्बाई – 5.2 सेंटीमीटर परिधि – 3.0 से 3.5 सेंटीमीटर; मोटाई – 0.0003 – 0.0007 सेंटीमीटर होता है| इसमें चिकनाई के लिए सुखा सिलिकोन तेल, जेली, पाउडर या शुक्राणुनाशक का इस्तेमाल किया जाता है|
लिंग और योनि के मेल के वक्त यह एक प्रकार की रूकावट पैदा करता है|
पुरूष का वीर्य, जिसमें शुक्राणु और यौन रोग पैदा करने वाले जीवाणु/विषाणु (जैसे कि एड्स का विषाणु एच.आई.वी आदि हो सकते हैं, ये कंडोम में कैद हो जाते हैं और बाहर नहीं आ पाते|
भ्रांति और सच :
भ्रांति : एक ही स्टैंडर्ड साइज़ का कंडोम सबको ठीक से नहीं लग पाता|
सच : एक ही साइज सबको फिट जा जाती है|
भ्रांति : कंडोम फट जाता है|
सच : नये कंडोम बड़े मजबूत होते हैं| अगर उनका सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो वे नहीं फटतें हैं|
भ्रांति : कंडोम से सहवास का आनन्द कम हो जाता है|
सच : कंडोम बड़ी पतली और मुलायम रबर के बने होते हैं| हालाँकि कंडोम से यौन क्रिया का वही आनन्द नहीं मिलता जो बिना कंडोम मिलता है लेकिन इससे बहुत लोगों को बिलकुल असली सहवास का स आनन्द आता है| यह भरोसा कि कंडोम का इस्तेमाल करने से स्त्री गर्भवती नहीं होगी, वास्तव में दम्पति के यौन आनंद को और बढ़ा सकता है|
भ्रांति : कंडोम आमतौर पर एलर्जी पैदा करते हैं|
सच : कंडोम से एलर्जी कभी-कभी ही देखने में आती है|
भ्रांति : अगर कई वर्षो तक कंडोम का इस्तेमाल लगातार किया जाए तो ये नुकसान पहुंचाते हैं|
सच : यह अत्यंत सुरक्षित है और स्त्री पुरूष दोनों को सिर्फ अनचाहें गर्भ से ही नहीं बल्कि यौन रोगोंम एच आई.वी./एड्स, पेडू के सूजन रोगों, और स्त्रियों में गर्भाशय के मुंह का कैंसर आदि से भी सुरक्षा प्रदान करता है| इसलिए कंडोम के लगातार इस्तेमाल की सलाह दी जाती है|
भ्रांति : कंडोम को धोकर पुन: इस्तेमाल किया जा सकता है|
सच : एक कंडोम का इस्तेमाल किया जा सकता है|
भ्रांति : एक कंडोम का इस्तेमाल सिर्फ एक ही बार हो सकता है|
गर्भनिरोधक का एक अस्थायी तरीका है गर्भ निरोधक गोलियाँ-
गर्भनिरोधक हार्मोनल गोलियाँ:-
गलियाँ क्या हैं ?
गर्भनिरोधक हार्मोनल गोलियों में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोजन दो ऐसे हार्मोन होते हैं जो स्त्री के शरीर में आम तौर पर मौजूद रहते हैं|
(नोट: कुछ पैकेटों में 28 गोलियां होती है| बाकी में 21 होती हैं| जब गोलियां वाला पैकेट खत्म हो, जाए तो अगले दिन से नया पैक शुरू करें दे जब 21 गोलियों वाला पैकेट खत्म हो, तो एक हफ्ता (सात दिन) रूक जाएँ और फिर आठवें दिन से नया पैक शुरू करें| अगर गोली लेने के तीस मिनट के भीतर उल्टी हो जाए तो दूसरी गोली लें या अगर सात दिनों में सहवास करना हो तो गर्भनिरोधक का कोई दूसरा तरीका भी साथ साथ इस्तेमाल करें)
छोटी – मोटी शारीरिक शिकायतें किसी बड़ी बीमारी के चिन्ह या लक्षण नहीं है और जब शरीर गोलियों के आदि हो जाता है तो आम तौर पर 2-3 महीने के भीतर ये बंद भी हो जाती हैं| कुछ औरतों को तो ये शिकायतें कभी होती ही नहीं|
अगर ये छोटी-मोटी शिकायतें 2-3 महीने बाद दूर न हो जाएँ/या वे बहुत ज्यादा परेशानी पैदा करें तो स्त्री को किसी अन्य तरीके से इस्तेमाल के बारे में सोचना चाहिए| लेकिन जब तक दूसरा तरीका अपना न लें तब तक गोलियों को बंद नहीं करना चाहिए|
नोट: ध्यान देने योग्य बात यह है कि उपरोक्त लक्षण उभरने की संभावना प्रति वर्ष गोली इस्तेमाल करने वाली एक लाख महिलाओं में किसी एक में होती है|
भ्रांति : गोलियों से कैंसर होती है|
सच : वैज्ञानिकों ने उन स्त्रियों को लेकर कई प्रकार अध्ययन किए हैं| पर, इन अध्ययनों से ऐसी कोई बात पता नहीं चली जो यह बताए कि गोलियों से कैंसर होता है सच तो यह है की ये अध्ययन यह बताते हैं कि गोली से स्त्रियों में कुछ प्रकार के कैंसर को रोका जा सकता हैं, या उनसे स्त्रियों का बचाव होता है| मसलन बीजदानी के कैंसर से या गर्भाशय की अंदरूनी सतह के कैंसर से| यह भी कि, जो स्त्री 35 साल से या उसके ऊपर की है, वह अगर गोलियां का इस्तेमाल करती है तो उसमें कैंसर के उभरने की आशंका कम है|
भ्रांति : गोली लेने से विकलांग बच्चे पैदा होते है, और एक साथ कई बच्चे होते हैं (जुड़वां, तीन)
सच : गोली लेने वाली स्त्री को ही विकलांग बच्चे पैदा होंगे या एक साथ भी हो सकता है जो गोली नहीं लेती है| यानी विकलांग बच्चे पैदा होने या एक साथ कई बच्चे पैदा होने या एक साथ कई बच्चे पैदा होने का कोई संबंध गोली के साथ नहीं है|
भ्रांति : अगर कोई स्त्री गोली का इस्तेमाल करती है तो इन्हें बंद कर देने बाद, उसे गर्भवती होने में मुश्किल होगी|
सच : ज्यादातर स्त्रियाँ, गोली लेना बंद करने बाद जल्दी गई गर्भवती जो जाती हैं| इस विषय के विद्वानों की राय है कि जिन थोड़ी सी स्त्रियों को गोली का इस्तेमाल बंद कर देने बाद भी गर्भवती होने में कोई मुश्किल होती है, उन्हें तो यह मुश्किल तब भी होती अगर वे गोलियों का इस्तेमाल न कर रही होती|
भ्रांति : गोली शरीर में इकठ्ठा हो जाती है|
सच : गर्भनिरोधक गोलियां स्त्री के पेट में ठीक उसी तरह घूल जाती है, जैसी कि अन्य दवाएँ और कोई भी भोजन सामग्री जो वह खाती है| गोलियां शरीर के भीतर जमा नहीं होती है|
ये गर्भनिरोधन के वैसे साधन है, जिनसे गर्भधारण स्थायी रूप से रोका जाता है|
1. पुरूष नसबंदी|
2. महिला बंध्याकरण या नलिका बंदी|
दोनों ही मामूली ऑपरेशन हैं| इन्हें ऑपरेशन वाली जगह को सुन्न करके किया जाता है| पुरूष नसबंदी, स्त्री नसबंदी के मुकाबले ज्यादा सरल, सुरक्षित और कम खर्च वाली है| आजकल एन.एस.बी. में चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है| पुरूषों को नसबंदी से न तो नसबंदी से न तो कमजोरी होता है न ही यौन सुख में कोई कमी आती है|
कौन कर सकता है?
नोट करें: नसबंदी वहाँ भी हो सकती है जहाँ एक छोटा आपरेशन कक्ष हो, जरूरी उपकरण (यंत्र और औजार) हो, संक्रमण से बचाव के लिए इंतजाम हो और अगर कोई इमरजेंसी हो तो महिला को जरूरी दवा दी जा सके तथा यंत्रों, औजारों के सहारे उसकी चिकित्सा की जा सके|
स्वभाविक गर्भपात या हमल गिरने का मतलब है अजन्मे बच्चे का नुकसान| कुछ कारणों से 10 में से लगभग 3 गर्भ प्राकृतिक रूप से गिर जाते हैं| आमतौर से स्वभाविक गर्भपात गर्भ के पहले तीन महीनों में होता है| परन्तु यह अगले 28 सप्ताहों अर्थात 6 ½ महीने तक भी हो सकता है|
भारत में गर्भपात के निम्न कारणों को कानूनी मान्यता प्राप्त हैं :
गर्भ में लड़की का होना गर्भपात का मान्य कारण नहीं है बल्कि बच्चे के लिंग की पहचान व उसके कारण गर्भपात कराना कानूनन अपराध है| इसके लिए सजा हो सकती है|
भारत में डॉक्टरी गर्भ समापन अधिनियम (एमटीपी एक्ट) 1972, गर्भ समापन के लिए कुछ शर्ते पेश करता है| महिलाएं इस अधिनियम द्वारा रखी गई शर्तों के अंतर्गत गर्भ समापन करा सकती हैं| इससे वह मृत्यु और गंभीर स्वास्थय समस्याओं से बच सकती हैं| यह सुरक्षित गर्भपात चार स्तम्भों पर आधारित है:
12 सप्ताह से पहले
एम.वी.ए (मैनुअल वैक्यूम एस्पिरेशन) सबसे आम तरीका है| यह सुरक्षित और सस्ता है| इसे 8 से 10 सप्ताह के गर्भ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है|
गर्भाशय की सफाई (डी.एंड.सी अर्थात डायलेटिंग एंड क्यूरेटिंग) 12 सप्ताह तक के गर्भ के लिए उपयोगी एवं सुरक्षित है|
12 से 20 सप्ताह
इस समय तक भ्रूण की थैली काफी बड़ी हो जाती है| ऊपर हमने तरीकों का वर्णन किया वह इसके लिए उपयोगी नहीं रह जाते| उनको अपनाना खतरनाक हो सकता है| 12-20 सप्ताह के लिए प्रमाणित एवं योग्य डॉक्टर एक नली (कैथीटर) द्वारा एक दावा गर्भाशय के अंदर डालते हैं| यह दवा भ्रूण की थैली के चारों ओर फ़ैल जाती है और गर्भ गिरवा देती है| इस प्रक्रिया में 2 से 3 दिन लगते हैं और यह एम् वी ए की तुलना में खतरनाक है|
सभी गर्भपात स्त्री के लिए खतरनाक होते हैं| कानूनी तौर पर योग्य डॉक्टरों की देख रेख में किया गया गर्भपात भी खतरनाक हो सकता है| यद्यपि यह गैरकानूनी गर्भपात की तुलना में काफी सुरक्षित होता है| गर्भपात निम्न समस्याएं पैदा कर सकता है :
एम वी ए पद्धति में आघात कम से कम होता है| रक्तस्राव तुरंत आरंभ हो सकता है या घर जाने के बाद| प्रया: इस का कारण गर्भाशय में रह जाने वाला भ्रूण थैली का कोई टुकड़ा होता है| संक्रमण लगभग 24 घंटे बाद होता है| संक्रमण से बचाव के लिए हर गर्भपात के बाद एंटीबायोटिक दवाएँ अवश्य दी जाती हैं|
संक्रमण के लक्षण दिखाई दें तो बेहतर होगा कि गर्भपात के दुसरे दिन महिला को उसके घर जाकर देखा जाए| इससे उसे स्वास्थय समस्याओं से बचाया जा सकेगा| महिला से उसकी हालत पूछिए| विशेषकर रक्तस्राव, बुखार और दर्द के बारे में जानकारी लीजिए| कुछ महिलाओं को गर्भपात के बाद दर्द होता है| लेकिन किसी भी क्लिनिक में उन्हें 3 दिनों के लिए दर्द होता है| लेकिन किसी भी क्लिनिक में उन्हें 3 दिनों के लिए दर्द निवारक गोलियां दी जाती हैं| इसलिए यह कष्ट आम तौर पर बहुत कम होता है|
गर्भपात से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि गर्भनिरोधक के उपाय अपनाए जाएँ और महिला – पुरूष युगल डॉक्टर या नर्स की सलाह लें| जिस गर्भ को गिरने से रोका जा सके उसके लिए जहाँ तक हो सके महिला को रोकें|
गर्भपात के बाद पूछे जाने वाले कुछ आम प्रश्न
क्या अगला गर्भ सामान्य रह सकेगा ?
हाँ, अगर वर्तमान गर्भ गर्भाशय के किसी दोष या रोग के कारण न गिराया गया हो| माहवारी फिर कब सामान्य रूप से होने लगेगी
मासिक चक्र लगभग 2 महीनों के बाद सामान्य हो जाएगा| कभी-कभी थोड़ा समय और लग जाता है|
गर्भ धारण से बचने के लिए क्या करें?
गर्भपात के बाद कम से कम 4 सप्ताह तक संभोग से बचें| इस समय गर्भाशय अंदर से कच्चा होता है| इसलिए संक्रमण का खतरा होता है| इसके बाद कॉपर टी या खाने वाली गोलियां इस्तेमाल की जा सकती हैं| पति को कंडोम इस्तेमाल करने की सलाह दें, गर्भनिरोध के दुसरे तरीकों जैसे आई. यू. डी. आदि के लिए महिला को प्रेरित करें|
महिला अपना सामान्य काम फिर कब संभाल सकती है ?
साधारण काम दो हफ्ते बाद फिर आरंभ किए जा सकते हैं| पूरी तरह स्वस्थ होने के लिए आराम और इलाज जरूरी हैं| क्या गर्भपात के बाद इलाज जरूरी है ?
फैले हुए गर्भाशय के सिकुड़ने और संक्रमण की संभावना को कम करने के लिए कुछ इलाज आवश्यक हैं| गर्भपात पूरी तरह हो जाए रक्तस्राव बंद हो जाए तो भी महिला को निकटतम क्लिनिक भेज दें| रक्त की कमी की स्थिति में आयरन गोलियां दी जा सकती है|
गैर कानूनी गर्भपात
जो गर्भपात एम. टी. पी. (डॉक्टरी सलाह के अनुसार गर्भपात) के नियमों के अंतर्गत न आता हो वह गैर कानूनी है और अपराध माना जाता है| नियमों का उल्लंघन निम्न सूरतों में होता है :
आम तौर पर माहवारी रूक जाने से महिला को अपने गर्भवती होने का शक होता है| परंतु उसके ब्याह के कुछ ही दिन हुए हों या सत्रह साल या उससे कम उम्र की हो या उसका मासिक धर्म पूर्व से ही अनियमित हो तो माहवारी का न होना गर्भधारण करने का निश्चित लक्षण नहीं हो सकता|
महिला यदि गर्भवती हो तो गर्भधारण करने के तीन से चार सप्ताह के अंदर कुछ लक्षण प्रकट होंग जो उसके शक की पुष्टि करेंगे| महिला का गर्भवती होना इन लक्षणों से सुनिश्चित हो जाता है :
महिला गर्भवती है या नहीं- यह जानने का सबसे अच्छा तरीका है गर्भ की जाँच| ऊपर हमने जिन लक्षणों का उल्लेख किया, सच पूछिए तो लक्षण भी गर्भवती होने को पूरी तरह सुनिश्चित नहीं बनाते| यदि महिला वास्तव में गर्भवती है तो गर्भाधान के सात दिन के अंदर उसके शरीर में एक विशेष प्रकार का हार्मोन (हार्मोन रासायनिक द्रव होते है जो शरीर में स्थित कुछ ग्रंथियों द्वारा बनते व छोड़े जाते हैं) बनता है; जो उसके मूत्र में प्रकट हो जाता हैं| ह्यूमन कोर्यनिक गोनाडोट्रोफिन नाम का यह हार्मोन गर्भित डिम्ब की आंवल (प्लेसेंटा) से निकलता है| मूत्र की विशिष्ट जाँच से गर्भ सुनिश्चित हो जाता है| यदि महिला बच्चा चाहती है तो गर्भ की जाँच जरूरी है इसलिए की अगर कोई स्त्री लम्बे समय तक इंतजार करने के बाद गर्भवती हुई तो वह जल्दी ही अपनी स्थिति जान कर संतुष्ट हो सकती है| इसके विपरीत यदि गर्भ अनचाहा है तो वह जल्द से सुरक्षित गर्भपात का निर्णय ले सकती है|
कौशल 1 : प्रेगनेंसी स्ट्रिप द्वारा गर्भ की जाँच
प्रेगनेंसी स्ट्रिप द्वारा मसिक बंद होने के 7 दिन के अंदर यह पता लगाया जा सकता है की महिला गर्भवती है या नहीं| इस स्ट्रिप द्वारा महिला के पेशाब में एच. सी. जी. (एक प्रकार का हर्मोन जो गर्भित डिम्ब के आंवल से निकलता और पेशाब में प्रकट होता है) की जाँच की जाती है
पेशाब निम्नलिखित तरीके से जांचा जाता है –
पहला चरण : महिला से कहिए कि वे अपना पेशाब का नमूना रखें| सही जाँच के लिए पेशाब रखते समय निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है :
दुसरे चरण : प्रेगनेंसी स्ट्रिप का इस्तेमाल
तीसरा चरण : स्ट्रिप पर उभरी रेखाओं को देखें
अगर स्ट्रिप पर गुलाबी रंग की दो रेखाएं दिखाई दे तो महिला गर्भवती है| अगर केवल एक रेखा दिखाई दे तो वह गर्भवती नहीं है| अगर एक भी लकीर न उभरे तो इसका मतलब यह है की जाँच असफल रही है| नये स्ट्रिप पर पुन: जाँच को असफल माना जाएगा और इसे दुबारा करने की जरूरत होगी|
प्रेगनेंसी स्ट्रिप द्वारा जाँच का परिणाम
प्रेगकलर कार्ड जाँच का परिणाम
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परिणाम नियंत्रण
महिला गर्भवती नहीं है
प्रेगकलर कार्ड जाँच का परिणाम
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परिणाम नियंत्रण परिणाम नियंत्रण
1. लौह की गोलियां
गर्भवती महिला को चाहिए कि वह नाश्ते व दोपहर के खाने के बाद एक – एक लौह की गोली (200 मि. ग्रा. प्रति गोली) लें| स्थानीय तौर पर उपलब्ध किसी भी ब्रांड की गोलियां दी जा सकती हैं| यह दवा महिला के खून हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाती है| इसे खाने से कभी कभी पेट में जलन मालूम होती है| यह एंटेसिड टिकिया या सिरप लेने से आसानी से दूर हो जाती है महिला को कब्ज हो सकता है और मल का रंग काला हो सकता है| कब्ज के लिए इसबगोल या अमलतास को कब्ज निवारक के रूप में लिया जा सकता है| इनमें से जो भी दवा लेनी हो | उसे सोते समय हल्के गर्म पानी के साथ लें| इसबगोल कुछ मंहगा होगा है| गेंहू की भूसी/चोकर को सत्तू के साथ मिला कर खाना पेट साफ करने का अच्छा उपाय है| लौह की गोलियों को बच्चों की पहुँच से दूर रखें|
2. कैल्शियम की गोलियाँ
गर्भवती महिला को 500 मि.ग्रा. की कैल्शियम की दो गोलियां हर रोज खानी चाहिए| कैल्शियम उसके बचे की हड्डियों के लिए जरूरी है| अगर भोजन में पर्याप्त कैल्शियम नहीं है तो उसकी अपनी हड्डियों का कैल्शियम शिशु के लिए खर्च होता है| इसके कारण महिला की हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं| ऐसी महिलाओं को उम्र बढ़ने पर कमर दर्द की शिकायत हो जाती है| हड्डियों में महीन दरारें भी पड़ने लगती हैं|
3. महिला को पर्याप्त मात्रा में सही भोजन खाने की सलाह दें
गर्भवती महिला को दिन में पांच बार भोजन करना चाहिए| अगर संभव हो तो वह मांस जरूर खाएँ| हरी पत्तेदार सब्जियाँ जैसे – मेथी, पालक या कोई भी स्थानीय साग उसके लिए लाभकारी हैं| इन्हें लोहे की कढ़ाही में पकाने से वो अधिक असरदार हो जाती हैं| महिला अंडे, दूध, फल जैसे केला, अमरुद, पपीता, शरीफा, सब कुछ खा सकती है| फलों से उसे कैल्शियम मिलेगा| लाल बाजरा (रागी) भी कैल्शियम और लौह का अच्छा स्रोत है|
4. गर्भवती महिला को घर पर भरी बोझ न उठाने की सलाह दें
गर्भवती महिला को सर पर भारी बोझ जैसे जलावन की लकड़ी आदि नहीं उठानी चाहिए| उसे दोपहर खाने के बाद रोजाना दो घंटे आराम भी करना चाहिए| परंतु महिला के लिए व्यायाम भी जरूरी है| इससे योनि और टांगों के बीच मांस पेशियाँ मजबूत होती है| गर्भ में बढ़ते शिशु को यही मांसपेशियां सहारा देती हैं| प्रसव के समय इन्हें पूरी ताकत लगानी होती है|
भोजन |
गुण |
बथुआ, पालक, सरसों, मेथी, अरवी के पत्ते और दूसरी हरी पत्तेदार सब्जियाँ, कोहड़ा, बंद गोभी, गाजर, मूली, शलजम और आलू |
विटामिन और खनिज लवण प्रचुर मात्रा में |
पपीता, केला, अंगूर, आम, सेव, अनानस, एवं चीकू| |
विटामिन और खनिज लवण |
मछली/सूखी मछली, बकरे का मांस/मुर्गी अंडा, दूध, धी, पनीर, मूंगफली, राजमा, फ्रेंचबीन, और सभी प्रकार की फलियां| |
प्रोटीन |
मछली/सूखी मछली, अंडा, बकरे का मांस, केंकड़ा, हरी पत्तेदार सब्जियाँ सभी फलियाँ और दालें, लाल बाजरा, गुड, बंदगोभी, फूलगोभी, शलजम, कद्दू, एवं अनानस | |
लौह और फौलिक एसिड (एक आवश्यक तत्व) |
दूध, दही, पनीर, तिल, लालबाजरा, बाजरा, फलियाँ, विशेषकर सोयाबीन, शरीफा एवं अमरुद |
कैल्शियम |
प्रजनन अंगों में संक्रमण और यौन रोग दोनों बहुत हद तक मिलते जुलते संक्रमण है| प्रत्येक यौन रोग को हम प्रजनन अंगो का संक्रमण कह सकते हैं, परन्तु सभी प्रजनन अंगों के संक्रमण को हम यौन रोग नहीं कह सकते हैं|
यह संक्रमण प्रजनन अंगों में होने वाले संक्रमण है| यह यौन रोग के कारण भी हो सकता है या प्रजनन मार्ग में किटाणुओं से भी हो सकता है|
जब संभोग के द्वारा प्रजनन अंगों में संक्रमण होता है तो उसे यौन रोग कहते हैं|
1. प्रजनन अंगों में संक्रमण के कारण
2. स्त्रियों के प्रजनन अंगों में संक्रमण और यौन रोगों के लक्षण –
3. पुरूषों के प्रजनन अंगों में संक्रमण और यौन रोग के लक्षण –
4. यौन रोग के लिए महत्वपूर्ण बातें
प्रजनन अंगों में संक्रमण और यौन रोगों का इलाज जल्दी नहीं करने से गंभीर समस्याएँ आ सकती हैं –
यौन रोगों में सबसे खतरनाक बीमारी है एड्स जो एक जानलेवा बीमारी है और यह सारी दुनिया में तेजी से फ़ैल रही है|
यह बीमारी एक जीवाणु एच.आई.वी. के द्वारा फैलता है| किसी भी स्वथ्य व्यक्ति में यदि यह वायरस प्रवेश कर जाए तो ये बढ़ते जाते हैं और धीरे- धीरे रक्त के सफेद कणों में घुसकर उन्हें नष्ट करे देते हैं इससे शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता खत्म हो जाती है| जिस व्यक्ति में एच. आई. वी. प्रवेश कर चुके हों वह व्यक्ति 2 से 10 वर्षों तक ऊपर से सामान्य लग सकता हैं पर उसके बाद उस में रोगों से लड़ने की ताकत घटती जाती है| शरीर में प्रतिरोध करने की ताकत घट जाने उस व्यक्ति को कोई भी बीमारी लग सकती हैं| क्योंकि उसके शरीर में संक्रमणों से संघर्ष करने की शक्ति नहीं बचती है| इस स्थिति को एड्स कहते हैं|
एड्स में एक साथ कई बीमारियों के लक्षण उभरते हैं इसलिए उसे सिंड्रोम (कई लक्षणों का समूह) कहते हैं| एड्स जानलेवा होता है| इसका इलाज नहीं हैं| सिर्फ रोकथाम की जा सकती है|
एच. आई. वी. हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कैसे कमजोर करता है –
1. एच. आई. वी. हमारे में कैसे प्रवेश कर सकते हैं –
2. एच. आई. वी. के बारे में महत्त्वपूर्ण बातें –
3. एड्स नहीं फैलता है –
अभी तक एड्स से बचाव के लिए कोई दवा या टिका नहीं है| कुछ उपाय हैं जिससे एड्स और एच. आई. वी. की तकलीफ से बचा जा सकता है –
प्रश्न :- एच. आई. वी. आया कहाँ से सबसे पहले इसका कैसे और कहाँ पता चला? भारत में यह कब आया ?
उत्तर : यह एक बड़ी भरी उलझन है जिसका अभी तक चिकित्सा जगत में पास कोई निश्चित उत्तर नहीं है| कुछ लोग कहते हैं कि एच. आई. वी. बंदरों/ चिपंजियों से मनुष्यों में आया, जबकि कुछ का विचार है कि पहले से ही वातावरण में घूम रहे किसी विषाणु (वायरस) में ही कुछ ऐसे परिवर्तन आए जिनके कारण वही विषाणु एच. आई. वी. में परिवर्तन हो गया है| खैर, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि एच. आई. वी. सबसे पहले आया कहाँ से| महत्वपूर्ण बात तो यह है कि एच. आई. वी. अब मौजूद है और हम सबके लिए एक बड़ा खतरा बन गया है|
विश्व में सर्वप्रथम सन 1981 में इस वायरस का अमेरिका में पता चला था| शुरू में इसे कई अन्य नामों में जाना गया था परन्तु अब इसका एक ही नाम है - एच. आई. वी.| भारत में एच. आई. वी.की पहचान पहली बार 1986 में मुम्बई के एक व्यापारी में हुई थी| तभी से, भारत में एच. आई. वी. पॉजिटिव लोगों और एड्स रोगियों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही है| एक अनुमान के अनुसार 2005 तक पूरे विश्व एच. आई. वी. पोजेटिव व्यक्तियों व एड्स रोगियों की सर्वाधिक संख्या भारत में होती| यह चिंता का विषय है|
प्रश्न : क्या दांत उखड़वाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले औजारों से एच. आई. वी./एड्स फैला सकते हैं|
उत्तर : जी हाँ यदि ऐसे औजार ठीक से किटाणु रहित नहीं किए गए हो, तो ये एच. आई. वी./एड्स फ़ैल सकते हैं|
प्रश्न : एच. आई. वी. में “विंडो पीरियड” क्या और कितना होता है?
उत्तर : जब एच. आई. वी. किसी के शरीर में प्रवेश करता है तो उसकी उपस्थिति का पता लगाने के लिए किए जाने वाले रक्त टेस्ट (जैसे – एलाइसटेस्ट) तुरंत यह पता नहीं लगा सकते हैं की किसी के शरीर में एच. आई. वी. है या नहीं| एच. आई. वी. के शरीर में प्रवेश करने से लेकर टेस्ट द्वारा उसकी उपस्थिति पता लगाए जा सकने तक के बीच के समय जो ही विंडो पीरियड कहते हैं| एच. आई. वी. के लिए यह आम तौर पर 3 महीने का माना जाता है पहली तो समझने की बात यह है कि विंडो पीरियड में एच. आई. वी. टेस्ट निगेटिव आ सकता है (जबकि एच. आई. वी. संक्रमण शरीर में मौजूद है) इस दौरान किए जाने वाले टेस्ट “ फ़ॉल्स निगेटिव” आ सकते हैं और व्यक्ति गलतफहमी में रह जाता है| दूसरी बात यह है कि विंडो पीरियड में भी ऐसा व्यक्ति दूसरों को एच. आई. वी. संक्रमण फ़ैलाने में सक्षम है|
प्रश्न : किसी के गाल पर चुम्बन लेने क्या एड्स हो सकता है?
उत्तर : किसी गाल पर चुम्बन लेने से एड्स नहीं हो सकता है|
प्रश्न : यह कहा जाता है लार में एच. आई. वी. होता है| यदि ऐसा है तो हम अगर किसी एच. आई. वी. पॉजिटिव व्यक्ति के साथ – उसी के बर्तन से भोजन खाएँगे तो क्या हमें एड्स नहीं हो जाएगा|
उत्तर : यह सही है कि मनुष्य की लार में एच. आई. वी. होता है परन्तु इसमें एच. आई. वी. की मात्रा इतनी कम होती है कि वह एच. आई. वी. संक्रमण फैलाने के लिए पर्याप्त नहीं है| इसके के साथ – साथ, लार में कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ होतें हैं जो कि उसमें उपस्थित एच. आई. वी. को नष्ट भी कर देते हैं| यही कारण है कि लार से एच. आई. वी. नहीं फैलता| और आप अगर चाहें तो, बिना किसी डर के, एच. आई. वी. पाजिटिव व्यक्ति के बर्तन से उसके साथ भोजन का सकते हैं|
प्रश्न : क्या गर्भवती महिला को भी असुरक्षित यौन संबंधों से एड्स हो सकता है अर्थात यदि वह बिना निरोध प्रयोग के किसी अन्य व्यक्ति से संभोग करती है?
उत्तर : जी हाँ, गर्भवती महिला को भी ऐसे सेक्स संबंधों से एड्स का उतना ही खतरा है जितना किसी भी अन्य महिला को|
प्रश्न : मैं महिला हूँ| लगभग 15 दिन पहले किसी अन्य व्यक्ति ने स्तन दबाए थे| क्या ऐसा करने से मुझे एड्स हो सकत है?
उत्तर : नहीं| ऐसा करने से एड्स नहीं हो सकता है|
प्रश्न : मैं एक से 19 वर्षीय लड़का हूँ तथा पिछले 1 वर्ष से अपने एक मित्र गुदा मैथुन करता हूँ| क्या इससे मुझे एड्स हो सकता है? मुझे मालूम नहीं है कि मेरा मित्र एड्स से ग्रस्त है या नहीं|
उत्तर : जी हाँ, यद गुदा – मैथुन में आप कंडोम का सही व पूर्ण प्रयोग नहीं करते हैं और आपका मित्र एच. आई. वी. पॉजिटिव है तो आपको एच. आई. वी. संक्रमण तथा एड्स होने का खतरा है आपका मित्र एच. आई. वी. पॉजिटिव है या नहीं, इसका पता तो केवल उसके रक्त की जाँच करके ही किया जा सकता है|
प्रश्न : एड्स का वायरस किसी व्यक्ति के शरीर से बाहर आने पर (जैसे की खून की बूँद या वीर्य में) कितनी देर तक जीवित रहता है?
उत्तर : एक अच्छी बात है कि एच. आई. वी. अत्यंत नाजुक वायरस है; जो कि वातावरण में आने पर 5-6 मिनट में स्वयं ही मर जाता है| एंटीसेप्टिक घोल जैसे कि- डेटोल, एल्कोहल , ईथर आदि के (शरीर के बाहर) संपर्क में आने पर यह और भी जल्दी मर जाता है| यह भी जान लीजिए कि केवल जीवित एच. आई. वी. वायरस ही एड्स फैला सकता है|
प्रश्न : यदि किसी के शरीर में एच. आई. वी. प्रवेश कर जाए तो क्या उस व्यक्ति का सारा खून बदल कर एच. आई. वी. को बहार नहीं निकाला जा सकता?
उत्तर: विचार तो अच्छा है परंतु चिकित्सा विज्ञान में अभी तक ऐसा करना संभव नहीं हो पाया है क्योंकि यह व्यवहारिक नहीं है| इसके अतिरिक्त एच. आई. वी. शरीर में केवल खून में ही नहीं होता है, अन्य अंगों में भी यह पाया जाता है| कहाँ – कहाँ में इसे हटायेंगे?
प्रश्न : यदि किसी का एलाइसा टेस्ट एच. आई. वी. के लिए पॉजिटिव है तो क्या वह व्यक्ति निश्चित रूप से एच. आई. वी. पॉजिटिव है?
उत्तर : नहीं यदि एलाइसा टेस्ट एच. आई. वी. के लिए पॉजिटिव है तो इसे कन्फर्म करने के लिए वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट कराना अति आवश्यक है| वैस्टर्न ब्लॉट के पॉजिटिव आने पर ही उसे व्यक्ति को एच. आई. वी. पॉजिटिव कहा जा सकता है|
प्रश्न: जब भी मैं अपने बाल कटवाने जाता हूँ| तो नाई इसके लिए अपना उस्तरा भी मुझे पर प्रयोग करता है| एक व्यक्ति के साथ काटकर वह उस्तरे को धोता भी नहीं है| क्या इससे एड्स फैलने का खतरा है?
उत्तर : यह एक दिलचस्प प्रश्न है जो हम सबके लिए महत्वपूर्ण है| नाई के उस्तरे से एड्स तभी फ़ैल सकता है जबकि –
1) पहले नाई ने उस्तरा किसी एच. आई. वी. व्यक्ति पर प्रयोग किया हो और प्रयोग करते समय उसने उसे एच. आई. वी. ग्राहक की चमड़ी पर कट लगा दिया हो जिससे खून निकलकर उस उस्तरे पर लग गया हो|
2) उसने उसी उस्तरे को, बैगर धोए, अगले 4-5 मिनट में अगले ग्राहक पर प्रयोग किया हो तथा उसी उस्तरे से इस ग्राहक की खाल पर भी कट लग गया हो और उस्तरे पर (पहले ग्राहक के कट से) लगा हुआ खून दूसरे ग्राहक के कट में जा मिला हो|
ये सारी घटनाएँ बिल्कुल इसे हों तो एड्स हो सकता है अन्यथा नहीं| प्रैक्टिकल रूप से कहें तो इन सारी घटनाओं का संयोग होना थोड़ी सी मुश्किल बात है| फिर भी, अपने बचाव के लिए नाइ से कहिए कि आप पर प्रयोग करने से पहले वह उस्तरे को किसी एंटीसेप्टिक घोल (जैसे डेटोल) से अच्छी तरह दो ले या फिर एक बिल्कुल नया ब्लेड बदल कर उस्तरे का प्रयोग करे| आप अपना ब्लेड अपने साथ भी ले जा सकते है|
प्रश्न : मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार को एच. आई. वी. पॉजिटिव पाया गया है| अभी तक उसे कोई लक्षण नहीं है| ऐसे में उसकी देखभाल के लिए हमें और उसे क्या करना चाहिए?
उत्तर : जैसा की आप जानते हैं एच. आई. वी. पॉजिटिव व्यक्ति को देर-सवेर एड्स रोग के लक्षण तो आवश्य ही होगें| जब तक ये लक्षण पैदा नहीं होते, अच्छी बात है| जब तक किसी एच. आई. वी. पॉजिटिव व्यक्ति को लक्षणा पैदा नहीं होते तब उसकी देखभाल में यह सब होना चाहिए –
1) पौष्टिक आहार लें व नियमित रूप से हल्का-फुल्का व्यायाम करें| इससे शरीर तंदरूस्त बना रहेगा और संक्रमण से बचाव में आसानी होगी|
2) प्रतिदिन विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थ आवश्य लें (जैसे – नींबू मौसमी, संतरा, आवंला, अमरूद) विटामिन “सी” की एक गोली भी ले सकते हैं| इससे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है|
3) यौन संबंध बनाते समय – ऐसे व्यक्ति को हमेशा कंडोम को प्रयोग करना चाहिए|
4) ऐसे व्यक्ति को स्वयं चाहिए की वह अपना ब्लेड, रेजर, टूथब्रश, शेविंग मशीन जैसे व्यक्तिगत सामान किसी अन्य को प्रयोग न करने दे|
5) अपनी जीवन शैली सन्तुलित बनाइए| दिनचर्या को नियमित करिए| समय पर जागने व सोने की आदत डालिए| शराब व धूम्रपान से रहें|
6) ऐसे लोगों से दूर ही रहें या उनसे बचाव के लिए उचित सावधानियाँ बरतें जिन्हें खाँसी आदि हैं|
7) अपनी आर्थिक स्थिति का ध्यान करें| अपनी सम्पति व पैसे के लेन-देन आदि का अपनी पत्नी / पति/ घर के किसी अन्य सदस्य को विस्तृत विवरण देकर रखें|
8) योग, मेडिटेशन आई के माध्यम से ध्यान लगाना सीखें| इससे माँ शांत रखने में बेहद सहायता मिलेग| यदि पूजा-पाठ करते हैं तो उससे भी चित्त शांत होता है| अपनी स्थिति के बारे में चिंता करने से स्थिति और भी ख़राब होगी| इसका क्या फायदा?
9) प्रसन्नचित रहें व पढ़ने – लिखने, बागवानी या अपने किसी अन्य शौक में दिल लगाएँ|
10) सारांश में कहें तो जो समय ऐसे व्यक्ति के पास बचा है, उसका भरपूर लाभ उठाकर एक सामान्य जीवन बिताने का प्रयास करें| मित्रों व परिवारजनों को ऐसे व्यक्ति के साथ सामान्य व प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए| उसका तिरस्कार न करें| ऐसे व्यक्ति को दया व सहानूभूति नहीं बल्कि सामान्य प्रेमपूर्ण व्यवहार चाहिए|
प्रश्न : यदि कोई सामान्य, स्वस्थ्य पुरूष किसी ऐसी महिला से, बिना कंडोम प्रयोग के हुए सेक्स करता है; जो कि एच. आई. वी. पॉजिटिव है तो कितनी बार सेक्स के बाद पुरूष को एच. आई. वी. संक्रमण की संभावना हो जाती है?
यदि ऐसे सेक्स संबंध के समय पुरूष के लिंग पर कोई कट, जख्म या खरोंच आदि नहीं है तो ऐसे पुरूष के शरीर में लिंग के माध्यम से एच. आई. वी. कैसे प्रवेश कर सकता है?
उत्तर : यह एक अत्यंत दिलचस्प प्रश्न है| यदि कोई सामान्य पुरूष किसी एच. आई. वी. पॉजिटिव महिला से बिना कंडोम के सेक्स संबंध बनाता है तो कहा तो यह जाता की लगभग 80-100 बार संबंध बनाने से केवल 1 बार ही ऐसा हो सकता है कि पुरूष को उस महिला से एच. आई. वी. संक्रमण हो जाए| लेकिन जरा रुकिए| किसी को यह कैसे पता चलेगा कि वह एक संबंध कौन सा वाला है? चूंकि ऐसा पता नहीं चल सकता है, इसलिए हर ऐसे संबंध को खतरे वाला संबंध माना जाता है|
एच. आई. वी. पॉजिटिव महिला की योनि में स्रावों (द्रवों में एच. आई. वी. की मात्रा काफी बहुतायत में होती है| जब बिना कंडोम के सेक्स किया जाता है तो यह एच. आई. वी. लिंग के अगले भाग पर उपस्थित कुछ सूक्ष्म रिसेप्टर्स पर चिपक जाता हैं और इन्हीं रिसेप्टर्स के माध्यम से लिंग के अंदर की खून की नालियों में पहुंच जाता है| वहाँ से यह सारे शरीर में फ़ैल जाता है| इस प्रकार हम देखते हैं कि लिंग पर बिना किसी जख्म, घाव, कट आदि के भी एच. आई. वी. संक्रमण हो सकता है|
पत्नी छोड़ कहीं न जाओ, एड्स को अपने घर न लाओ| भावी एड्स से बचाव का है राज, यौन रोगों का तुरंत करो इलाज |
पुरूषों और स्त्रियों की प्रजनन प्रणाली यानी प्रजनन के रास्तों में संक्रमण कई लक्षणों के रूप में उभरते हैं| यह संक्रमण तब होते हैं जब प्रजनन मार्ग में कोई किटाणु प्रवेश कर जाए| ये अंगों में स्वत: पाये जाने वाले किटाणुओं से भी हो जाते हैं हब इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है|
प्रजनन अंगों में निम्न कारणों से संक्रमण हो सकता है :
स्त्रियों के यौन रोग आम तौर पर ज्यादा होते हैं क्योंकि उनके शरीर की बनावट, और उसकी प्रणाली ही कुछ ऐसी है (जैसे मासिक धर्म, गर्भावस्था और प्रसव) कि उसमें रोगों की किटाणु जल्दी प्रवेश कर जाते हैं, और देर तक पनपते रह सकते हैं|
जो स्त्रियाँ इस उम्र की होती हैं कि बच्चे जन सकें, उनमें से प्राय: सभी में, प्रजनन अंगों का कोई न कोई संक्रमण देखने में आता है| जब ये संक्रमण उन तक संभोग के कारण पहुंचते हैं तो इन्हें यौन रोग कहा जाता है|
1. सामान्य और असामान्य योनि स्राव का फर्क:
योनि से सामान्य स्राव गर्भाशय के द्वार से साफ श्लेष्मा के रूप में निकलता है| इसकी मात्रा बढ़ती जाती है और अंडा विसर्जन के वक्त योनि चक्र के बीच में यह पतली हो जाती है| योनि की दीवारों से निकलने वाला साफ स्राव, यौन उत्तेजना और भावावेग के समय और बढ़ जाता है| इसमें देह की सामान्य गंध होती है|
असामान्य स्राव की गंध अच्छी नहीं होती| रंग असामान्य होता है| यह जब तब होने लगता है और अक्सर जनेनेंद्निया में और उनके आसपास खुजलाहट और ललाई पैदा करता है|
2. यौन रोग कैसे फैलते हैं?
यौन रोग तब होता है, फैलता है जब किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संभोग किया जाए जिसे संक्रमण हो और संभोग के दौरान न अपनाया गया हो, जो संक्रमण से बचाव कर सके| भले ही यह संभोग योनि या गुदा या मुंह में क्या गया हो| योनि, लिंग, गुदा और मुंह वे मार्ग हैं, जिनसे होकर यौन रोग के किटाणुओं को शरीर आक्रमण करने में सुविधा होती है|
3. यौन रोगों को लेकर खास हिदायतें :
4. यौन रोगों के रोकथाम:
इन रोगों से बचाव के लिए कोई ऐसा टिका या दवा नहीं है किसे ले लेने पर इनसे सुरक्षित हुआ जा सके| हाँ, ऐसे कुछ तरीके जरूर हैं, जिन्हें अपनाने से यौन रोग होने की आशंका कम हो जाती है| मसलन :
5. प्रजनन अंगों में संक्रमण/ यौन रोगों से उत्पन्न समास्याएं:
प्रजनन अंगों में संक्रमण और रोगों का अगर इलाज न किया जाए तो गंभीर समस्याएँ पैदा हो सकती हैं|
6. प्रजनन अंगों में संक्रमण/यौन रोगों से संबंधित खास हिदायतें :
7. यौन रोगों से संबंधित भ्रांतियां और सच्चाईयां
भ्रांति : यौन रोग ईश्वर का अभिशाप है|
सच : यौन रोग किटाणुओं से होते है, ये किटाणु यौन संसर्ग से शरीर में प्रेवश करते हैं, अगर सवास के वक्त सुरक्षित तरीके अपनाएं जाएँ तो इन्हें रोका जा सकता है|
भ्रांति : यौन रोग से पीड़ित पुरूष अगर किसी कुंआरी लड़की से सहवास करें तो यौन रोग से उसे छूटकारा मिला जाएगा|
सच : यौन समस्याओं का इलाज दवाओं से ही संभव है, इसलिए जल्दी से जल्द डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए|
भ्रांति : यौन रोग समय के साथ अपने आप ठीक हो जाते है और उसके इलाज के लिए ज्यादा कुछ किया नहीं जा सकता है|
सच : यौन रोग दवाओं से ही ठीक होते हैं| हो सकता है कि इलाज किए बिना भी, उसके कुछ लक्षण दूर जाएँ पर संक्रमण के किटाणु शरीर में ही मौजूद रहते हैं और आगे चलकर गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकते हैं|
भ्रांति : अगर किसी स्त्री को यौन रोग है तो वह ‘चरित्रहीन’ है, और अपने पति से उसे जरूर ही विश्वासघात किया है|
सच : आमतौर स्त्रियों को यौन रोग अपने पति से ही मिलते है, जो सुरक्षा का कोई तरीका अपनाए बिना, किसी संक्रामक रोग से ग्रस्त व्यक्ति से सहवास कर बैठते है
भ्रांति : जिस यौन रोग हो उसे अपने पत्नी/पति से इसे छिपाकर रखना चाहिए|
सच : रोग के इलाज के लिए जरूरी है कि दोनों का ही इलाज के लिए यह जरूरी है कि दोनों का ही इलाज किया जाए| मान लीजिए अगर कोई पुरूष बिना अपनी पत्नी को बताए अपने यौन रोग का इलाज कराता है तो उसे अपनी पत्नी के साथ सहवास करने पर यही रोग फिर से लग सकता है, क्योंकी जब तक पत्नी का भी इलाज न हो जाए तब तक रोग का किटाणु तो पत्नी के शरीर में मौजूद रहते हैं|
भ्रांति : पुरूषों को केवल वेश्याओं के साथ सहवास के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए|
सच : पुरूषों को कंडोम का इस्तेमाल स्वयं अपने को, अपनी पत्नी को, और बच्चों को यौन रोगों और उसे पैदा होने वाली समस्याओं से बचाने के लिए करना चाहिए|
भ्रांति : अगर आप अपने प्रजनन अंगो के किसी संक्रमण से पीड़ित है, तो आपको इस की चर्चा किसी से ही करनी चाहिए|
सच : प्रजनन अंगों की कोई भी बीमारी, शरीर के किसी भी अन्य हिस्से में होने वाली बीमारियों के सामान है| इसके लिए डॉक्टरी मदद और सलाह आवश्य लेनी चाहिए|
स्त्रियों में निम्नलिखित प्रजनन अंगों में संक्रमण हो सकता है :
1. बाहरी जनेनेंद्निया
2. योनि
3. सर्विक्स (गर्भाशय का मुख)
4. अंडवाहिनी नली
5. अंडकोष
पुरूषों में निम्नलिखित प्रजनन अंगों में संक्रमण हो सकता है:
1. लिंग
2. अंडकोष
3. अंडकोष के थैली
1. कमजोर स्वास्थय
2. बाहरी जनेनेंद्निया की साफ़ सफाई का ध्यान न रखना
3. प्रजनन अंगों में घाव
4. अस्वच्छ /गलत तरीके से प्रसव या गर्भपात होना, या कॉपर - टी लगना
5. संक्रमित इंसान के साथ यौन संभोग
1. योनि के सामान्य स्राव की मात्रा में बदलाव
2. प्रसूति व गर्भपात के बाद के संक्रमण
3. असुरक्षित गर्भपात, अस्वस्थ्य तरीके से कॉपर – टी लगवाने के बाद के संक्रमण
1. प्रोस्ट्रेट ग्रंथि की सूजन
2. ऐपिडाइमस ग्रंथि की सूजन
स्त्रियों में |
पुरूषों में |
दोनों में (पुरूषों व स्त्री) |
असामान्य और बदबूदार स्राव, यानी कि:
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लिंग से असामान्य और बदबूदार स्राव, या लिंग पर घाव (पीले/हरे रंग का) |
बाहरी जननेंद्रिय का लाल होना या दर्द या सूजन होना |
पेट के नीचे दर्द (पेडू भाग) |
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पेशाब करते समय जलन या दर्द |
संभोग के समय दर्द |
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बाहर जनेनेंद्निया में खारिश या खुजली |
माहवारी के बिना, असामान्य तौर पर योनि से खून आना |
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हल्का बुखार और बीमार होने का अहसास |
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बाहरी जनेनेंद्निया पर या आस-पास, मलाशय के पास या अंदर, मुंह के अंदर-फोड़े या छाले |
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गले में सूजन या दर्द |
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फुंसी – हथेली और के तलवों पर भी हो सकते है| |
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पेट में ऐठन/ सिकुड़न |
स्रोत : नव भारत जागृति केंद्र /जेवियर समाज संस्थान, राँची
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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