स्वापक द्रव्य दो प्रकार के होते हैं - प्राकृतिक एवं कृत्रिम । प्राकृतिक स्वापक चिकित्सा संबंधी महत्वपूर्ण उपयोग में आते हैं जैसे कि मार्फिन, कोडिन एवं थिबैन जिनका उत्पादन अफीम से होता है । कृत्रिम स्वापक पदार्थों का निर्माण फैक्टरियों में होता है जिसमें कच्ची सामग्री के रूप में प्लांट प्रॉडक्ट की आवश्यकता नहीं होती । इस प्रकार प्राकृतिक स्वापक द्रव्य का निर्माण परोक्ष रूप से अफीम की मांग को प्रभावित करता है तथा उस क्षेत्र को भी जहां किसानों को अफीम की खेती करने की अनुमति दी जाती है । अतएव प्राकृतिक स्वापक द्रव्यों के उत्पादन स्तर में अकस्मात परिवर्तन से बचना चाहिए ताकि किसानों को कम से कम कठिनाई हो । भारत उन कुछेक देशों में से एक है जिसे अंतरराष्ट्रीय रूप से अफीम की खेती करने की अनुमति प्राप्त है तथा संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के क्रमिक संकल्प ये मांग करते हैं कि भारत (तथा अन्य उत्पादक देश) मांग एवं पूर्ति में संतुलन बनाए रखें । इस प्रकार एक तरफ भारत दूसरे अफीम उत्पादक देशों के साथ यह सुनिश्चित करने का दायित्व वहन करता हे कि विश्व में अफीम की आपूर्ति में कोई कमी न हो तो दूसरी तरफ यह भी सुनिश्चित करने का दायित्व है कि अफीम का अधिकाधिक संचय न हो।
नियंत्रण की सीमा तक स्वापक द्रव्यों के निर्माण एवं उपयोग, उनकी तैयारियां एवं लवण से संदर्भित नीति का विवरण इस प्रकार है -
(क) प्राईवेट सैक्टर सहित देश में अफीम के अल्कालॉयड्स का निर्माण अत्यधिक कार्यकुशल एवं प्रभावी रूप से किया जाएगा ।
(ख) देश के भीतर अधिकतम संभव मूल्य वृद्धि का संवर्द्धन अल्कालायड्स द्वारा औषध निर्माण अन्य मूल्य वर्द्धित स्वापकों के निर्माण में अल्कालायड्स का उपभोग एवं अन्य उपायों के माध्यम से किया जाएगा और उस सीमा तक किया जाएगा जिससे जनहित की आवश्यकता पूरी हो तथा अंतरराष्ट्रीय संधि, कनभेनसन एवं प्रोटोकॉल के अंतर्गत भारत की जरूरतों के अनुरूप हो।
(ग) अफीम, पोस्त की खेती करने वालों की कुल आय को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाएंगे । (घ) भारत एवं विश्व में अफीम मिश्रित औषध उसकी व्युत्पत्ति एवं निर्माण के मांग को पूरा करने के लिए हर प्रयास किया जाएगा ।
(ङ) अफीम मिश्रित औषध के उत्पादन एवं व्यापार को कड़ाई से विनियमित किया जाएगा ताकि इसके अन्य रूपों में प्रयोग की आशंका को कम किया जा सके ।
नियंत्रण की सीमा तक कृत्रिम स्वापक द्रव्यों, उनके लवण एवं निर्माणों के उत्पादन से संबंधित लाइसेंस स्वापक आयुक्त द्वारा दिया जाएगा बशर्ते कि वर्ष के लिए प्रत्येक ऐसे स्वापक के अनुमान को आईएनसीबी ने अनुमोदित कर दिया है ।
भारत औषध द्रव्यों का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक रहा है। अतएव इसकी यह जिम्मेदारी है कि विश्व में स्वापक द्रव्यों के चिकित्सीय आपूर्ति हेतु योगदान दे । आईएनसीबी के विनियमों के अधीन स्वापक द्रव्यों का निर्माण तथा उनका निर्यात और उनकी तैयारी को जहां तक संभव हो, प्रोत्साहित किया जाएगा ।
मन-प्रभावी पदार्थों के निर्माण हेतु लाईसेंस राज्यों में ड्रग कंट्रोल के प्रभारी प्राधिकारियों द्वारा दिया जाएगा (कुछ राज्यों में इन्हें फूड एंड ड्रग अथारिटी (एफडीए) कहा जाता है जबकि कुछ राज्यों इन्हें स्टेट ड्रग कंट्रोलर कहा जाता है) । लाईसेंस देने वाले प्राधिकारी जारी किए गए लाईसेंस का एक रिकार्ड रखेंगे तथा मन -प्रभावी पदार्थों के निर्माण व्यापार, उपभोग आदि के संबंध में रिकार्ड रखेंगे । सरकार इस बारे में विचार करेगी कि मन -प्रभावी पदार्थों के निर्माताओं के लिए सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नार्कोटिक्स में ऑन लाइन रजिस्टर एवं रिटर्न प्रेषित करना अनिवार्य होगा ।
सिंगल कनवेंशन ऑन नार्कोटिक्स ड्रग्स 1961 इस बात की मांग करता है। कि देश में स्वापक द्रव्यों का उपयोग एवं उपभोग आईएनसीबी द्वारा अनुमोदित आकलनों के अनुसार सीमित होनी चाहिए । विभिन्न स्वापक द्रव्यों के लिए आईएनसीबी अनुमोदित आकलनों का वितरण स्वापक आयुक्त द्वारा यूजर्स को कोटा के रूप में किया जाएगा जो अगले वर्ष की अनुमानित मांग के संबंध में सूचना संग्रहीत एवं समेकित करेगा तथा विगत वर्ष के दौरान कितनी मात्रा खपत हुई इसका भी विवरण रखेगा ।
चीफ कंट्रोलर ऑफ फैक्टरीज, नई दिल्ली इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि भारत में उपयोगकर्ताओं को मार्फीन, कोडीन, थिबेन और उनके लवणों की पर्याप्त और निर्बाध आपूर्ति होती रहे। विशेष रूप से कोडीन फॉस्फेट की जिसका घरेलू उत्पादन में जरूरत से ज्यादा मात्रा की खपत होती है । देश के भीतर संभावित मांग एवं अनुमानित उत्पादन का मूल्यांकन वर्ष के आरंभ होने के पूर्व किया जाएगा और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाएंगे कि मांग आपूर्ति में जो कमी आ रही है उसको निर्यात के द्वारा पूरा किया जाएगा ।
स्वापक द्रव्यों की बिक्री, परिवहन, उपयोग एवं उपभोग को राज्य सरकारों द्वारा एनडीपीएस एक्ट के तहत बनाए गए एनडीपीएस नियमों के अनुसार विनियमित किया जाता है । अनेक राज्यों में अधिकाधिक विनियम और जटिल कार्यविधि चिकित्सकों को स्वापक द्रव्यों जैसे मार्फीन आदि देने के लिए अनुत्साहित करते हैं और दवा बिक्रेताओं को भी उनका स्टॉक रखने के लिए अनुत्साहित करते हैं । मार्फीन जोकि अफीम की व्युत्पत्ति है, को एक उत्तम पीड़ा निरोधक के रूप में जाना जाता है और जो अकेले ही बेहद कठिन दर्द से राहत दिला सकता है, ऐसा दर्द जो कि बेहद बीमारग्रस्त कैन्सर रोगी अथवा बन्दूक से घायल व्यक्ति को होता है । इन कार्यविधियों के परिणामस्वरूप मार्फीन का चिकित्सा संबंधी उपयोग बहुत कम है और इसी के परिणामस्वरूप भारत में हजारों रोगी परिहार्य दर्द से पीड़ित रहते हैं। भारत में जो यूमिनिटी का एक छठा भाग है। मार्फीन का एक हजारवां भाग उपयोग करता है। मार्फीन एवं अन्य ऑपियोड्स के उपयोग से संबंधित कार्यविधि को सरल बनाने के लिए राज्य सरकारों द्वारा प्रभावी उपाय किए जाएंगे तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय डाक्टरों और दवा बिक्रेताओं को इनकी तैयारियों को प्रेस्क्राइव करने और स्टॉक रखने के संबंध में जानकारी देगा । अंडर ग्रेजुएट मैडिकल छात्रों के पाठ्यक्रम में पेलियेटिव केयर पर एक कोर्स शामिल करने पर विचार किया जाएगा । राज्य सरकारों द्वारा पेलियेटिव केयर सेंटर की स्थापना तथा । अथवा मान्यता दी जाएगी जहां पर रोगियों को प्रेलियेटिव केयर उपलब्ध कराया जाएगा । प्रत्येक जिले में कम से कम दो ऐसे पेलियेटिव केयर सेंटर होने चाहिए । राज्य सरकार द्वारा कार्यविधि स्थापित की जाएगी ताकि इन केन्द्रों में मार्फीन एवं अन्य ऑपियोइस की पर्याप्त मात्रा में निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित हो सके । इस संबंध में डब्लयू एच ओ की दिशा-निर्दैशों का अध्ययन किया जाएगा और इन्हें हर संभव रूप से अपनाया जाएगा ताकि पेलियेटिव केयर तथा पीड़ा राहत के लिए ऑपियोइस की उपलब्धता की जरूरत एवं उनके गलत प्रयोग को रोकने के बीच संतुलन बनाया जा सके ।
स्वापक द्रव्यों को रखने उनके परिवहन, व्यापार, उपयोग के संबंध में केन्द्र सरकार द्वारा एनडीपीएस एक्ट के अनुसार विनियमित किया जाएगा । एनडीपीएस नियम तथापि कम से कम नियंत्रण की व्यवस्था रखते हैं और यह मांग करते हैं।
कि ऑपरेटरों द्वारा ड्रग्स एंड कौस्मेटिक्स एक्ट एंड रूल्स के तहत विनियमों का अनुपालन किया जाए । इस प्रकार स्वापक द्रव्यों के उपयोग के संबंध में आंकड़ा का संग्रहण तथा उनकी मानीटरिंग करना एक समस्या है। भारत सरकार इस संबंध में जहां तक संभव हो स्वापक द्रव्यों के निर्माण, व्यापार एवं उपयोग को विनियमित करने के लिए गैर अतिक्रमी प्रणाली को लागू करेगी । सरकार स्वापक द्रव्यों के व्यापारियों के लिए सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नार्कोटिक्स में ऑन लाइन रजिस्टर और रिटर्न प्रेषित करना अनिवार्य करने पर विचार करेगी।
स्रोत: राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकारअंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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