इस विधि में वे क्रियाएं शामिल हैं जिनके द्वारा धान के खेत में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है। जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर एवं कम्पोस्ट की खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तैयारी एवं बुवाई में प्रयोग किये जाने वाले यंत्रों के प्रयोग से पूर्व सफाई एवं अच्छी तरह से तैयार की गई नर्सरी से पौध को रोपाई के लिए लगाना आदि।
खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है। किसान धान के खेतों से खरपतवारों को हाथ से या खुरपी की सहायता से निकालते हैं। लाइनों में सीधी बुवाई की गई फसल में हों चलाकर भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त लाइनों में बोई गई फसल में पैडीवीडर चलाकर भी खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। सामान्यत: धान की फसल में दो निराई-गुड़ाई, पहली बुवाई/रोपाई के 20-25 दिन बाद एवं दूसरी 40-45 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है तथा फसल की पैदावार में काफी वृद्धि की जा सकती है।
जब खरीफ मौसम की पहली बरसात होती है तो बहुत से खरपतवार उग जाते है जब ये खरपतवार 2-3 पत्ती के हो जाए तो इनकों शाकनाशी द्वारा या यांत्रिक विधि (जुताई करके) से नष्ट किया जा सकता है। जिससे मुख्य फसल में खरपतवारों के प्रकोप में काफी कमी आ जाती है।
रबी की फसल की कटाई के तुरंत बाद या गर्मी के मौसम में एक बार गहरी जुताई कर देने से खरपतवारों के बीज एवं कंद (राइजोम) जमीन के ऊपर आ जाते हैं तथा तेज धूप में अपनी अंकुरण क्षमता खोकर निष्क्रिय हो जाते हैं। इस विधि से कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप भी काफी कम हो जाता है। रोपाई वाले धान के खेतों में जुताई एवं मचाई (पडलिंग) करके खरपतवारों की समस्या को कम किया जा सकता है। पडलिंग एवं हैरो करने के बाद खेत में पाटा लगाकर एक सार करने से एवं खेत में पानी को ठीक प्रकार से काफी समय तक रोकने से खरपतवारों की रोकथाम आसानी से की जा सकती है।
जहां पर खरपतवारों की रोकथाम के साधनों की उपलब्धता में कमी हो वहां पर ऐसी धान की किस्मों का चुनाव करना चाहिए जिनकी प्रारंभिक बढ़वार खरपतवारों की तुलना में अधिक हो ताकि ऐसी प्रजातियाँ खरपतवारों से आसानी से प्रतिस्पर्धा करके उन्हें नीचे दबा सके। प्राय: यह देखा गया है कि किसान भाई असिंचित उपजाऊ भूमि में धान को छिटकवां विधि से बोते हैं। छिटकवां विधि से कतारों में बोई गई धान की तुलना में अधिक खरपतवार उगते हैं तथा उनके नियंत्रण में भी कठिनाई आती है। अत: धान को हमेशा कतारों में ही बोना लाभदायक रहता है।
धान की कतारों के बीच की दूरी कम रखने से खरपतवारों को उगने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाता है। इसी तरह बीज की मात्रा में वृद्धि करने से भी खरपतवारों की संख्या एवं वृद्धि में कमी की जा सकती है। धान की कतारों को संकरा करने (15सेमी.) एवं अधिक बीज की मात्रा (80-100 किग्रा./हेक्टेयर) का प्रयोग करने से खरपतवारों की वृद्धि को दबाया जा सकता है।
एक ही फसल को बार-बार एक ही खेत में उगाने से खरपतवारों की समस्या और जटिल हो जाती है। अत: यह आवश्यक है कि पूरे वर्ष भर एक ही खेत में धान-धान-धान लेने के बजाय धान की एक फसल के बाद उसमें दूसरी फसलें जैसे चना, मटर, गेहूं आदि लेने से खरपतवारों को कम किया जा सकता है।
रोपाई किये गये धान में पानी का उचित प्रबंधन करके खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया है कि धान की रोपाई के 2-3 दिन बाद से एक सप्ताह तक पानी 1-2 सेमी. खेत में समान रूप से रहना चाहिए। उसके बाद पानी के स्तर को 5-10 सेमी. तक समान रूप से रखने से खरपतवारों की वृद्धि को आसानी से रोका जा सकता है। मचाई (पडलिंग) किये गये सीधे बोये धान के खेत में जब फसल 30-40 दिन की हो जाए तो उसमें पानी भरकर खेत की विपरीत दिशा में जुताई (क्रास जुताई) करके पाटा लगा देने से खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। इस विधि को उड़ीसा में ‘बुशेनिंग’ एवं मध्यप्रदेश में ‘बियासी’ कहा जाता है।
भूमि में पोषक तत्वों की मात्रा, उर्वरक देने की विधि एवं समय का भी फसल एवं खरपतवारों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है। फसल एवं खरपतवार दोनों ही भूमि में निहित पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। खरपतवार नियंत्रण करने से पोषक तत्वों की उपलब्धता फसल को ही मिले सुनिश्चत की जा सकती है। पोषक तत्वों की अनुमोदित मात्रा को ठीक समय एवं उचित तरीके से देने पर धान की फसल इनका समुचित उपयोग कर पाती है। असिंचित उपजाऊ भूमि में जहां खरपतवारों की समस्या अधिक होती है वहां नाइट्रोजन की आरंभिक मात्रा को बुवाई के समय न देकर पहली निराई-गुड़ाई के बाद देना लाभदायक रहता है तथा नाइट्रोजन को धान की लाइनों के पास डालना चाहिए जिससे इसका ज्यादा से ज्यादा भाग फसल को मिल सके।
धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई-गुड़ाईयद्यपि काफी प्रभावी पाई गई है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नहीं हो पाया है। इनमें से मुख्य हैं, धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पाई जाती है, इसलिए साधारण किसान निराई-गुड़ाई के समय आसानी से इनको पहचान नहीं पाता है। बढ़ती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी। खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई-गुड़ाई नहीं हो पाता है।
अत: उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का शाकनाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है, लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा, उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है।
धान की फसल में प्रयोग किये जाने वाले शाकनाशी रासायनों का विवरण (सारणी 1) में दिया गया है।
खरपतवारनाशी रसायन |
मात्रा (ग्राम) सक्रिय पदार्थ/हें. |
प्रयोग का समय |
नियंत्रित खरपतवार |
ब्यूटाक्लोर (मिचेटी) |
1500-2000 |
बुवाई/रोपाई के 3-4 दिन बाद |
घास कुल के खरपतवार |
एनीलोफास (एनीलोगार्ड) |
400-500 |
तदैव |
घास एवं मोथा कुल के खरपतवार |
बैन्थियोकार्ब (सैटनी) |
1000-1500 |
तदैव |
घास कुल के खरपतवार |
पेंडीमेथलिन (स्टाम्प) |
1000-1500 |
तदैव |
घास, मोथा एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार |
आक्साडायजान (रोनस्टार) |
750-1000 |
तदैव |
तदैव |
आक्सीफलोरफेन (गोल) |
150-250 |
तदैव |
तदैव |
प्रेटिलाक्लोर (रिफिट) |
750-1000 |
तदैव |
तदैव |
2, 4-डी (नाकवीड) |
500-1000 |
बुवाई/रोपाई के 20-25 दिन बाद चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु कारगर |
|
क्लोरिभ्युरान + मेटसल्फयूरान (ऑलमिक्स) |
4 |
बुवाई/रोपाई के 20-25 दिन बाद चौड़ी पत्ती वाले एवं मोथा कुल के खरपतवार के नियंत्रण हेतु कारगर |
|
फेनाक्जाप्राप इथाईल (व्हिपसुपर) |
60-70 |
बुवाई/रोपाई के 20-25 दिन बाद सकरी पत्ती वाले खरपतवार विशेषकर संवा के नियंत्रण में प्रभावशाली |
धान की फसल में मुख्यत: सभी प्रकार के खरपतवार (जैसे घास कुल, मोथा कुल एवं चौड़ी पत्ती वाले) पाये जाते है। इसलिए एक ही शाकनाशी का लगातार प्रयोग करते रहने से कुछ विशेष प्रकार के ही खरपतवारों की रोकथाम हो पाती है तथा दूसरे प्रकार के खरपतवारों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहती है तथा कुछ समय बाद यही दूसरी प्रकार के खरपतवार मुख्य खरपतवार के रूप में उभर आते है। ऐसी परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार के शाकनाशियों का मिश्रण करके छिड़काव करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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