रंग बिरंगी चूड़ियां हर नारी को आकर्षित करती हैं। इनका भारतीय संस्कृति से अटूट रिश्ता है। कोई भी शुभ अवसर हो, इनके बिना श्रृंगार अधूरा माना जाता है। पूरे देश में कई प्रकार की चूड़ियां बनती है। कही शीशे की चूड़ियां बनती है तो कहीं शंख की। बिहार के मुजफ्फरपुर में भी चूड़ियां बनती हैं, लाह की चूड़ियां। इनकी प्रसिद्धि इतनी है कि देश के कई राज्यों में इनकी मांग हमेशा बनी रहती है। कहा तो यह भी जाता है कि महानायक अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक बच्चन की शादी में ऐश्वर्या राय के लिए लाह की बनी चूड़ियों को यही से खरीदा गया था। पूरे जिले में बड़े पैमाने पर बनी रही इन चूड़ियों का देश में बड़ा बाजार तो बन ही रहा है, साथ ही आर्थिक क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हो रही है। इस काम को करने वाली महिलाएं अपने मेहनत के दम पर आय का बड़ा श्रोत इस काम से प्राप्त कर रही हैं।
जिले के बोचहां, सकरी, कुढ़नी, मुरौर, मोतीपुर प्रखंडों में इन चूड़ियां को बनाने का कार्य किया जा रहा है। इन्हें बनाने वाली लोगों में महिलाओं की अधिकता ज्यादा है। पूरे इलाके में ज्यादातर लाह की चूड़ियों को ही बनाया जाता है। महिलाएं कहती हैं, यह काम हमारे पूर्वजों के द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन तब हमें इस काम को करने में उतना मुनाफा नहीं मिलता था। बोचहां प्रखंड का नरमां गांव और कुढ़नी का मदरसा चौक ऐसे इलाके हैं, जहां इनका काम विशेष तौर पर होता है।
इस पूरे इलाके में करीब 42 तरह की लाह की चूड़ियां बनती हैं। इनमें कंगन सेट, जयपुरिया बाला सेट, थ्री पीस एड नग सेट, चूडा ब्रासलेट सेट, जानकी सेट जैसी कई प्रकार की अन्य चूड़ियां हैं जो कई तरह के आकर्षक रंगों में बनती हैं। वैसे तो यह कई साइज में मिलती हैं। लेकिन अगर किसी खास साइज की अगर मांग की जाये तो ये कामगार महिलाएं मनपसंद साइज में बना कर आपूर्ति कर देती हैं। इन सभी का मूल्य 100 रुपये से लेकर करीब 600 रुपये तक रहता है।
लाह की इन चूड़ियां को बनाने के काम में महिलाओं की बड़ी संख्या है। इन्हें बनाने में उपयोग होने वाले सामानों में से ज्यादातर की खरीद स्थानीय स्तर पर ही की जाती है। ज्यादा कच्चे माल को दरभंगा के इस्लामपुर से खरीदा जाता है। इसके अलावे बलरामपुर से भी कच्चे माल की खरीद होती है। यहां बनने वाली चूड़ियों की खासियत यह है कि इसमें लगने वाले लाह का करीब 172 प्रकार का उपयोग होता है। इस काम को कर रही विनीता देवी, सुनयना देवी, जमीला खातून जैसी कई अन्य महिलाएं बताती हैं, वैसे तो यह काम पहले भी होता रहा है, लेकिन तब इतना विस्तृत बाजार मौजूद नहीं था। महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य करने वाली संस्था ने जब मार्गदर्शन किया तो लाभ में इजाफा होने लगा।
संस्था से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं, हमने सबसे पहले इनकी मूलभूत जरूरतों को जानने की कोशिश की। इसमें यह पता चला कि लाह और चपड़ा के दाम को लेकर भारी असमानता थी। हमने इसके लिए कार्य करने की कोशिश की। जानकारी के अभाव में ये कारीगर दूसरे जगह से चपड़ा लेते थे। जिनका मूल्य 1250 रुपये प्रति किलोग्राम होता था, जबकि स्थानीय स्तर पर ही मात्र 450 रुपये प्रति किलो की दर साथ स्थानीय बाजार में ही उपलब्ध था और इसकी गुणवत्ता भी अच्छी थी। साथ ही चूंकि महिलाएं कार्य तो कर ही रही थी, लेकिन वह संगठित नहीं थी। इसके लिए भी हमने पहल की और इनका समूह बनाने की शुरुआत की। इसके लिए हमने डायरेक्ट प्रोड्यूसर ग्रुप बनाया जिसमें करीब 100 महिलाओं को जोड़ा। धीरे - धीरे इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगी। अभी क्षेत्र की करीब एक हजार महिलाएं समूह से जुड़ चुकी हैं।
आधुनिकता और प्रतियोगिता के दौर में इन चूड़ियों की अहमियत को और व्यापक करने के उद्देश्य से कुछ पहल और भी किये जा रहे हैं। संस्था के अधिकारी बताते हैं, उच्च स्तर के लाह और उनकी गुणवत्ता के जांच, आपूर्ति के लिए झारखंड के खूंटी स्थित लाह प्रोसेसिंग यूनिट से एमओयू होने वाला है। इससे इन चूड़ियों की गुणवत्ता में और चार चांद लगने की उम्मीद है।
स्थानीय बाजारों में तो इसकी खूबसूरती के मुरीद तो है ही, लाह की बनी इन आकर्षक चूड़ियों को पूरे देश में पसंद किया जाता है। देश के लगभग हर राज्य में इनकी आपूर्ति की जाती है। पूर्वोत्तर भारत में इनकी विशेष खपत होती है। गुवाहाटी के बाजार में केवल इन्ही लाह की चूड़ियों की बिक्री होती है। इन्हें बनाने, खरीदने में भी अब काफी बदलाव हो गया है। चूड़ियों के सौदागर सामान खरीदने के बाद सीधे मूल्य को चुका देते हैं। इससे कारीगरों को काफी लाभ होता है। वैसे तो सालों भर इनकी मांग बनी रहती है, लेकिन लगन और पर्व त्यौहार के दिनों में इनकी खपत बढ़ जाती है। कई तरह के रंगों और डिजाइनों में इनकी मांग होने लगती है। लगन में लाल रंग की और सावन में विशेष रुप से हरे रंग की चूड़ियां बनती हैं। जिस पर पीले रंग से कोटिंग की जाती है। जानकार बताते हैं, इनका बाजार भी शेयर बाजार की तरह होता है। सामान्य दिनों में बिक्री तो होती ही है, समय विशेष पर इनकी मांग परवान पकड़ लेती है।
ज्यादा जानकारी के लिए निम्न पते पर संपर्क किया जा सकता है-786 ग्राम संगठन ग्राम - मदरसा चौक, प्रखंड-बोचहां, मुजफ्फरपुर, मोबाइल नंबर - 09771478368
स्त्रोत : संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना, बिहार ।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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