ओस्टेओपोरोसिसी में अस्थि द्रव्यमान कम हो जाता है जिससे हड्डी की शक्ति घट जाती है| इसके फलस्वरूप हड्डी कमजोर हो जाती है और फलस्वरूप अस्थि - भंग (फ्रैक्चर) होने का खतरा बढ़ जाता है| रजोनिवृत्ति पर और आयु के साथ एस्ट्रोजन स्तर में गिरावट ओस्टेओपोरोसिसी तथा उसके कारण होने वाले अस्थि- भंग के मुख्य लक्षण हैं|
ओस्टेओपोरोसिसी का मुख्य स्वास्थ संबंधी परिणाम अस्थि-भंग है जिसके कारण रूग्णता और मृत्यु के बहुत से मामले आते हैं| और साथ ही चिकित्सा पर भी काफी पैसा व्यय होता है| आज रजोनिवृत्ति के बाद ओस्टेओपोरोसिसी अस्थि भंग का और विशेषकर रीढ़ की हड्डी, लम्बी हड्डियों, कूल्हे की हड्डियों आदि के टूटने का प्रमुख कारण है जिससे वृद्ध महिलाओं को न केवल काफी अधिक दर्द होता है, बल्कि रीढ़ की हड्डी की विरूपता और भी हो सकती है| जैसे की अगले पृष्ठ के रेखाचित्र में दर्शाया गया है, 20 वर्ष तक हड्डियों के बनने की प्रक्रिया सतत रूप से बढ़ती जाती है और 20 वर्ष की आयु में यह नापने अधिकतम स्तर ओर पहुंच जाती है ) बी.एम्.डी. का सामान्य स्तर विभिन्न व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकता है) चालीस वर्ष की उम्र तक यही स्थिती बनी रहती है| 40 वर्ष से 50 वर्ष की उम्र तक यही स्थिति बनी रहती है| 40 वर्ष सर 40 वर्ष के हड्डियों की क्षति धीरे-धीरे होती है| 50 से 60 वर्ष तक हड्डियों की भूत तेजी से 40% तक क्षति होती है और उसके बाद हड्डियों की क्षति क्रमिक रूप से होने लगती है| जितने भी अस्थि – भंग होते हैं उनमें से 50% अस्थि भंग रीढ़ के होते हैं 70 वर्ष से अधिक के 25% लोगों में ऐसे रेडियोग्रफिक प्रमाण मिलते हैं जो मेरुदंड में अस्थि अपघर्षण दर्शाते हैं| ये ऐसे अस्थि-भंग हैं जो ‘डोवेजर्स कूबड़’ के कारण बनते हैं|
कूल्हे के अस्थि- भंग सबसे गंभीर होते हैं और 75 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं की अपेक्षित जीवन क्षमता में 12 प्रतिशत तक ही कमी ला देते हैं| मेरुदंड और कूल्हे के अस्थि-भंग जीवन के मूल्यवान वर्षों को गतिहीन और दूसरों पर निर्भर बना देते हैं| अस्थि-भंग का आर्थिक भार सचमुच काफी अधिक होता है क्यों बड़ी संख्या में लोग इनके शिकार बनते हैं और लम्बे समय तक उनकी देख रेख काफी खर्चीली होती है|
ओस्टेओपोरोसिसी के रोग- विषयक लक्षण
ऐसा कोई सक्ष्य नहीं मिलता जो यह दर्शाए कि रजोनिवृत्ति के बाद अस्थियों की क्षति अपने आप में कोई रोगलक्षण पैदा करती है और इसलिए हड्डियों की क्रमिक क्षति को “खामोश महामारी” या “खामोश चोर” कहा जाता है|
रजोनिवृत्ति में प्रकट होने वाले रोग विषयक लक्षणों और संकेतों का संबंध केशेरूकी अस्थि- भंगों से है| अस्थि- भंग जरूरी नहीं कि रोगसूचक ही हों, पर कम से कम एक- तिहाई मामलों में इनसे अस्थि-भंग के स्तर पर अचानक और तीव्र पीठ – दर्द होता है और दर्द अक्सर छाती और पेट की ओर फैलता है|
एक साथ कई जगह से अस्थि- भंग के कारण लम्बाई कम हो सकती है, रीढ़ की हड्डी में विरूपता आ सकती है और दर्द बना रह सकता है तथा पेट बाहर निकल सकता है|
दर्द, लम्बाई में कमी और रीढ़ की विरूपता की वजह से गंभीर किस्म की विकलांगता जन्म से सकती है और व्यक्ति के सामान्य कार्यकलापों को बाधित कर सकती हैं |
संकेत और लक्षण |
निम्नलिखित से पता लगता है |
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अनेक अध्ययन यह दर्शाते हैं कि रजोनिवृत्ति से तत्काल पूर्व की तुलना में रजोनिवृत्ति के बाद वाले चरण में महिलाओं को कारनरी ह्रदय रोग का खतरा रहता है जिसका कारण सम्भवता एस्ट्रोजन के स्तर में गिरावट आत्ना है| उनमें सीरम कोलेस्ट्रोल का स्तर उच्चतर और लाइपोप्रोटीन (यानी बुरे कोलस्ट्रोल) की सघनता निम्न होती है: और उच्च सघनता वाले लाइपोप्रोटीन (अच्छे कोलेस्ट्रोल) का स्तर निम्न होता है|
संयुक्त राज्य अमेरिका में किए गए एक व्यापक अध्ययन से पता चला है कि शल्य चिकित्सा द्वारा उत्प्रेरित रजोनिवृत्ति से कारनरी ह्रदय रोग का खतरा काफी बढ़ जाता है, और यह प्रभाव एस्ट्रोजन चिकित्सा प्राप्त करने वाली महिलाओं में देखने को नहीं मिलता|
स्रोत : वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इन्डिया
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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