अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो भारत अब पोलियो मुक्त देश हो चुका है| अब हमारे नौनिहालों को पोलियो विलांगकता का शिकार होकर जीवनभर आंसू रोने को बाध्य नहीं होना पड़ेगा|
यदि किसी देश में लगातार तीन वर्षो तक एक भी पोलियो का मामला नहीं आता है, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन उसे ‘पोलियो मुक्त देश’ घोषित कर देता है| इसके पूर्व हरियाणा में 2010 में तथा उसके बाद पश्चिम बंगाल में 13 जनवरी, 2011 को पोलियो का मामला सामने आया था| उसके बाद लगातार नजर रखी गयी और पिछले तीन सालों में कोई मामला नहीं आया|
इस तरह कह सकते हैं कि देश के लाखों लोगों को विकलांग करनेवाले पोलियो के विषाणु पर 18 वर्ष की लंबी लड़ाई के बाद हमने विजय पा ली है| हालांकि टीकाकरण कार्यक्रम पर वाजिब प्रश्न उठते रहे हैं और इसके पीछे बाजार की ताकतें भी स्पष्ट रहीं है, किंतु इस समय हमारे सामने भारत में इसकी सफलता की कहानी है, तो इसे तत्काल स्वीकार करना ही होगा| विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो भारत में स्थानीय स्तर पर पोलियो के विषाणु खत्म हो चुके हैं|
यानी इनकी उपस्थिति अब नहीं है| वस्तुत: भारत के लिए यह शर्म की बात थी कि दुनिया भर से मिटाई जा चुकी यह खतरनाक बीमारी जिन चार देशों में मौजूद थी, उनमें एक भारत भी था| तो हम इस शर्म से भी मुक्त हो गये हैं|
निश्चय ही हमारे लिए यह आत्मसंतोष का विषय है| आखिर चारों ओर की निराशा के बीच कहीं तोहमें सफलताएं मिल रहीं हैं| तो आज समय हमें उन सबको धन्यवाद करने का है, जिनकी बदौलत हम आज पोलियो मुक्त देश बने हैं| सच कहें तो पोलियो टीकाकरण अभियान किसी एक बीमारी के खिलाफ चले अबतक के सबसे बड़े और लंबे अभियानों में से एक रहा है| ‘दो बूंद जिंदगी की’ का नारा इतना सफल रहा, जिसकी शायद आरंभ में कल्पना भी नहीं थी|
संयुक्त राष्ट्र ने 1988 में विश्व को पोलियो मुक्त करने का अभियान आरंभ किया था| भारत में दिल्ली सरकार में 1993 से 1998 तक स्वास्थ्य मंत्री रहने के दौरान डॉ हर्षवर्धन ने दिल्ली में पल्स पोलियो कार्यक्रम की शुरुआत की थी| यह 1995 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना में शामिल होकर देशव्यापी अभियान में परिणत हुआ|
भारत का स्वास्थ्य मंत्रलय, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और रोटरी इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं ने इनमें अहम भूमिकाएं निभायीं| इसके अलावा अनेक नेता, मंत्री, कलाकार, खिलाड़ी, नामचीन लोगों ने इसका प्रचार किया| इस दौरान ‘दो बूंद जिंदगी की’ वाकई एक मुहावरे की तरह सबकी जुबान पर रहता था| स्थानीय स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने भी इसमें भूमिका निभायीं और सामाजिक संगठनों ने भी| यदि पूरा देश इसमें एक होकर नहीं लगता, तो हम आज इस स्थिति में नहीं पहुंचते|
ध्यान रखिये कि 1985 में भारत में पोलियो के करीब 1 लाख 50 हजार मामले सामने आये थे| 2009 तक दुनिया भर में पोलियो के जितने मामले थे, उनमें आधे हमारे देश में ही थे| यहां जनसंख्या का घनत्व, आम जीवन में स्वच्छता का अभाव, अशिक्षा आदि ऐसे पहलू थे, जिनके आधार पर विशेषज्ञों को हमारी सफलता पर संदेह था| जाहिर है, इसे समूल नष्ट करने के लिए काफी काम करना पड़ा| सच कहें तो कई कारणों से यह देश का अभियान बन गया था| आंकड़ों के अनुसार करीब 33 हजार से अधिक निगरानी केंद्र बनाये गये| 23 लाख से ज्यादा लोग पोलियो की खुराक पिलाने के लिए तैनात किये गये|
हालांकि पोलियो से मुक्ति का औपचारिक प्रमाण पत्र भारत को अब मिला है, पर हमें पहले ही इसका अहसास करा दिया गया था| विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहले ही भारत को पोलियो ग्रसित देशों की सूची से बाहर कर दिया था| 24 अक्तूबर, 2012 को ही हमने स्वयं को पोलियो मुक्त देश मान कर आयोजन किया था|
उसी दिन भारत की ओर से विश्व स्वास्थ्य संगठन से कहा गया था कि अब हम इस बीमारी से पूरी तरह आजाद हो चुके हैं, इसलिए हमें 2014 तक पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया जाये| ध्यान रखिये कि 24 अक्तूबर को विश्व पोलियो दिवस मनाया जाता है| वस्तुत: विश्व स्वास्थ्य संगठन केवल इसकी पुष्टि करना चाहता था|
पोलियो के खिलाफ लड़ाई में आखिरी मोरचा उत्तर प्रदेश और बिहार में जीता गया| सबसे ज्यादा सिरदर्द ये दोनों राज्य ही थे, पर जागरूकता अभियानों के प्रभाव में आकर महिलाएं बच्चों टीकाकरण केंद्रों पर लाने लगीं और मामले घटते गये| 2010 तक इन दोनों राज्यों में पोलियो के मामलों का ग्राफ तेजी से नीचे आया| उत्तर प्रदेश में साल 2009 के 602 मामलों के मुकाबले 2010 में सिर्फ 10 मामले सामने आये थे|
इसी तरह बिहार में 2009 के 117 मामलों के मुकाबले 2010 में सिर्फ नौ मामले सामने आये| दोनों राज्यों में 2011 और 2012 में पोलियो का एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया| देश में 2009 में 741, 2010 में 42 और 2011 में केवल एक मामला सामने आया|
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के पोलियो उन्मूलन अभियान के सद्भावना राजदूत अमिताभ बच्चन ने कहा कि उन्हें गर्व है कि भारत ने खुद को पोलियो के वायरस से मुक्त कर लिया है| उन्होंने कहा कि अब उनका अगला लक्ष्य समाज में लड़कियों के खिलाफ भेदभाव समाप्त कर उनका विकास करना है|
अमिताभ ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर लिखा, बच्चियों के लिए संयुक्त राष्ट्र का सद्भावना राजदूत होते हुए, मैं उम्मीद और प्रार्थना करता हूं कि इस मामले में भी हमें पोलियो अभियान की तरह ही सफलता मिलेगी| हमें देश को महिलाओं के खिलाफ भेदभाव से छुटकारा दिलाना है|
आखिरकार भारत का नाम पोलियो प्रभावित देशों की सूची से हटा दिया गया है| अब हम पोलियो मुक्त देश के नागरिक होंगे| मुङो गर्व महसूस हो रहा है| मैं जीत का अनुभव कर रहा हूं| मैंने इसके लिए काफी मेहनत की थी|
पिछले 12 नवंबर, 2013 को डॉ हर्षवर्धन ने माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स को पत्र लिख कर इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि उन्होंने भारत में चलाये गये पल्स पोलियो अभियान की सराहना की| हाल ही में लिखे एक लेख में बिल गेट्स ने भारत के पल्स पोलियो कार्यक्रम की तारीफ की और कहा कि भारत की यह सफलता मानव कल्याण के क्षेत्र में दुनिया के सबसे कठिन संघर्ष को जीतने के लिए प्रेरणा देती है|
बिल गेट्स को लिखे पत्र में हर्षवर्धन ने कहा कि जब हमने पोलियो के विरुद्ध संघर्ष शुरू किया तब हमें कहा गया था कि हम असंभव काम करना चाहते हैं| हमें इस बात का गर्व है कि भारत में गत तीन सालों में पोलियो का एक भी मामला सामने नहीं आया|
ऐसी बीमारी है जिसका कोई उपचार नहीं हो सकता| इसे केवल मुंह द्वारा दिये जानेवाले वैक्सिन यानी ओपीवी से रोका जा सकता है| इस ओरल पोलियो वैक्सिन या ओपीवी का विकास 1961 में डॉ अल्बर्ट सैबिन ने किया था|
1,50,000 के करीब थी देश में 1985 में पोलियो के शिकार हुए लोगों की संख्या| भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के 192 सदस्य देशों के साथ 1988 में वैश्विक पोलियो उन्मूलन लक्ष्य का संकल्प लिया था|
जब तक किसी भी देश में पोलियो के विषाणु मौजूद हैं तो भारत में भी इसका खतरा बना रहेगा| पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया जैसे देशों में पोलियो के विषाणु मौजूद हैं और भारत से इनकी काफी नजदीकी है| साफ है कि इन देशों से इस बीमारी के भारत आने का खतरा बरकरार है| मजहब के नाम पर कट्टरपंथी टीकाकरण का विरोध करते हैं|
पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तालिबान कहता है कि पश्चिमी देश हमें नपुंसक बनाने के लिए टीके लगा रहे हैं| इससे वहां समस्याएं आ रहीं हैं| 2013 में विश्वभर में पोलियो के जो 372 मामले सामने आये, उनमें पाकिस्तान के 85 मामले थे|
तो यह है हमारे पड़ोस की स्थिति, इसलिए पड़ोसी देशों नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आनेवाले सभी बच्चों का अनिवार्य रूप से टीकाकरण भी करना होगा|
निस्संदेह, पोलियो मुक्त देश होना एक बड़ी उपलब्धि है| लेकिन इस पर गर्व करते हुए हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी कुछ बीमारियों और सामाजिक समस्याओं की कई चुनौतियां हमारे सामने मौजूद हैं| पेट के रोग तेजी से बढ़ रहे है, खसरा बना हुआ है, मनोवैज्ञानिक रोगियों की संख्या बढ़ी है, तनाव और अवसाद के मामले तेजी से बढ़े हैं, टीबी सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी बन कर हमें परेशान कर रही है, मलेरिया और कालाजार का उन्मूलन नहीं हुआ, चेचक फिर लौट आया है, बच्चों को होनेवाली निमोनिया, अतिसार आदि जानलेवा बनी हुई है|
एक आंकड़े के अनुसार संक्रामक बीमारियों से औसतन करीब 17 लाख बच्चे पांच वर्ष की आयु के अंदर ही प्राण त्याग देते हैं| इनमें निमोनिया के शिकार बच्चों की संख्या 28 प्रतिशत तथा अतिसार पीड़ितों की करीब 13 प्रतिशत होती हैं| इसी तरह हेपेटाइटिस ए और बी, डिप्थिरिया, टेटनस, टायफॉयड, काली खांसी जैसी बीमारियों की सूची लंबी है, जिनके खिलाफ निषेधात्मक औषधिकरण के साथ सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक मोरचे पर संघर्ष करने की आवश्यकता है|
स्त्रोत: दैनिक समाचारपत्र
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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