यह डिमेंशिया का सबसे आम कारण है | इसमें स्मृति, सोच, व्यवहार और भावनाएं प्रभावित होती हैं | डिमेंशिया के 50-60 प्रतिशत मामलों के लिए यही रोग जिम्मेदार होता है | इस स्थिति को सुधारा जा सकता और यह निरंतर बढ़ती जाती है | यह कोशिकाओं और तंत्रिकाओं को नष्ट कर देती है और मस्तिष्क से संदेश ले जाने वाले प्रसारकों, विशेषकर स्मृति को बचा कर रखने वाले प्रसारकों को तहस – नहस | 65 साल से ज्यादा की उम्र में अल्जीमर के होने का खतरा बढ़ जाता है | इस रोग को पूरी तरह ठीक करने वाली कोई दवा नहीं है | लेकिन, ऐसी दवाएँ अनेक है जिनसे रोग के बढ़ने की रफ्तार को कम किया जा सकता है | अल्जीमर में रोग के लक्षणों के प्रकट होने और मृत्यु के बीच करीब आठ साल का अन्तराल होता है, लेकिन यह तीन से बीस साल के बीच का कोई भी समय हो सकता है |
आम तौर पर इस रोग की तीन अवस्थाएँ मानी गई हैं :
लेकिन प्रत्येक रोगी की अवस्थाएं भिन्न हो सकती हैं |
इसका कोई उपयुक्त उपचार नहीं है | ऐसे में लक्षणों में सुधार लाने के लिए दवाएँ ली जा सकती हैं | बाजार में मस्तिष्क के क्रियाकलापों में सुधार लाने वाली कई दवाएं उपलब्ध हैं | इसके अलावा, कई ऐसी स्थितियां हैं जिनसे रोगी की हालत को कुछ सुविधाजनक बनाया जा सकता है | फिजियोथेरेपिस्ट की मदद से शारीरिक, भावनात्मक तथा मानसिक सक्रियता हासिल की जा सकती है और इससे रोगी और उसके संबंधियों की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है | मूत्र –अनियंत्रण, भोजन खाने व लेटने में कठिनाई जैसी अनेकों शारीरिक समस्याओं में चिकित्सीय सहायता भी ली जा सकती है |
क्लीनिकों के किए गए प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि चिकित्सीय सहायता से बीमारी को कम से कम रोका जा सकता है चिकित्सीय सहायता मानसिक क्षमताओं को बचाने और उनमें कुछ हद तक सुधार लाने के अलावा रोगी को अपने रोजमर्रा के कामकाज करने में समर्थ बनाती है | व्यवहारगत परिवर्तनों को भी कुछ समय तक टाला जा सकता है | उस समय आवधि को भी कम किया जा सकता है जिसमें रोगी की पूरी तरह देखभाल करनी होती है | बीमारी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए, रोगी की अवस्था के अनुसार निम्न दवाएँ निर्धारित की जाती हैं :
रिमिनाइल (गेलेन्टेमाइन)
एरिसेप्ट (डॉनपेजिल टाइड्रोकोराइड)
इक्जिलोन (इन्वेस्टीगेमाइन)
डिमेंशिया में व्यवहारगत समस्याओं के उपचार में ट्रेक्वेलैजर सहायक- चिकित्सा के रूप के लिए जा सकता हैं | हाल ही में डिमेंशिया से पीड़ित रोगियों के उपचार के क्षेत्र में प्रगति हुई है | चिकित्सक अब कारगर तरीके से इन रोगियों का उपचार कर सकते हैं | अब वह स्थिति संभव है कि रोगी दिन भर ऊँघता और रात भर भटकता न रहे |
अल्जीमर रोग के विशिष्ट लक्षणों के उपचार के अलावा, रोगी के सम्पूर्ण स्वास्थ्य की स्थिति पर निगाह रखना भी जरूरी है | इससे उसमें स्वस्थ होने का अहसास पैदा होता है |
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, इस रोग में दोहरी चुनौती होती है | पहली, रोगी की स्थिति को न बिगड़ने देने का संघर्ष और दूसरी, देखभाल करने वाले को डिमेंशिया के लक्षणों, देखभाल करने वाले को डिमेंशिया के लक्षणों, इसकी प्रकृति और अवस्थाओं, इसके परिणामों के बारे में बताने की जरूरत होती है | और साथ ही यह बताने की भी कि वह इन सब स्थितियों में क्या करे |
डिमेंशिया से पीड़ित वृद्धों की देखभाल के निम्न उद्येश्य होते हैं :
रोगी के अकेले घर में होने की स्थिति तथा रात में ऐसी चीजों का ध्यान रखना चाहिए जिनसे रोगी को नुकसान पहुँच सकता है | जैसे बिजली से चलने वाली चीजों का कनेक्शन हटा देना चाहिए | सुनिश्चित किया जाना चाहिए की रोगी हमेशा किसी की निगरानी में रहे | सबसे महत्वपूर्ण बात है उसके आसपास के पूरे वातावरण का मुआयना कर संभावित खतरों की पहचान करना और उन्हें दूर करना |
रोगी की आत्मनिर्भरता बनाए रखना
रोगी को जब तक संभव हो सके, आत्मनिर्भर बनाए रखने के लिए, उसे गतिविधियों के लिए प्रेरित और उनमें संलग्न बनाए रखना चाहिए |
स्मृति- सहायकों (मेमोरी एड्स) का इस्तेमाल: स्मृति के लोप का सामना करने के लिए देखभाल करने वाले को ‘स्मृति उत्प्रेरक’ तैयार करने की सलाह दी जाती है | जैसे संदेश पट्टीयां, रोगी की पहुँच में रहने वाली सूचियां इत्यादि | घड़ी और कैलेंडर जैसी जानी पहचानी चीजों को किसी प्रमुख जगह पर रखना चाहिए और रोगी को उन्हें इस्तेमाल करने की आदत डालनी चाहिए |
संप्रेषण कौशल : देखभाल करने वालों को सलाह दी जाती है की वे रोगियों से बातें करते हुए, उनमें वाचिक और अवाचिक (शब्दों और संकेत को इस्तेमाल करने वाले) संप्रेषण कौशल विकसित करने की कोशिश करें | उनसे बात करते हुए ध्यान रखना चाहिए की आप आमने –सामने होकर उनसे साफ-साफ और धीमे-धीमे बार करें | उससे नजरों का सम्पर्क बनाए और कुछ आसानी से समझ आने वाली मुद्राओं का इस्तेमाल करें | वाचिका या शाब्दिक कौशल विकसित करते समय देखभाल करने वालों को ध्यान रखना चाहिए कि वे आसान शब्दों और छोटे वाक्यों के बीच में ठहरे ताकि सरल शब्द सोचे और कहे जा सकें | जो सबसे महत्वपूर्ण बात रोगी को बतानी है, उसे वाक्य के अंत में कहें | जहां तक संभव हो, कोशिश करें कि उस समय दूसरी आवाजें या शोर न हो |
शारीरिक क्रियाकलाप : देखभाल करने वालों को चाहिए कि वे सुबह या शाम रोगी को रोजाना घुमाने ले जाएँ | यह सैर रोगी और परिचारिका, दोनों के लिए ही अच्छा शारीरिक व्यायाम है | इससे रोगी को रात में सीने में भी मदद मिलती है |
विक्षिप्त में सबसे आम व्यवहारगत समस्याएँ हैं : सेवा – टहल न कराना, चीखना, बार - बार चीजों को दोहराना, मारपीट करना, असंगत यौन व्यवहार, गलत जगहों पर कपड़े उतारते रहना, जरा- जरा सी बातों पर चिल्लाना |
यह जानने के लिए कि कौन सी बात से रोगी का व्यवहार कठिन होने लगता है, रोगी पर निगरानी रखनी चाहिए और उसके देखभाल करने वाले/ परिवार से बातचीत करनी चाहिए |
निम्न उपायों से हिंसक व्यवहार को कम किया जा सकता है :
डिमेंशिया से पीड़ित रोगी की देखभाल करने में परिवार को बहुत सहायता की जरूरत होती है | अल्जीमर्स एंड रिलेटिड डिसऑर्डर सोसायटी ऑफ इंडिया, दिल्ली चैप्टर की एक हेल्पलाइन है (011-26435922, ०11- 26423300) यह डिमेंशिया व अल्जीमर्स रोग के बार में सूचनाएं प्रदान करती है | यह हेल्पलाइन रोगी के परिवार और परिचारिका की बातों को संवेदना और सरोकार के साथ सुनती है |
स्त्रोत: हेल्पेज इंडिया/ वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस लेख में किडनी क्रोनिक किडनी डिजीज के उपचार सम्ब...
दिसंबर माह में बोई जाने वाली फसलों के बारे में जान...
इस भाग में बीमारी पश्चात जरुरत पड़ने वाली पॉलिसी के...
इस भाग में वृद्धजनों के लिए कारगर आयुर्वेदिक उपचार...