आजकल वैकल्पिक उपचार पद्धतियों में ज्यादा से ज्यादा लोगों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है
फ़िलहाल, दुनिया में सबसे अधिक मान्यता एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति को मिली हुई है, लेकिन कुछ वैकल्पिक उपचार पद्धतियां भी फिर से चलन में आई हैं।आयुर्वेदिक ऐसी ही एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है।इसका शब्दिक अर्थ है जीवन का विज्ञान और यह मनुष्य के समग्रतावादी ज्ञान पर आधारित है।दुसरे, शब्दों में, यह पद्धति अपने आपको केवल मानवीय शरीर के उपचार तक ही सीमित रखने की बजाय, शरीर मन, आत्मा व मनुष्य के परिवेश पर भी निगाह रखती है।इस पद्धति की एक और उल्लेखनीय विशिष्टिता है।यह औषधीय गुण रखने वाली वनस्पतियों व जड़ी – बूटियों के जरिए बीमारियों का इलाज करती है।चरक व सुश्रुत (आयुर्वेद के प्रणेता) ने अपने ग्रंथों में क्रमश: 341 व 395 औषधीय वनस्पतियों व जड़ी – बूटियों का उल्लेख किया है ।
आयुर्वेद में, निदान व उपचार से पहले मनुष्य के व्यक्तित्व की श्रेणी पर ध्यान दिया जाता है।माना जाता है की तमाम व्यक्ति व, प, क, वप, पक, वपक या संतुलित की श्रेणी में आते हैं।यहाँ व का अर्थ है वात, प का पित्त्त, क का कफ और इन्हें किसी व्यक्ति की बुनियादी विशिष्टिता या दोष माना जाता है।ज्यादातर मनुष्यों में कोई एक मुख्य दोष व अन्य गौण दोष होते हैं।इन्हीं से विभिन्न प्रकार के मिश्रित व्यक्तित्व बनते हैं।इनमें से प्रत्येक विशिष्टता या दोष का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है – वात ठंडा, शुष्क व अनियमित होता है।पित्त गर्म तैलीय तथा परेशान करने वाला।कफ ठंडा, गिला व स्थिर होता है।आयुर्वेदिक विशेषज्ञों को मानना है कि स्वास्थ्य व रोग इन तीन दोषों, धातुओं व मलों की परस्पर अंतक्रिया द्वारा संचालित होते है।दुसरे शब्दों में, दोषों का एक गतिशील संतुलन है ।
वृद्धावस्था में शरीर अपने आपको शूरूआती अवस्था की तरह आसानी से स्वस्थ नहीं कर पाता।इससे विभिन्न तंत्र ख़राब हो सकते हैं।वृद्धों को अक्सर वात स्थितियों का अनुभव होता है और इसलिए उन्हें एक पोषणकारी व शांत जीवन शैली की आवश्यकता होती है।शरीर की रोजाना तेल मालिश से खुश्की दूर हो सकती है।जिनको जैसी वनस्पति मस्तिष्क में रक्त संचार को बढ़ा सकती है।इससे स्मृति क्षय जैसा दोष दूर हो सकता है।भीतरी अंगों को चिकनाहट देने वाली अन्य वनस्पतियां है, अश्वगंधा तथा कच्छीय मृदु पत्र (मर्शमेलों) की जड़ें ।
वृद्धावस्था में स्वास्थ्य की गतिकी की सामान्य समझ के आधार पर, नीचे की सूचनाएं निम्न विषयों के बारे में हैं – स्वस्थ जीवन जीने के तौर – तरीके, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर), मूत्र संबंधी समस्याएँ, रूमेटीज्म, अवसाद. डायबिटीज मोलिटेस।प्रत्येक उपखंड में वृद्धों को होने वाली कुछ बीमरियों के लिए निर्धारित आहार, वनस्पतियां योग व औषधियां दी गई हैं ।
मूलभूत भोजन व निद्रा संबंधी नियमों व नियमित व्यायाम से व्यक्ति जीवन भर स्वथ्य बना रह सकता है।उपयुक्त आहार व व्यायाम व्यक्ति की शारीरिक संरचना पर निर्भर करता है।दुसरे शब्दों में कहें, तो हमें प्रकृति के साथ समरसता में जीना चाहिए-एक प्राकृतिक संतुलन के साथ ।
स्वास्थ्यकारी भोजन
स्वस्थ जीवन जीने के लिए स्वास्थ्यकारी आहार आदतें बहुत महत्व रखती हैं।इसमें खाया गया भोजन, दो खानों के बीच का अन्तराल खाने की चीजों का आपसी मेल व उनकी मात्रा, स्वच्छता तथा खाने के उपयुक्त तरीका शामिल है ।
शरीर के क्रियाकलापों में संतुलन बनाए रखने के लिए उपयुक्त व नियमानूसार नींद बहुत जरूरी है।अच्छे स्वास्थ्य का मूलमंत्र है – “जल्दी सोना और जल्दी उठना” एक औसत व्यक्ति के लिए 6-8 घंटे की नींद पर्याप्त होती है आदर्श नींद वह है जिसमें कोई व्यवधान न पड़े और जो 100-100 मिनट के चार क्रमिक चक्रों में ली जाए यानी 6 घंटे और 40 मिनट की चार बार में ली गई नींद।अधिक सोने से आलस्य तथा रोग पैदा होते हैं ।
उपयुक्त व्यायाम
अच्छे स्वास्थ्य के लिए आपकी शारीरिक सरंचना के अनुकूल नियमित व्यायाम करना बहुत ही लाभकारी है।योग को सर्वश्रेष्ठ व्यायाम बताया गया है, क्योंकी यह हमारे शारीरिक, मानसिक व अध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।योग व आयुर्वेद को चोली दामन का साथ है, क्योंकि दोनों विज्ञानों का उद्देश्य संपुर्ण स्वास्थ्य प्रदान करना है ।
शरीर की सफाई
विभिन्न चयापचयी गतिविधियों के कारण शरीर में कुछ जीव – विष (टौक्सीन) एकत्रित हो जाते हैं।इन जीव- विष को शरीर से निकलना बहुत जरूरी होता, क्योंकी ये रोग पैदा कर सकते हैं।आयुर्वेद उपवास को इन जीव–विषों से मुक्ति का एक उपाय या एक तरह की चिकित्सा मानता है ।
नवीकरण
वृद्धावस्था में अधिकतम स्वास्थ्य बरकरार रखने व एक सक्रिय जीवन जीने के लिए कुछ नवीकरण चिकित्साएँ सुझाई गई है।आयुर्वेद में शरीर के नवीकरण के लिए कई नुस्खे उपलब्ध हैं।इन्हें ऋतुओं में शारीरिक संरचना को ध्यान में रखते हुए इस्तेमाल किया जा सकता है।रोजमर्रा की जिन्दगी में अच्छा सामाजिक व्यवहार नैतिकता, अच्छे तौर तरीके तथा अच्छा चरित्र शरीर नवीकरण करने वाले कारकों का काम करते हैं ।
यह पाचन पथ में पैदा होने वाला सबसे आम रोग है।ठीक से मलत्याग न होने पर जीव- विष या अम पैदा होते हैं।वे रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं।और इस तरह शरीर की सभी भागों में पहुँच जाते हैं।अगर यह स्थिति निरंतर बनी रहे तो इससे रूमेटीज्म, आथ्राइटीस, बवासीर, उच्च रक्तचाप और यहाँ तक की कैंसर जैसे गंभीर रोग हो सकते हैं ।
मूल कारण
अनुपयुक्त भोजन व आहार की अनियमित आदतें
पानी व अधिक रेशे वाले भोजन का अपर्याप्त मात्रा में सेवन
उपचार विकल्प
उपयोगी वनस्पतियाँ व जड़ी- बूटियाँ :
आयुर्वेदिक सम्पूरक
आहार व जीवन शैली संबंधी शैली संबंधी बदलाव
मूल कारण
उपचार विकल्प
लाभकारी वनस्पतियां व जड़ी – बूटियाँ
सर्पगंधा ( रौवोल्फिया सर्पंटीना)
आयुर्वेदिक संपूरक
महानारायण तेल
आहार व जीवन शैली संबंधी बदलाव
मांस, अंडो व ज्यादा नमक से परहेज करें
योगासन
मूत्र में हमारे चयापचयी तंत्र के सह- उत्पाद, लवण, जीव – विष तथा पानी होते हैं।हमारे मूत्र तंत्र में समस्याएँ वृद्धावस्था, बीमारी और चोट के कारण पैदा होती हैं।उम्र बढ़ने के साथ हमारे गुर्दों की संरचना में बदलाव आते हैं और इनके कारण रक्त से अपशिष्ट को अलग करने की उनकी क्षमता कुछ कम हो जाती है।इसके अलावा, गर्भाशय, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं।मांसपेशियों की कमजोरी के कारण मूत्राशय स्वयं को पूरी तरह खाली नहीं कर पाता है, इस कारण वृद्ध व्यक्ति मूत्रीय- संक्रमण का शिकार होने लगता है।अवरोधिनी व श्रोणी प्रदेश (पेल्विस) की मांसपेशियां की कमजोरी के कारण भी मूत्र अनियंत्रण की समस्या पैदा हो सकती है।बीमारी या चोट के कारण भी गुर्दे रक्त से पूरी तरह जीव - बिष को अलग करने में असमर्थ हो सकते हैं या मूत्रमार्ग में अवरोध पैदा कर सकते हैं ।
इस रोग प्रोस्टैट ग्रंथि में सूजन होने के कारण बार- बार पेशाब जाना पड़ सकता है, बार – बार पेशाब करने की गहरी इच्छा होती है या पेशाब करने में दर्द हो सकता है, पीठ के निचले हिस्से, जनांग क्षेत्र में दर्द हो सकता है।कुछ मामलों में यह रोग जीवाणू संक्रमण के कारण भी होता है।लेकिन प्रोस्टेटाइटिस के अधिक आप रूपों का जीवाणू संक्रमण से कोई संबंध नहीं ।
उपचार विकल्प
लाभकारी वनस्पतियाँ व जड़ी बूटियाँ
आयुर्वेदिक संपूरक
आहार व जीवन शैली संबंधी बदलाव
योगासन
इसे आयुर्वेद में ‘अमवात’ के नाम से जाना जाता है।इसके दो रूप हैं – मांसपेशियों को प्रभावित करने वाला दीर्घकालिक संधि अमवात व जोड़ों को प्रभावित करने वाला दीर्घकालिक संधि अमवात।अगर इसके प्रति लापरवाही बरती जाए तो यह दिल को भी प्रभावित कर सकता है ।
मूल कारण
उपचार विकल्प
लाभदायक वनस्पतियाँ व जड़ी- बूटियाँ
आयुर्वेदिक संपूरक
आहार या जीवन शैली संबंधी बदलाव
योगासन
राहत के लिए आयुर्वेद में निम्न तेलों की मालिश का सुझाव दिया गया हैं :
अवसाद सबसे आम भावनात्मक रोगों में से एक है।यह विभिन्न मात्राओं में प्रकट हो सकता है – हल्की उदासी से लेकर गहन दुख और हताशा तक।मन की तीन महत्वपूर्ण ऊर्जाएं हैं – सत्व, रजस और तम के बढ़ने से पैदा हूआ रोग है ।
मूल कारण
लम्बे समय तक चिंता और तनाव के कारण मानसिक अवसाद हो सकता है ।
उपचार विकल्प
निम्न फल व जड़ी – बूटियाँ घरेलू उपचार हैं :
आयुर्वेदिक संपूरक
आहार व जीवन शैली संबंधी परिवर्तन
अवसादग्रस्त व्यक्ति के भोजन में चाय, कॉफ़ी, शराब तथा कोला बिल्कुल नहीं होने चाहिएं।सब्जियों, ताजे फलों व फलों के रस का सेवन अधिक करना चाहिए ।
अवसाद के उपचार में व्यायाम भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।यह ने केवल शरीर और मन को स्वस्थ तख्ता है, बल्कि मनबहलाव और मानसिक राहत भी देता है।रोगियों को मेडिटेशन / ध्यान भी करना चाहिए ।
योगासन
इसे आयुर्वेद में मधुमेह का नाम दिया गया है।वृद्ध व मोटापा ग्रस्त लोगों को यह रोग ज्यादा होता है ।
मूल कारण
उपचार विकल्प
लाभदायक वनस्पतियाँ व व जड़ी- बूटियाँ
आयुर्वेदिक संपूरक
आहार व जीवन शैली संबंधी बदलाव
योगासनों के जरिए पैरों की देखभाल
स्त्रोत: हेल्पेज इंडिया/ वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया
अंतिम बार संशोधित : 2/14/2020
इस भाग में बीमारी पश्चात जरुरत पड़ने वाली पॉलिसी के...
इस भाग में ऑर्थोपेडिक्स के सभी उपचार व मेजर सर्जरी...
इस लेख में किडनी क्रोनिक किडनी डिजीज के उपचार सम्ब...
वृद्धजनों में होने वाले अल्जीमर्स रोग पर एक विशेष ...