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पुलिस की भूमिका

पुलिस की भूमिका

भूमिका

यह अधिकार पुलिस ही होती है जो किशोर को गिरफ्तार करती है और उसे  किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश करती है। यदि एकदम ही नहीं तो बहुत दुर्लभ मामलों में होता हा जब एक किशोर किसी निजी पार्टी या स्वयंसेवी संगठन के द्वारा किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष लाया जाता है। इस प्रकार एक किशोर का किशोर न्याय व्यवस्था से पहला परिचय पुलिस के माध्यम से होता है। एक निजी पार्टी या स्वयंसेवी संगठन जो एक किशोर को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश कर रहा है, उसे इस पेशी के बारे में पुलिस को सूचित करना अधिक पसंद करना चाहिए। यह पुलिस ही है जो एक किशोर मामले की खोजबीन करती है और विश्वसनीय अधिकरण के समक्ष आरोप-पत्र दाखिल करती है। किशोरों को प्रदान किया जाने वाला एक अलग व्यवहार, जो कि किशोर कानून के अंतर्गत एक नैतिक बह्यता से हार जाता है यदि पुलिस किशोर साथ भी वही व्यवहार करती है जो एक खतरनाक अपराधी के साथ इसलिए किशोर न्याय अधिनियम 2000 की वस्तु और कारण की बात यह शामिल करती है कि संवेदनों कारण और पुलिस अधिकारीयों के प्रशिक्षण के माध्यम से एक विशेष किशोर पुलिस इकाई की रचना हो जो एक मानवीय समझ के साथ हो। अनुसारत किशोर न्याय अधिनियम 2000 प्रत्येक जिले शहर में एस. जे. पी. यू स्थापना, और किशोर या बाल कल्याण अधिकारी के तौर पर एक पुलिस स्टेशन में कम से कम एक पुलिस अधिकार के बाद को जोड़ने की कल्पना करता है।

परिचय

विशेष किशोर पुलिस इकाई (1) उन पुलिस अधिकारीयों को जो लगातार या विशेष रूप से किशोर के साथ बात करते है या मुख्य रूप से किशोर अपराधों के रोकधाम में लगे हुए रहे है या उनको देखते रहें हैं या बच्चों को इस अधिनियम के तहत देखते रहे हैं उन्हें सशक्त बनाने के लिए उन्हें विशेष रूप से निर्देशित और प्रशिक्षित किया जाएगा।

(2) प्रत्येक पुलिस स्टेशन में कम से कम एक पुलिस अधिकारी जो प्रवीण प्रशिक्षित व अनुकूलित हो उसे किशोर या बाल कल्याण अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया जा सकता है किशोर या बच्चे को पुलिस से समायोजन कर देखेंगे।

(3) विशेष किशोर पुलिस इकाई में किशोरों या बच्चों को देखने के लिए उपरोक्त नियुक्त पुलिस अधिकारी सदस्य होंगे जो प्रत्येक जिले और शहर में समायोजन और पुलिस के द्वारा किशोर और बच्चों के प्रति व्यवहार को उच्च स्तर पर लाने के लिए बनाए जा सकते हैं।

मॉडल नियम एस. जे. पी. यू. को एक किशोर या बाल कल्याण अधिकारी (पुलिस निरीक्षक के स्तर का) व दो वैतनिक सामाजिक कार्यकर्ताओं, जिनमें एक महिला होगी, जिन्हें बाल कल्याण के क्षेत्र में काम करने का अनुभव होगा के अंतर्गत जिला स्तर पर कार्य व्यवहार करने के लिए देखता है। यह गिरफ़्तारी के समय के एक किशोर मामले में सामाजिक हस्तक्षेप को पक्का करता है। यह सबसे अच्छा होगा यदि वे सामाजिक कार्यकर्त्ता जो एस. जे. पी. यू. का सहयोग करने के लिए नियुक्त हैं वे माल मनोवैज्ञानिक में प्रशिक्षित हों। 1952 में, ग्रेटर मुंबई में किशोर सह पुलिस इकाई (जे ए पी यू) बनाया गया और यह एक विशेष सेल के रूप में पुलिस बल के अधीन मुख्य रूप से दरिद्र व अवहेलित बच्चों को देखता रहा है।

एस. जे. पी. यू. को स्थापित करने के लिए विभिन्न नये तरीके इजाद किए जाते रहे है। कर्नाटक राज्य में एस. जे. पी. यू. मान्यता प्राप्त स्वयंसेवी संगठनों से सहयोग लेते है। बैंगलोर में एस. जे. पी. यू. दो क्षेत्रों में स्थापित किए गए है। प्रत्येक एस. जे. पी. यू. बच्चों के लिए कार्य करे रहे संगठन से सहयोग लेते है। एस. जे. पी. यू. एक वरिष्ठ स्तर के पुलिस अधिकारी के नेतृत्व में पुलिस स्टेशनों में स्थित होते है, और उनके सदस्य बाल कल्याण अधिकारी होते है। (पदासीन पुलिस अधिकारी जो कहा जाता है) जो उस क्षेत्र के भीतर विभिन्न पुलिस केन्द्रों से संलग्न होते है। ज्यों ही एक किशोर अपराधी को गिरफ्तार किया जाता है, प्रासंगिक स्वयंसेवी संगठन, किशोर विधान के प्रावधानों की विश्वसनीयता को सुनिश्चित करते हैं और यह भी की बच्चा किशोर न्याय प्रणाली के तहत स्वयं के लिए सुनिश्चित किए गए अधिकारों का उपयोग कर सकेगा। हल्के मामलों में,किशोर न्याय बोर्ड की इजाजत से किशोर को दूसरी तरफ मोड़ देने की कोशिशें होती है। मोड़ना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक किशोर अपराधी किशोर न्याय प्रणाली में प्रवेश नहीं करता और इस प्रकार किशोर न्याय बोर्ड की पूछ-ताछ में आवश्यक तौर पर सामना नहीं करता है।

यह आवश्यक है कि किशोर विधान के अंतर्गत पुलिस की भूमिका का निरीक्षण हो।

  1. वह पुलिस ही है जो एक अपराध के संदेह में आए किशोर को समझती है।
  2. गिफ्तारी के बाद तत्काल किशोर को एस. जे. पी. यु. या किशोर कल्याण अधिकारी के अधिकार में भेज दिया जाना पड़ता है।
  3. गिरफ़्तारी के 24 घंटे के भीतर एस. जे. पी. यु या किशोर कल्याण अधिकारी जैसा भी मामला हो सकता है, किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करना होता है।
  4. किशोर न्याय बोर्ड में लंबित प्रस्तुती के बाद किशोर को निगरानी गृह में रखा जाता है किसी भी परिस्थिति में एक किशोर को पुलिस लॉक अप या कारावास में नहीं रखा जाना चाहिए।
  5. एस. जे. पी. यू. या किशोर कल्याण अधिकारी को किशोर के अभिभावक या माता – पिता या उसको पसंद के किसी भी अन्य व्यक्ति को किशोर की गिरफ़्तारी के बारे में जरूर सूचना देनी चाहिए।
  6. एस. जे. पी. यू. या किशोर कल्याण अधिकारी को किशोर की गिरफ़्तारी के बारे में निगरानी अधिकारी को भी अवश्य सूचित करना चाहिए ताकि किशोर के बारे में पूर्व सूचनाएं व उसको पारिवारिक पृष्ठभूमि और दुसरे भौतिक परिस्थितियों के बारे में सूचना लेने के सिलसिले में बोर्ड की पूछताछ करने में मददगार हो सके।
  7. किशोर न्याय अधिनियम 2000 का सेक्शन 12 (2)  पुलिस को जमानत पर एक किशोर को तत्काल गिरफ़्तारी से मुक्त करने का अधिकार देता है। ठीक इसी तरह का प्रावधान कि न्याय अधिकार 1986 और बीसीए 1984 में शामिल है पर पुलिस, जितनी भी महत्वहीन अपराध हो, किशोर को जमानत नहीं देते, जो वे वयस्कों को जमानती अपराध में दे देते है। यह प्रक्रिया है। किशोरों के मामले में जमानत का दिया जाना अपराध पर निर्भर नहीं करता है, बल्कि किशोर की परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करता है, और इसका निर्धारण सिर्फ ऐसी इकाई कर सकती है जिसके पास जरूरी ज्ञान व सहायता मौजूद हो। इसके अलावा पुलिस द्वारा जमानत दिए जाने की वजह असबंधित हो सकती है जिससे अधिनियमितता फ़ैल सकती है।
  8. एक जमानत आवेदन पर विचार कर रहा कि न्याय बोर्ड उस दौरान उसी आवेदन पर पुलिस से जवाब तलब करेगा। निराशा जनक रूप से पुलिस लगभग हमेशा ही किसी न किसी बहाने से किशोर विधान की भावना के बिल्कुल विरूद्ध जा कर जमानत के खिलाफ अपनी रिपोर्ट दाखिल करती है। यह देखा गया है कि ज्यादतर पुलिस जवाबदारियाँ आदतन उन आधारों पर जो कि न्याय बोर्ड 2000 के अंतर्गत उल्लेखित नहीं है। जमानत पर विरोध करती हैं। अपराध की गंभीरता, सबूतों की उपस्थिति लेने में कठिनाई ऐसे कारण है जो समान्यत: पुलिस द्वारा जमानत को ख़ारिज करने के लिया लाए जाते हैं; यह जरूर ध्यान में रखा चाहिए कि ये तीन शर्ते जो किशोर विधान में बनाई गई है उनका अस्तित्व सिर्फ दुर्लभ मामलों में होता है। लेकिन पुलिस वास्तविकता को स्वीकार करने की सदभावना में कमजोर होती है।
  9. आयु के कागजी प्रणाम की अनुपस्थिति, व आयु के पता न लग पाने की स्थिति में, किशोर न्याय बोर्ड पुलिस को निर्देशित करती है कि वह किशोर को चिकित्सकीय जाँच के लिए ले जाए जाए ताकि उसका आयु निर्धारण हो सके, यह मान्य है की निगरानी अधिकारी या सुधार गृह का कोई अन्य अधिकारी भी किशोर के साथ रहे।
  10. विशेष किशोर पुलिस इकाई आ किशोर कल्याण अधिकारी मामले की जाँच करता है तथा किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष चार्जशीट दायर करता है। इस चरण पर यह ध्यान में रखना जरूरी है कि हरेक पुलिस थाने को अपने किशोर कल्याण अधिकारी के जरिए विशेष किशोर पुलिस इकाई शामिल होना है, और इसलिए जाँच चलाने के लिए संबंधित पुलिस थाने की सहायता ली जाएगी
  11. किशोर विधान के अंतर्गत, कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर की जिम्मेदारी हमेशा ही किशोर न्याय बोर्ड के पास रहेगी और पुलिस हिरासत जैसी कोई स्थिति नहीं होती। एक बार किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के बाद किशोर पर पुलिस का कोई अधिकार नहीं रहता, यदि पुलिस को किशोर से सवाल जवाब करना हो या टी आई. पी. करनी हो तो उसे किशोर न्याय बोर्ड से अनुमति लेने की जरूरत है। ऐसी अनुमति देना पूरी तरह किशोर न्याय बोर्ड पर नर्भर करता है, और अगर अनुमति मिलती भी है तो किशोर न्याय बोर्ड यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे किसी भी पूछताछ व टी. आई. पी. के वक्त निगरानी अधिकारी अथवा सुधार गृह का कोई अन्य अधिकारी वहाँ मौजूद हो
  12. पूछताछ के दौरान, गवाहों को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश करना, पुलिस की जिम्मेदारी होती है
  13. पूछताछ खत्म होने पर, 18 वर्ष के कम आयु के किशोर को विशेष गृह अथवा उसके घर तक पहूँचाना पुलिस की जिम्मेदारी है। किशोरों को संभालते वक्त पुलिस साधारण कपड़ों में होगी, न कि वर्दी में, किसी भी किशोर को हथकड़ी नहीं पहनाई जाएगी, जाचे उसे सुधार गृह पहूंचाया जा रहा हो या कोई अन्य काम हो। 1986 के कानून में यह एक मामला तह,चूंकि ज्यादातर राजों ने 1986 कानून के अंतर्गत बनाई नियमावली में एक जैसे प्रावधान डाले थे

राज्य सरकारों  को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किशोर न्याय की जानकारी पुलिस प्रशिक्षण का जीसस हो। यह बात हर पुलिसकर्मी के दिमाग में बैठा दी जानी चाहिए कि कानून किशोरों को वयस्क अपराधियों जैसे व्यवहार नहीं देता, और इसकी वजह क्या है। यह किशोर के अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम होगा। यह पुलिस द्वारा किशोरोंके साथ वयस्कों जैसा व्यवहार किए जाना चाहिए एवं उन्हें सजा मिलनी चाहिए, का नजरिया बदल सकती है या नहीं। सिर्फ जनता ही नहीं, पुलिस भी मानती है की किशोर कानून उन लोगों के साथ नर्म व्यवहार करती है जिनसे समाज को सुरक्षित रखा जाना चाहिए। मानक नियम कहते हैं, कोई भी पुलिस अधिकारी, जिसे जाचं के बाद, किसी बच्चे को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने का दोषी पाया गया हो, इस अपराध के लिए सजा के साथ साथ उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया जाएगा। यह उम्मीद है कि ऊपर दिए गए नियम से पुलिस के हाथों होने वाले किशोरों के शारीरिक उत्पीड़न कम होंगे।

स्रोत: चाइल्ड लाइन इंडिया फाउन्डेशन

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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