अपील शब्द का अर्थ है किसी मामले को किसी निचली अदालत पर उपर की किसी अदालत में इस नजरिए के साथ ले जाना की सुनाया गया फैसला माने जाने योग्य है या नहीं यह किसी निचली अदालत फैसले को ऊपरी अदालत द्वारा न्यायिक जाँच किए जाने का आवेदन होता है। कानून यह बताता है कि किस न्यायालय या प्राधिकरण के समक्ष और किस वक्त यह अपील की जाए।
किशोर न्याय अधिनियम 2000 के अंतर्गत किशोर न्याय बोर्ड द्वारा दिए गए फैसले को सत्र न्यायालय के समक्ष अपील से चूनौतो दी जा सकती है।
“52 अपील (1) इस धारा के प्रावधानों के विषय में, कोई व्यक्ति जो की इस कानून के अंतर्गत किसी संबंधित प्राधिकरण द्वारा किए गए फैसले से नाखुश है, ऐसे फैसले के 30 दिनों के अंदर सत्र न्यायालय के समक्ष अपील कर सकता है;
प्रावधान है कि सत्र न्यायालय ऐसे किसी अपील को दिए गए अवधि के खत्म होने बाद भी मान सकता है यदि वह संतुष्ट हो कि अपील करने वाले के पास अवधि के भीतर एपीआई न कर पाने के पर्याप्त कारण हैं।”
अपील करने वाला पक्ष वह है जो किशोर न्याय बोर्ड के फैसले से नाखुश होकर अपील कर रहा है।
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 52 (2) किशोर को छोड़े जाने के बोर्ड के फैसले के खिलाफ अपील को रोकती है। इसलिए, किशोर की रिहाई का फैसला अंतिम होता है जिसे स्तर न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती। धारा 52 (3) सत्र न्यायालय के फैसले को दूसरी बार चुनौती देने पर रोक लगाते हैं। इसलिए, अपराधी घोषित किए जाने के फैसले को किशोर द्वारा सिर्फ एक ही बार चुनौती दी जा सकती है।
सीमा अधिनियम 1963 अपील द्वारा दायर करने की अवधि को बताते हैं। तीस दिन की अवधि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा फैसला सुनाए जाने की तिथि के अगले दिन से शुरू होती है। बोर्ड के फैसले की प्रमाणित कोपी हासिल करने में गए दिनों को समय सीमा से घटाया जाना चाहिए पर प्रमाणित कॉपी हासिल करने के आवेदन को देने से पहले के दिनों को शामिल करना है। इसलिए “प्रमाणित कॉपी” हासिल करने का आवेदन, फैसले के आते ही कर देना चाहिए, उदहारण के लिए यदि बोर्ड 1 मार्च 2000 को फैसले सुनाती है और प्रमाणित कॉपी हासिल करने का आवेदन 5 मार्च 2006 को दिया गया है और प्रमाणित कॉपी 15 मार्च 2006 को हासिल होती है तो ऐसे मामले में अपील की अवधि 7 अप्रैल 2006 को समाप्त हो जाती है। फैसले की प्रति जो किसी न्यायालय या प्राधिकरण की जाती है, तो उसे फैसले की प्रमाणित प्रति कहा जाता है। यदि अपील की अवधि किसी ऐसे दिन खत्म हती है जिस दिन न्यायालय बंद हो तो अपील उस दिन किया जा सकता है जब न्यायालय पुन: खुले, बोर्ड के फैसले नाखुश पक्ष या उनका वकील बोर्ड के ही समक्ष उनके फैसले की प्रमाणित प्रति के लिए आवेदन दे सकता है। इसके अलावा, अपील करने वाले को अपील के आवेदन के साथ बोर्ड उस फैसले की एक प्रमाणित प्रति देनी है जिसे चुनौती देता है।
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 52 (1) के प्रावधानों के अनुसार सीमा अधिनियम की धारा 5 भी ऊपरी न्यायालय को यह अधिनियम देता है कि वह अपील में हुई देरी को नजर अंदाज करे यदि वह संतुष्ट हो कि इस देरी के लिए पर्याप्त कारण मौजूद थे।
किशोर न्याय अधिनियम 1986 के धारा 52 में ऐसा ही प्रावधान दिया गया था, बीसीए 1948 के अनुसार किशोर न्यायालय या किशोर न्यायालय के सामान अधिकारों वाले किसी अन्य न्यायालय के अंतिम निर्णय को ही अपील द्वारा चुनौती दी जा सकती थी, और यह अपील 90 दिनों के भीतर की जानी थी। इसके बाद के किशोर कानून सत्र न्यायालय के समक्ष सम्बंधित प्राधिकरण के फैसले कि अपील 30 दिनों के भीतर करने की आज्ञा देते हैं।
किशोर कानून के अंतर्गत, उच्च न्यायालय के पास बोर्ड या सत्र न्यायालय के फैसले के कनोनी पक्ष या सही होने पर पुनर्विचार करने के अधिकार है।
“53 पुनर्विचार – उच्च न्यायालय किसी भी समय, या तो खुद ही या फिर आवेदन, पर संबंधित प्राधिकरण या सत्र न्यायालय द्वारा सुनाए गए किसी भी फैसले की किसी भी प्रक्रिया के रिकार्ड की मांग कर सकती है ताकि वह खुद को ऐसे फैसले के कानूनी पक्ष या सही होने पर संतुष्ट कर सके और उस पर ऐसा फैसला दे सकती है जो उसे उचित लगे;
प्रावधान है कि उच्च न्यायालय इस धारा के अंतर्गत ऐसा कोई भी फैसले नहीं सुनाएगी जो किसी व्यक्ति के विरूद्ध पूर्वाग्रह में हो और उसे सुनने का एक भी सही मौका न दे।”
किशोर न्याय अधिनियम 1986 की धारा 53 में एक समान प्रावधान था। आमतौर पर अपराधी होने के बोर्ड के फैसले को सत्र न्यायालय के समक्ष अपील में चुनौती दी जा सकती है और उसके बाद उच्च न्यायालय के समक्ष पुनर्विचार में दोनों पक्ष सवाल जवाब कर सकते हैं। हालाँकि बोर्ड के फैसले से असंतुष्ट कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय के समक्ष सीधी पुनर्विचार की अपील कर सकता है। पर ऐसा करने पर असंतुष्ट पक्ष अपील व पुनर्विचार के द्वारा होने के फैसले को दो बार चुनौती देने से वंचित रह जाता है।
उच्च न्यायालय के समक्ष पुनर्विचार का आवेदन किसी किशोर द्वारा सत्र न्यायालय के फैसले द्वारा दिया जा सकता है, जो बोर्ड के फैसले की पुष्टि करता हो।
किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 6 (2):
“इस कानून द्वारा बोर्त्द को दिए गए अधिअक्र, उच्च न्यायालय व सत्र न्यायालय द्वारा भी लिए जा सकते हैं यदि उनके समक्ष अपील पुनर्विचार या किसी अन्य करणों से ऐसी कोई पेशी चल रही हो।”
यह प्रावधान उच्च न्यायालय व सत्र न्यायालय को किशोर से संबंधित किसी मामले को देखने व उसपर फैसले सुनाने का अधिकार देते हैं यदि ऐसा कोई मामला अपील, पुनर्विचार या किन्ही अन्य कारणों से उनके समक्ष लाया गया हो। शब्द “किन्हीं अन्य कारणों से” काफी व्यापक हैं और यह उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय को कानून का उल्लंघन करने वाले किशोरों से जुड़े किसी भी मामले से निपटाने का अधिकार देते हैं और उस पर, बोर्ड को मामला भेजे बिना, फैसले सुनो का अधिकार देते हैं। धारा 6 (2) से मिलता जुलता एक प्रावधान किशोर न्याय अधिनियम किशोर न्याय अधिनियम 1986 में भी है।
स्रोत: चाइल्ड लाइन इंडिया फाउन्डेशन
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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