किशोर न्याय अधिनियम 2000, कानून का उल्लंघन करने वाले किशोरों से जुड़े सभी मामलों को संचालित करेगा, चाहे उन्होंने कोई भी अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। किशोरों के साथ अलग ढंग से व्यवहार किया जाना चाहिए क्योंकि उनका दोष कम होता है और वे अपना ध्यान रखने में कम सक्षम होते है। किशोर कानून, हिरासती, न्यायिक व सजा देने कीप्रक्रिया को साफ करता है। अपराध की गंभीरता या उसका किसी विशेष कानून या स्थानीय कानून के अंतर्गत आना कोई मायने नहीं रखता।
सर्वोच्च न्यायालय व विभिन्न उच्च न्यायालयों ने यह माना है कि किशोर कानून सभी किशोरों से जुड़े मामलों में सर्वोच्च होगा चाहें अपराध किसी भी प्रकृति का क्यों न हो। इस संदर्भ में किसी भी प्रकार के संदेह को मिटाने के लिए किशोर न्याय अधिनियम 2000 स्पष्ट रूप से कहता है कि :
“धारा 1 (4) : किसी अन्य कनून के प्रर्वादान की नजरअंदाज कर, कानून का उल्लंघन करने वाले किशोरों से जुड़े सभी मामलों में दिए जाने वाली सजा, प्रक्रिया, दंड व कैद सजा में इस कानून के प्रावधान लागू होंगे।”
इसलिए, किशोर द्वारा दिए गए किसी भी अपराध पर यह साबित होने के बाद कि वह किशोर है, उसके मामले को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किए जाएगा और उसके कस्टडी संप्रेषण गृह को दी जाएगी। इसके बाद की प्रक्रिया वैसे ही चलेगी जैसी किशोर कानून में दी गई है।
स्रोत: चाइल्ड लाइन इंडिया फाउन्डेशन
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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