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किशोर न्याय व्यवस्था में सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका

किशोर न्याय व्यवस्था में सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका

भूमिका

हालाँकि 1950 के बाद से कल्याण वाद का नजरिया न्याय के नजरिए में बदला है, अब भी सामाजिक कार्यकर्ता किशोर अपराधियों के सुधार में बड़ी भूमिका रखते  हैं।

जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि किशोर न्याय बोर्ड एक महानगरीय दंडाधिकारी या एक न्यायिक दंडाधिकारी जो प्रथम श्रेणी का होगा और दो सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को समाहित करता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं को बच्चों से जुड़ी स्वास्थ्य शिक्षा या कल्याण कार्यों से कम से कम सात वर्षों तक शामिल होगा। दो सामाजिक कार्यकर्ताओं को चुनाव समिति के दर्खावास्त पर राज्य सरकार के द्वारा नियुक्त किया जाएगा। चुनाव समिति के पास उसके सदस्य के रूप में दुसरे सदस्यों के बीच ही होंगे, दो सम्मानित गैर – सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि जो बाल कल्याण के क्षेत्र में कार्यरत को अवश्य ही अडिग होना चाहिए और दंडाधिकारी से प्रभावित नहीं होना चाहिए ऐसे में जबकि उन्हें किशोर के पुनस्थापना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। उन्हें किशोर कानूनों के प्रावधानों के आत्मसात कर लेना चाहिए और किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष लंबित पड़े प्रत्येक मामलों के कागजात और सुनवाई को साथ रखते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किशोर के साथ न्याय किया जाएगा। यह सामाजिक कार्यकर्ता का कार्य है कि वह किशोर का विश्वास प्राप्त करे और साथ ही साथ उसके समक्ष यह चित्रित करें कि उनका सर्वोपरी हित उनके मन में है और वे गंभीरता से लिए जायेंगे। यह किशोर न्याय बोर्ड के निर्देशों के अंतर्गत है कि उन्हें एक संस्था में स्थानांतरित किया जाता है। इस प्रकार यह अत्यंत आवश्यक है कि किशोर न्याय बोर्ड, खासतौर से, सामाजिक कार्यकर्त्ता सदस्य इसे सुनिश्चित करने के लिए कि पूर्नाचना व पुनर्स्थापना उस स्थान पर जहाँ किशोर को भेजा गया है, संतोषकारी है। नियमित रूप से निगरानी गृह, विशेष गृह और आय गृहों का दौरा करें।

परिचय

1986 अधिनियम ने भी किशोर को न्याय दिए जाने के समय सामाजिक कार्यकर्ताओं के महत्व को मान्यता दिया। किशोर न्यायालय को दो सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ताओं के पेनल द्वारा सहयोग किया जाना था जो दिए गए योग्यता को रखता हो। जिनमें से कम से कम एक महिला होगी और ऐसा पेनल राज्य सरकार के द्वारा नियुक्त किया जाएगा 2000 अधिनियम ने सामाजिक कार्यकर्ता को महज दंडाधिकारी के सहयोगी बने रहने के स्थान पर उसे उस पीठ का भी भाग बना कर पदोन्नत किया जो किशोर न्याय बोर्ड की रचना करता है। इसके बावजूद कि सामाजिक कार्य हस्तक्षेप एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उसे हमेशा से सम्मानित स्वयं सेवी, और दान योग्य कहा गया। सिर्फ 1986 अधिनियम में ही दो सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता (जोर देकर) किशोर न्यायालय को सहयोग नहीं कर रहे थे बल्कि एक समकक्ष धारा 2000 अधिनियम में भी चल रही है। किशोर न्याय बोर्ड के सामाजिक कार्यकर्ताओं सदस्य को यात्रा और बैठक सदा राज्य सरकार द्वारा तय किया जा सकता है। यह एक अच्छा समय है जब सरकारों यह मान रही हैं कि सामाजिक कार्यकर्त्ता पेशेवर है। एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रह हैं और उनके कार्यों के महत्व को स्वीकार और प्रशंसित करने की आवश्यकता है।

पी.ओ. योग्य (शिक्षित) सामाजिक कार्यकर्त्ता है। बाल देखरेख संस्थानों के सूपरिटेनडेंड और अन्य वरिष्ठ कर्मचारी भी अकादमिक रूप से प्रशिक्षित है। संस्थानों से जुड़े पीओ और कर्मचारियों के पास किशोरों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने कि विभिन्न स्थितियां होती है। उनकी भूमिका का तब तक मतलब होता है। जब गलती करने वाले किशोर प्राय: यह संकेत देते है कि उनके परिवार को उनकी देख रेख की फिकर नहीं है। प्रथमत: एक मीटर के रूप में ताकि बच्चा उससे स्वतन्त्रतापूर्वक बोलने में सुविधा महसूस करे। दूसरे, एक सलाहकर्ता के रूप में और दिग्दर्शक के रूप में और ताकि बच्चा जब जरूरत में हो तो उसे कर्मचारी को बोलने का विश्वास हो। तृतीय एक सुधारक के रूप में ताकि बच्चा यह समझ सके कि उसने जो किया है वह गलत है। चतुर्थ एक स्वास्थ्य कर्त्ता के रूप में जो बच्चे को उसकी पूर्ण संभावना को पाने में मदद कर्रा है और उसे उसके भविष्य के प्रति निर्देशित करता है। एक संस्थान में बाल निरीक्षण क्लिनिक की व्यवस्था करना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकी बार- बार चलने वाले स्तर उसकी मुद्रा में एक बदलाव लाने में अति आवश्यक होता है। ये शिक्षित व प्रशिक्षित बाल मनोवैज्ञानिक  या मनोचिकित्सक होते हैं जो बाल निरीक्षण क्लिनिक में किशोर के भविष्य में एक सकारात्मक बदलाव लाते है।

गैर सरकारी संगठन भी एक बड़ी केन्द्रीय भूमिका निभाते है। वे किशोर न्याय अधिनियम के तहत किशोरों के लंबित मामले या पूछ-ताछ के पूरा होने पर उन्हें एक उपयुक्त व्यक्त या उपयुक्त संस्थान में रख सकते हैं। 2000 अधिनियम ने स्वयंसेवी संस्थाओं को राज्य सरकार के साथ सहमति के तहत निगरानी गृहों और विशेष गृहों की स्थापना व उन्हें संभालने के लिए सशक्त किया है। इसके अतिरिक्त स्वयंसेवी संगठनों को राज्य सरकार के द्वारा स्थापित किए गए व संभाले जा रहे संस्थानों के लिए सेवाएँ मुहैया कराने की जरूरत है जैसे; कांउसलिंग, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा और व्यवसायिक प्रशिक्षण इत्यादि ताकि इससे किशोर की समग्र पुर्नस्थापना हो सके।

स्रोत: चाइल्ड लाइन इंडिया, फाउन्डेशन

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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