“विभिन्न प्रावधान जैसे देख रेख, मार्गदर्शन एवं निगरानी के आदेश; काउंसलिंग, नगरानी; घरेलू देख रेख; शिक्षा एवं व्यवसयिक प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं संस्थागत देखरेख के अन्य विकल्प उपलब्ध होने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बच्चों क उनकी अच्छे होने और परिवेश व अपराध के अनुपात में ही ढंग से निपटारा मिले, होने चाहिए।”
कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर उसी कानून के अंतर्गत आते हैं जिसके वयस्क अपराधी, सिर्फ उनके साथ अलग व्यवहार किया जाता है।
किशोर न्याय व्यवस्था किशोर के भविष्य में कल्याण पर जोर देता है नाकि पुराने कार्यों के लिए सजा देने में। चूंकि सुधार व पुर्नवास किशोर न्याय व्यवस्था का मुख्य ध्येय है इसलिए, यह साबित होने पर कि किशोर न्याय बोर्ड को ऐसे फैसले करने चाहिए जो कि किशोर कानून की आत्मा के अनुसार हों। किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 में वे फैसले लिए गए हैं जो किशोर न्याय बोर्ड किशोर की परिस्थिति के अनुसार दे सकती है। धारा 16 खास तौर पर बताता है कि किसी भी कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर को मृत्यु दंड, आजीवन कारावास या ऐसा कोई भी कारावास का दंड नहीं दे सकती जो आजीवन हो जाए या दंड न भरने पर या सुरक्षात्मक जमा न देने पर कारावास का दंड नहीं दे सकते है। विभिन्न बाल कानूनों में सामान प्रावधान दिए गए हैं। उदहारण के लिए बी सी ए 1948 की धारा 68 में (1) मृत्यूदंड, (2) यातायात की सजा या (3) कैद की सजा नहीं किसी किशोर अपराधी को नहीं दे सकते।
किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 15 (1) में बोर्ड द्वारा पास किए जाने लायक आदेशों की एक विस्तृत सूची देता है। जिसमें चेतावनी और काउंसलिंग से लेकर विशेष गृहों में रखा जाना तक शामिल है, और यहाँ दिया गया है:
15. किशोर के संबंध में दिए जाने वाले आदेश, (1) यदि बोर्ड, इस बात पर संतुष्ट हैं कि किशोर ने कोई अपराध किया हा तो, किसी और कानून में दे और किसी विरोधी बात को मने बिना जो कि उस वक्त लागू हो, बोर्ड यदि उपयुक्त समझे तो-
(अ) किशोर को सलाह व चेतावनी देने और सही जाँच व माता पिता या अभिभावक की कांउसलिंग के बाद उसे घर जाने की आज्ञा दे सकती है।
(ब) किशोर को सामुहिक काउंसलिंग या ऐसी अन्य गतिविधियों में शामिल होने का होने का निर्देश दे सकती है।
(क) किशोर को सामुदायिक सेवा का आदेश के सकती है।
(ङ) किशोर के अभिभावक या किशोर, यदि वह 14 वर्ष से ऊपर का हो और कमाता हो, द्वारा दंड भरवा सकती है।
(इ) किशोर को अच्छे व्यवहार के निरीक्षण के अंतर्गत छोड़ने के आदेश दे सकती है और उसे माता पिता, अभिभावक या अन्य सही व्यक्ति की देख रेख में रखने के लिए, मुचलके के साथ या बिना, जैसा बोर्ड को लगे बांड भरवा सकती हैं। किसी के अच्छे व्यवहार व सही देखरेख को सुनिश्चित करने के लिए ऐसी किसी अवधि के लिए जो तीन साल से अधीन न हो:
(फ) किशोर को अच्छे व्यवहार के निरीक्षण पर छोड़ सकती है और किसी उपयुक्त संस्था किए अंतर्गत अच्छे व्यवहार और सही देख रेख सुनिश्चित करने के लिए रखवा सकती है ऐसी किसी अवधि के लिए जो तीन साल से अधिक न हो।
(ग) तीन वर्ष की अवधि के लिए किशोर को विशेष गृह भेजने के निर्देश दे सकती है।
प्रावधान है कि बोर्ड, संतुष्ट होने पर कि अपराध की प्रकृति व मामले के परिवेश के अनुसार, कारणों को दर्ज करते हुए, यह सही होगा, गृह में रहने की अवधि को कम कर सकती है।
यदि किशोर धारा 15 (1) की (डी), (ई) या (एफ) के तहत छोड़ा जाता है तो बोर्ड कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर को निगरानी अधिकारी की देख रेख में रख सकता है और इस देख रेख की शर्ते तय कर सकता हैं उदहारण के लिए किशोर को यह निर्देश दिए जा सकते हैं कि हर हफ्ते निगरानी अधिकारी के समक्ष एक बार पेश हो। किशोर कानून में दिए गए विभिन्न प्रकार के फैसलों के कारण, कुछ बिन्दु होने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दिए गए आदेशों में कुछ समानता हो और वे बोर्ड के सदस्यों के दर्शन, पूर्वाग्रहों और पसंद पर निर्भर न हो। इसलिए किशोर कानून यह तय करता है कि कम से कम दो सदस्य, जिनमें से एक मुख्य मजिस्ट्रेट हो मामले में अंतिम निर्णय के वक्त मौजूद हो, किशोर पर लागू फैसले, किशोर के परिवेश के हिसाब से हो, न कि सिर्फ उसके द्वारा किए गए अपराध के अनुसार, इसलिए अंतिम निर्णय के वक्त एक सामाजिक कार्यकर्ता का रहना महत्वपूर्ण है।
अपराधी साबित हुए किशोरों की बड़ी संख्या को माता-पिता या अभिभावक की देखरेख में, निगरानी के अंतर्गत छोड़ दिया जाता है। किशोरों की रिहाई उन्हें पारिवारिक माहौल में अच्छे व्यवहार की निगरानी में अपनी सजा काटने की छूट देते हैं। जिसमें कभी कभी निगरानी अधिकारी की देखरेख भी शामिल होती है। कभी कभी जब किशोर अपने वादे के आदेश के अनुसार व्यवहार नहीं करता तो निगरानी अधिकारी के आदेश की तरह, समुदाय के आदेशों की भी मांग की जा सकते है, जो कि उनके उल्लंघन के अनुसार हो, जैसे किशोर को चेतावनी देना, किशोर की निगरानी बढ़ाने या किशोर का संस्थागतिकरण के आदेश निगरानी अधिकार दे सकता है। 1999 में नीला दाबिर और मोहुआ निगुदकर द्वारा एक अध्ययन बताता है कि1683 किशोरों में से 670 किशोरों के मामलों में उपयुक्त संस्था के देखरेख में और 241 मामलों में उपयुक्त संस्था की देखरेख में छोड़ा गया 2000 में 16 22 मामलों में से 663 मामलों किशोरों को माता पिता या अभिभावक की देख रेख में और 142 किशोरों को उपयुक्त संस्था की देख रेख में छोड़ा गया। 2001 में 2145 मामलों में से 671 मामलों में किशोरों को माता पिता या अभिभावक की देखरेख में और 75 में उपयुक्त संस्था की देखरेख में और 75 उपयुक्त संस्था की देख रेख में छोड़ा ग। 1999, 2000 और 2001 में, अध्ययन दिखाता है कि 313, 418 और 456 किशोरों को ही विशेष गृहों में डालने के आदेश दिए गए।
2006 के संशाधनो के पहले, कानून में सजा की अवधि को लेकर कुछ साफ नहीं था, पर न्यायिक चलन यह था कि 18 साल से ऊपर के किसी किशोर को विशेष गृह में नहीं रखा जा सकता इससे ऐसी स्थिति पैदा होती थी जिसमें यदि किशोर 17 साल 10 महीने की उम्र में अपराध करता है और जाँच के दौरान उसकी उम्र 18 साल से अधिक हो जाता है तो उसे विशेष गृह में नहीं डाला जा सकता जबकि बोर्ड ऐसा करना सी समझता है। 2006 के संशोधन में ऐसे किशोर विशेष गृह में अधिकतम 3 सालों के लिए रखा जा सकता है।
यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह दस्तावेजीकृत है कि किशोरों के लिए कैद की सजा को सिर्फ कुछ खास मामलों में और कम से कम समय के लिए रखना चाहिए। बीजिंग नियमों का क्लॉज 9.1 इस बात पर जोर देता है की किसी संस्था में किशोर को रखा जाना हमेशा अंतिम विकल्प होना चाहिए और सबसे कम जरूरी समय के लिए संयुक्त राष्ट्र किशोर अपराध की रोक के लिए प्रावधान भी यही कहता है जिसका संबंधित हिस्सा नीचे दिया गया है।
“46. छोटे व्यक्तियों/किशोरों का संस्थागतीकरणअंतिम विकल्प और कम से कम समय के लिए होना चाहिए और उनका सर्वोपरी हित सर्वाधिक महत्वपूर्ण होना चाहिए, ऐसे हस्तक्षेप को अधिकृत करने के स्तर ठोस रूप से परिभाषित होने चाहिए और निम्नलिखित स्थितियों में सीमित होने चाहिए।
(ए) जहाँ बच्चे या जवान व्यक्ति ने नुकसान झेला हो और उसकी वजह उनके माता पिता या अभिभावक हो; (बी) जहाँ बच्चे या जवान व्यक्ति को यौन, शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ा हो और उसकी वजह माता पिता या अभिभावक हो; (ई) जहाँ बच्चे या जवान व्यक्ति को माता-पिता या अभिभावक द्वारा ध्यान न दिया गया हो या छोड़ दिया गया हो या उत्पीड़ित किया हो; (डी) जहाँ बच्चे को माता पिता या अभिभावक के व्यवहार की वजह से शरीरिक या नैतिक खतरे हों; और (ई) जहाँ बच्चे या जवान व्यक्ति पर गंभीर शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरा उसके अपने व्यवहार से हो और माता पिता, अभिभावक या किशोर खुद या समुदायिक सेवा कुछ भी नहीं ठीक कर सकता सिवाय संस्थागतीकरण के।इसलिए सिर्फ माता-पिता या अभिभावक के न होने या उपयुक्त न पाए जाने पर या जब गैर संस्थागती कृत विकल्प किशोर के लिए शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे का कारण बने तभी उसे संस्था में डाला जाना चाहिए।”ख की
किशोर को विशेष गृह में डाले जाने के बजाय, उन मामलों जहाँ किशोर को विशेष ध्यान और देख रेख की जरूरत हो तो किशोर को उपयुक्त संस्था की देख रेख में रिहा कर दिया जाना चाहिए, किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 (1) (एफ) के अनुसार विशेष गृहों में ज्यादा बचे हैं और इसलिए वे इस स्थिति में नहीं होंगे कि वे किसी खास किशोर पर जरूरी देख रेख व ध्यान दे सकें। ऐसे मामले में यह सही होगा कि किशोर को उपयुक्त संस्था में डाल दिया जाए जो उसका ध्यान रखने के लिए तैयार हो और जरूरी सुविधाओं से लैस हो। उपयुक्त संस्था कि परिभाषा 2000 के कानून और 2006 के संशोधन के अंतर्गत है: “सरकारी, गैर सरकारी या स्वयं सेवी संस्था जो किशोर की जिम्मेदारी लेने को तैयार हो और जिसे संबंधित प्राधिकरण के बताए जाने पर राज्य सरकार द्वारा उपयुक्त पाया गया हो।” इसलिए लिए कोई भी संस्था जिसके पास उपयुक्त कार्यक्रम हो और जो किशोर कि जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हो उसे किशोर की जिम्मेदारी दी जा सकती है यदि बोर्ड को यह लगे कि ऐसा कार्यक्रम बच्चे के पुनर्वास में मदद करेगा, ऐसा जरूरी नहीं है कि उपयुक्त संस्था के रूप में स्वीकृत होने के लिए संस्था के लिए उस संस्था के पास कोई बंद आवासीय सुविधा हो। संस्था को जिसे इस रूप में स्वीकृत होना है, दिए गए बच्चे के लिए कोई नयी पुनर्वास योजना बनानी पड़ेगी जिससे उसका फायदा हो।
यदि कोई उपयुक्त संस्था आगे के लिए किशोए द्वारा अच्छे व्यवहार रुआ उसके स्वस्थ रहने को सुनिश्चित नहीं कर सकती या नहीं करना चाहती तो उसे यह बात बोर्ड के समक्ष रखनी चहिए; बोर्ड के पास अधिकार है कि वह जाँच के बाद किशोर को विशेष गृह में स्थानान्तरित करे दे। 2006 के संशोधन से उपयुक्त संस्था की परिभाषा में बदलाव लाया गया है, चूंकि अब यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं कि वह बोर्ड की सलाह पर घोषित करे, जबकि पहले यह बोर्फ्द की अकेले की जिम्मेदारी थी कि वह किस संस्था को उपयुक्त संस्था घोषित करे। 2006 के संशोधन के बाद बोर्ड को किशोर को सिर्फ उसी संस्था में डालना है जिसे राज्य सरकार द्वारा उपयुक्त संस्था घोषित किया गया है। यदि किशोर न्याय बोर्ड को लगता है कि किशोर को किसी खास संस्था में, जिसके पास उसके पुनर्वास के लिए उपयुक्त कार्यक्रम है, रखना हो तो बोर्ड राज्य सरकार की स्वीकृति लेगी और सिर्फ स्वीकृति दिए जाने के बाद ही किशोर को ऐसी संस्था में रख सकती है। यह प्रक्रिया समय लेती है, जिसकी वजह से किशोर के पुनर्वास में देरी होती है। इस प्रक्रिया को खत्म करने के लिए कोई संस्था अपने प्रतिनिधि द्वारा उपयुक्त व्यक्ति के अंतर्गत किसी किशोर के देखरेख की जिम्मेदारी ले सकता है, धारा 15 (1) के (ई) के अंतर्गत इसके अलावा, राज्य सरकारें अपने नियमों अंतर्गत बोर्ड को यह अधिकार दे सकती है कि वे किसी खास संस्था को उपयुक्त संस्था घोषित करे। यह भी माना जाता है कि बोर्ड या राज्य सरकार द्वारा किशोर को उपयुक्त संस्था के जिम्मे डाल दिया जाता है जिससे बच्चे की विशेष जरूरतें माट खा जाती हैं।
जैसा कि पहले ही कहा गया है कि फैसले का सबसे अच्छा विकल्प है किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 (1) ई के अंतर्गत किशोर को अच्छे व्यवहार की निगरानी पर रिहा कियां जाना, अर्थात माता-पिता या अभिभावक की निगरानी में। तो क्या इसका अर्थ यह है कि माता पिता या अभिभावक की अनुपस्थिति में किशोर के लिए एक मात्र विकल्प संस्था में डाला जाना है। धारा 15 (1) (ई) में ही इसका जवाव है। ऐसी स्थिति में किशोर की देखरेख व्यक्ति को दिया जा सकता है उपयुक्त व्यक्ति किशोर का कोई रिश्तेदार या दोस्त या किसी संस्था का प्रतिनिधि हो सकता है जो किशोर की जिम्मेदारी लेना चाहता हो और जिसे इसके लिए उपयुक्त पाया गया हो। जब किसी किशोर को किसी उपयुक्त व्यक्ति या उपयुक्त संस्था की निगरानी में डाला गया हो तो उसे आम तौर पर निगरानी अधिकार को समय समय पर उसकी प्रगति का रिपोर्ट बोर्ड के समक्ष देने के लिए बुलाया जा सकता है। उपयुक्त व्यक्ति या संस्था को भी समय समय पर, उनकी देख रेख में दिए गए किशोर की प्रगति का रिपोर्ट देने के लिए बोर्ड के समक्ष बुलाया जा सकता है। बोर्ड को उपयुक्त व्यकित व संस्थाओं को चिन्हित करना है जो किशोरों की देखभाल के लिए उत्सुक हो और जिनके पास उनके पुनर्वास के लिए उपयुक्त कार्यक्रम हों। यह हमेशा किशोर के हित में होता है कि उसे किसी अच्छे कार्यक्रम के संपर्क में रखा जाए ताकि छूटने पर वह अपनी जीविकोपार्जन क्र सके और अपराध के रास्ते में न जाए।
बोर्ड किशोर को विशेष गृह के बजाए किसी सुरक्षित जगह में रखने के आदेश भी दे सकती है। “सुरक्षित जगह” का अर्थ है ऐसी जगह यह संस्था (पुलिस लॉक अप या जेल नहीं) जिसका जिम्मेदार व्यक्ति, अस्थाई रूप से किशोर को रखने या उसकी देख रेख करने के लिए तैयार हो और जो जगह, संबंधित प्राधिकरण के अनुसार किशोर के लिए सुरक्षित जगह हो। सिर्फ कुछ ही मामलों में किशोर को विशेष गृह के बजाए सुरक्षित स्थान पर रखा जा सकता है और वे भी सिर्फ निम्नलिखित स्थितियों पर:
“1. किशोर 16 वर्ष से अधिक आयु का है; और
2. किया गया अपराध गंभीर प्रकृति का है, या किशोर का व्यवहार उचित नहीं है; और
3. किशोर को विशेष गृह में भेजा जाना उसके या अन्य किशोरों के हित में नहीं होगा; और
4. कैद की अवधि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 (1) (जी) के अनुसार दी गई अवधि से अधिक नहीं होगी; और
5. सुरक्षित स्थान पुलिस लॉक –अप या जेल नहीं होगा; और
6. सुरक्षित स्थान का जिम्मेदार व्यकित किशोर को अस्थाई रूप से रखने व उसकी देखरेख करने के लिए तैयार हो; और
7. बोर्ड ऐसी कैद के सुरक्षित स्थान होने को स्वीकृति देता हो।”
ऐसा नहीं है कि हर वह किशोर जिसने हत्या या बलात्कार किया हो, उसे सुरक्षित स्थान पर रखा जाए। सुरक्षित स्थान पर कैद किए जाने का आदेश सिर्फ तभी दिया जाना चाहिए जब अपने अपराध की अजीब प्रकृति या किशोर के व्यवहार के कारण उसका दुसरे किशोरों के साथ रहना, उनके लिए खतरनाक हो।
सजा के विकल्पों के रूप में “दंड” को इसलिए डाला गया था क्योंकी यह माना जाता है कि जहाँ किशोर कुछ कमाता हो। माता – पिता या अभिभावक द्वारा दंड भरा जाना किशोर को प्रभावित नहीं करता। भलाई सुधार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आरोपी को कुछ ऐसा करने को कहा जाता है जो सामाजिक रूप से उपयुक्त हो; जो समाज के लिए खुद को समर्पित करने और अपने साथ के मनुष्यों के प्रति सम्मान की भावना को दर्शाता है। दुर्भाग्यवश, समुदायिक सेवाओं को करने का आदेश बोर्फ्द द्वारा कम ही दिया जाता है। किशोर हफ्ते में एक बार दो घंटे के लिए किसी गैर सरकारी संस्था में हाजिर जोने का आदेश दिया जा सकता है और गैर – सरकारी संस्था सुनिश्चित करती है कि किशोर को किसी सार्वजनिक गतिविधिमें शामिल किया जाए, चेन्नई के बोर्ड ने किशोर न्याय 2000 की धारा 15 (1) (ई) के अंतर्गत किशोरों को निगरानी गृहों व बाल गृहों में बच्चों को पढ़ना लिखना सिखाने का आदेश दिया।
बोर्ड द्वारा पारित कोई भी फैसला लिखित होना चाहिए और उसमें फैसले के कारण भी देह होने चाहिए। यदि बोर्ड का कोई सदस्य फैसले से असहमत हो और फैसला बहुमत में दिया से असहमत हो और फैसला बहुमत में दिया गया हो तो उस सदय की असहमति कारणों सहित फैसले में दर्ज होनी चाहिए।
सिर्फ इसलिए कि किशोर कानूनों के अंतर्गत किशोरों को कठोरता से नहीं निपटाया जाता है, उन्हें बुनियादी संवैधानिक या प्रक्रियात्मक बचाओं से वंचित किया नहीं जा सकता जिसका हकदार एक वयस्क होता है। बीजिंग नियमों का संबंधित क्लोज को इस मुद्दे से निपटाया है, नीचे दिया गया है:
“7.1 बुनियादी प्रक्रियात्मक बचाव, जैसे कि निर्दोष होने की धारणा या, आरोपों के बारे में सूचित किया जाना, चुप रहने का अधिकार, काउंसिलिंग का अधिकार, माता पिता या अभिभावक का प्रस्तुत रहने का अधिकार और ऊपरी प्राधिकर्ण के समक्ष अपील का अधिकार पेशी के हर स्तर पर सुनिश्चित होने चाहिए”।
पर इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि संवैधानिक और प्रक्रियात्मक बचाओं के साथ किशोर न्याय व्यवस्था अपनी आत्मा न खो दे और अपराध न्याय व्यवस्था का एक कम कठोर स्वरूप बनकर न रह जाए, सर्वोच्च न्यायालय ने केंट बनाम संयुक्त राज्य (1966) में कहा है, “बच्चे को दोंनो तरफ से खराब हिस्सा मिलता है; उसे न तो वयस्कों के लिए बिनी सुरक्षा न ही बच्चों के लिए बनी आरामदेह देखरेख और पुनर्वास व्यवहार मिलता है।” सौभाग्यवश, भारत में किशोर कानून ने इस संतूलन को बनाने का प्रयास किया है।
स्रोत :चाइल्ड लाइन इंडिया फाउन्डेशन
अंतिम बार संशोधित : 3/4/2020
इस भाग में कानून यह बताता है कि किस न्यायालय या प्...
इस लेख में असुरक्षित बच्चे: सुरक्षा और देखरेख की ज...
इस भाग में किशोरों के उम्र की निर्धारण की गई है जि...
इस भाग में किशोर कानूनों का विशेषाधिकार का बारे मे...