ट्रंकेशन वह प्रक्रिया है जिसमें आहरणकर्ता द्वारा जारी किए गए भौतिक (मूल) चेक को चेक के प्रस्तुतीकरण वाले बैंक से अदाकर्ता बैंक शाखा तक की यात्रा नहीं करनी पड़ती है। चेक के स्थान पर क्लियरिंग हाउस द्वारा इसकी इलेक्ट्रॉनिक फोटो अदाकर्ता शाखा को भेज दी जाती है जिसके साथ इससे संबन्धित जानकारी जैसे कि माइकर बैंड के डेटा, प्रस्तुति की तारीख, प्रस्तुत करने वाला बैंक इत्यादि भी भेज दी जाती है। इस तरह से चेक ट्रंकेशन के माध्यम से समाशोधन के प्रयोजनों हेतु कुछ अपवादों को छोड़कर, लिखतों की एक शाखा से दूसरी शाखा में जाने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। यह प्रभावी ढंग से चेक के एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में लगने वाली लागत को समाप्त करता है, उनके संग्रहण में लगने वाले समय को कम करता है और चेक प्रोसेसिंग की समस्त प्रक्रिया को बेहतर बनाता है।
जैसा कि ऊपर बताया गया है, चेक ट्रंकेशन चेकों के संग्रहण की प्रक्रिया में तेजी लाता है जिसके परिणामस्वरूप ग्राहकों को बेहतर सेवा उपलब्ध होती है, समाशोधन से संबंधित धोखाधड़ी या रास्ते में लिखतों के गुम हो जाने की गुंजाइश कम कर देता है, चेकों के संग्रहण में लगने वाली लागत को कम कर देता है और समाधान और क्रियान्वयन से संबंधित समस्याओं को समाप्त करता है, इस तरह से प्रणाली समस्त रूप से लाभान्वित होती है।
आरटीजीएस और एनईएफटी के रूप में प्रदान किए जाने वाले अन्य प्रमुख उत्पादों से भारतीय रिजर्व बैंक ने अंतर-बैंक और ग्राहक भुगतान को ऑनलाइन और वास्तविक समय में करने के लिए सक्षम बनाया है। तथापि, चेक अभी भी देश में भुगतान का प्रमुख माध्यम बने हुए हैं। अत: भारतीय रिजर्व बैंक ने चेक समाशोधन चक्र की दक्षता में सुधार लाने पर ध्यान केन्द्रित करने का निर्णय लिया है। चेक ट्रंकेशन प्रणाली को लाना इस दिशा में उठाया गया कदम है।
परिचालन दक्षता के अलावा, सीटीएस बैंकों और ग्राहकों को मानव संसाधन यौक्तिकीकरण, न्यूनतम लागत, कारोबारी प्रक्रिया का पुनर्गठन, बेहतर सेवा, नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाना इत्यादि सहित कई अन्य लाभ भी प्रदान करता है। इस प्रकार भुगतान प्रणाली के क्षेत्र में दक्षता बढ़ाने के लिए सीटीएस रिजर्व बैंक द्वारा की गई एक महत्वपूर्ण पहल है।
सीटीएस को नई दिल्ली, चेन्नई और मुंबई में क्रमश: 1 फरवरी, 2008, 24 सितंबर, 2011 और 27 अप्रैल 2013 से लागू किया गया है। माइकर प्रणाली से सीटीएस में पूरी तरह से परिवर्तित हो जाने के बाद देश में परंपरागत माइकर आधारित चेक प्रोसेसिंग बंद कर दी गई है।
राष्ट्रीय स्तर पर सीटीएस लागू करने के बारे में नया दृष्टिकोण है ग्रिड-आधारित। इस दृष्टिकोण के अंतर्गत देश भर में चेकों की मात्रा जो कि पहले 66 एमआईसीआर चेक प्रसंस्करण स्थानों के माध्यम से समाशोधित की जाती थी उसे अब नई दिल्ली, चेन्नई और मुंबई की तीन ग्रिडों में समेकित कर दिया गया है।
किया जाता विभिन्न स्थानों में समाशोधित होने वाले सारे चेकों को कम से कम ग्रिडों में समेकित कर लिया जाएगा। क्षेत्र-वार ग्रिड की संकल्पना को बादल दिया जाएगा और आपरेटर को सीटीएस पैन इंडिया की पहुँच को विस्तार देने के लिए अपेक्षित ग्रिडों की संख्या निर्धारित करने और संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए प्रत्येक ग्रिड की जगह चुनने के लिए परिचालनात्मक स्वतन्त्रता भी प्रदान की जाएगी।
प्रत्येक ग्रिड अपने क्षेत्राधिकार के तहत सभी बैंकों को प्रसंस्करण और समाशोधन सेवाएं प्रदान करेगी। ग्रिड के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले छोटे/दूरदराज के स्थानों में स्थित बैंक, शाखाएं और ग्राहक इससे लाभान्वित होंगे चाहे भले ही वर्तमान में वहाँ चेक समाशोधन की औपचारिक व्यवस्था हो या न हो। तीन ग्रिडों का विस्तृत अधिकार क्षेत्र नीचे दिया गया है:
यद्यपि, स्पीड क्लियरिंग बाहरी चेकों के संग्रहण की तुलना में चेक संग्रहण की प्रक्रिया को शीघ्रता से करती है, किन्तु इसे क्लियरिंग हाउस के स्थान पर भुगतानकर्ता शाखा की उपस्थिती की आवश्यकता होती है। तुलनात्मक रूप से ग्रिड - आधारित सीटीएस प्रणाली एक श्रेष्ठ प्रणाली है क्योंकि इसके दायरे में बड़ा भौगोलिक क्षेत्र आता है और भुगतानकर्ता बैंक की उपस्थिती ग्रिड क्षेत्र में न हो ऐसा बहुत ही कम होता है।
ग्रिड –आधारित चेक ट्रंकेशन प्रणाली समाशोधन में, ग्रिड के अधिकार क्षेत्र में आने वाली बैंक शाखाओं के नाम आहरित चेकों को लोकल चेक माना जाता है एवं उनका समाशोधन भी लोकल चेक के रूप में किया जाता है। यदि संग्रहणकर्ता बैंक और भुगतानकर्ता बैंक एक ही सीटीएस ग्रिड के अधिकार क्षेत्र में आते हैं तो स्पीड क्लियरिंग प्रभारों सहित चेक संग्रहण प्रभार नहीं लिए जाने चाहिए, चाहे वे अलग-अलग शहरों में ही क्यों न स्थित हों।
सीटीएस में प्रस्तुतकर्ता बैंक (या इसकी शाखा) आंकड़ों(माइकर बैंड पर स्थित आंकड़े) को एकत्र करता है और अपनी आंकड़ा संग्रहण प्रणाली (एक स्कैनर, कोर बैंकिंग या अन्य एप्लीकेशन शामिल है) का उपयोग करते हुए चेक की तस्वीर खींचता है जो उनके आंतरिक उपयोग के लिए होता है और उन्हें आंकड़ों और फोटो के लिए निर्धारित विशिष्टताओं और मानकों को पूरा करना होता है।
सुरक्षा, प्रतिरक्षा और आंकडों/ फोटो की स्वीकारोक्ति को सुनिश्चित करने के लिए सीटीएस में शुरू से लेकर अंत तक पब्लिक की इन्फ्रास्ट्रक्चर (पीकेआई) को लागू किया गया है। आवश्यकता के रूप में संग्रहणकर्ता बैंक (प्रस्तुतकर्ता बैंक) विधिवत हस्ताक्षरित और एन्क्रिप्टेड आंकड़े और फोटो को केंद्रीय प्रसंस्करण स्थान (क्लियरिंग हाउस) में भेजता है ताकि उन्हें भुगतानकर्ता बैंक (गंतव्य या अदाकर्ता बैंक) में भेजा जा सके। सहभागिता के प्रयोजनार्थ प्रस्तुतकर्ता और अदाकर्ता बैंक को इंटरफेस/गेटवे प्रदान किया गया है जिसे क्लियरिंग हाउस इंटरफेस कहते हैं और जो उन्हें क्लियरिंग हाउस से कनेक्ट होने और आंकड़ों और फोटो को सुरक्षित तरीके से भेजने में मदद करता है।
क्लियरिंग हाउस आंकड़ों का प्रसंस्करण करता है, अंतिम निपटान करता है और डेटा प्रक्रियाओं और अदाकर्ता बैंकों को अपेक्षित फोटो और डेटा उपलब्ध कराता है। इसे प्रस्तुति समाशोधन कहा जाता है। अदाकर्ता बैंक, क्लियरिंग हाउस इंटरफेस के माध्यम से भुगतान प्रसंस्करण के लिए क्लियरिंग हाउस से फोटो और डेटा प्राप्त करते हैं।
अदाकर्ता क्लियरिंग हाउस इंटरफेस, भुगतान न किए गए लिखतों के लिए रिटर्न फाइल भी तैयार करता है, यदि कोई हों। रिटर्न फाइल/अदाकर्ता बैंक द्वारा भेजे गए आंकड़ों को रिटर्न क्लियरिंग सेशन में क्लियरिंग हाउस द्वारा उसी तरह से प्रोसेस किया जाता है जैसे कि प्रस्तुति समाशोधन (प्रेजेंटेशन क्लियरिंग) और प्रस्तुतकर्ता बैंक को आंकड़े, प्रोसेसिंग के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं।
इस समाशोधन चक्र को पूरा तब माना जाता है जब प्रेजेंटेशन क्लियरिंग और संबन्धित रिटर्न क्लियरिंग सेशनों को सफलतापूर्वक प्रोसेस कर लिया जाता है। सीटीएस प्रौद्योगिकी का पूरा सार ही इस बात में है कि भुगतान करने की प्रक्रिया में चेक की फोटो (मूल चेक के स्थान पर) का इस्तेमाल किया जाता है।
जल्दी भुगतान के लिए सीटीएस के मध्यम से समाशोधन हेतु यह बेहतर होगा कि सीटीएस-2010 मानकों का पालन करने वाले लिखतों को प्रस्तुत किया जाए। सीटीएस-2010 मानकों का पालन न करने वाले लिखतों को भी स्वीकार किया जाएगा किन्तु उनका समाशोधन विलंबित अंतरालों पर किया जाएगा अर्थात सप्ताह में एक बार (प्रत्येक सोमवार) को ही होगा।
नहीं, ग्राहकों के लिए समाशोधन प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं आया है। ग्राहक वर्तमान की तरह ही चेक का इस्तेमाल करना जारी रखेंगे किन्तु चेक लिखते समय केवल एक बात का ध्यान रखेंगे कि रंगीन स्याहियाँ फोटो अनुकूल होनी चाहिए। बेशक, ऐसे ग्राहक जिन्हें प्रदत्त लिखत प्राप्त होते हैं (सरकारी विभागों की तरह) उन्हें भी चेक की फोटो ही प्राप्त होंगी। ऐसे चेक जिनमें प्रमुख स्थानों पर परिवर्तन किए गए हैं, उन्हें सीटीएस प्रणाली के अंतर्गत प्रोसेस करने की अनुमति नहीं होगी।
इसके कई फायदे हैं। इमेजिंग और ट्रंकेशन की शुरुआत के साथ लिखतों का भौतिक स्थानांतरण बंद हो गया है। चेक की फोटो के इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से हस्तांतरण से निपटान की प्रक्रिया तेज हो जाती है और इससे समाशोधन चक्र भी छोटा हो जाता है। इसके अलावा बीच में कहीं लिखत के खो जाने का डर नहीं होता है। इसके अतिरिक्त मौजूदा समाशोधन प्रणाली में भौगोलिक अथवा अधिकारक्षेत्र से संबन्धित सीमाओं को हटाया जा सकता है इस तरह से विभिन्न बैंकों द्वारा कई समाशोधन स्थानों में प्रदान की जा रही विभिन्न स्तर की सेवाओं को देशव्यापी मानक समाशोधन प्रणाली जिसमें एक जैसी प्रक्रियाएँ और कार्यप्रणालियाँ उपयोग में लाई जाएंगी, के साथ समेकित किया जा सकता है।
ग्रिड आधारित चेक ट्रंकेशन प्रणाली के अंतर्गत ग्रिड के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आने वाले बैंकों के नाम आहरित सभी चेकों को स्थानीय चेक के रूप में माना जाता है और समाशोधित किया जाता है। कोई भी बाहरी चेक संग्रहण प्रभार/ स्पीड समाशोधन प्रभार नहीं लगेंगे यदि संग्रहणकर्ता बैंक और अदाकर्ता बैंक एक ही सीटीएस ग्रिड के अधिकारक्षेत्र में स्थित हैं चाहे वे अलग-अलग शहरों में ही क्यों न स्थित हों।
सीटीएस चेक जारी करने वाले को भी लाभ पहुंचाता है। यदि कॉर्पोरेटों को जरूरत हो तो उनके बैंकरों द्वारा चेकों की फोटो को उनकी आंतरिक आवश्यकताओं के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है।
सीटीएस, चेक प्रसंस्करण और समाशोधन की समस्त गतिविधि को अर्थ प्रदान करता है। सीटीएस से होने वाले लाभ संक्षेप में निम्नलिखित हैं:-
लागत के संबंध में ग्रिड आधारित चेक ट्रंकेशन प्रणाली महत्वपूर्ण बचत प्रदान करती है। समाशोधन स्थानों का कुछ ग्रिडों में समेकन माइकर मशीनों में निवेश और संबंधित वार्षिक रखरखाव करार लागत को कम करता है। चूंकि, ग्रिड सीटीएस, इनवर्ड चेक प्रोसेसिंग से संबन्धित बुनियादी ढांचे की स्थापना की जरूरत को समाप्त करता है इसलिए बैंकों को बड़े पैमाने की किफ़ायतों (एकोनोमी ऑफ स्केल) का लाभ प्राप्त होगा। सीटीएस ग्रिड में कई स्थानीय समाशोधन गृहों के विलय होने के कारण ऐसे निपटान जो पूर्व में कई समाशोधन गृह स्थानों में फैले हुए थे वे अब एक निपटान में सम्मिलित कर लिए गए हैं, इसके परिणामस्वरूप बैंकों की चलनिधि की आवश्यकता में महत्वपूर्ण रूप से कमी आई है।
सीटीएस के कारण चेक प्रोसेसिंग शुल्क में कमी, परिचालनगत ओवरहेड में कमी, समाशोधन संबंधी अंतर और समाधान संबंधी मुद्दों (रीकंसिलिएशन इसूज़) इत्यादि के उन्मूलन के फलस्वरूप लाभ भी प्राप्त होगा।
सीटीएस प्रणाली में चेक प्रस्तुतकर्ता बैंक के पास ही रहते हैं और अदाकर्ता बैंक के पास नहीं भेजे जाते हैं। यदि किसी ग्राहक को आवश्यकता हो तो बैंक, चेक की विधिवत सत्यापित फोटो ग्राहक को उपलब्ध करा सकता है। यदि किसी ग्राहक को चेक देखना है तो इसे प्रस्तुतकर्ता बैंक से मंगाना पड़ेगा जिसके लिए ग्राहक को अपने बैंक में आवेदन देना होगा। इस संबंध में कुछ प्रभार भी लिए जा सकते हैं। कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऐसे प्रस्तुतकर्ता बैंक, जो चेक ट्रंकेशन करते हैं उन्हें लिखतों को 10 साल की अवधि के लिए सुरक्षित रखना होता है।
भारत में सीटीएस प्रणाली, केवल विहित फोटो विशेषताओं के प्रयोग को ही अधिदेशित करती है। जिन फोटो में विहित विशेषताएँ नहीं होती हैं उन्हें खारिज कर दिया जाता है। चूंकि फोटो के आधार पर भुगतान किया जाता है इसलिए फोटो की गुणवत्ता सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है। सीटीएस प्रसंस्करण चक्र में केवल अपेक्षित गुणवत्ता वाली फोटो को सुनिश्चित करने के लिए फोटो खींचने के स्थान पर और क्लियरिंग हाउस इंटरफेस (प्रस्तुतकर्ता बैंक का) के स्तर पर गुणवत्ता की सघन जांच की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
इस समाधान में विभिन्न स्तरों पर फोटो गुणवत्ता मूल्यांकन (आईक्यूए) पर ध्यान दिया जाता है। प्रस्तुतकर्ता बैंक को फोटो खींचते समय ही फोटो गुणवत्ता मूल्यांकन (आईक्यूए) कर लेना चाहिए। इसके अलावा चेक की फोटो को समाशोधन गृह में भेजने से पहले प्रस्तुतकर्ता बैंक गेटवे पर फोटो गुणवत्ता मूल्यांकन (आईक्यूए) किया जाता है। फोटो को पहले प्रस्तुतकर्ता बैंक के डिजिटल हस्ताक्षर के साथ खींचा जाता है और उसके पश्चात समाशोधन गृह और और फिर अदाकर्ता बैंक को भेजा जाता है। इसके अलावा यदि अदाकर्ता बैंक चित्र की गुणवत्ता या अन्य किसी वजह से संतुष्ट नहीं है तो वह भुगतान प्रसंस्करण करने के लिए मूल चेक की भी मांग कर सकता है।
इसके अलावा नए चेक मानक “सीटीएस-2010” में यह विहित किया गया है कि, चेक में कतिपय अनिवार्य और वैकल्पिक सुरक्षा संबंधी विशेषताओं को उपलब्ध होना चाहिए जो फोटो की विशिष्टता को भी बढ़ाएँगे।
चेकों की फोटो लेने की प्रक्रिया प्रौद्योगिकी के विभिन्न विकल्पों पर निर्भर करती है। चेक का चित्र ब्लैक एंड व्हाइट, ग्रे स्केल या रंगीन हो सकता है। इनसे जुड़े हुए फायदे और नुकसान दोनों हैं। ब्लैक एंड व्हाइट फोटो, फोटो आकार के संदर्भ में हल्की होती हैं, किन्तु इनमें चेक में निहित सभी सूक्ष्म विशेषताएं नहीं दिखती हैं। रंगीन फोटो आदर्श होती हैं, लेकिन इनकी स्टोरेज और नेटवर्क बैंडविड्थ संबंधी आवश्यकताएं अधिक होती हैं। भारत में सीटीएस प्रणाली में ग्रे स्केल और ब्लैक एंड व्हाइट फोटो के एक संयोजन का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक चेक की तीन फोटो ली जाती हैं- सामने से ग्रे स्केल और ब्लैक एंड व्हाइट और पीछे से ब्लैक एंड व्हाइट।
चेकों की फोटो स्कैनर का उपयोग कर के ली जाती हैं। स्कैनर्स भी दस्तावेज़ पर एक संकीर्ण मार्ग से रोशनी को प्रतिबिम्बित कर के फोटो कापियर्स की तरह कार्य करते हैं। छोटे सेंसर प्रकाश की पट्टी के साथ-साथ प्रत्येक बिंदु से प्रतिबिंबित प्रकाश को नापते हैं। प्रत्येक बिन्दु द्वारा प्रतिबिंबित प्रकाश की माप को पिक्सेल कहा जाता है। पिक्सेल को डिजिटल मानों में परिवर्तित किए जाने के आधार पर फोटो को ब्लैक एंड व्हाइट, ग्रे स्केल या रंगीन में विभाजित किया जाता है। एक ग्रे स्केल फोटो प्राप्त करने के लिए पिक्सेल, ब्लैक एंड व्हाइट के बीच ग्रे रंग की एक सीमा पर मैप किए जाते हैं। मूल दस्तावेज़ की पूरी फोटो हल्के या गहरे ग्रे रंग में खींच ली जाती है जो कि स्रोत के रंग पर निर्भर करता है। ब्लैक एंड व्हाइट फोटो के मामले में, इस तरह की मैपिंग रंगों के बीच विषमता को देखते हुए केवल दो रंगों में की जाती है। ब्लैक एंड व्हाइट फोटो को बाइनरी फोटो भी कहा जाता है।
पब्लिक की इन्फ्रास्ट्रक्चर (पीकेआई) का उपयोग करके भुगतानकर्ता बैंक से आदाता बैंक को प्रेषित किए जाने वाले आंकड़ों और फोटो की सुरक्षा, अखंडता, अस्वीकृत न किया जाना और प्रामाणिकता को सुनिश्चित किया जाता है। सीटीएस, आईटी अधिनियम, 2000 की आवश्यकताओं के अनुरूप है। प्रस्तुतकर्ता बैंक के लिए यह अनिवार्य है कि वह शुरुआत से ही आंकड़ों और फोटो पर हस्ताक्षर करे। पब्लिक की इन्फ्रास्ट्रक्चर (पीकेआई) का पूरे चक्र में उपयोग किया जाता है जिसमें फोटो खींचने की प्रणाली, प्रस्तुतकर्ता बैंक, समाशोधन गृह और अदाकर्ता बैंक शामिल हैं। पब्लिक की इन्फ्रास्ट्रक्चर (पीकेआई) मानक यथोचित भारतीय अधिनियमों और कंट्रोलर ऑफ सर्टिफ़ाइंग अथॉरिटी (सीसीए) द्वारा जारी की गई अधिसूचनाओं के अनुसार हैं।
आकार, माइकर बैंड, कागज की गुणवत्ता आदि के संदर्भ में चेक फॉर्म (चेक के पन्ने) का मानकीकरण एक प्रमुख कारक था जिसके चलते चेक प्रसंस्करण का मशीनीकरण संभव हुआ। पिछले कुछ समय में बैंकों ने चेक फॉर्मों में कई तरह के पैटर्न और डिजाइन जोड़े हैं ताकि चेकों का वर्गीकरण, उनकी ब्रांडिंग, पहचान इत्यादि की जा सके और इसमें छेड़छाड़, परिवर्तन, आदि किए जाने की घटनाओं को कम करने के लिए कई तरह की सुरक्षा संबंधी विशेषताएँ भी शामिल की गई हैं। बैंक की किसी भी शाखा में चेकों के निपटान के लिए मल्टी-सिटी और सममूल्य पर देय चेकों का बढ़ता प्रयोग, चेक ट्रंकेशन प्रणाली को लागू करना और स्पीड क्लियरिंग की बढ़ती लोकप्रियता इत्यादि कुछ ऐसे पहलू थे जिनके चलते बैंकिंग उद्योग में बैंकों और ग्राहकों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले मुद्रित, जारी किए गए और प्रयुक्त चेकों में समान रूप से सुरक्षा के कुछ न्यूनतम उपाय करने पड़े। चेक फॉर्मों के और अधिक मानकीकरण और उनमें सुरक्षा संबंधी विशेषताओं को बढ़ाने संबंधी समीक्षा हेतु भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एक कार्य दल का गठन किया गया था।
तदनुसार, देश भर के बैंकों द्वारा जारी किए जाने वाले चेकों के मानकीकरण के लिए कुछ मानक निर्धारित किए गए हैं जैसे- कागज की गुणवत्ता, वॉटरमार्क, अदृश्य स्याही में बैंक का प्रतीक चिह्न और वोइड पैंटोग्राफ इत्यादि और चेक में विभिन्न सुरक्षा विशेषताओं के स्थान निर्धारण का मानकीकरण। इसके अतिरिक्त, बैंकों द्वारा स्वयं की आवश्यकता और जोखिम को देखते हुए कुछ वांछित विशेषताओं को लागू करने का सुझाव भी दिया गया है।
न्यूनतम सुरक्षा विशेषताएं न केवल देश भर में बैंकों द्वारा जारी किए जाने वाले चेक फॉर्मों में एकरूपता सुनिश्चित करेंगी अपितु प्रस्तुतकर्ता बैंक को फोटो आधारित परिदृश्य में अदाकर्ता बैंक के चेकों को छांटने/पहचानने में भी मदद करेंगी। सुरक्षा विशेषताओं में एकरूपता होने से चेक संबंधी धोखाधड़ी को रोकने में मदद मिलेगी जबकि, चेक फॉर्म पर स्थान निर्धारण के मानकीकरण से ऑप्टिकल/इमेज कैरेक्टर पहचानने संबंधी प्रौद्योगिकी के उपयोग से सीधे प्रसंस्करण करना संभव होगा। न्यूनतम मानदंड संबंधी उपायों को समेकित रूप से “सीटीएस मानक 2010” कहा जाता है। भारतीय बैंक एसोसिएशन (आईबीए) और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) नए मानकों के कार्यान्वयन में बैंकों का सहयोग कर रहे हैं। तदनुसार, जारी किए गए चेकों को एनपीसीआई द्वारा जांचा और प्रमाणित किया जाता है जिसके बाद ही चेक ग्राहकों के लिए जारी किए जाते हैं।
अपने ग्राहकों को चेक की सुविधा प्रदान करने वाले सभी बैंकों को सूचित किया गया है कि वे केवल “सीटीएस 2010” मानक चेक ही जारी करें। 01 नवंबर 2014 से सीटीएस-2010 मानकों का पालन न करने वाले लिखतों का समाशोधन विलंबित अंतरालों पर किया जाएगा अर्थात सप्ताह में एक बार।
चेक में किए जाने वाले परिवर्तनों/सुधारों के संबंध में सुझावों को इसलिए लाया गया है ताकि, चेक पर विभिन्न स्थानों पर किए जाने वाले परिवर्तनों से होने वाली धोखाधड़ियों को कम किया जा सके और ग्राहकों और बैंकों को संरक्षण प्रदान किया जा सके। चेक में कोई परिवर्तन/सुधार नहीं किया जा सकता है (यदि आवश्यक हो तो केवल दिनांक सत्यापन किया जा सकता है)। प्राप्तकर्ता के नाम, कर्टसी राशि (राशि अंकों में) अथवा कानूनी राशि (राशि शब्दों में ) में किसी भी परिवर्तन के लिए ग्राहकों द्वारा चेक के नए पन्नों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ऐसा करने से बैंकों को चेकों में धोखाधड़ी के लिए किए जाने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करने और उनकी पहचान करने में मदद मिलेगी। यह निषेध केवल फोटो आधारित चेक ट्रंकेशन प्रणाली (सीटीएस) के तहत समाशोधित होने वाले चेकों पर ही लागू है। यह लिखतों के भौतिक लेनदेन के अंतर्गत समाशोधित चेकों पर लागू नहीं है।
बैंकों/ग्राहकों को “सीटीएस 2010" चेकों का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि ये न केवल फोटो के अनुकूल होते हैं बल्कि इनमें सुरक्षा संबंधी कई विशेषताएँ होती हैं। ग्राहक अपने बैंक से इस बात का अनुरोध कर सकते हैं या ज़ोर डालकर कह सकते हैं कि उन्हें "सीटीएस 2010" मानक के अनुरूप चेक प्रदान किए जाएँ। चेक पर लिखते समय गहरे रंग की स्याही का प्रयोग किया जाना चाहिए और उसपर किसी भी तरह का परिवर्तन / सुधार नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी तरह के परिवर्तन/सुधार की स्थिति में चेक के नए पन्ने का इस्तेमाल किया जाना चाहिए क्योंकि जैसा कि उपर्युक्त 15 में वर्णित किया गया है कि चेक को फोटो आधारित समाशोधन प्रणाली में समाशोधित किया जाएगा।
बैंकों को चेक पर मुहर लगते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह तारीख, आदाता के नाम, राशि और हस्ताक्षर के ऊपर न लगाई जाए ताकि चेक के महत्वपूर्ण हिस्से सपष्ट दिखें। रबर की मुहर इत्यादि के प्रयोग के कारण चेक की फोटो में इन प्रमुख स्थानों को अस्पष्ट नहीं होना चाहिए। स्कैनिंग प्रक्रिया के दौरान यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि चेक के सभी महत्वपूर्ण तत्व फोटो में परिलक्षित हों और बैंकों/ग्राहकों को इस संबंद्घ में यथोचित सावधानी बरतनी चाहिए।
स्त्रोत: रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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