विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 भारत में निवासी किसी व्यक्ति के स्वामित्वाधीन या नियंत्रित भारत के बाहर सभी शाखाओं, कार्यालयों तथा अभिकरणों पर प्रयोज्य है। फेमा का आविर्भाव एक निवेशक अनुकूल विधान के रूप में हुआ है जो इस अर्थ में पूर्णतया सिविल विधान है कि इसके उल्लघंन में केवल मौद्रिक शास्तियों तथा अर्थदंड का भुगतान ही शामिल है, तथापि, इसके तहत किसी व्यक्ति को सिविल कारावास का दंड तभी दिया जा सकता है यदि वह नोटिस की तिथि से 90 दिन के भीतर निर्धारित अर्थदंड अदा न करे किन्तु ऐसा भी 'कारण बताओ नोटिस' तथा वैयक्तिक सुनवाई की औपचारिकताओं के पश्चात ही किया जाता है। फेमा में फेरा के अंतर्गत किए गए अपराधों के लिए एक द्विपक्षीय समाप्ति खंड की व्यवस्था भी की गई है जिसे एक 'कठोर' कानून से दूसरे 'उद्योग अनुकूल' विधान की ओर संचलन के लिए प्रदान की गई संक्रमण अवधि माना जा सकता है।
(i) विदेशी व्यापार तथा भुगतानों को सुकर बनाना; तथा
(ii) विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित विकास तथा अनुरक्षण का संवर्धन करना।
अधिनियम में फेमा के प्रशासन में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को एक महत्वपूर्ण भूमिका समनुदेशित की गई है। अधिनियम की अनेक धाराओं से संबंधित नियम, विनियम तथा मानदंड केन्द्र सरकार के परामर्श से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित किए गए हैं। अधिनियम में केन्द्र सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह अधिनियम के उल्लंघन से संबंधित जांच करने के लिए न्याय निर्णयन प्राधिकारियों के समतुल्य हो केन्द्र सरकार के अधिकारियों की नियुक्ति करे। न्याय निर्णयन प्राधिकारियों के आदेश के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिए एक या अधिक विशेष निदेशक (अपील) की नियुक्ति करने का प्रावधान भी किया गया है। केन्द्र सरकार न्याय निर्णय प्राधिकारियों तथा विशेष निदेशक (अपील) के आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिए एक विदेशी मुद्रा अपीलीय न्यायाधिकरण की नियुक्ति भी करेगा। फेमा में केन्द्र सरकार द्वारा एक प्रवर्तन निदेशालय की स्थापना की व्यवस्था भी की गई है जिसमें एक निदेशक तथा ऐसे अन्य अधिकारी या अधिकारी वर्ग होंगे जिन्हें वह इस अधिनियम के अंतर्गत उल्लंघनों की जांच पड़ताल करने के लिए उपयुक्त समझे।
फेमा में केवल अधिकृत व्यक्तियों को ही विदेशी मुद्रा या विदेशी प्रतिभूति में लेन देन करने की अनुमति दी गई है। अधिनियम के अंतर्गत, ऐसे अधिकृत व्यक्ति का अर्थ है अधिकृत डीलर, मनी चेंजर, विदेशी बैंकिंग यूनिट या कोई अन्य व्यक्ति जिसे तत्समय रिजर्व बैंक द्वारा प्राधिकृत किया गया हो। इस प्रकार अधिनियम में किसी भी ऐसे व्यक्ति को प्रतिषिद्ध किया गया है जो :-
किसी ऐसे व्यकित के साथ विदेशी मुद्रा या विदेशी प्रतिभूति का लेन देन करना या अंतरित करना जो अधिकृत व्यक्ति नहीं है;
भारत के बाहर निवासी किसी व्यक्ति को या उसके क्रेडिट के लिए किसी भी तरीके से कोई भुगतान करना;
भारत के बाहर निवासी व्यक्ति के आदेश से या उसकी ओर से किसी भी तरीके से कोई भुगतान अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से अन्यथा प्राप्त करना;
भारत में कोई वित्तीय लेनदेन करना, जो भारत में निवासी किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा भारत के बाहर किसी परिसम्पत्ति को अधिगृहित करने के अधिकार के अधिग्रहण या सृजन अथवा अंतरण के लिए या उससे संबद्ध प्रतिफल के रूप में हो, जिसने भारत के बाहर अवस्थित कोई अचल सम्पत्ति या कोई विदेशी मुद्रा, अथवा विदेशी प्रतिभूति का अर्जन किया है, धारण किया है, स्वामित्व ग्रहण किया है या उसका अंतरण किया है। यह अधिनियम दो प्रकार के विदेशी मुद्रा लेन देनों से संबंधित कार्रवाई करता है।
बाहरी व्यापार तथा भुगतान को सुगम बनाने तथा भारत में विदेशी मुद्रा के व्यवस्थित विकास एवं रख-रखाव के उद्देश्य हेतु विदेशी मुद्रा से सम्बन्धित कानून में संशोधन हेतु ।फेमा, 1999 जून 1, 2000 से लागू हुआ तथा फेरा, 1973 निरसित किया गया ।
जी खाता लेनदेन का अर्थ है वह लेनदेन जो भारत में निवासी व्यक्तियों अथवा भारत से बाहर संपार्श्विक देयताओं अथवा भारत में आस्तियों अथवा देयताओं, भारत से बाहर निवासी व्यक्तियों सहित, आस्तियों अथवा परिसम्पत्तियों को बदल दे।
भारत में किसी कंपनी अथवा किसी बॉडी कारपोरेट द्वारा निवेश तथा भारत से बाहर निवासी व्यक्ति द्वारा उसमें निवेश याने भारत में व्यक्तियों के संघ अथवा स्वत्वधारी अथवा फर्म की पूंजी को भारत से बाहर निवासी व्यक्ति योगदान के रूप में निवेश ।
भारत से बाहर निवासी व्यक्ति द्वारा/को मुद्रा/मुद्रा नोटों का आयात तथा निर्यात ।
चालू खाता लेनदेन वह लेनदेन है जो पूंजी खाता लेनदेन के अलावा है तथा ऐसे लेनदेन के सामान्य पूर्वाग्रह के बिना है याने विदेशी मुद्रा के सम्बन्ध में देय भुगतान, अन्य चालू व्यवसाय सेवाएं तथा लघु-अवधि बैंकिंग तथा आम व्यवसाय में ऋण सुविधाएं ।
विदेश यात्रा, शिक्षा, माता-पिता, पति/पत्नी तथा बच्चों की चिकित्सा के सम्बन्ध में व्यय ।
विदेश में रह रहे बच्चों तथा पति/पत्नी एवं माता-पिता के रहने के व्यय हेतु प्रेषण ।
फेमा के अन्तर्गत बैंकों तथा अन्य अधिकृत व्यक्तियों को अनुदेश जारी करना
अनुदेश देने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक प्राधिकृत है । भारतीय रिज़र्व बैंक ने समय समय पर फेमा अधिसूचनाएं तथा ए पी (डी आई आर सीरीज़) परिपत्र जारी किए हैं ।
फेमा, 1999 की धारा 2(वी) ने भारत में निवासी व्यक्ति की परिभाषा दी है तथा उससे यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति अनिवासी भारतीय है अथवा नहीं ? पूर्ववर्ती वित्त वर्ष के दौरान 182 दिन से अधिक भारत में रहने वाला कोई व्यक्ति लेकिन इसमें वह व्यक्ति सम्मिलित नहीं है जो भारत से बाहर रोज़गार पाने हेतु भारत से बाहर चला गया हो अथवा जो भारत से बाहर रहता हो ।
भारत से बाहर व्यवसाय करने हेतु अथवा भारत से बाहर पेशें हेतु ।
ऐसी परिस्थिति में किसी अन्य उद्देश्य हेतु, जो अनिश्चित अवधि हेतु भारत से बाहर रहने की उसकी मंशा दर्शाए ।
भारत का कोई व्यक्ति अथवा पंजीकृत अथवा निगमित बॉडी कारपोरेट ।
भारत में कोई कार्यालय, शाखा अथवा एजेंसी जिसका स्वामी एवं नियन्त्रण भारत से बाहर के व्यक्ति द्वारा हो ।
भारत से बाहर कोई कार्यालय, शाखा अथवा एजेंसी जिसका स्वामी एवं नियन्त्रण भारत का कोई व्यक्ति करता हों ।
व्यक्ति में निम्नलिखित सम्मिलित है
कोई व्यक्ति
हिन्दु अविभक्त परिवार
कोई कम्पनी
कोई फर्म
व्यक्तियों का संघ अथवा बॉडी आफ इंडिविज्युअलज़ चाहे निगमित हों अथवा नहीं ।
पूर्ववर्ती किसी भी उप खंड में न आने वाला प्रत्येक कृ॑त्रिम न्यायिक व्यक्ति
ऐसे व्यक्ति द्वारा निय॑न्त्रित कोई एजेंसी, कार्यालय अथवा शाखा ।
फेमा, 1999 ने भारतीय मूल के व्यक्ति की परिभाषा नहीं दी है । भारतीय रिज़र्व बैंक ने फेमा, 1999 के अन्तर्गत जारी विभिन्न फेमा अधिसूचनाओं में निम्न अनुसार भारतीय मूल के व्यक्ति की परिभाषा दी है :
I.भारत में अनिवासी बैंक खाते खोलने के उद्देश्य हेतु भारतीय मूल के व्यक्ति का अर्थ है पाकिस्तान अथवा बांग्लादेश को छोड़कर किसी भी देश का नागरिक ।
उसके पास किसी भी समय भारतीय पासपोर्ट रहा हो ।
वह अथवा उसके माता अथवा पिता अथवा दादा अथवा दादी नागरिकता अधिनियम, 1955 के भारतीय संविधान के अनुसार भारत के नागरिक रहे हों अथवा
व्यक्ति उक्त उप खंड़ (क) अथवा (ख) में संदर्भित कोई व्यक्ति अथवा भारतीय नागरिक का पति अथवा पत्नी हो ।
II.भारत में अचल सम्पत्ति प्राप्त करने के उद्देश्य हेतु भारतीय मूल के व्यक्ति का अर्थ है बांग्लादेश अथवा पा॑किस्तान अथवा श्रीलंका अथवा अफगानिस्तान अथवा चीन अथवा ईरान अथवा नेपाल अथवा भूटान को छोड़कर किसी भी देश का नागरिक यदि :
उसके पास किसी भी समय भारतीय पासपोर्ट रहा हो ।
वह अथवा उसके माता अथवा पिता अथवा दादा अथवा दादी नागरिकता अधिनियम, 1955 के भारतीय संविधान के अनुसार भारत के नागरिक रहे हों अथवा
III.भारत में शाखा अथवा कार्यालय स्थापित करने के उद्देश्य से भारतीय मूल के व्यक्ति का अर्थ है बांग्लादेश अथवा पा॑किस्तान अथवा श्रीलंका अथवा अफगानिस्तान अथवा चीन अथवा ईरान को छोड़कर किसी भी देश का नागरिक यदि :
उसके पास किसी भी समय भारतीय पासपोर्ट रहा हो ।
वह अथवा उसके माता अथवा पिता अथवा दादा अथवा दादी नागरिकता अधिनियम, 1955 के भारतीय संविधान के अनुसार भारत के नागरिक रहे हों अथवा
व्यक्ति उक्त उप खंड़ (क) अथवा (ख) में संदर्भित कोई व्यक्ति अथवा भारतीय नागरिक का पति अथवा पत्नी हो ।
पी आई ओ कार्ड प्राप्त करने के उद्देश्य से भारतीय मूल के व्यक्ति का अर्थ है बांग्लादेश अथवा पाकिस्तान को छोड़कर किसी भी देश का नागरिक यदि :
उसके पास किसी भी समय भारतीय पासपोर्ट रहा हो ।
वह अथवा उसके माता अथवा पिता अथवा दादा अथवा दादी अथवा परदादा अथवा परदादी, भारत सरकार अधिनियम, 1935 में परिभाषित अनुसार भारत में पैदा हुए हों तथा भारत के स्थायी निवासी हों तथा अन्य क्षेत्र जो बाद में भारत का अंग बन गए बशर्ते कि समय समय पर केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट अनुसार कोई भी किसी भी समय किसी अन्य देश का नागरिक नहीं था|
उत्तर: उल्लंघन का अर्थ विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 और उसके तहत जारी किसी नियम/विनियम/अधिसूचना/आदेश/निर्देश/परिपत्र के प्रावधानों को भंग करना है। कंपाउंडिंग का अर्थ उल्लंघन को स्वैच्छिक रूप से स्वीकार करना, दोष स्वीकार करना और उसके निवारण के लिए अनुरोध करना है। रिज़र्व बैंक को फेमा, 1999 की धारा 131 में यथा परिभाषित उल्लंघनों के अंतर्गत (उक्त अधिनियम की धारा 3(ए)2 के तहत हुए उल्लंघनों के अतिरिक्त) उक्त अधिनियम के संबंध में उल्लंघनकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देने के बाद विनिर्दिष्ट राशि के लिए उल्लंघनों की कंपाउंडिंग करने का अधिकार है। यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत कोई व्यक्ति अथवा कंपनी स्वीकार किए गए उल्लंघन की कंपाउंडिंग के लिए अनुरोध करता/करती है। यह प्रक्रिया लेनदेन की लागत को कम करके फेमा,1999 (धारा 3(ए) के अतिरिक्त) के किसी उपबंध के उल्लंघन के संबंध में किसी व्यक्ति को सुकून उपलब्ध कराती है। जान-बूझकर, गलत इरादे से और कपटपूर्ण लेनदेन, हालाँकि, गंभीरता से लिए जाते हैं, जिनकी कंपाउंडिंग रिज़र्व बैंक द्वारा नहीं की जाएगी।
उत्तर: यदि कोई व्यक्ति फेमा, 1999 के किसी प्रावधान (धारा 3(ए) के अतिरिक्त) का उल्लंघन करता है अथवा इस अधिनियम के तहत अधिकारों का प्रयोग करते हुए जारी किये गये किसी नियम, विनियम, अधिसूचना, निर्देश अथवा आदेश का उल्लंघन करता है अथवा ऐसी किसी शर्त, जिसके लिए रिज़र्व बैंक द्वारा निर्देश जारी किया गया है, का उल्लंघन करता है तो वह रिज़र्व बैंक के पास कंपाउंडिंग के लिए आवेदन कर सकता है। फेमा, 1999 की धारा 3(ए) के तहत उल्लंघनों की कंपाउंडिंग के आवेदन प्रवर्तन निदेशालय को प्रस्तुत किए जाएं।
उत्तर: यदि किसी व्यक्ति को रिज़र्व बैंक अथवा विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (FIPB) अथवा अन्य किसी सांविधिक प्राधिकारी अथवा लेखा-परीक्षक से अथवा किसी अन्य प्रकार से फेमा, 1999 के प्रवधानों के उल्लंघन के बारे में ज्ञात होता है, तो वह कंपाउंडिंग के लिए आवेदन कर सकता/सकती है। कोई व्यक्ति उल्लंघन के बारे में ज्ञात होने पर अपने आप भी कंपाउंडिंग के लिए आवेदन कर सकता है।
उत्तर: कंपाउंडिंग के लिए आवेदन करने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी 28 जून 2010 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 56 के संलग्नक -। में दिए गए फार्म का उपयोग किया जा सकता है। उक्त फार्म रिज़र्व बैंक की वेबसाइट अर्थात http://www.rbi.org.in/Scripts/BS_ApCircularsDisplay.aspx. लिंक पर क्लिक करके डाउनलोड किए जा सकते हैं। इसके अलावा, 13 दिसंबर 2011 एवं 12 अगस्त 2013 के क्रमश: ए.पी.(डीआईआर) परिपत्र सं. 57 एवं 20 में उल्लिखित दस्तावेज भी आवेदनपत्र के साथ संलग्न किए जाने चाहिए।
उत्तर: हाँ। कंपाउंडिंग के लिए अनुरोध करते समय आवश्यक दस्तावेजों के साथ विनिर्दिष्ट फार्मेट में आवेदन पत्र और "भारतीय रिज़र्व बैंक" के पक्ष में आहरित रु.5000/- का डिमांड ड्राफ्ट भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रेषित किया जाना चाहिए।
उत्तर: फेमा, 1999 के तहत उल्लंघनों की कंपाउंडिंग के लिए आवेदन करते समय विनिर्दिष्ट फार्मेट में आवेदन पत्र के साथ, आवेदक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, बाह्य वाणिज्यिक उधार, समुद्रपारीय प्रत्यक्ष निवेश तथा शाखा कार्यालय/संपर्क कार्यालय, यथा लागू, से संबंधित संलग्नकों (13 दिसंबर 2011 के ए.पी.(डीआईआर) परिपत्र सं. 57 एवं 12 अगस्त 2013 के ए.पी. (डीआईआर) परिपत्र सं. 20 के अनुलग्नक) के अनुसार ब्योरे भी प्रस्तुत करे, जिसके साथ इस आशय का एक वचन पत्र हो कि वे प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जाँच ब्यूरो, आदि जैसी किसी एजेंसी की जाँच के अधीन नही हैं, साथ ही संस्था के बहिर्नियम तथा अद्यतन लेखापरीक्षित तुलन पत्र की प्रति भी संलग्न की जाए।
उत्तर: निम्नलिखित उल्लंघनों की कंपाउंडिंग के अधिकार (शक्तियां) भारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों में प्रत्यायोजित किए गए हैं:
.सं. |
फेमा – विनियम |
उल्लंघन का संक्षिप्त ब्योरा |
1. |
3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 20/ 2000-आरबी की अनुसूची-। का पैराग्राफ 9(1)(A) |
शेयरों के निर्गम हेतु आवक विप्रेषण/णों की रिपोर्टिंग में विलंब। |
2. |
3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 20/ 2000-आरबी की अनुसूची-। का पैराग्राफ 9 (1)(B) |
शेयरों के आबंटन के बाद फार्म एफसी-जीपीआर फाइल करने में विलंब। |
3. |
3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 20/ 2000-आरबी की अनुसूची-। का पैराग्राफ 8 |
शेयरों को जारी करने/शेयर आवेदन राशि को लौटाने में 180 दिनों से अधिक का विलंब, निधियों की प्राप्ति के तरीके, आदि। |
4. |
3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 20/ 2000-आरबी की अनुसूची-। का पैराग्राफ 5 |
शेयरों के निर्गम के लिए कीमत निर्धारण संबंधी दिशानिर्देशों का उल्लंघन। |
5. |
3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 20/ 2000-आरबी के विनियम 5(1) के साथ पठित विनियम 2(ii) |
अपरिवर्तनीय डिबेंचरों, अंशत: प्रदत्त शेयरों, आप्शनैलिटी उपबंध वाले शेयरों जैसे अपात्र लिखतों को जारी करना। |
6. |
3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 20/ 2000-आरबी की अनुसूची-। का पैराग्राफ 2 अथवा 3 |
क्रमश: भारतीय रिज़र्व बैंक अथवा विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड के अनुमोदन/मंजूरी, जहां कहीं आवश्यक हो, के बिना शेयर जारी करना। |
7. |
3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 20/ 2000-आरबी की अनुसूची-। के पैराग्राफ 10 के साथ पठित विनियम 10A (b)(i) |
निवासी से अनिवासी को शेयरों के अंतरण के मामले में फार्म FC-TRS के प्रस्तुतीकरण में विलंब। |
8. |
3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 20/ 2000-आरबी की अनुसूची-। के पैराग्राफ 10 के साथ पठित विनियम 10B (2) |
अनिवासी से निवासी को शेयरों के अंतरण के मामले में फार्म FC-TRS के प्रस्तुतीकरण में विलंब। |
9. |
3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 20/ 2000-आरबी का विनियम 4 |
प्रमाणित फार्म FC-TRS के अभाव में, निवेश प्राप्तकर्ता कंपनी द्वारा शेयरों के अंतरण को रेकार्ड में लेना। |
विदेशी निवेश प्रभाग के तीन प्रभागों अर्थात संपर्क/शाखा/परियोजना कार्यालय (LO/BO/ PO) प्रभाग, अनिवासी विदेशी खाता प्रभाग (NRFAD) और अचल संपत्ति (IP) प्रभाग के कार्य 15 जुलाई 2014 से विदेशी मुद्रा विभाग, केन्द्रीय कार्यालय कक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक, 6, संसद मार्ग, नई दिल्ली-110001 को स्थानांतरित (transfer) कर दिए गए हैं। तदनुसार, विदेशी मुद्रा विभाग, केन्द्रीय कार्यालय कक्ष, नई दिल्ली से संबद्ध अधिकायों को अब निम्नलिखित उल्लंघनों की कंपाउंडिंग करने के लिए प्राधिकृत किया जाता है।
क्र.सं. |
फेमा - विनियम |
उल्लंघन का संक्षिप्त ब्योरा |
1. |
भारत से बाहर अचल संपत्ति के अर्जन एवं अंतरण से संबंधित उल्लंघन |
|
2. |
फेमा 21/2000-आरबी, दिनांक 3.5.2000 |
भारत में अचल संपत्ति के अर्जन एवं अंतरण से संबंधित उल्लंघन |
3. |
भारत में शाखा कार्यालय, संपर्क कार्यालय अथवा परियोजना कार्यालय (LO/BO/ PO) की स्थापना से संबंधित उल्लंघन |
|
4. |
विदेशी मुद्रा प्रबंध (जमा) विनियमावली, 2000 के अंतर्गत आने वाले उल्लंघन |
उल्लंघन राशि की सीमा पर विचार किए बिना उल्लिखित उल्लंघनों की कंपाउंडिंग सभी क्षेत्रीय कार्यालयों (कोच्ची एवं पणजी क्षेत्रीय कार्यालयों को छोड़कर) द्वारा की जा सकती है। पणजी और कोच्ची क्षेत्रीय कार्यालय एक सौ लाख रुपये (रु.1,00,00,000/-) से कम के उक्त उल्लंघनों की कंपाउंडिंग कर सकते हैं। पणजी और कोच्ची क्षेत्रीय कार्यालयों के अधिकार क्षेत्र के एक सौ लाख रुपये (रु.1,00,00,000/-) एवं उससे अधिक के उल्लंघनों तथा फेमा के तहत हुए सभी अन्य उल्लंघनों की कंपाउंडिंग फेमा के प्रभावी कार्यान्वयन कक्ष (सेफा), मुंबई द्वारा अब तक की भांति की जाती रहेगी। तदनुसार, उपर्युक्त वर्णित उल्लंघनों से संबंधित कंपाउंडिंग के लिए आवेदन पत्र, संबंधित एंटिटियों द्वारा क्रमश: उन क्षेत्रीय कार्यालयों जिनके अधिकार क्षेत्र में वे आती हैं अथवा विदेशी मुद्रा विभाग, केन्द्रीय कार्यालय कक्ष, नई दिल्ली, यथा लागू, को प्रस्तुत किए जाएंगे। सभी अन्य उल्लंघनों के लिए, आवेदनपत्र CEFA, विदेशी मुद्रा विभाग, 5 वीं मंजिल, अमर भवन, सर पी॰एम॰ रोड, फोर्ट, मुंबई - 400001 को प्रस्तुत किए जाएंगे। रु.5000/- के निर्धारित शुल्क का भुगतान ''भारतीय रिज़र्व बैंक'' के पक्ष में आहरित डिमांड ड्राफ्ट के द्वारा किया जाए जो आवेदन पत्र प्रस्तुत करने के स्थान अर्थात संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय अथवा यदि आवेदन पत्र सेफा, मुंबई को प्रस्तुत किया जाता है, तो मुंबई में देय होना चाहिए।
उत्तर : नहीं। उल्लंघनों की कंपाउंडिंग के लिए अनुरोध करने से पहले सभी आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने चाहिए और अनुपालन पूर्ण किये जाने चाहिए। कार्योत्तर अनुमोदन प्राप्त करने के बाद अभिलेखों का परिशोधन (rectification) करने तथा जो मामले फेमा, 1999 के तहत अनुमत नहीं हैं, तत्संबंधी हुए लेनदेनों को वापस करने/रद्द करने के बाद ही कंपाउंडिंग की जा सकती है। अनुमोदनों तथा अन्य अनुपालनों की प्रतियाँ आवेदन पत्र के साथ अनुलग्न की जानी चाहिए।
उत्तर: रिज़र्व बैंक यह सत्यापित करने के लिए आवेदन पत्र की छान-बीन करता है कि आवेदक द्वारा प्रस्तुत किए गए ब्योरे और दस्तावेज प्रथम दृष्ट्या सही हैं। अपूर्ण ब्योरों वाले आवेदनपत्र अथवा जहाँ उल्लंघन स्वीकार नहीं किया गया है, वहाँ उन्हें आवेदक को लौटा दिया जाता है। आवेदन पत्र स्वीकार किए जाने पर रिज़र्व बैंक उसकी जाँच करेगा और निर्णय लेगा कि उल्लंघन तकनीकी, मटीरियल अथवा संवेदनशील स्वरूप में से किस प्रकार का है? यदि तकनीकी उल्लंघन होगा तो आवेदक को सतर्क रहने की सूचना देने वाला पत्र जारी किया जाएगा। यदि उल्लंघन मटीरियल होगा तो उल्लंघनकर्ता को कंपाउंडिंग प्राधिकारी के समक्ष स्वयं सुनवाई का अवसर देने के बाद दंड लगाकर कंपाउंडिंग की जाएगी। यदि उल्लंघन संवेदनशील स्वरूप का होगा जिसमें आगे जाँच की आवश्यकता होगी तो उसे आगे की जाँच/कार्रवाई के लिए प्रवर्तन निदेशालय को संदर्भित कर दिया जाएगा।
उत्तर: उल्लंघन जो प्रथम दृष्ट्या धन शोधन निवारण, राष्ट्रीय और विनियामक ढ़ांचे में गंभीर गडबड़ करने (infrignment), आदि सहित चिंताजनक होंगे, उन्हें संवेदनशील उल्लंघन माना जाएगा।
उत्तर: विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम के अंतर्गत हुए तकनीकी और / अथवा छोटे अथवा गंभीर उल्लंघन को वर्गीकृत करने का निर्णय, मामले के गुणदोषों के आधार पर, रिज़र्व बैंक द्वारा लिया जाएगा। इस संबंध में अधिसूचित प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए आवेदन पत्र का निपटान किया जाएगा। फेमा के उपबंधों का उल्लंघनकर्ता व्यक्ति किसी बाहरी सलाह पर स्वयं इस बात का निर्णय न ले कि उल्लंघन विशेष तकनीकी अथवा छोटे स्वरूप का है और इसलिए उसे रिज़र्व बैंक के पास कंपाउंडिंग के लिए आवेदन नहीं करना चाहिए। यदि ऐसे आवेदनपत्र कंपाउंडिंग के लिए प्रस्तुत नहीं किए जाएंगे तो संबंधित व्यक्ति अपने को फेमा के उपबंधों के अंतर्गत उन कार्रवाईयों के लिए दायी बनायेगा जिन्हें प्राधिकारियों द्वारा उचित समझा जाएगा। इसलिए संबंधित व्यक्ति को चाहिए कि वह विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम के अंतर्गत हुए उल्लंघन/नों की कंपाउंडिंग के लिए आवेदन पत्र, स्वयं अपने हित में, यथाशीघ्र रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करे।
उत्तर: यह स्पष्ट किया जाता है कि जब कभी रिज़र्व बैंक द्वारा किसी उल्लंघन की पहचान की जाती है अथवा उल्लंघन में शामिल एंटिटी द्वारा कंपाउंडिंग के लिए आवेदन के बजाय किसी संदर्भ के मार्फत उसे जानकारी में लाया जाता है तो बैंक निर्णय लिया जाएगा कि क्या वह (i) उल्लंघन टेक्निकल और/अथवा मामूली स्वरूप का है, यदि हां, तो उस पर प्रशासनिक/सचेतक सूचना के मार्फत कार्रवाई की जा सकती है; (ii) जब मटीरियल स्वरूप का होगा तो उसकी कंपाउंडिंग अपेक्षित होगी और तत्संबंध में कंपाउंडिंग की अपेक्षित प्रक्रिया पूरी की जाएगी; अथवा (iii) मामला संवदेनशील/गंभीर स्वरूप का होने पर उसे प्रवर्तन निदेशालय को संदर्भित करने की आवश्यकता हो सकती है। तथापि, संबंधित एंटिटी द्वारा उल्लंघन स्वीकार करते हुए स्वयं कंपाउंडिंग हेतु एक बार आवेदन करने पर, उसे टेक्निकल अथवा मामूली स्वरूप का नहीं माना जाएगा और विदेशी मुद्रा (कंपाउंडिंग) नियमावली, 2000 के साथ पठित विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की धारा 15 (1) के अनुसार कंपाउंडिंग की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी।
क्या वैयक्तिक सुनवाई के लिए उपस्थित होना अनिवार्य है?
उत्तर: वैयक्तिक सुनवाई के लिए उपस्थित रहना अनिवार्य नहीं है। यदि कोई व्यक्ति वैयक्तिक सुनवाई के लिए उपस्थित न रहने का विकल्प चुनता है तो वह अपनी इच्छा/पसंद (preference) लिखित रूप में दे सकता है। कंपाउंडिंग प्राधिकारी को प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर आवेदन पत्र का निपटान किया जाएगा। यह नोट किया जाए कि मामले में स्वयं उपस्थित होने से दण्डात्मक राशि पर कोई असर नहीं पड़ता है।
उत्तर: हाँ! आवेदक वैयक्तिक सुनवाई के लिए उपस्थित रहने हेतु अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति को केवल उचित लिखित प्राधिकार के साथ प्राधिकृत कर सकता है। यह सुनिश्चित करना होगा कि आवेदक की ओर से उपस्थित होने वाला व्यक्ति उल्लंघन के स्वरूप और उससे संबंधित विषय से परिचित हो। हालांकि, रिज़र्व बैंक व्यक्तिगत सुनवाई के लिए आवेदक के प्रतिनिधि/विधि विशेषज्ञ/कंसल्टैंट, आदि को साथ लाने के बजाय उसे स्वयं उपस्थित होने के लिए प्रोत्साहित करता है क्योंकि कंपाउंडिंग तो केवल स्वीकार किए गए उल्लंघन की होती है।
उत्तर: कंपाउंडिंग प्राधिकारी फेमा, 1999 के उस/उन प्रावधाननों, जिसका/जिनका उल्लंघन किया गया है, के ब्योरे दर्शाते हुए एक आदेश पारित करते हैं। उल्लंघन की कंपाउंडिंग के लिए देय राशि कंपाउंडिंग आदेश में दर्शायी जाती है। लगाये गये दण्ड के भुगतान पर उल्लंघन की कंपाउंडिंग की जाती है।
उत्तर: दण्ड की राशि कंपाउंडिंग आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर "भारतीय रिज़र्व बैंक" के पक्ष में आहरित डिमांड ड्राफ्ट से अदा की जानी चाहिए जो कंपाउंडिंग आदेश जारी करने वाले क्षेत्रीय कार्यालय पर देय हो और यदि आदेश सेफा, मुंबई द्वारा जारी किया गया हो तो मुंबई में देय होनी चाहिए।
उत्तर: जिस उल्लंघन के लिए कंपाउंडिंग की जाती है, उसके लिए दण्डात्मक राशि की प्राप्ति पर रिज़र्व बैंक द्वारा एक प्रमाणपत्र जारी किया जाता है जिसमें लिखा होता है कि आवेदक ने कंपाउंडिंग प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश का अनुपालन कर दिया है।
कंपाउंड किए गए उल्लंघन के बाबत किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा द्वितीय न्याय निर्णय नहीं किया जा सकता है। फेमा, 1999 के अनुसार जहां किसी धारा के तहत किसी उल्लंघनकर्ता पर उल्लंघन के लिए एक बार कंपाउंडिंग हो जाती है, उसके तहत वहां कोई कार्रवाई अथवा आगे और कोई कार्रवाई, जैसा भी मामला हो, न तो प्रारंभ की जाएगी, न जारी रखी जाएगी क्योंकि संबंधित व्यक्ति पर तत्संबंध में कंपाउंडिंग हो चुकी है।
उत्तर: यदि आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर रकम अदा नहीं की जाती है तो यह समझा जाएगा कि आवेदक ने रिज़र्व बैंक को कंपाउंडिंग के लिए कभी भी आवदेन नहीं किया था और उल्लंघन के संबंध में फेमा, 1999 के अन्य उपबंधों लागू होंगे। ऐसे मामले आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रवर्तन निदेशालय को संदर्भित किए जाएंगे।
उत्तर: चूँकि स्वैच्छिक रूप से स्वीकार और प्रकट किए गए मामलों के आधार पर कंपाउंडिंग होती है, इसलिए कंपाउंडिंग नियमावली के अंतर्गत कंपाउंडिंग प्राधिकारी के आदेश के विरुद्ध किसी अपील, दण्ड को कम करने अथवा दण्ड को भरने के लिए मुहलत देने हेतु उपबंध नहीं है।
उत्तर: रिज़र्व बैंक को सभी प्रकार से पूर्ण आवेदन पत्र की प्राप्ति की तारीख से 180 दिनों के भीतर सामान्यत: कंपाउंडिंग प्रक्रिया पूरी की जाती है।
स्रोत: बैंक समाचार, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया, दैनिक समाचार |
अंतिम बार संशोधित : 9/26/2019
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