पोक्काली खेती विशेष प्रकार की पालन रीति है। जिसमें चावल और चिंगट का एकांतर पालन एक ही खेत में किया जाता है। चावल फसल के अवशेष चिंगटों और चिंगट पालन के अवशेष चावल खेती के लिए उर्वरक बन जाते हैं(शशिधरन आदि, 2012)। दोनों संवर्धन रीतियाँ आपस में पूरक होने के नाते इस पालन के लिए कोई भी बाहिरी निवेश उपयुक्त नहीं किया गया है और और नदियों के बहाव द्वारा मृदा तटीय स्थान पर स्थित पोक्काली खेत में जमा होने की वजह से मृदा पोषक समृद्ध है (चित्र 1)।केरल में एर्णाकुलम और त्रिषूर एवं आलपुषा जिलाओं के कुछ भागों में पोक्काली खेत फैले गए हैं (आनसन, 2012)। पोक्कली खेती में किसान किसी भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं करते हैं क्योंकि अगले मौसम में चिंगट पालन शुरू किया जाना है और इस दृष्टि से यह बिलकुल जैवकृषि मानी जाती है। रासायनिक पदार्थों का उपयोग न करने से पोक्काली चावल और चिंगट का विशेष तरह का स्वाद होता है। (वनजा, 2013) पोक्काली खेत की पौष्टिकता युक्त दलदली मिट्टी भी चावल और चिंगट के अच्छे स्वाद का एक और कारण है (नम्बियार आदि, 2009)। पोक्काली चावल के लिए वर्ष 2007 में भौगोलिक संकेत (जी आइ) और लोगो वर्ष 2011 के दौरान भारत सरकार से पादप जीनोम समुदाय रक्षक (प्लांट जीनोम कम्यूनिटी सेवियर) पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
पोक्काली चावल के अंकुरण के लिए 1 पी पी टी से कम लवणता आवश्यक है। लेकिन एक बार अंकुरण होने के बाद यह 5 पी पी टी की लवणता भी झेल सकता है। अतः जून महीने के पहले सप्ताह का की लवणता निकल जाती है, और रोपण मौसम एक साथ आते हैं। पोक्काली चावल की बढ़ती की अवधि 120 दिवस है और दस दौरान पानी की लवणता 4 पी पी टी तक बढ़ जाती है।पोक्कली चावल 15 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ता है, इसलिए यह बाढ़ को अतिजीवित कर सकता है,बल्कि साधारण चावल सिर्फ 0.9 ± 0.2 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ता है। खेत के पानी में डूबी गयी स्थिति में पोक्काली धान का अनाज का सड़न नहीं होता है(पिल्लै आदि, 2002)।
खेत की तैयारी अप्रैल 14 से की जाती है। और जून के प्रथम सप्ताह में मानसून की 3 या 4 बारिश के बाद धान बोए जाते हैं। अतूबर महीने के पहले हफ्ते में फसल काट किया जाता है। पोक्कली खेत में चिंगट पालन करने के लिए लाइसेन्स लेना जरूरी है।नवम्बर महीने के मध्य से अप्रैल महीने के मध्य तक की अवधि के लिए लाइसेन्स दिया जाता है। यह एक परंपरा है कि पोक्काली खेतों से इस लाइसेन्स अवधि को छोडकर बाकी समय मछुआरे (भूमि रहित) खेत के स्वामित्व पर परवाह किए बिना मछली पकड़ सकते है। किस प्रकार हमारे पूर्वज लोग समाज के सभी स्तरों के लोगों की आजीविका के बारे में चिंतित थे, इसका प्रतिष्ठित उदाहरण है यह रीतिरिवाज़।
सारणी 1: केरल में पोक्कली चावल खेतों का स्तर और उत्पादन (डोमिनिक आदि, 2012) ।
जिला |
उपलब्ध क्षेत्रफल |
अब पैदावार योग्य क्षेत्रफल |
उत्पादन |
एरणाकुलम |
4000 |
610 |
929.64 टन |
आलपुझा |
3000 |
||
त्रिषूर |
2000 |
केरल में 10 – 15 वर्षों से पहले पोक्काली पैदावार के लिए 25,000 हेक्टयर से अधिक खेत थे, लेकिन अब यह कम होकर सिर्फ 5000 हेक्टयर तक हो गया और केवल 610 हेक्टयर में पैदावार किया जाता है (सारणी1)।
केरल में 10 – 15 वर्षों से पहले पोक्काली पैदावार के लिए 25,000 हेक्टयर से अधिक खेत थे, लेकिन अब यह कम होकर सिर्फ 5000 हेक्टयर तक हो गया और केवल 610 हेक्टयर में पैदावार किया जाता है (सारणी 1)।
पिछले जून महीने में हुई अनियमित बारिश की वजह से बोए गए पोक्काली बीज पानी में बहकर नष्ट हो गए और इस वर्ष 200 हेक्टयर से कम क्षेत्र में खेती की जा सकी।
पोक्काली पालन व्यवस्था में पहचानी गयी समस्याएं
बहुत अधिक बाधाएं होने पर भी कई मछुआरे कृषि के साथ हुए दृढ संबंध और परंपरा को आगे रखने की मजों के कारण अब भी पोक्कली खेती परंपरागत रूप से कर रहे हैं।
इस क्षेत्र के देशीय मछुआरों को चावल पैदावार के दौरान या इससे पहले आजीविका के लिए पोक्काली खेत में प्रवेश करके प्राकृतिक मछली और चिंगट पकड़ने का परंपरागत अधिकार है। भूमि का स्वामित्व होने वाले किसानों को चिंगट पालन के दौरान केवल पांच महीने चिंगट का पालन करने का लाइसेन्स मिलता है। लाइसेन्स की अवधि के अंत में किसान लोग मछुआरों की आजीविका के लिए मछली पकड़ने के लिए खेत खुला देते हैं। किसानों तथा मछुआरों के बीच होने वाले इस विशेष तरह के करार के कारण पालन व्यवस्था में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करना चुनौतिपूर्ण होता है। लेकिन, अगर चिंगट पर रोगाणु जनित रोगों का संक्रमण होने पर, पारिश्रमिकों की कमी, यंत्रों का स्थितियों पर ऐसी स्थिति से खेत को बचाने के लिए मछुआरे लोगों का खेत में हस्तक्षेप करना अनिवार्य होता है।
वर्तमान अध्ययन में पोक्कली खेत के साथ चावल की खेती को परेशान करने के बिना पिंजरे में उच्च मूल्य वाली पख मछलियों (पेर्ल स्पोट और मल्लेट) तथा चिंगट का एकीकृत पालन करके आय बढ़ाने के लिए नया तरीका विकसित करने का प्रयास किया जाता है।
विस्तृत सर्वेक्षण करने के बाद कडमकुडी, एषिक्करा, पिषला, नायरम्बलम स्थानों के पोक्काली खेत वर्तमान अध्ययन के लिए चुने गए। पोक्काली खेत के निकट के मोरी के गड्ढे और नाले पिंजरे में मछली पालन के लिए चुने गए और साफ करके पानी की गहराई 2 मी. सुनिश्चित की गयी (चित्र 2)। मल्लेट (सुजल लेफालस)और पेर्ल स्पोट (एट्रोप्लस सुराटेॉन्लल) को पिंजरे में पालन के लिए उचित प्रजातियों के रूप में चुना गया।
साधारणतया मानसून के आरंभ में समुद्र तट से कास्ट नेट द्वारा परंपरागत मछुआरे मल्लेट मछली के संततियों को पकड़ते हैं। प्राकृतिक स्थानों से पकडी जाने वाली इन मछली संततियों की लंबाई 1 से.मी. से 2 से.मी. और भार 150 मि.ग्रा. से 400 मि.ग्रा. तक है। (चित्र 3) और पिंजरे में संभरण करने से पहले नर्सरी में उंगलि आकार तक (8 से.मी. से ऊपर) पालन करके अनुकूलन किया जाना आवश्यक है। एकीकृत पालन में संभरण करने के लिए मछली संततियों को उंगली आकार तक बढ़ाया जाना अच्छा है। मल्लेट मछलियों के पोनों (3000) का अनुकूलन करके पोक्काली खेत के मुख्य नाला में स्थापित बॉस के खम्भों से बनाए गए हाप्पा (12मी.X12मी.X 12मी. का आकार)में संभरित किया जाता है। इन छोटी मछलियों को खाने के लिए 30 दिनों तक उच्च प्रोटीन (>40%)और वसा(>8%) युक्त प्लवमान (500 माइक्रोन,700 माइक्रोन) एवं धीरे से डूबने वाला आहार (1मि.मी.)दिया जाता है|
सारणी 2. पेर्ल प्लस लार्वे और पालन खाद्य का निकट संघटन
नमूने का नाम |
शुष्क पदार्थ (%) |
नमी(%) |
क्रूड प्रोटीन(%) |
क्रूड वसा(%) |
क्रूड राख (%) |
क्रूड फाइबर (%) |
क्रूड इनसोल्युबिल (%) |
नाइट्रोजन मुक्त सार |
पेर्ल प्लस पालन खाद्य |
93.63 |
6.37 |
38.36 |
4.3 |
11.46 |
3.45 |
4.61 |
36.04 |
पेर्ल प्लस नर्सरी खाद्य |
93.71 |
6.29 |
44.71 |
6.90 |
14.54 |
4.09 |
5.37 |
23.47 |
चतुष्कोणीय प्लवमान पिंजरों में पालन किया जाता है। पालन खेत के चारों कोनों में निश्चित स्थान जाता है। लगभग 12 मि.मी. (0.5 मि.मी. मोटापन) और 16 मि.मी. (1 मि.मी. मोटापन) की जालाक्षि के एच डी पी ई के जाल और पी वी सी के पाइपों से पिंजरे सजाए जाते हैं। पिंजरा पानी में प्लव होने के लिए 90 मि.मी. के मोटापन के पी वी सी पाइप उपयुक्त किए गए। पिंजरा पानी में थोडा डूबकर स्थिर करने के लिए 32 मि.मी. के पी वी सी पाइपों में रेत भरा गया।हर एक पिंजरें में मल्लेट मछली और पेलं स्पोट मछली के उंगलिमीनों का संभरण किया गया। संभरण सघनता क्रमशः 30/मी³, 40/मी³ और 30/मी³ है।
मल्लेट मछली को आहार के रूप में 32 प्रतिशत प्रोटीन और 4 प्रतिशत वसा युक्त 2 मि.मी. आकार के वाणिज्यिक तौर पर उपलब्ध प्लवमान पेल्लेट खाद्य दिए गए। पेलं स्पोट मछली के लिए सी एम किया गया। इस खाद्य में 47% प्रोटीन, 6% वसा और विटामिन, खनिज आदि आवश्यक पौष्टिक पदार्थ सम्मिलित हैं। पेर्ल प्लस लार्वे और पालन खाद्य का निकट संघटन सारणी 2 में दिया जाता है। पेलं स्पोट उंगलिमीनों को पेर्ल प्लस PS3(1000um), PS4(1.4 मि.मी.) और किशोरों को PS 5 (2 मि.मी.) दिया गया।
चावल की खेती के समय पिंजरों में मल्लेट मछली का पालन करके लाइसेन्स की अवधि (नवंबर के बाद पोक्काली खेत में इनका विमोचन किया जाता है। पालन खेत के चारों कोनों में निश्चित स्थानपर दिन में दो बार सूत्रित प्लवमान खाद्य (2 मि.मी.) दिया जाता है।
पोक्काली खेत समुद्र की ओर बहने वाली नदियों के निकट होने के कारण पानी की लवणता और औद्योगिक प्रदूषण पर जांच करने के लिए पालन की लवणता का आवधिक परीक्षण किया जाना चाहिए।
पोक्कली खेतों में पानी की लवणता बदलती जाती है और जून एवं जुलाई महीनों के दौरान यह 1 पी पी टी और अप्रैल और मई महीनों के दौरान 28 पी पी टी तक होती है (चित्र 5)।
पेर्ल स्पोट पोक्काली खेतों के पिंजरों में पेर्ल स्पोट के उंगलीमीन (4.0 ग्राम भार और 6 से.मी. लंबाई) 23 हफ्तों की पालन अवधि के दौरान 127 64 ग्राम भार और 16.36 से.मी. की लंबाई तक बढ़ते हैं। सारणी 3 में पिंजरे में पालन की जाने वाली पेर्ल स्पोट एट्रोप्लस सुराटेंसिस मछली की छः महीनों की बढ़ोत्तरी का आंकड़ा दिया जाता है (चित्र 6)।
सारणी 3: र्ल स्पोट एट्रोप्लस सुराटेंसिस मछली की छः महीनों की बढ़ोत्तरी का आंकड़ा
अवधि |
लंबाई (से.मी.) |
भार (ग्राम) |
संभरण समय |
6.0 |
4.0 |
10 |
12.9 |
52.6 |
14 |
13.5 |
58.6 |
18 |
14.4 |
69.9 |
21 |
14.5 |
97.6 |
23 |
16.36 |
127.64 |
(18.2±10.7 से.मी. और भार 67.43± 2.21 ग्रा.) तक बढ़ाया जाता है (सारणी 5) (चित्र 7)। ज्वार के स्तर के अनुसार जलकपाट नियमित करके पानी का विनियम किया गया।
मल्लेट मल्लेट मछली के पोनों (0.25 ±0.25 से.मी. और भार 481.66 ± 57.49 मि.ग्रा..) का हाप्पा जालों में 28 दिनों के पालन के बाद ये उंगलिमीन (6.35 ±00.23 से.मी. और भार 3.54 ±0 0.16 ग्रा..) के आकार तक बढ़ते हैं। इन उंगलिमीनों को एचडीपीई के पिंजरों में 92 दिनों तक पालन करके किशोर अवस्था(18.2±1.07 से.मी. और भार 67.43± 2.21 ग्रा..) तक बढ़ाया जाता है (सारणी4) (चित्र7)।
सारणी 4: मल्लेट मछली के नर्सरी पालन के दौरान लंबाई और भार का आंकड़ा
पालन के दिन |
लंबाई(सें.मी) |
भार |
1 |
34.9±0.25 |
481.66± 57.49 मि.ग्रा. |
10 |
4.99±0.23 |
1.92±0.22 ग्रा. |
16 |
6.25±0.38 |
3.16± 0.35 ग्रा. |
28 |
6.35 ±0.23 |
3.54±0.16 ग्रा. |
62 |
11.85±0.91 |
20.92± 2.97 ग्रा. |
89 |
13.2 ±0.28 |
25.6± 2.12 ग्रा. |
100 |
14.76±0.25 |
46.83± 1.44 ग्रा. |
120 |
18.2±1.07 |
67.43± 2.21 ग्रा. |
मल्लेट मछली नौ महीनों की पालन अवधि के दौरान 350±50 ग्रा.म के आकार तक बढ़ती हैं। और अप्रैल महीने के प्रथम सप्ताह में गिल जाल और कास्ट जाल से पकड़ा जाता है | बल्कि मल्लेट मछलियों को 127.64± 20 ग्रा.म के आकार तक बढ़ने पर आवश्यकता पड़ने पर स्कूप जाल द्वारा पकड़ा जाता है।
पकड़ी गयी ताज़ी पेर्ल स्पोट और मल्लेट मछलियों को विपणन का नया तरीका क्लास फार्म गेट मार्केट द्वारा अच्छे दाम (आइएनआर500/ कि.ग्रा..) पर बेचा जाता है। पोक्काली खेत से पकड़ी जाने वाली मछलियों की अच्छी गुणता और स्वाद की वजह से मछली पसंद करने वालों के बीच फार्म गेट मार्केट की स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। लेकिन कई स्थानों में बाजार की कम गुणता वाली मछलियों के बीच इस बेहत्तर गुणता वाली मछलियों को मिलाने की प्रवणता प्रचलित है। इस नए तरीके से उपभोक्ता खाने के लिए उचित दाम पर सुरक्षित उत्पाद सुनिश्चित कर सकते हैं साथ साथ पोककाली खेत से मिलने वाला आय भी बढ़ाया जा सकता है।
लगभग एक हक्टयर क्षत्रफल के पोक्काली खेत में पिंजरे में मछली पालन के लिए होने वाला निश्चित लागत आइएनआर 88,000/- रुपये है। इस से जुड़ी हुई संपतियाँ पांच वर्षों तक उपयुक्त की जा सकती हैं, इसलिए एक वर्ष के लिए होने वाला खर्च आइएनआर 17600/- रुपये होगा। हर वर्ष की परिचालन लागत आइएनआर 90,000/- है। प्रति वर्ष का सकल आय आइएनआर 1,90,000/- रुपये और प्रति वर्ष का लाभ आइएनआर 83,000/- रुपये है। पोक्काली किसानों को एक हेक्टयर क्षेत्रफल के खेत में चावल खेती करने से केवल आइएनआर 15,000/-रुपये और चावल तथा चिंगट का मिश्रित पालन किए जाने से आइएनआर 50,000/-रुपये मिलता है। लेकिन चावल-चिंगट-पखमछली के मिश्रित पालन के नए तरीके से प्रति हेक्टयर से आइएनआर13 लाख रुपए सुनिश्चित किए जा सकते हैं।
विकसित प्रौद्योगिकियों को टिकाऊ बनाने के लिए मल्लेट जैसे प्रत्याशी मछली जाति के संतति उत्पादन के लिए शीर्घ हस्तक्षेप आवश्यक है और खारा पानी संपदाओं के लिए अनुकूल प्रत्याशी प्रजाति का चयन और वर्तमान जाति के साथ खेत में परीक्षण किया जाना चाहिए। इन सब के अतिरिक्त पालन स्थान की भूमि की तैयारी और संग्रहण के लिए नए हस्तक्षेप विकसित करने से इस पालन व्यवस्था में और भी सुधार लाया जा सकता है।
स्त्रोत : भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान का कृषि विज्ञान केन्द्र, नारक्कल, कोच्ची, केरल(विकास पी.ए.,षिनोज सुब्रमण्यन, जोण बोस और पी.यु.ज़क्करिया)
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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