खाद्योत्पादन में जलकृषि ने रफ्तार पकड़ ली है अत: मछली उत्पादन का 50% जलकृषि से हैं और बढ़ती रही माँग की पूर्ति करने में जलकृषि सक्षम है। अगले दो दशकों के अंत याने कि 2030 पहुँचने में प्रति व्यक्ति खपत पर अनुमानित जनसंख्या वृद्धि के अनुसार मछली खाद्य उत्पादन में 40 मिलियन टन बढ़त किया जाना पड़ेगा। जलजीवों का पिंजरों में पालन करके उत्पादन बढाना हाल ही में विकसित की गई जलकृषि पद्धति है। यद्यपि एशिया के कई भागों में मछलियों को पिंजरों में डालकर कम समय में परिवहन करने की रीति दो शतक पहले ही प्रचलित थी तथापि वाणिज्यिक तौर पर पिंजरा मछली पालन पद्धति 1970 के दशकों में नोर्वे में सालमन मछली के पालन के साथ प्रारंभ किया गया था। स्थलीय कृषि के विकास और प्रयोग के समान जलीय तीव्र कृषि जैसे पिंजरा पालन शुरू करने के पीछे कई कारकों ने संयोजित रूप से काम किए हैं। संपदाएं (जैसे पानी, भूमि, श्रम, ऊर्जा) अर्जित करने की होड़, उपलब्ध प्रति यूनिट क्षेत्र से उत्पादकता बढ़ाने का श्रम, अब तक न विदोहित पानी निकायों जैसे झीलों, सरोवरों, नदियों, तटीय खारापानी निकायों और खुले समुद्रों में से उत्पादकता बढाना पिंजरा पालन जैसी तीव्र जलकृषि शुरू करने के कारक हैं।
विश्व में पिंजरा पछली पालन से प्राप्त उत्पादकता या इस सेक्टर के विकास के संबंध में कोई आधारभूत सांख्यिकी सूचना उपलब्ध नहीं हैं। फिर भी कुछ देशों से एफ ए ओ को मिली रिपोर्टो में पिंजरा पालन एककों और इनकी उत्पाद्कीय स्थिति के बारे में कुछ सूचनाएँ हैं। वर्ष 2005 में कुल मिलाकर 62 देशों से इस पर रिपोर्ट प्राप्त हुई है।
पिंजरा मछली पालन का इतिहास सिर्फ बीस साल पुराना हैं। पर वैश्वीकरण और जलीय उत्पादों की बढ़ती माँग के कारण पालन पद्धति में द्रुतगामी परिवर्तन हो रहे हैं।
अनुमान लगाया जाता है कि विकासोन्मुख देशों की मछली खपत वर्ष 1997 के 62.7 मिलियन मैट्रिक टन से वर्ष 2020 में 57% वृद्धि के साथ 98.6 मिलियन मैट्रिक टन में बढ़ जायेगी। इसकी तुलना में विकसित देशों की खपत सिर्फ 4% वृद्धि के साथ 1997 के 28.1 मिलियन मैट्रिक टन से वर्ष 2020 में 29.2 मिलियन टन हो जायेगी। विकासोन्मुख देशों में होनेवाला द्रुतगामी जनसंख्या वर्धन, जीवनशैली में होनेवाली अभिवृद्धि और शहरीकरण पशुधन व मछली का वर्द्धित उपयोग के कारण माने जाते हैं।
पिंजरा मछली पालन करनेवाले 62 देशों और इनके प्रांत प्रदेशों से प्राप्त वर्ष 2005 की रिपोर्टो के अनुसार कुल 2412167 टन (चीन को छोड़कर) मछली का उत्पादन हुआ है जो इस प्रकार हैं: नोर्वे 652306 टन, चिली 588060 टन, जापान 272821 टन, यूनाइटेड किंगडम – 135253 टन, वियतनाम – 126000 टन, ग्रीस – 76577 टन, टर्की – 78724 टन और फिलिप्पीन्स – 66249 टन।
अब तक किया गया वाणिज्यिक पिंजरा मछली पालन की मुख्य मछलियाँ, बाजार में उच्च भाव प्राप्त करनेवाली संपूरक खाद्य से बढ़ाई जानेवाली पख मछली जैसे साल्मन (अटलान्टिक साल्मन, कोहो साल्मन और चिनूक साल्मन); मांसाहारी समुद्री मछलियाँ जैसी जापानी अंबरजाक, रेड सी ब्रीम, युरोप्यन सी बास, गिल्ट हेड सी ब्रीम, समुद्री रेनबो ट्राउट, मंडारिन फिश, स्नेक हेड, मीठाजलसर्वभक्षी मछली, जैसी चीनी कार्प, तिलाप्पिया, कोलोसोमा और शिंगटी, मछलियाँ हैं।
हाल में विविध प्रकार की मछलियों, चाहे परंपरागत हो या उस पीढ़ी से विकसित की गई नई पीढ़ी की हो, का यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में निजी और वाणिज्यिक तौर पर पालन कर रहे हैं। पिंजरा पालन करने वाली मछलियों की विविधता के संबंध में कह जाएं तो कुल मिलाकर करीब 40 परिवारों की मछलियों का पालन हो रहा है। इन में 90 प्रतिशत मछलियाँ साल्मोनिडे, स्पारिड़े, करैजिडे, पंगासिडे और सीक्लीडे नामक पाँच परिवार है। लेकिन 66% साल्मोनिडे परिवार की मछलियाँ है उन में से 51% उत्पादन सालमोसालर नामक मछली जाति योगदान है, 27% योगदान ओनकोरिंकस माइकिस, सिरियोला क्विन क्विनेरेडियाटा पंगासियस जाति और का योगदान है। बाकी 10 प्रतिशत अन्य 70 जातियों से प्राप्त होता है।
क्षेत्रीय तौर पर संकलित की गई सूचनाओं के अनुसार पिंजरों में व्यापक रूप से पालन करनेवाली मछली अटलैंटिक सालमन है। इस शीतजल मछली का उत्पादन वर्ष 1970 में 294 टन था तो बढ़कर 2005 में 1235972 टन हो गया। इन में 10,000 टन नोर्वे, चिली, यूके, कानडा और फ़ारो द्वीपसमूहों का योगदान है।
अधिकांश समुद्री व खारा पानी पिंजरा पालित मछलियाँ शीतोष्ण क्षेत्रों की है।
देश |
मात्रा (टन में) |
प्रतिशत |
नोर्वे |
652 306 |
27.5 |
चिली |
588 060 |
24.8 |
चीन |
287 301 |
12.1 |
जापान |
268 921 |
11.3 |
यू.के. |
131 481 |
5.5 |
कनाडा |
98 441 |
4.2 |
ग्रीस |
76 212 |
3.2 |
टर्की |
68 173 |
2.9 |
रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया |
31 192 |
1.3 |
मुख्य मछलियाँ सालमनोइड, येलो टेइलस, पर्च जैसी मछलियाँ और रोक फिशस हैं।
जाति |
मात्रा (टन में) |
प्रतिशत |
सालमो सालार |
1219 362 |
58.9 |
ओनकोरिंकस माइकिस |
195 035 |
9.4 |
सिरियोला क्विनक्विरेडियाटा |
159 798 |
7.4 |
आनकोरिंकस किसूच |
116 737 |
5.6 |
स्पेरस अरेटा |
85 043 |
4.1 |
पाग्रस अरेटा |
82 083 |
4.0 |
डेसेंट्राकस लाब्राक्स |
44 282 |
2.1 |
डेसेंट्राकस जातियाँ |
37 290 |
1.8 |
ओ. शाविश्या |
23 747 |
1.2 |
स्कोरपेनिडे |
21 297 |
1.0 |
पिंजरा मछली पालन में विकास साध्यताएं देखी जाती है। उदाहरण के लिए एशिया के कई भागों में इसका सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा रहा है। फिर भी उच्च मूल्य मछलियों को के खाद्य के रूप में कचड़ा मछलियों का उपयोग करने की रीति को कम करनी चाहिए।
उच्च माँग की मछलियों को पालने की इस रीति ने रफ्तार पा ली है जिस से सामाजिक व पर्यावरणीय स्पर्धाएं होने की संभावनाएं है। इसलिए उचित आयोजन और प्रबंधन की जरूरत है।
हाल की पिंजरा पद्धति जो उपतटीय जल में की जाती है, को हटाकर दूरस्थ समुद्र में किया जाना चाहिए जिससे पर्यावरण प्रदूषण और कृत्रिम आहार से जुड़ी समस्याएं हल्का की जा सकती है। अपतट समुद्र के गहरे पानी में निम्न पोषी स्तर की समुद्री जीवजात जैसे समुद्री शौवालों, कवच प्राणियों, और अन्य नितलस्त अकशेरुकियों के सहवास से प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला बनायी रखी जा सकती है। पिंजरा पालन पद्धति में भिन्न-भिन्न मछली जातियों का समायोजन करने और इस पद्धति का व्यापक प्रयोग करने का अवसर है।
स्त्रोत: केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, कोच्ची, केरल
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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