पिछले दशक में वैश्विक मत्स्य मांग काफी तेजी से बढ़ने कारण केज मत्स्य पालन पूरे विश्व में काफी तेजी से फैल रहा है। झारखण्ड में जलाशयों का कुल जलक्षेत्र लगभग 1 लाख 15 हजार हेक्टेयर है जो राज्य के लिए मत्स्य उत्पादन का एक बहुत बड़ा संसाधन है। राज्य के जलाशयों में स्वत: बीज संचयन की सफलता की दर बहुत कम है। अत: ऐसी परिस्थिति में जलाशयों में केज कल्चर का उपयोग बड़ी अंगुलिका तैयार करने में किया जा सकता है। साथ ही साथ जलाशयों में केज स्थापित कर सही मत्स्य प्रजातियों का संचयन एवं पालन से वहां मत्स्य उत्पादन काफी बढ़ाया जा सकता है।
केज (पिंजरा) जाल द्वारा सभी ओर से बंद के पिंजरे के जैसा संरचना है जो पानी के प्रवाह एवं दबाव को लम्बे समय तक सहन कर सकता है। एशिया महादेश के कई देशों में जलाशयों एवं खुले समुद्र में केज निर्माण का मत्स्य पलान का कार्य वर्षों पहले से चला आ रहा है। आज झारखण्ड सहित देश के कई राज्यों में केज मत्स्य पालन प्रगति पर है।
झारखण्ड में छोटे मध्यम एवं बड़े आकार के कुल 252 जलाशय हैं जिसका जलक्षेत्र लगभग 115000 हे. है। इतने बड़े जल संसाधन को ध्यान में रखकर सतत मत्स्य उत्पादन की ओर ले जाना एवं अधिक से अधिक लोगों के भोजन में पोषक तत्व के रूप में मछली लाने के उदेश्य से ही जलाशयों में केज बनाकर पूर्णत: पूरक आहार आधारित मछली पालन कार्य मत्स्य विभाग, झारखण्ड सरकार द्वारा शुरू किया गया है, जो मत्स्य पालन की दिशा में एक नई पहल है। राज्य योजना के तहत सर्वप्रथम हटिया जलाशय में 8 केज की ईकाई लगाई गई है और इसमें पतराटोली मत्स्यजीवी सहयोग समिति, धुर्वा के साथ समन्वय स्थापित कर मत्स्य पालन का कार्य प्रारंभ किया गया है। प्रति केज प्रथम चरण में 2000-3000 किग्रा मछली उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है इसके साथ-साथ चांडिल एवं तेनुघाट जलाशयों में RKVY अधीन NMPS योजना अंतर्गत के मत्स्य पालन का कार्य बड़े पैमाने पर शुरू किया गया है। चांडिल जलाशय में कुल 48 युनिट केज का निर्माण कर स्थापित कर दिया गया है एवं तेनुघाट में निर्माण कार्य प्रगति पर है। स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए एवं निर्माण खर्च को कम रखने के उदेश्य से जीआई पाइप्स के द्वारा केज का फ्रेम निर्माण किया गया है।
केज मत्स्य पालन में साधारणत: चार प्रकार का केज देखे जाते हैं- स्थायी पिंजरे, तैरते हुए पिंजरे, पनडुब्बी रूपी पिंजरे, पानी में डूबे हुए पिंजरे मुख्यत: नदी/नहर के प्रवाह के रास्ते में छिछले पानी में जहां गहराई 1-3 मीटर हो लगाया जाता है। केज मुख्यत: एक फ्रेम के मदद से टिका होता है, जिसमें जाल पानी के फ्रेम के मदद से टिकी होती है, जिसमें जाल पानी में फ्रेम के साथ लटकती है। तैरते हुए केज अलग-अलग डिजाइन में आवश्यकता अनुसार बनाया जाता है। इस प्रकार के केज का प्रचलन मत्स्य पालन में ज्यादातर हो रहा है। पनडुब्बी रूपी पिंजरे, पानी में डूबे हुए केज का प्रचलन मत्स्य पालन में बहुत ही कम है।
केज मत्स्य पालन की सफलता बहुत कुछ सही स्थान के चुनाव पर निर्भर करती है। जलाशयों में केज स्थापित करने के लिए सही स्थान हेतु निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
फ्रेम :- सस्ते एवं मजबूत समग्री का चुनाव केज निर्माण के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। केज के फ्रेम के निर्माण के लिए साधारणतया बाँस की लकड़ी या जी०आइ० पाईप का उपयोग किया जाता है। फ्रेम को नट बोल्ट से फिक्स कर दिया जाता है।
फ्लोट :- फ्रेम को मजबूती एवं पानी में फ्लोट करने के लिए या तो स्टील के ड्रम या प्लास्टिक के ड्रम का उपयोग किया जाता है। 12 मीटर लम्बे एवं 8 मीटर चौड़े आयताकार केज के फ्रेम को तैराने के लिए 200 लीटर क्षमता वाले 36 पीस प्लास्टिक ड्रम की आवश्यकता होती है। ड्रम को ऊपर और नीचे फ्रेम के बीच सेंडविच की तरह लोहे की पट्टी से बाँधा जाता है।
सिंकर : - स्थानीय पत्थर या सीमेंटेड संरचना जो भारी हो, को नाइलोन रस्सी द्वारा सभी किनारों से लटका दिया जाता है जो केज के आकार को बनाये रखता है।
एंकर :- 40-50 किलो ग्राम के पत्थर या सीमेंटेड सरंचना को एंकर के रूप में उपयोग किया जाता है। मजबूत नाइलन रस्सी से इसे बांधकर जलाशय के तल में फिक्स कर दिया जाता है। एंकर केज को सही स्थान पर जकड़कर रखता है ताकि केज को जलाशय में ज्यादा चलाचल नही हो।
जाल : साधारणतया एचडीईपी या नायलोन निर्मित जाल का उपयोग बड़ी मछलियों के उत्पादन के लिए किया जाता है। जाल के फांद संचय किये जाने वाली मछलियों पर निर्भर करता है। भारत में केज पालन में उपयोग होने वाले ज्यादातर जाल का निर्माण गारवारे कंपनी द्वारा किया जाता है। 24 मिलीमीटर,18 मिलीमीटर,16 मिलीमीटर,10 मिलीमीटर इत्यादि मेस का जाल देश में आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
कैटवाक :- केज के फ्रेम के ऊपर आवागमन का रास्ता कैटवाक कहलाता है। कैटवाक स्थानीय लकड़ी या बांस का बनाया जाता है। स्थानीय उपलब्धता पर इसकी संरचना अन्य वस्तुओं से भी बनाई जा सकती है। केज ऊपर आवागमन के लिए इसका बनाना जरुरी है। लकड़ी को जी०आइ० पाईप या बांस के फ्रेम से मजबूती से फिक्स कर कैटवाक तैयार किया जाता है।
केज की स्थापना :- फ्रेम को सबसे पहले चयनित स्थान में एंकर करने के बाद जाल को बाँधने का कार्य किया जाता है। सिल्क रोप की मदद से जाल को फ्रेम में इस तरह बांध दिया जाता है कि फिसलन न हो। नेट को सतह के किनारे में सिंकर से बांध दिया जाता है ताकि जाल सीधा और सही आकार के बना रहे। जाल के निचले सतह को जलाशय के सतह से 2 से 3 मीटर उपर रखना चाहिए ताकि केंकड़े या अन्य प्रजातियाँ तो जल पर रहते हैं इसे हानि नहीं पहुंचाएं।
केज में पालन होने वाले प्रजातियों में निम्नलिखित गुण होने चाहिए
केज का उपयोग फ्राई से अंगुलिका के उत्पादन के साथ-साथ टेबल साईज मछली उत्पादन के लिए किया जाता है। अंगुलिकाओं को संचयन हेतु ज्यादा दूरी से परिवहन नहीं करना अच्छा माना जाता है। अंगुलिकाओं का उत्पादन या तो केज में ही करना चाहिए या तो केज के आस-पास तालाबों में इसका उत्पादन करना चाहिए। ज्यादा दूरी से फिंगरलिंग का परिवहन करने में उसमें चोट लगने तथा संक्रमण के कारण कम उत्तरजीवी प्राप्त होते हैं। केज में फ्राई या अंगुलिकाओं के संचयन के पहले इन्हें 5% नमक के घोल तथा 5% KMnO4 (पोटेशियम परमैगनेट) के घोल में एक मिनट डुबाकर रखना चाहिए। केज में अंगुलिकाओं का घनत्व प्रजति एवं पालन के तरीके पर निर्भर करता है। साधारणतया एक घन मीटर क्षेत्र के 50-100 पंगेसियस की अंगुलिकाओं का संचयन किया जाता है।
साधारणतया सभी प्रजातियों को केज में पाली जाती है, के लिए एक पूरक आहार का उपयोग करना अच्छे उत्पादन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। लोकल फीड या कृत्रिम भोजन दोनों का उपयोग मत्स्य उत्पादन के लिए किया जाता है। कार्प प्रजातियों के लिए लोकल फीड के रूप में सरसों की खल्ली एवं चावल का कोढ़ा 1:1 में मिलाकर खिलाया जा सकता है। शुरू में 3-5% शरीर भार के अनुसार दिन में 2-3 बार भोजन दिया जाना चाहिए। बाद में भोजन को 1-2% शरीर भार तक सीमित कर दिया जाता है। पंगेसियस पालन में ज्यादातर फ्लोरिंग फीड का प्रयोग किया जाता है।
उचित प्रोटीन युक्त भोजन सही मात्रा में पंगेसियस अंगुलिकाओं को खिलाना अच्छे उत्पादन एवं उत्तरजीविता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। पंगेसियस पालन मुख्यत: पूरक आहार आश्रित मत्स्य पालन है। पंगेसियस मछलियों के शारीरिक भार के आधार पर प्रतिदिन का आहार नीचे लिखित तालिका में दर्शाया गया है।
औसत शरीर भाग (ग्राम) |
आहार (%) प्रतिशत |
फीड पिलेटस का आकार (मि०मी०) |
फीड में प्रोटीन की मात्रा (% की मात्रा) |
10 |
8 |
2 |
32 |
20 |
6 |
2 |
32 |
40 |
6 |
2 |
32 |
80 |
5 |
3 |
30 |
160 |
4 |
4 |
28 |
280 |
4 |
4 |
28 |
500 |
4 |
4 |
28 |
800 |
2 |
4 |
28 |
1000 |
1 |
4 |
28 |
साधारणतया प्रति महीने पंगेसियस 150-160 ग्राम की वृद्धि केज में प्राप्त कर सकता है। हटिया जलाशय रांची में 10 ग्राम औसतन वजन वाले 3000 पंगेसियस मत्स्य अंगुलिकाओं का संचयन प्रत्येक केज में किया गया था। पांच माह में इसका औसतन वजन बढ़कर लगभग 500 ग्राम हो गया। इस तरह प्रति केज यूनिट से कुल उत्पादन 1500 किग्रा है, जिसमें पूरक आहार के रूप में लगभग 1700 किग्रा फ्लोटिंग फीड का उपयोग किया गया है।
क्र. |
देश का नाम |
उत्पादन में हिस्सा (%) |
1 |
चीन |
68.4 |
2 |
वियतनाम |
12.2 |
3 |
इंडोनेशिया |
6.6 |
4 |
फिलिपिन्स |
5.9 |
5 |
रूस |
1.4 |
6 |
टूनेसिया |
1 |
7 |
लाओस |
1 |
8 |
थाईलैंड |
0.76 |
9 |
कम्बोडिया |
0.6 |
10 |
जापान |
0.4 |
स्त्रोत: मत्स्य निदेशालय, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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