सामान्यतः साधारण भारतीय कृषकों को अभी तक स्वीटकॉर्न साधारण मक्का में अंतर का ज्ञान नहीं के बराबर है। वैसे स्वीटकॉर्न व मक्का में मुख्य अंतर स्टार्च संश्लेषण प्रभावित करने वाले जींस का विद्यमान होना है, जिसके कारण स्वीटकॉर्न के दाएं सामान्य मक्का से बहुत मीठे होते हैं तथा इनदानों मने मिठास का अंतर परागण के 18 से 21 दिन बाद तक अधिकतम बना रहता है। उत्तर भारत के मैदानों में किसान अधिकतर मक्का की खेती खरीफ फसल के रूप में करते हैं, जिसकी बुआई जून-जुलाई में की जाती है तथा यह फसल दशहरे या अधिकतम दीपावली त्यौहार तक समाप्त हो जाती है। बिहार राज्य में रबी मक्का को उगाने का कुछ प्रचलन अवश्य है। लेकिन उपयुक्त बाजार न उपलब्ध होने के कारण वहाँ ज्यादा लाभ नही कम पाते हैं लेकिन आज स्वीटकॉर्न की दिल्ली जैसे बड़े शहरों में बढ़ती मांग को देखते हुए यह आवश्यकत हो गया है कि इन शहरों में बढ़ती मांग को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि शहरों में चारों ओर खेती करने वाली किसान शीत ऋतु में स्वीटकॉर्न की खेती करके अधिक लाभ अर्जित करें। शायद सर्दी के मौसम की मक्का या स्वीटकॉर्न की विषय में किसानों कि एक धारणा यह है कि इस मौसम में इसमें दाने नहीं नहीं बनते या कम बनते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। उत्तर भारत के मैदानों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। दूसरी तरफ यह भी एक धारणा है कि मक्का या स्वीटकॉर्न को बहुत अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।इस फसल को ड्रिप सिंचाई प्रणाली द्वारा सफलतापूर्वक उगाकर सतही सिंचाई प्रणाली के मुकाबले अधिक उपज ली जा सकती है। इन्ही सभी धारणाओं व तथ्यों को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसधान, नई दिल्ली स्थित भारत-इजरायल पर वर्ष 2003-2004 के रबी मौसम के दौरान स्वीटकॉर्न फसल को ड्रिप उर्वरक सिंचाई प्रणाली द्वारा उगाकर इसकी सर्दी फसल के रूप में उपज व आर्थिक ब्यौरा की जाँच की गई।
स्वीटकॉर्न की अधिक मिठास वाली किस्मों में माधुरी, प्रिय, अल्मोड़ा- स्वीटकॉर्न, शुगर-74, स्वीटपर्ल, गोल्डन हनी आदि प्रमुख हैं। इन किस्मों में बुआई के लगभग 80 से 100 दिन बाद भुट्टे तोड़ने योग्य हो जाते हैं। इन किस्मों में मिठास 25-30% तक विद्यमान होती है तथा ये अधिक उपज देने वाली किस्में हैं।
रबी स्वीटकॉर्न (किस्म शुगर-74,) की बुआई सिंतबर के प्रथम सप्ताह में की गई। बुआई हेतु पहले ट्रैक्टर रोटावेटर द्वारा जमीन से 6-8 सें.मी. उठी हुई क्यारियां तैयार की गयी तथा इन क्यारियां पर दो ड्रिप लाइन फैलाई गयी जिनकी एक दूसरे से 60 से.मी. दूरी रखी गयी। अब स्वीटकॉर्न के बीजों की बुआई 30 सें.मी. पर की गई। ड्रिप सिंचाई प्रणाली हेतु 20:25:30 आकार (20 सें.मी. पाइप का व्यास, २ लीटर प्रति घंटा पानी छोड़ने की क्षमता तथा 30 से.मी.एक ड्रिपर से दूसरे ड्रिपर अंतराल) के पाइपों को प्रयोग में लिया गया। शत प्रतिशत पानी में घुलनशील (100% पानी में घुलनशील) उर्वरकों जैसे-पोटेशियम नाइट्रेट, अमोनियम नाइट्रेट व फास्फोंरिक अम्ल को स्टाक घोल बनाने हेतु प्रयोग में लिया गया त्तथा इनको 5:3:5 (नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश) के अनुपात में घोलकर स्टाक घोल बनाया गया।
अब इस स्टाक घोल में से आवश्यकतानुसार उर्वरकों का घोल सिंचाई जल में मिलाकर ड्रिप सिंचाई प्रणाली द्वारा दिया गया, जिसे फर्टिगेशन कहते है। सितंबर, अक्तूबर व नबम्बर में जल एवं उर्वरकों का घोल, सप्ताह में एक बार ही दिया गया। सिंचाई हेतु 300-400 लीटर जल प्रति 10000 वर्ग मीटर क्षेत्र के हिसाब से दिया गया तथा इसमें २ से 3 लीटर (5:3:5 स्टाक घोल) उर्वरक घोल को प्रति 100 लीटर के हिसाब से जल में मिलाकर दिया गया।
स्वीटकॉर्न में खरपतवार व कीट नियंत्रण हेतु खुरपी द्वारा दो निकाई-गुडाई की गयी। पहली बुआई के 30 दिन बाद तथा दूसरी निकाई-गुडाई के लगभग 50 दिन बाद की गयी। कीट नियंत्रण हेतु इंडोसल्फान नामक कीटनाशी का एक छिड़काव बुआई के 40 से 45 दिन बाद करना लाभदायक रहता है।
आमतौर पर परागण के 18 से 21 दिन बाद भुट्टे तोड़ने योग्य हो जाते हैं
ड्रिप सिंचाई प्रणाली के अंतर्गत शीत ऋतु स्वीटकॉर्न (किस्म शुगर-74,) की खेती का वर्ष 2003 -2004 में आर्थिक विश्लेषण
क्रियाएँ |
इकाइयां |
लागत (रूपये/हेक्टेयर) |
मशीनी कार्य पर लागत |
230 रूपये/घंटा |
500.00 |
मोल्ड बोर्ड हल |
15 रूपये/घंटा |
300.00 |
पैरा हल |
20 रूपये/घंटा |
350.00 |
डिस्क हैरो |
20 रूपये/घंटा |
250.00 |
रोटावेटर |
60 रूपये/घंटा |
450.00 |
विभिन्न कृषि कार्यों में लागत |
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मजदूर (सभी क्रियाओं के लिए |
100 रूपये/व्यक्ति/दिन |
8000.00 |
उर्वरक एवं रसायन |
एन.पी. के. व कीटनाशी |
5000.00 |
बीज |
5 किग्रा. (200 रूपये प्रति किग्रा.) |
1000.00 |
सिंचाई/फर्टिगेशन नियत्रक इकाई |
17230.00 रूपये/हेक्टेयर/वर्ष |
81615.00 |
उत्पादन की कुल लागत |
|
24465.00 |
उत्पादन लागत-लाभ |
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कुल आय |
|
110000.00 |
शुद्ध लाभ (कुल आय- उत्पादन लागत) |
|
85535.00 |
लागत लाभ अनुपात |
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1;4:49 किग्रा. प्रति हेक्टेयर |
कुल उत्पादन टन |
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110.00 किग्रा. प्रति हेक्टेयर |
प्रति इकाई उत्पादन लागत |
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1.11 रुपये प्रति किग्रा. |
खुदरा बिक्री मूल्य |
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10 रुपये प्रति किग्रा. |
भुट्टों को कच्ची अवस्था में तोड़ा जाए, जब उनमें दाने को दबाने पर मीठा सफेद दूध निकले। उसके बाद भुट्टों में मिठास लगातार कम होना शुरू हो जाती है। फसल में भुट्टों की तुड़ाई दिसबर के प्रथम सप्ताह में शुरू की गयी जो जनवरी के प्रथम सप्ताह तक जारी रही। कुल मिलाकर 110 किवंटल अच्छी गुणवत्ता वाले भुट्टे प्रति हेक्टेयर की दर से प्राप्त किये गये। इन्हें उच्च व स्थानीय बाजार में छिलके सहित 10 प्रति किलो ग्राम के हिसाब से बेचा गया।
सर्दी के मौसम की स्वीटकॉर्न फसल का आर्थिक विश्लेषण कौया गया तथा कुल 85,535.00 रूपये प्रति हेक्क्तेयर की दर से शुद्ध लाभ अर्जित किया गया तथा 1:4:9 फसल लागत: लाभ अनुपात प्राप्त किया गया जो दूसरी सब्जी यह अन्य धान्य फसलों के मुकाबले कहीं अधिक है।
बड़े शहरों जैसे दिल्ली व अन्य शहरों जैसे जयपुर, चंडीगढ़, लखनऊ आदि में स्वीटकॉर्न की लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए भारत के मैदान में शहरों के चरों ओर खेती करने वाली किसान सर्दी के मौसम में स्वीटकॉर्न की सफलतापूर्वक खेती कर सकते है। लेकिन इसके लिए किसान इसकी बुआई सितम्बर या मध्य अक्टूबर तक अवश्य कर दें अन्यथा कम तापमान पर बीज अंकुरण में समस्या हो सकती है। सितम्बर माह वाली फसल दिसबर व जनवरी में तुड़ाई योग्य हो जाती है। यही नहीं इस फसल को ड्रिप सिंचाई पद्धति द्वारा उगाकर किसान 30-40% तक सिंचाई जल व इतनी ही मात्रा में उर्वरक भी बचा सकते हैं। ड्रिप सिंचाई प्रणाली द्वारा सतही सिंचाई के मुकाबले अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। बड़े शहरों के चारों ओर खेती करने वाले किसानों के लिए आने वाले वर्षों में स्वीटकॉर्न एक अधिक लाभदायक फसल सिद्ध हो सकती है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : समेति, कृषि एवं गन्ना विकास विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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