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खेती हेतु जलवायु और मिट्टी

हल्दी (कुरकुमा लोंगा) (कुल:जिंजिबिरेसिया) को धार्मिक कार्यों के अतिरिक्त मसाला, रंग सामग्री, औषधि तथा उबटन के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है। आंध्रप्रदेश, केरल, तमिलनाडू, उड़ीसा कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मेघालय, महाराष्ट्र, असम आदि हल्दी उत्पादित करने वाले प्रमुख राज्य हैं। इनमें से आंध्रप्रदेश प्रमुख राज्य हैं। यहां कुल क्षेत्रफल का 38 से 58.5% हल्दी उत्पादित होती है।वर्ष 2010-11 में देश में 195 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल से 992.9 हजार टन हल्दी उत्पादित हुई।

जलवायु और मिट्टी

हल्दी की खेती समुद्र तट से 1500 मीटर तक ऊंचाई वाले विभिन्न ट्रोपिकल क्षेत्रों में की जाती हैं। सिंचाई आधारित खेती करते समय वहां का तापमान 20-350 से. और वार्षिक वर्षा 1500 मि० मीटर या अधिक होनी चाहिए। इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी जैसे रेतीली, मटियार,दुमट मिट्टी में की जाती हैं। जिसका पी.एच. मान 4.5-7.5 होना चाहिए।

प्रजातियाँ

देश के विभिन्न भागों में हल्दी की खेती करने वाले क्षेत्रों में स्थानीय कल्टीवर्स होते हैं जो स्थानीय नामों से जाने जाते हैं उनमें से कुछ लोकप्रिय कलटीर्स जैसे दुग्गिराल, तेक्कुरपेट, सुगंधम, अमलापुरम,स्थानीय इरोड,आल्प्पी,मुवाट्टूपूषा,लाकडान्गा आदि हैं। हल्दी की उन्नत प्रजातियाँ तथा उनके विशिष्ट गुण तालिका 1 में दिए गये हैं।

खेती योग्य भूमि

मानसून की पहली वर्षा होते ही भूमि को तैयार किया जाता है खेत को फसल योग्य बनाने के लिए भूमि को चार बार गहराई से जोतना चाहिए। दुमट मिट्टी में 500 कि ग्राम/हेक्टेयर की दर से चूने के पानी का घोल डाल कर अच्छी तरह जुताई करना चाहिए।मानसून के पूर्व वर्षा होते ही तुरन्त लगभग एक मीटर चौड़ी 15 से. मीटर ऊँची सुविधानुसार लंबी बेड को तैयार कर लेते हैं ।इन बेडों के आपस में एक दूसरे से बीच की दूरी 50 से. के बीच होनी चाहिए।

उन्नत प्रजातियां एवं उनके विशिष्ट गुण

तालिका 1: हल्दी की उन्नत प्रजातियां एवं उनके विशिष्ट गुण

क्र.

सं.

प्रजातिया

फ्रेश उपज

(टन /हेक्टेयर ) (दिन )

फसल अवधि

शुष्कउपाज (%)

कुरकुमिन

(%)

ओलिओरसिन

(%)

एसनशियल ओयल

(%)

1.

सुवर्णा

17.4

200

20.0

4.3

13.5

7.0

2.

सुगुणा

29.3

190

12.0

7.3

13.5

6.0

3.

सुदर्शना

28.8

190

12.0

5.3

15.0

7.0

4.

आई आई एस आर प्रभा

37.5

195

19.5

6.5

15.0

6.5

5.

आई आई एस आर प्रतिभा

39.1

188

18.5

6.2

16.2

6.2

6.

सी ओ -1

30.0

285

19.5

3.2

6.7

3.2

7.

बीएसआर -1

30.7

285

20.5

4.2

4.0

3.7

8.

कृष्णा

9.2

240

16.4

2.8

3.8

2.0

9.

सुगंधम

15.0

210

23.3

3.1

11.0

2.7

10.

रोमा

20.7

250

31.0

9.3

13.2

4.2

11.

सुरोमा

20.0

255

26.0

9.3

13.1

4.4

12.

रंगा

29.0

250

24.8

6.3

13.5

4.4

13.

रश्मी

31.3

240

23.0

6.4

13.4

4.4

14.

राजेन्द्र सोनिया

42.0

255

18.0

8.4

-

5.0

15.

आई आई एस आर आल्प्पी सुप्रीम

35.4

210

19.3

16.0

16.0

4.0

16.

आई आई एस आर

34.5

210

18.9

5.5

13.6

3.0

रोपण सामग्री का स्रोत

क्रम संख्या.1,2,3,4,5,15और 16: आई.आई.एस आर प्रायोगिक क्षेत्र, पेरुवन्नामुषि -673 528 कोझिक्कोड (केरल)

क्रम संख्या.6और7: मसाला एवं रोपण फसल विभाग, बागवानी सनके, तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर -641 003 (तमिलनाडु )

क्रम संख्या8 : महाराष्ट्रा कृषि विश्वविधायालय, कसबा दिगराज – 416 305 (महाराष्ट्र)

क्रम संख्या9: मसाला अनुसन्धान क्षेत्र, गुजरात कृषि विश्वविधायालय, जगुदान -382 701 (गुजरात)

क्रम संख्या10,11,12 और 13 : उच्च तुंगता अनुसन्धान क्षेत्र, उड़ीसा कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय पोट्टान्गी – 764 039 (उड़ीसा)

क्रम संख्या14 : बागवानी विभाग, तिरहुत कृषि विश्वविधायालय, राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय धोली -843 121 (बिहार)

बुआई

केरल और अन्य पश्चिम तटवाले क्षेत्रों में जहाँ वर्षा मानसून से पहले होती है उन क्षेत्रों में अप्रैल और मई में मानसून के पूर्व वर्षा होते ही इस फसल की बुआई की जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में इस की क्यारियों तथा मेंढ़ बना कर भी करते हैं।

बीज

अच्छी तरह विकसित और रोग रहित सम्पूर्ण या प्रकन्द के टुकड़े को बुआई के लिए उपयोग करते हैं। बेडों में 25 से.मीटरx30 से. मीटर के अंतराल पर हाथ से खोदकर छोटे गढ्डे बनाए जाते हैं। इन गढ्डों में अच्छी तरह अपघटित गोबर की खाद या कम्पोस्ट भरकर उसमें बीज प्रकन्द को रखकर ऊपर से मिट्टी डाल देते हैं। जबकि बेडो में बुआई पंक्तियों में करना चाहिए। इन पंक्तियों में एक दूसरे के बीच की दूरी 45-60 से. मीटर तथा पौधे के बीच की दूरी 25 से. मीटर रखना चाहिए। हल्दी की बुआई करने के लिए 2,500 कि. ग्राम हेक्टेयर प्रकन्द बीच की आवश्यकता है।

खाद एवं उर्वरक

खेती के लिए तैयार करते समय उसमें खाद (एफ.वाई.एम) या कम्पोस्ट 30-40 टन/हेक्टेयर की दर से बेडों पर बिखेर कर तथा छोटे गढ्डे करके उस में भर देते हैं। उर्वरक जैसे नाइट्रोजन (60 कि. ग्राम) पी2ओ5 (50 कि.ग्राम) तथा के2 ओ (120 कि. ग्राम) प्रति हेक्टेयर की दर से अपघटित मात्रा में डालना चाहिए (तालिका 2)।जबकि बुआई के समय 2 कि. ग्राम /हेक्टेयर की दर से जिंक और जैविक खाद जैसे ओयल केक 2 टन/ हेक्टेयर की दर से जिंक और जैविक खाद जैसे ओयल केक 2 टन / हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए ।अगर जिंक और ओर्गानिक खाद का उपयोग कर रहे हैं तो खाद (एफ.वाई.एम) की मात्रा कम देना चाहिए ।कोयर कम्पोस्ट 2.5 टन/हेक्टेयर की दर से खाद जैव उर्वरक (अजोस्पिरिल्लम ) तथा एन.पी.के की संस्तुत मात्रा की आधी मात्रा के साथ मिलाकर भी डाल सकते हैं।

बुआई

केरल और अन्य पश्चिम तटवाले क्षेत्रों में जहाँ वर्षा मानसून से पहले होती है उन क्षेत्रों में अप्रैल और मई में मानसून के पूर्व वर्षा होते ही इस फसल की बुआई की जाती हैं ।कुछ क्षेत्रों में इस की क्यारियों तथा मेंढ़ बना कर भी करते है।

बुआई

केरल और अन्य पश्चिम तटवाले क्षेत्रों में जहाँ वर्षा मानसून से पहले होती है उन क्षेत्रों में अप्रैल और मई में मानसून के पूर्व वर्षा होते ही इस फसल की बुआई की जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में इस की क्यारियों तथा मेंढ़ बना कर भी करते हैं।

बुआई

केरल और अन्य पश्चिम तटवाले क्षेत्रों में जहाँ वर्षा मानसून से पहले होती है उन क्षेत्रों में अप्रैल और मई में मानसून के पूर्व वर्षा होते ही इस फसल की बुआई की जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में इसकी क्यारियां तथा मेंढ़ बना कर भी करते है।

हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त उर्वरक

तालिका 2: हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त उर्वरकों का विवरण (प्रति हेक्टेयर)

समय

नाइट्रोजन

पी 2 5

के 2

कम्पोस्ट/गोबर

आधारीय

-

50 कि ग्राम

60 कि ग्राम

30-40 टन

40 दिनों के बाद

30 कि.ग्राम

-

-

-

90 दिनों के बाद

30 कि.ग्राम

-

60 कि ग्राम

-

झपनी

पौधों को तेज धूप से बचाने के लिए तथा मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए बुआई के तुरन्त बाद 12-15 टन/हेक्टेयर की दर से बेडो को हरे पत्तों से ढकना चाहिए। बुआई के 40 और 90 दिन बाद घासपात निकलने और उर्वरक डालने के बाद 7.5 टन/हेक्टेयर की दर से दोबारा हरे पाटों से झपनी करनी चाहिए।

घासपात एवं सिंचाई

घासपात के घनत्व के अनुसार बुआई के 60,90 और 120 दिनों के बाद तीन बार घासपात निकालना चाहिए। फसल की सिंचाई उस क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार होती है। फसल काल में लगभग 15-23 बार चिकनी मिट्टी तथा 40 बालुई दुमट मिट्टी में सिंचाई करना चाहिए।

मिश्रित एवं अंत: फसल

हल्दी की नारियल और सुपारी के साथ अंत: फसल के रूप में खेती की जा सकती है। इसकी मिर्च, कोलोकेसिया, प्याज, बैगन और अनाज जैसे मक्का तथा रागी आदि के साथ भी मिश्रित फसल के रूप में खेती की जा सकती है।

झपनी

पौधों को तेज धुप से बचाने के लिए तथा मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए बुआई के तुरन्त बाद 12-15 टन/हेक्टेयर की दर से बडो को हरे पत्तों से ढकना चाहिए ।बुआई के 40 और 90 दिन बाद घासपात निकलने और उर्वरक डालने के बाद 7.5 टन/हेक्टेयर की दर से दोबारा हरे पाटों से झपनी करनी चाहिए।

स्त्रोत:भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान(भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) कोझीकोड,केरल

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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