पौधों की अपनी वृद्धि एवं विकास के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। यह पोषक तत्व पौधों को हवा, जल एवं मिट्टी से प्राप्त होता है। किन्तु पौधों के लिए आवश्यक प्रमुख पोषक तत्व मिट्टी से ही प्राप्त होता है। अगर मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी रहती है तो पौधों को इसकी पूर्ति बाहर से उर्वरक एवं जीवाणु खादों द्वारा की जाती है।
अब प्रश्न उठता है कि कितना पोषक तत्व पौधों के लिए मिट्टी में प्रयोग किया जाय। विभिन्न मिट्टियों में पोषक तत्वों की आवश्यकता भिन्न-भिन्न होती है। अत: किसी भी खेत में फसल लेने के पूर्व उपलब्ध पोषक तत्वों की जानकारी के लिए मिट्टी की जाँच उतनी ही आवश्यक है जितना कि किसी रोगी के इलाज के पहले उसकी डाक्टरी जाँच।
बिना मिट्टी जाँच कराये खेतों में उर्वरकों के प्रयोग से हमेशा इस बात की आशंका बनी रहती है कि मिट्टी में जिस तत्व की आवश्यकता नहीं हैं उसे हम अधिक मात्रा में दिए जा रहे हैं और जिन तत्वों की कमी है उन्हें पूरा ही नहीं कर पा रहे है। फलत: मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी हो जाती है और मिट्टी उपजाऊ न होकर किसानों के लिए समस्या खड़ी कर देती है। अत: मिट्टी जाँच के आधार पर ही फसलों में संतुलित उर्वरक का व्यवहार करना चाहिए।
मिट्टी जाँच के लिए पहला काम है उचित तरीके से मिट्टी का सही एवं प्रतिनिधि नमूना लेना, तभी मिट्टी जाँच वास्तव में लाभकारी सिद्ध हो सकती है।
मिट्टी में निम्नलिखित तत्वों की उपलब्धता/स्थिति के स्तर की जाँच की जाती है –
मिट्टी की अम्लीयता एवं क्षारीयता की माप पी.एच. मान द्वारा होती है। विभिन्न फसलों के लिए उपयुक्त पी.एच. अलग-अलग होते हैं। साथ ही विभिन्न खादों के उपयोग भी पी.एच. मान पर निर्भर करता है। अगर मिट्टी बहुत ही क्षारीय या अम्लीय हो तो पौधे आसानी से अपना भोजन नहीं ग्रहण कर सकते हैं तथा उर्वरक व्यवहार से पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। जब मिट्टी बहुत ही अम्लीय हो तब चूना डाला जाता है और जब बहुत ही क्षारीय हो तब जिप्सस या पाइराइट का प्रयोग किया जाता है। झारखंड के पठारी क्षेत्र में क्षारीय मिट्टी बहुत ही कम पाई जाती है।
मिट्टी में विद्यमान जैविक पदार्थ मिट्टी में नाइट्रोजन की उपलब्धता को बताता है। जैविक पदार्थ मात्रा में उपलब्ध रहने पर मिट्टी के गठन पर भी उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है एवं मिट्टी में जलधारण एवं पोषक तत्व धारण करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। मिट्टी में जैविक कार्बन की कमी रहने पर कम्पोस्ट देकर उसकी पूर्ति की जाती है एवं नाइट्रोजन की कमी के पूर्ति के लिए नेत्रजनीय उर्वरक डालते है।
मिट्टी में अगर फास्फोरस की कमी है तो उसकी पूर्ति उर्वरक द्वारा अवश्य करनी चाहिए अन्यथा उसका फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं। भारत की प्राय: सभी मिट्टियों में फास्फोरस की कमी पाई गई है।
पोटाश की भी उचित मात्रा मिट्टी में रहनी चाहिए, नहीं तो इसका भी प्रतिकूल प्रभाव ऊपज पर पड़ता है।
पोषक तत्व एवं अन्य निर्धारित मान |
उर्वरता की स्थिति |
||||
बहुत कम |
कम |
मध्यम |
मध्यम अधिक |
अधिक |
|
जैविक कार्बन (प्रतिशत) |
0.20 तक |
0.21-0.40 |
0.41-0.60 |
0.61-0.81 |
0.80 से अधिक |
उपलब्ध नाइट्रोजन (कि.ग्रा./हें.) |
140 तक |
141-280 |
281-420 |
421-560 |
560 से अधिक |
उपलब्ध स्फूर (कि.ग्रा./हें.) |
22 तक |
23-40 |
41-70 |
71-90 |
90 से अधिक |
उपलब्ध पोटाश (कि.ग्रा./हें.) |
56 तक |
57-112 |
113-200 |
201-280 |
280 से अधिक |
पी.एच. का मान 5.5 से कम – अम्लीय समस्या ग्रस्त
पी.एच. मान 6.0 से कम – अम्लीय
पी.एच. मान 6.5 से 7.5 तक – सामान्य
पी.एच. मान 7.5 से 8.5 तक – लवणीय
पी.एच. मान 8.5 से अधिक – क्षारीय
उपर्युक्त मुख्य पोषक तत्वों के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे – जस्ता, लौह, मैंगनीज,बोरॉन, मोलिब्डेनम, ताँबा, क्लोरीन तथा गौण पोषक तत्व जैसे – गंधक (सल्फर) इत्यादि की भी जाँच प्रयोगशाला में करानी चाहिए एवं उसके बाद ही इन पोषक तत्वों की सही मात्रा का निर्धारण करना चाहिए।
अत: मिट्टी जाँच के आधार पर अनुशंषित जैविक खाद, जीवाणु खाद एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से एक तत्व दूसरे तत्व की उपलब्धता बढ़ाते हैं। साथ ही साथ कम से कम उर्वरकों द्वारा अधिकाधिक उपज मिलती है एवं मिट्टी की भौतिक दशा में भी सुधार होता है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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