जीवन सुनिश्चित पृष्ठभूमि के साथ प्रारंभ होता है। गर्भाधान के क्षण से ही बच्चा किसी सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक संदर्भ का अंश हो जाता है। हर देश की अपनी संस्कृति, परम्पराएँ सीमाएं एवं जीवन शैलियाँ होती हैं जिनमें वह (शिशु) जन्म लेता है और विकसित होता है। परिवारिक समस्याएँ, चिंताएँ, बाधाएँ, वंचनाएँ, समृद्धि, स्वास्थ्य एवं बीमारियाँ इत्यादि शिशु पर जन्म के बाद ही नहीं, अपितु उसके गर्भकालीन विकास में भी प्रभाव डालती हैं।
गर्भधारण के प्रति गर्भवती महिला की अभिवृति किस प्रकार की है, उससे उसका स्वस्थ्य देख- रेख प्रभावित होता है। माँ द्वारा पोषणयुक्त भोजन एवं स्वास्थ्य संबंधी सलाह का प्रयोग उसके सांस्कृतिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि से प्रभावित होता है। साथ ही पारिवारिक आचार- विचार परम्पराओं, अंधविश्वासों एवं माँ की उदसीनता आदि का भी प्रभाव गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य देख-रेख एवं तत्सम्बन्धी व्यवहार पर पड़ता है।
परिवार प्रत्याशित शिशु - जन्म के साथ समायोजन हेतु तत्पर होता है परन्तु कभी- कभी प्रतिबल, पारिवारिक संदर्भों को प्रभावित करते हैं तो कभी माँ की पोषण संबंधी स्थिति अथवा संवेगिक दशा को।विविध समस्याओं से जूझ रहे पति- पत्नी के लिए शिशु – जन्म प्रत्याशा बोझ के रूप में प्रतीत होती है।जो नव- दम्पति गर्भधारण के लिए सहमत नहीं हैं अथवा कम आयु की एकाकी (अलग, तलाकशुदा) माँ के लिए भी गर्भवस्था शिशु बोझ लगने लगता है।ये परिस्थितियाँ गर्भस्थ शिशु के विकास पर प्रभाव डालती है।दूसरी ओर शिशु की इच्छा रखने वाले देख- रेख के प्रति सजग व्यवहार के लिए तत्पर करती है।इसका गर्भस्थ शिशु के विकास पर धनात्मक प्रभाव पड़ता है।गर्भकालीन परिपक्वता अत्यंत नियंत्रित परिवेश (माँ के गर्भ) में, क्रमबद्ध रीति से सम्पन्न होती है।फिर भी इस चरण में परिपक्वता के अतिरिक्त परिवेशीय कारक विकास प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।अथार्त गर्भकालीन विकास परिपक्वता के साथ – साथ परिवेशीय कोरकों द्वारा भी संवर्द्धित होता है ।इन कारकों का विवरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है गर्भाधान के क्षण से ही विकास की प्रक्रिया शुरू हो जाती है ।एक गर्भित कोशिका जो डिम्ब एवं शुक्राणु के सम्मिलन से निर्मित होती है , उसमें समस्त अनुवांशिक सूचनाएं कूट संकेतित रहती हैं जिससे कुछ समयांतराल के पश्चात एक पूर्ण मानव (जीव) का निर्माण होता है |
स्त्रोत: ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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