भारत में एपिडेमियोलॉजिस्ट बनने के लिए एमबीबीएस की डिग्री जरूरी है। यह प्रिवेंटिव मेडिसिन में विशेषज्ञता दिला सकती है। अब तो कई सरकारी और निजी संस्थानों में प्रशिक्षित एपिडेमियोलॉजी के लिए पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स भी ऑफर होने लगे हैं। आइए जानें इस क्षेत्र के बारे में विस्तार से।
बीमारी का प्रकोप सिर्फ तब तक रहस्य रहता है, जब तक उसे एपिडेमियोलॉजी इंटेजीजेंस (इआइ) की मदद से हल न कर लिया जाये। दरअसल, एपिडेमियोलॉजी मेडिकल और उससे जुड़ी जानलेवा बीमारियों के बारे में पता लगाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र होता है। यह क्षेत्र मनुष्यों में होनेवाली गंभीर और जानलेवा रोगों का विेषण करने और इसके संभावित पैटर्न और निर्धारण को परिभाषित करने से संबंधित होता है। एपिडेमियोलॉजिस्ट मेडिकल साइंटिस्ट होते हैं, जो किसी भी बीमारी के कारण की छानबीन करते हैं। ये बीमारी की रोकथाम और नियंत्रण के साधन व उपाय तो करते ही हैं, साथ ही नयी संक्रामक बीमारियों- जैसे जीव आतंकवाद आदि से संबंधित- के बढ़ने और आशंकाओं की भी छानबीन करते हैं।
एपिडेमियोलॉजिस्ट शोध या क्लीनिकल परिस्थितियों पर फोकस करते हैं। रिसर्च एपिडेमियोलॉजिस्ट का मुख्य कार्य होता है स्टडी आयोजित कर यह निर्धारित करना कि कैसे संक्रामक बीमारियों को नियंत्रित कर उसे खत्म किया जाये। ये कई तरह की बीमारियों के बारे में अध्ययन करते हैं। जैसे- टीबी, इन्फ्लूएंजा, कालरा। साथ ही कई तरह की महामारियों पर भी फोकस करते हैं। रिसर्च एपिडेमियोलॉजिस्ट कॉलेज और यूनिवर्सिटी, पब्लिक हेल्थ स्कूल, मेडिकल स्कूल, रिसर्च और डेवलपमेंट सर्विसेस फर्म्स में कार्य करते हैं। भारत में कई गंभीर बीमारियों का प्रकोप अब भी अनसुलझा हुआ है, जिसकी बड़ी वजह है- इआइ की कमी। एन्सेफेलाइटिस, डेंगू, हैमोरेजिक फीवर और लैप्टोसपाइलॉसिस बहुत जल्द-जल्द होते हैं, पर पब्लिक अथॉरिटीज इसकी रोकथाम में असफल हो जाती हैं। ऐसा सिर्फ एपिडेमियोलॉजिस्ट के कारण ही सफल हुआ है कि स्मॉल पॉक्स, पोलियो को रोकने, लंग कैंसर व स्मोकिंग के बीच लिंक स्थापित करने में सफलता मिली है।
एमिडेमियोलॉजिस्ट बनने के लिए आपके पास पब्लिक हेल्थ में कम से कम मास्टर्स डिग्री होनी चाहिए। किसी-किसी केस में आपके कार्य के चुनाव पर पीएचडी या मेडिकल डिग्री जरूरी पड़ती है। हॉस्पिटल और हेल्थकेयर सेंटर में कार्य करनेवाले क्लीनिकल या रिसर्च एपिडेमियोलॉजिस्ट के लिए संक्रामक बीमारियों में प्रशिक्षण के साथ मेडिकल डिग्री अनिवार्य है। यदि आप क्लीनिकल ट्रायल्स में ड्रग्स प्रबंधन की जिम्मेवारी संभालते हैं, तो आपके पास फिजीशियन का लाइसेंस भी होना चाहिए, यानी आपको लाइसेंसिंग एग्जामिनेशन भी पास किया होना चाहिए।
इसमें पढ़ाई करनेवाले युवाओं को सरकारी एजेंसियों में कार्य करने का मौका मिल सकता है। साथ ही एकेडमिक संस्थानों, प्राइवेट इंडस्ट्री और हॉस्पिटल में भी नौकरी का मौका मिल सकता है। रिसर्च फैकल्टी के तौर पर भी संस्थानों से जुड़ सकते हैं। इसमें अनुभव हासिल कर एपिडेमियोलॉजी विभागों के सुपरवाइजर या रिसर्च फैकल्टी के डायरेक्टर का पद भी संभाल सकते हैं। इस क्षेत्र में संभावनाएं ज्यादा प्रातिस्पर्धात्मक है, क्योंकि मौजूदा पदों की संख्या सीमित है। फिर भी हॉस्पिटल और हेल्थकेयर सेंटर में कुछ नये पद को शामिल किया जा रहा है। कॉलेज, यूनिवर्सिटी, पब्लिक हेल्थ स्कूल, मेडिकल स्कूल, रिसर्च और डेवलवमेंट सर्विस फर्म में भी काम कर सकते हैं। एनजीओ, रिसर्च इंस्टीट्यूट, यूनिवर्सिटी, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूशन जैसे वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन, यूनिसेफ के साथ भी कार्य कर सकते हैं।
इस क्षेत्र में कमाई आपके कार्यानुभव और शैक्षिक योग्यता पर निर्भर करती है। साथ ही, इसमें मेडिकल इंश्योरेंस, पेड वेकेशन, रिटायरमेंट प्लान्स और कई अलाउएंसेस भी मिलते हैं।
स्त्रोत: दैनिक समाचारपत्र
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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