অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

धीमी मौत है जहरीला पेयजल

वैश्विक स्थिति

आज दुनिया की एक अरब से अधिक आबादी को साफ पानी पीने को अवसर नहीं है जबकि इसकी 40 फीसदी जनसंख्या को शौचालय की मूलभूत सुविधा नहीं है, जिससे विकासशील देशों में बीमारी और गरीबी के जहरीले जाल को बल मिल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 1.1 अरब लोगों में से दो तिहाई अपने पीने के लिये पानी असुरक्षित नदियों, तालाबों और स्रोतों से लेते हैं और यह आबादी एशिया की है। इसमें कहा गया कि चीन में सुरक्षित पानी के बिना रहना वाले लोगों की संख्या अफ्रीकी महाद्वीप के लोगों के बराबर है यानी कि करीब 30 करोड़ लोग साफ पेयजल से वंचित हैं। दुनिया की कुल आबादी के आधे ही लोगों को अपने घरों में सीधे पाइप से पानी मिलता है। गरीब और दूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को साफ सफाई की सुविधा बहुत कम है।

गांव और छोटे शहरों की बात छोड़ दे जरा देश की राजधानी के कुतबगढ़ इलाके में रहने वाले अजय गुलटी को लगातार हड्डियों में दर्द रहता है। उनकी 28 साल की पत्नी के दांत पीले हो चुके हैं और कमजोर होकर टूटने लगे हैं। आठ साल की बेटी के पेट में अक्सर दर्द रहता है और पीले दांतों की वजह से स्कूल के बच्चे चिढ़ाते हैं। पांच साल के बेटे के एक पैर की हड्डी गलती जा रही है। पूरे परिवार को स्किन संबंधी बीमारियां हैं। अजय गुलटी का परिवार तो केवल एक उदाहरण है। इस पूरे इलाके के परिवारों की हालत कुछ ऐसी ही है। वास्तव में सच तो यह है कि राजधानी के कंझावला, नजफगढ़, अलीपुर, ढांसा, रौंटा, औचंदी, जौंती, टिकरीकलां और रिठाला आदि के ज्यादातर गांवों में रहने वाले लोगों के लिये दिक्कतें सामान्य बात हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि फ्लोराइड और नाइट्रेट वाले ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल करने से इस तरह की दिक्कतें आती हैं। हाल ही में आईडूयू की एक रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है। इन शहरीकृत गांवों में इस्तेमाल होने वाले पानी की जांच में पाया गया कि इसमें फ्लोराइड और नाइट्रेट की मात्रा वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन के मानकों की तुलना में कई गुना ज्यादा है। ये लक्षण फ्लोरोसिस नामक बीमारी के हैं, जिसमें लोगों के दांत और हड्डियाँ कमजोर हो जाती है।

राजधानी स्थिति

दिल्ली सरकार के हेल्थ डिपार्टमेंट में फ्लूरोसिस के मामले लगातार दर्ज होते रहते हैं। विभाग के फ्लूरोसिस सेक्शन के इंचार्ज डा.के.एस. बगोटिया भी फ्लूरोसिस की बढ़ती समस्या के लिए प्रदूषित पानी को जिम्मेदर मानते हैं। वह कहते हैं कि डेंटल फ्लूरोसिस आम हो गया है। हमें सबसे ज्यादा चिंता स्केलेटन फ्लूरोसिस की है, क्योंकि इससे मरीज अपंगता का शिकार हो जाता है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या है ब्लू बेवी सिंड्रोम। इस बीमारी से बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन की चाल पर असर पड़ता है, जिसकी वजह से सारे महत्वपूर्ण अंग प्रभावित हो जाते हैं, समय पर इलाज न होने पर स्थिति जानलेवा हो जाती है। डाक्टरों के मुताबिक इसकी वजह पीने के पानी में नाइट्रेट की मात्रा ज्यादा होना है। डीयू में भूगोल के प्रोफेसर नवल प्रसाद सिंह कहते हैं कि इलाके में चल रहे ईंट बनाने के अवैध भट्टे यहां नाइट्रेट प्रदूषण बढ़ाने के लिये सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। इनकी चिमनियों से निकलने वाला प्रदूषण ग्राउंड वॉटर को प्रदूषित कर रहा है। इलाके के गांवों में रहने वाले लोग ग्राउंड वॉटर पर निर्भर है। प्रशासन के तमाम वादों के बावजूद इलाके में अब तक साफ पानी की सप्लाई शुरू नहीं हो पायी हैं। हां, कुछ लोगों के पास जल बोर्ड बिल जरूर भेज देता है।

साफ पानी एक सपना

पूरी दुनिया में शौचालयों के बिना रहने वाले ऐसे लोगों की संख्या 2 अरब है और सिर्फ 56 करोड़ ऐसे लोग शहरों में रहते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार बिना शौचालय के रहने वाले लोगों की आधी संख्या यानी करीब डेढ़ अरब चीन और भारत में रहते हैं तथा उप सहारा अफ्रीका में ऐसी सुविधाएं सिर्फ 36 प्रतिशत लोगों को उपलब्ध हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि गंदे पानी और घटिया पोषण का विकासशील दुनिया में स्वास्थ्य उत्पादकता और शिक्षा पर भंयकर असर पड़ता है। यूनीसेफ के अनुसार यह मौन आपातकाल करीब 4000 बच्चों का जीवन हर दिन लेता है और जल जनित कारणों से डायरिया हर साल 18 लाख लोगों की मौत का कारण बनता है। रिपोर्ट में आंकलन किया गया है कि 40 अरब काम के घंटे अफ्रीका में पानी हासिल करने में बर्बाद होते हैं और शौचालयों के अभाव में कई बच्चे स्कूलों में नहीं जाते। अपने यहां पानी के विवाद अक्सर देखने को मिलते रहते हैं और जल संपदा के मामले में कुछेक संपन्नतम देशों में गिने जाने के बाद भी हमारे यहां जल का संकट बढ़ता ही जा रहा है। आज देश की नदियों को आपस में जोड़ने की बात की जा रही है। हालांकि यह विषय गर्म है और बहस पर्यावरणविदों से लेकर राजनीतिज्ञों के बीच में हो रही है, लेकिन आज स्थिति यह है कि गांवों की बात दरकिनार बड़े शहरों और राज्यों की राजधानियों से लेकर देश की राजधानी तक इस संकट की लपेट में हैं। वैसे अपने देश में पीने के पानी की स्थिति बड़ी भयानक है। करोड़ों लोग ऐसा पानी पीते हैं, जिससे अमीर लोग अपनी गाड़ी धोना भी पसंद नहीं करते हैं और करोड़ों लोगों को तो ऐसा भी पानी मुहैया नहीं हैं। प्रदूषित पानी के अलावा कई और तरह की समस्याएं हैं। अधिकांश आबादी के लिये तो साफ पानी एक सपना ही है।

देश के विभिन्न राज्यों की स्थिति


देश के विभिन्न भागों में पीने के पानी में फ्लोराइड तत्व मिला होने के कारण इस समय देश में फ्लोरोसिस की बीमारी से साढ़े छह करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित है। यदि समय रहते राज्य सरकारों ने इससे निपटने के लिये कारगर उपाय नहीं किये तो यह ‘अदृश्य बीमारी’ भविष्य में भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से को विकलांग बना देगी। पूरे देश में 17 राज्यों के लोग इस रोग से प्रभावित हैं। उल्लेखनीय है कि पीने के पानी में फ्लोराइड तत्व की मात्रा अधिक होने से फ्लोरोसिस नामक यह रोग होता है। इसमें शरीर की हड्डियाँ अकड़ जाती हैं और उनके मुड़ने, टूटने की दर सामान्य से कई गुना बढ़ जाती हैं। भारत और चीन में इस रोग का प्रकोप सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है। यूनीसेफ ने भी विभिन्न शोधों के माध्यम से पता लगाया है कि 25 देशों में फ्लोरोसिस का प्रकोप ज्यादा है जिससे कई करोड़ लोग विकलांगता का जीवन जीने को मजबूर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार चीन में 25 लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी से बुरी तरह प्रभावित हैं।

स्त्रोत : रांची एक्सप्रेस में प्रकाशित, इंडिया वॉटर पोर्टल से प्राप्त

अंतिम बार संशोधित : 6/8/2019



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate