ज्यादा अम्लपित्त या ऍसिडिटी के कारण पेट में जलन होती है| इसका अनुभव लगभग कभी ना कभी सभी को होता है।
कुछ वर्ष पहले हम जल्दबाजी, चिंता और तीखा आहार यह एसिडिटी के कारण मानते थे। लेकिन इससे केवल तत्कालिक एसिडिटी होती है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अब इसका असली कारण एच. पायलोरी जीवाणु है। यह संक्रमण दूषित खान-पान से होता है।
कुछ लोगों को गरम खाना, शराब, ऍलर्जी और तले हुए पदार्थों के कारण तत्कालिक अम्लपित्त होता है। ज्यादातर यह शिकायत कुछ समय बाद या उल्टी के बाद रूक जाती है। गर्भावस्था में कभी कभी अंतिम महिनों में जादा आम्लता महसूस होती है। तंबाखू खाने से या धूम्रपान के कारण ऍसिडिटी होती है। अरहर या चना दाल या बेसन के कारण कुछ लोगों को अम्लपित्त होता है। मिर्च खाने से भी ऍसिडिटी होती है। कुछ दवाओं के कारण पेट में ऍसिडिटी- जलन होती है, ऍस्पिरीन ऐसी एक दवा है।
एसिडिटी की शुरुवात मुह में पानी छूटकर और जी मचलने से होती है। ऍसिडिटी का दर्द सादे भोजन से कम होता है, लेकिन तीखे भोजन से तुरंत शुरू होता है। अम्लपित्तवाला दर्द छाती और नाभी के दरम्यान अनुभव होता है। जलन निरंतर होती है लेकिन ऐंठन-दर्द रूक रूक के होता है। कभी कभी दर्द असहनीय होता है।
पीड़ित व्यक्ति दर्द स्थान उंगली से अक्सर सूचित कर सकता है। पेट-छाती की जलन कभी कभी दिल के दौरे से ही होती है। ऐसा दर्द छाती से पीठ की ओर चलता है इसके साथ पसीना, सांस चलना, घबडाहट आदि लक्षण होते है। ऐसे समय तुरंत डॉक्टरी इलाज होने चाहिए।
अम्लपित्त या जलन तत्कालिक हो तो अकसर उल्टी से ठीक हो जाती है। अन्यथा अन्न पाचन के बाद आगे चलकर याने १-२ घंटो में तकलीफ रूक जाती है। अम्लपित्त जलन पर एक सरल उपाय है अँटासिड की दवा। इसकी १-२ गोली चबाकर निगले या ५-१० मिली. पतली दवा पी ले। मॅग्नेशियम और कॅल्शियमयुक्त अँटासिड जादा उपयोगी है। आयुर्वेद के अनुसार सूतशेखर मात्रा अँटासिड के लिये एक अच्छा विकल्प है।
कुछ लोग इस जलन के लिए दूध का प्रयोग करते है लेकिन यह उपाय सही नहीं। कुछ समय बाद दर्द लौट आता है। अम्ल निर्माण रोकने के लिए ओमेप्रेझॉल या रॅनिटीडीन दवाए है। इसका प्रयोग डॉक्टर की सलाह से ही करे।
जलन और दर्द ज्यादा हो और दवा से न रुके तब अपने डॉक्टर से मिलिए। हफ्ते दो हफ्ते के बाद जलन और दर्द होता रहे तो डॉक्टर से मिलना चाहिए। दर्द अगर एकाध बिंदू से जुडा हो तब अल्सर की संभावना होती है। इसके लिए डॉक्टर से मिले। डॉक्टर गॅस्ट्रोस्कोपी की सलाह दे सकते है। गॅस्ट्रोस्कोपी का मतलब है दूरबीन से अंदरुनी स्थिती देखना।
तीखे, मसालेदार और जादा गरम पदार्थ, तंबाकू, धूम्रपान और शराब सेवन न करे। अरहर, चनादाल या बेसन से मूँग अच्छा होता है। अम्लपित्त ऍलर्जी का प्रभाव हो तो आहार में उस चीज का पता करना पडेगा। जाहिर है की इस पदार्थ को न खाए। योगशास्त्रनुसार तनाव से छुटकारा होने पर ऍसिडिटी कम होती है। इसके लिये योग उपयोगी है।
एच. पायलोरी जीवाणू संक्रमण टालने के लिए खाना पीना साफ़ सुथरा होना चाहिए। दर्द और जलन अक्सर होती रहे तो जल्दी ही डॉक्टर से मिलकर अल्सर याने छाला टालना चाहिए।
स्त्रोत: भारत स्वास्थ्य
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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