किशोरों न्याय बोर्ड का समक्ष विभिन्न प्रकार के आवेदन दिए जा सकते हैं। ऐसे आवेदन रुकी हुई जाँच पूरा होने पर छूट के आवेदन यानि विशेष गृह में रहने के दौरान, हो सकता है।
किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 12 किशोर की जमानत के मुद्दे से निपटता है, और इसे अध्याय 7 में विस्तार से दिया गया है।
यदि पुलिस द्वारा चार्जशीट में किशोर के विरूद्ध कोई मामला नहीं बनता तो आरोपी मामले से अपनी रिहाई की अर्जी दे सकता है। किसी सम्मन के मामले में जो कि किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष चल रहा हो मजिस्ट्रेट दंड प्रक्रिया सहिंता की धारा 258 के अनुसार, मामले के किसी भी स्तर पर आरोपी को बरी या रिहा कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 258 के अंतर्गत कोई किशोर बोर्ड के समक्ष रिहाई की अर्जी दायर कर सकता है। किशोर न्याय अधिनियम की धारा 54 (1) बोर्ड को यह प्रवधान देता है कि वह जहाँ तक संभव हो पेशी व सम्मान के मामलों में दंड प्रक्रिया को माने जब वह इस धारा के अंतर्गत किसी मामले की जाँच कर रहा हो। धारा 4 (2) कहती है कि बोर्ड के पास दंड प्रक्रिया संहिता में दिए गए मामले के अनुसार प्रथम के अनुसार प्रथम दर्जे के महानगरीय मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट का अधिकार होंगे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 258:
कुछ खास मामलों में प्रक्रिया को रोकने का अधिकार :- कोई भी सम्मान का मामला शिकायत के अलावा दायर किया गया,किसी प्रथम दर्जे के मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या किसी अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा, दर्ज कारणों के लिए बिना किसी फैसले को सुनाए जाने के बजाए प्रक्रिया को रोक दिया जहाँ ऐसा रोका जाना मुख्य गवाहों के बयां के दर्ज करने का बाद मामले में आरोपी की बरी, या अन्य मामलों में रिहाई दे जो छोड़े जाने की तरह हो।
इसलिए, बोर्ड जिसके पास मजिस्ट्रेट के अधिर होते हैं, चार्जशीट के दायर होने के बाद किसी भी स्तर पर मामले को बंद कर सकता है और किशोर को बरी या रियाई दे सकता है। बोर्ड अपनी मर्जी से या किशोर की ओर से दे गए आवेदन पर ऐसा कर सकता है। उदहारण के लिए, जब आरोप पक्ष लगातार अपने गवाहों को लेन में असफल रहे तो बोर्ड दंड प्रक्रिया संहित की धारा 258 के अनुसार जाँच को रोक सकता है। एक और उदहारण के तहत, यदि मुक्य आरोपी कोई वयस्क हो और किशोर सिर्फ उसके मातहत या मददगार हो और मजिस्ट्रेट द्वारा वयस्क आरोपी को बरी कर दिया गया हो तो बोर्ड किशोर को जाँच के स्तर के अनुसार बरी या रिहा कर सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 258 का प्रयोग किसी किशोर के मामले को जल्द खत्म करने में मदद करता है, खास तौर पर तब जब जाँच द्वारा किशोर के विरूद कोई सबूत न मिल रहा हों।
निगरानी गृह या विशेष गृह में रहने वाला कोई किशोर, बोर्ड के आदेश से विशेष परिस्थितियों में ,अस्थाई रूप संस्था से बाहर जा सकता है।
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 59 (2):
“ संबंधित प्राधिकरण किसी किशोर आ बच्चे को विशेष स्थितियों में जैसे परीक्षा, रिश्तेदारों की शादी, परिवार में किसी की मृत्यु, माता-पिता में से किसी की दुर्घटना या गंभीर बीमारी या ऐसे ही किसी आपातकालीन स्थिति में, निगरानी के अदंर, ऐसी अवधि जो 7 दिनों से अधीन न हो, जिसमें यातायात का समय शामिल नहीं है, गैर हाजिरी की छुट्टी दे सकता है।”
गैर हाजिरी की छुट्टी जा आवेदन किशोर द्वारा, बोर्ड के समक्ष किया जा सकता है और बोर्ड कुछ खास शर्तों पर इसे स्वीकार कर सकता है। उदहारण के लिए, बोर्ड यह शर्त रख सकता है कि माता या पिता एक बांड भरें व यह जिम्मेदारी लें की बोर्ड द्वारा दी गई अवधि के ख़त्म होते ही किह्सर निगरानी गृह या विशेष गृह में वापस आ जाएगा, गैर हाजिरी की छुट्टी का आवेदन किशोर की जाँच चलते हुए या जाँच के बात विशेष गृह में उसके कैद के दौरान दायर किया जा सकता है। किशोर न्याय अधिनियम की धारा 59 (2) के अंतर्गत दिए गए गैर हाजिरी की छुट्टी के कारण ही किशोर को दी जाने वाली छुट्टी के सीमित कारण नहीं हैं। किशोर किसी भी ऐसे कारण के लिए गैर हाजिरी की छुट्टी मिल कस्ती है जिसे बोर्ड उपयुक्त समझता है।
किशोर न्याय अधिनियम 2000 के अंतर्गत, किसी अपराध के दोषी पाये गए किशोर और विशेष गृह में रह रहे किसी किशोर को बोर्ड द्वारा माता- पिता या अभिभावक या बोर्ड ए आदेश में दिए गए किसी व्यक्ति की देख रेख में छोड़ा जा सकता है।
किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 59 (1): जब किसी किशोर को बाल गृह या विशेष गृह में रह रह किसी किशोर को बाल गृह या विशेष गृह रखा गया हो तो निगरानी अधिकारी, समाजिक कार्यकर्त्ता या सरकार या स्वयंसेवी संस्था की रिपोर्ट पर संबंधित प्राधिकरण माता-पिता या अभिभावक या अपने आदेश में दिए गए किसी ऐसे व्यक्ति जो किशोर या बच्चे का दयां रखते हुए उसे किसी उपयुक्त व्यवसाय की शिक्षा या प्रशिक्षण दिलवाने की इच्छा रखता हो ताकि उसका पुनर्वास हो सके, की निगरानी में बच्चे या किशोर को छोड़ने के बारे में विचार कर्फ़ सकता है। इसलिए माता- पिता या अभिभावक या कोई भी ऐसा व्यक्ति जो बच्चे की जिम्मेदारी लेने की इच्छा रखता हो जो विशेष गृह में रखा गया हो, उसे निगरानी अधिकार या सामाजिक कार्यकर्त्ता या स्वयंसेवी संस्था या राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बोर्ड के समक्ष किशोर की रिहाई का आवेदन दे सकती है।
किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 56:
“संबंधित प्राधिकरण द्वारा किशोर की रिहाई आ तबादले के अधिकार संबंधित प्राधिकरण इस अधिनियम में मौजूद किसी भी प्रावधान को न मानते हुए किसी भी वक्त बच्चे के सर्वोपरी हित को ध्यान में रखते हुए या तो कुछ शर्तों के साथ या उनके बिना देख रेख व सुरक्षा के जरूरतमंद किसी बच्चे या कानूनों का उल्लंघन करने वाले किशोरों की रिहाई या एक बाल गृह से दूसरे में तबादले का आदेश दे सकता है। यह प्रावधान है कि किसी बच्चे या किशोर के बाल गृह या विशेष गृह में रहने की अवधि ऐसे तबादले से अधिक नहीं हो जानी चाहिए।”
किसी किशोर के एक विशेष गृह से दूसरे विशेष गृह में तबादले की अर्जी किशोर के सर्वोपरी हित में किया जाना चाहिए न कि प्रशासनिक कारणों से, उदहारण के एक ऐसा किशोर जिसका परिवार नागपुर में रहता है और उसे मुम्बई में अपराध करता हुआ पाया गया है और उसे मुम्बई के किसी विशेष गृह में दो साल के लिए रखा गया है उसके माता पिता बोर्ड के समक्ष किसर को नागपुर के किसी विशेष गृह में रखे जाने के लिए आवेदन दे सकते हैं।
किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 57:
“एक ही प्रकृति के बाल गृहों व किशोर गृहों व किशोर गृहों के बीच भारत के विभिन्न हिस्सों में तबादला राज्य सरकार किसी हबी बच्चे या किशोर को किसी बाल गृह या विशेष गृह से राज्य के भीतर ही या किसी अन्य राज्य में उस राज्य सरकार से सलाह के बाद वहाँ की किसी बाल गृह, विशेष गृह या ऐसी ही अन्य संस्था में बोर्ड या समिति को पूर्व सूचना देकर, तबादला कर सकता है और ऐसा तबादला जिसे इलाके में बच्चे या किशोर भेजा गया है वहाँ की संबंधित प्राधिकरण की जिम्मेदारी में होगी।”
यह जरूरी है कि ऐसा कोई भी तबादला के आदेश को देते हुए किशोर का सर्वोपरी हित ध्यान में रखा जाए और यह सुनिश्चित करने के लिए बोर्ड से पहले सलाह करना आवश्यक है।
स्रोत: चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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