(1) डी.ए.डी.एफ., भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित लाभार्थी की ओर उन्मुख परियोजनाएं
(क) अनुमोदित परियोजना की लागत का अंशदान |
|||
श्रेणी |
सरकारी सहायता |
लाभार्थी का अंशदान |
योग |
सामान्य श्रेणी |
40% |
60% |
100% |
अनु.जा./अनु.जन-जाति/महिलाएं एवं उनकी सहकारी समितियाँ |
60% |
40% |
100% |
(ख) सरकारी सहायता का केंद्रीय एवं राज्य का अंशदान |
|||
क्षेत्र |
केंद्रीय अंशदान |
राज्य का अंशदान |
योग |
अन्य राज्य |
60% |
40% |
100% |
उत्तर-पूर्व एवं पहाड़ी राज्य |
90% |
10% |
100% |
संघ-शासित क्षेत्र |
100% |
0% |
100% |
(ग) परियोजना की लागत के अंशदान का प्रतिशत |
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क्षेत्र एवं लाभार्थियों की श्रेणी |
भारत सरकार का अंशदान |
राज्य सरकार का अंशदान |
लाभार्थी का अंशदान |
योग |
अन्य राज्य |
||||
सामान्य श्रेणी
|
24% |
16%
|
60% |
100% |
अनु.जा./अनु.जन-जाति/महिलाएं और उनकी सहकारी समितियाँ |
36% |
24% |
40%
|
100% |
उत्तर-पूर्व एवं पहाड़ी राज्य |
||||
सामान्य श्रेणी |
36% |
4% |
60% |
100% |
अनु.जा./अनु.जन-जा./महिलाएं एवं उनकी सहकारी समितियाँ |
54%
|
6% |
40%
|
100%
|
संघ-शासित क्षेत्र |
||||
सामान्य श्रेणी |
40%
|
0% |
60%
|
100% |
अनु.जा./अनु.जन-जा./महिलाएं एवं उनकी सहकारी समितियाँ |
60%
|
0% |
40%
|
100% |
(II) राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों और उनके/उनकी अभिकरणों/संगठनों/परिसंघों/सहकारी समितियों/संस्थानों के द्वारा एन.एफ.डी.बी. के माध्यम से कार्यान्वयन की जाने वाली परियोजनाएं
केंद्रीय एवं राज्य का अंशदान |
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क्षेत्र |
केंद्रीय/एन.एफ.डी.बी. की सहायता |
राज्य/संघ-शा. क्षेत्र का अंशदान |
योग |
अन्य राज्य |
50% |
50% |
100% |
उत्तर-पूर्व एवं पहाड़ी राज्य |
80% |
20% |
100% |
संघ-शासित क्षेत्र/भारत सरकार के संगठन/संस्थान |
100% |
0%
|
100% |
नोट: निजी उद्यमियों और व्यक्तिगत लाभार्थियों के लिये एक-समान वित्त-पोषण का स्वरूप सुनिश्चित करने के लिये, सारणी (I) के (क), (ख) एवं (ग) में दी गई शर्ते लागू होंगीं।
मात्स्यिकी, विविध संसाधनों और संभावनाओं के साथ, प्राथमिक स्तर पर 14.50 मिलियन व्यक्तियों से अधिक और मूल्य श्रृंखला के साथ-साथ इससे भी अधिक व्यक्तियों को लगाये हुए एक सूर्योदय वाला क्षेत्र है। मात्स्यिकी क्षेत्र के परम्परागत से वाणिज्यिक पैमाने में रूपांतरण ने सन् 1950-51 में मछली का उत्पादन 7.5 लाख टन से 107.95 लाख टन की वृद्धि की ओर अग्रसर किया है जबकि इस क्षेत्र से निर्यात की आय सन् 2014-15 में लगभग रु. 33,441 करोड़ दर्ज की गई थी। इस क्षेत्र ने 11 वीं पंच वर्षीय योजना की अवधि के दौरान कुल मिलाकर लगभग 4% वार्षिक वृद्धि की दर दर्ज की थी। इसने राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पादन (जी.डी.पी.) का लगभग 0.91% और कृषि संबंधी जी.डी.पी. (2014-15) का 5.23% अंशदान किया है। वैश्विक मत्स्य उत्पादन का लगभग 6.30% और वैश्विक व्यापार का 5% का गठन करके, विश्व में भारत दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य-उत्पादक और दूसरा जल-कृषि उत्पादक देश बन गया है।
1.2 भारत को नदियों और नहरों (1.95 लाख कि.मी.); बाढ़ वाले मैदानों की झीलों (7.98 लाख हेक्टेयर); तालाबों और टैंकों (24.33 लाख हेक्टेयर); जलाशयों (29.26 लाख हेक्टेयर) और खारा पानी (11.55 लाख हेक्टेयर) के रूप में विभिन्न संभावित संसाधन प्रदान किये गये हैं। समुद्री मात्स्यिकी के संसाधनों का अनुमान 4.41 मिलियन मीट्रिक टन लगाया गया है और इसके क्रिया-कलाप 2.2 मिलियन वर्ग कि.मी. केवल आर्थिक क्षेत्र (ई.ई.जेड.) और 0.53 मिलियन वर्ग कि.मी. के महाद्वीपीय रेतीली किनारे के क्षेत्रफल के साथ 8118 कि.मी. देश की लम्बी समुद्री तट रेखा के साथ-साथ फैले हुए हैं।
1.3 इस क्षेत्र में उच्च संभावना को पहले से ही जानकर, मात्स्यिकीय क्षेत्र में एक क्रांति की पुकार की है और इसे नील-क्रान्ति नाम दिया है।
नील-क्रान्ति, नील क्रान्ति मिशन देश और मछुआरों और मत्स्य-कृषकों की आर्थिक समृद्धि प्राप्त करने तथा जैव-सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, एक धारणीय तरीके से मात्स्यिकी के विकास के लिये जल संसाधनों की उपयोगिता की पूर्ण संभावना के माध्यम से खाद्य और पोषकता संबंधी सुरक्षा के प्रति अंशदान करने की दृष्टि है। नील क्रान्ति मिशन, 2016 (एन.के.एम.,16) वह वर्ष होने के कारण जिसमें प्रधान मंत्री द्वारा अंतर्दृष्टि दी गई है, वह भारतवर्ष में आधुनिक विश्व स्तर के उद्योग के रूप में मात्स्यिकी के क्षेत्र के विकास के साथ सभी संबंधित क्रिया-कलापों के प्रति बहु-आयामी पहुँच बनायेगा। यह पूर्ण उत्पादन की संभावना के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करेगा और यह दोनों - अंतर्देशीय और समुद्री से जल-कृषि और मात्स्यिकी के संसाधनों से काफी हद तक उत्पादकता बढ़ायेगा। मूल रूप से, निर्यात के क्षेत्र में भारतीय मात्स्यिकी को बढ़ावा देना एक मुख्य लक्ष्य होगा। यह सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की समावेशी सहभागिता के साथ और मत्स्य-कृषकों की आय को दोगुना करना सुनिश्चित करेगा और पर्यावरण तथा जैव-सुरक्षा के साथ धारणीयता सुनिश्चित करेगा।
2.1 अंतर्दृष्टि
धारणीयता, जैव-सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, मछुआरों और मत्स्य-कृषकों की आय की प्रास्थिति में मूल रूप से सुधार के साथ-साथ, देश की मात्स्यिकी की पूर्ण संभावना के एकीकृत विकास के लिये समर्थ बनाने वाले पर्यावरण का सृजन करना।
2.2 मिशन
(1) देश की अंतर्देशीय और समुद्री मात्स्यिकी की पूर्ण संभावना का उपयोग करने के लिये, इसे पेशेवर आधुनिक विश्व स्तर के उपयोग के रूप में विकसित करने के लिये एक नील क्रान्ति मिशन योजना का निर्माण
(2) देश के मछुआरों और मत्स्य कृषकों की आय को दोगुना करना, सुनिश्चित करना
(3) जैव-सुरक्षा की धारणीयता सुनिश्चित करना और मछली मारने के उद्योग की धारणीयता को समर्थ बनाने के लिये पर्यावरणीय चिंताओं को सम्बोधित करना।
2.3 उद्देश्य
(1) अंतर्देशीय और समुद्री - दोनों क्षेत्रों में देश की मत्स्य की कुल संभावना को पूर्ण रूप से उपयोग करना और सन् 2020 तक उत्पादन तीन गुना करना
(2) नई प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं पर विशेष ध्यान केंद्रित करने के साथ, मात्स्यिकी के क्षेत्र को एक आधुनिक उद्योग के रूप में बदलना
(3) ई-कामर्स और अन्य प्रौद्योगिकियों और वैश्विक सर्वश्रेष्ठ नवोन्मेषों को शामिल करते हुए उत्पादकता और बेहतर विपणन की फसलोत्तर आधारिक संरचना को बढ़ाने पर विशेष ध्यान केंद्रित करने के साथ मछुआरों और मत्स्य-कृषकों की आय दोगुना करना
(4) आय की वृद्धि करने में मछुआरों और मत्स्य-कृषकों की समावेशी सहभागिता सुनिश्चित करना
(5) सहकारिता, उत्पादक कम्पनियों और अन्य संरचनाओं में संस्थागत तंत्रों के माध्यम से मछुआरों और मत्स्य-कृषकों को लाभों के प्रवाह पर ध्यान केंद्रित करने के साथ सन् 2020 तक आयात की आय तीन गुना करना
(6) देश की खाद्य और पौष्टिकता संबंधी सुरक्षा में वृद्धि करना
केंद्रीय क्षेत्र की सहायता में योजनाएं
3.1 कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, पशुपालन, डेयरी एवं मात्स्यिकी विभाग ने सभी चालू योजनाओं को नील-क्रान्ति के एक क्षेत्र के नीचे विलय करके योजना को तदनुसार पुनर्गठित कर दिया है। पुनर्गठित योजना गहरे समुद्र में मछली मारने, मारीकल्चर और राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.) द्वारा अपने हाथ में लिये गये सभी क्रिया-कलापों को शामिल करते हुए, अंतर्देशीय मात्स्यिकी, जल-कृषि, समुद्री मात्स्यिकी को शामिल करते हुए मात्स्यिकी के केंद्रित ध्यान वाले विकास और प्रबंध की व्यवस्था करती है।
3.2 नील क्रान्ति: मात्स्यिकी का एकीकृत विकास और प्रबंध पर पुनर्गठित प्लान की योजना, निम्नलिखित घटकों के साथ पाँच वर्ष की अवधि के दौरान (2015-16 से 2019-20 तक) लागू करने के लिये रु. 3000 करोड़ के कुल केंद्रीय व्यय से अनुमोदित की जा चुकी है:
(1) राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.) और उसके क्रिया-कलाप
(2) अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जल-कृषि का विकास
(3) समुद्री मात्स्यिकी, आधारिक संरचना और फसलोत्तर परिचालनों का विकास
(4) मात्स्यिकी के क्षेत्र के डाटाबेस एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली को मजबूत बनाना
(5) मात्स्यिकी के क्षेत्र के लिये संस्थागत प्रबंध
(6) अनुश्रवण, नियंत्रण और निगरानी (एम.सी.एस.) और आवश्यकता पर आधारित अन्य हस्तक्षेप
(7) मछुआरों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय योजना।
केंद्रीय वित्तीय सहायता
यह योजना, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुदानों के लिये माँग में वार्षिक बजट संबंधी आबंटन और दिनांक 20 मई, 2016 के योजना के प्रशासनिक अनुमोदन के अनुसार कार्यान्वित की जायेगी।
व्यय विभाग, वित्त मंत्रालय के नोट सं.05(29)/पी.एफ.II/2005 दिनांक 12.09.2017 के साथ पठित, डी.ए.डी.एफ., एम.ओ.ए., भारत सरकार के पत्र सं.27035-19/2015-एफ.वाई.(4), दिनांक 28 सितम्बर, 2017 के अनुसार, केंद्रीय क्षेत्र की योजना नीली क्रान्ति: मात्स्यिकी का एकीकृत विकास और प्रबंधन केंद्रीयकृत रूप से प्रायोजित योजना (सी.एस.एस.) के महत्वपूर्ण अंश के रूप में कार्यान्वित की जानी है।
4.1 तदनुसार, सहायता और सहायता के अंशदान करने का स्वरूप, विशेष रूप से लाभार्थी की ओर उन्मुख घटकों को निम्नानुसार संशोधित कर दिया गया है और वे वित्तीय वर्ष 2017-18 और उससे आगे लागू होंगे:
(1) किसी भी प्रस्ताव के लिये, कुल स्वीकार्य सरकारी सहायता (केंद्रीय+राज्य) सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों के लिये परियोजना की लागत के 40% तक और कमजोर वर्गों जैसे अनुसूचित जाति (अनु.जा.), अनुसूचित जन-जाति (एस.टी.), महिलाओं और उनकी सहकारी समितियों के लिये परियोजना की लागत के 60% तक सीमित होगी।
(2) उपरोक्त (1) में स्वीकार्य सहायता में केंद्रीय : राज्य का अंशदान निम्नानुसार होगा:
(क) उत्तर-पूर्व एवं पहाड़ी राज्य : 90% केंद्रीय अंशदान और 10% राज्य का अंशदान
(ख) संघ-शासित क्षेत्र : 100% केंद्रीय अंशदान
(ग) अन्य राज्य : 60% केंद्रीय अंशदान और 40% राज्य का अंशदान
4.2 इसके अतिरिक्त, यह योजना अन्य बातों के साथ यह भी प्रदान करती है जो नीचे विस्तार से दिये गये हैं:
(1) (i) राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.) और उसके क्रिया-कलाप, (ii) अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जल-कृषि का विकास तथा (iii) समुद्री मात्स्यिकी, बुनियादी ढाँचा और फसलोत्तर परिचालनों के अंतर्गत नये प्रस्ताव/क्रिया-कलाप, केंद्रीय वित्तीय सहायता को निम्नानुसार प्रतिबंधित करते हुए, परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट (डी.पी.आर.) पर आधारित मॉडल पर राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड के माध्यम से कार्यान्वित किये जाने हैं:
(क) शेष को राज्य के अभिकरणों/संगठनों, निगमों, परिसंघों, परिषदों, मछुआरा सहकारी समितियों, निजी उद्यमियों, व्यक्तिगत लाभार्थियों के लिये छोड़ते हुए, सामान्य राज्यों के लिये परियोजना/इकाई की लागत का 50%।
(ख) शेष को राज्य के अभिकरणों/संगठनों, सहकारी समितियों, व्यक्तिगत लाभार्थियों इत्यादि के लिये छोड़ते हुए उत्तर-पूर्वी/पहाड़ी राज्यों के लिये परियोजना/इकाई का 80% ।
(ग) 100% उन परियोजनाओं के लिये जो भारत सरकार द्वारा अपने संस्थानों/संगठनों और संघशासित क्षेत्रों के माध्यम से सीधे ही कार्यान्वित की जा रही हैं।
किंतु, निजी उद्यमियों और व्यक्तिगत लाभार्थियों के लिये एक समान वित्तपोषण का स्वरूप सुनिश्चित करने के लिये, पैराग्राफ 4.1 (उपरोक्त) की शर्ते लागू होंगीं।
(2) इस योजना के अन्य तीन घटक, नामतः (क) मात्स्यिकी के क्षेत्र के डाटाबेसों एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली को मजबूत किया जाना, (ख) मात्स्यिकी के क्षेत्र केलिये संस्थागत व्यवस्था तथा (ग) अनुश्रवण, नियंत्रण और निगरानी (एम.सी.एस.) और आवश्यकता पर आधारित अन्य हस्तक्षेपों को 100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ विभागीय तौर पर (डी.ए.डी.एफ.) कार्यान्वित किया जाना है।
(3) अपने उप-घटकों के साथ, डी.ए.डी.एफ. में मछुआरों के कल्याण की राष्ट्रीय योजना के घटकों को जारी रखना है जो निम्न प्रकार हैं:
(क) सक्रिय मछुआरों के लिये सामूहिक दुर्घटना बीमा योजना को डी.ए.डी.एफ. में तब तक जारी रखा जाना है जब तक कि प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पी.एम.एस.बी.वाई.) के साथ केंद्राभिमुखता पर अंतिम निर्णय नहीं ले लिया जाता है तथा (2) पी.एम.एस.बी.बाई. के साथ केंद्राभिमुखता होने की स्थिति में, डी.ए.डी.एफ. को पी.एम.एस.बी.बाई. के साथ भली प्रकार हाथ मिलाते हुए अपने सभी विद्यमान घटकों के साथ सक्रिय मछुआरों के लिये सामूहिक दुर्घटना बीमा योजना को जारी रखना है। और इसे विभागीय रूप से लागू किया जाना है।
(ख) इंदिरा आवास योजना (आई.ए.वाई.)/प्रधान मंत्री आवास योजना (पी.एम.ए.वाई.)-सन् 2022 तक सबके लिये आवास, जैसा कि समय-समय पर ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया है, के साथ दिशा-निर्देशों तथा वित्तपोषण के स्वरूप से हाथ मिलाते हुए मछुआरा आवास योजना को कार्यान्वित करना।
(ग) समुद्री और अंतर्देशीय मछुआरों को शामिल करने के लिये बचत-सह-राहत घटक दोनों-समुद्री और अंतर्देशीय घटकों का भाग होगा।
4.3 योजना के सभी घटकों और उप-घटकों के संबंध में कार्यान्वयन के विस्तृत दिशा-निर्देश, लागत के मापदंड, इकाई की लागत और सम्बद्ध निबंधन और शर्ते इत्यादि वही होंगी जो विभाग के अनुमोदन सं.27035-19/2015-एफ.वाई.(4)- खंड-2 दिनांक 30 जून, 2016 के द्वारा प्रारम्भिक रूप में अधिसूचित और समय-समय पर संशोधित की गई हैं। वित्तपोषण का स्वरूप अब इस प्रशासनिक अनुमोदन के आदेश के उपरोक्त पैरा 4.1 और पैरा 4.2 के अनुसार होगा।
व्यय विभाग, वित्त मंत्रालय के नोट सं.05 (29)/पी.एफ.-2/2005, दिनांक 12.09.2017 के साथ पठित, डी.ए.डी.एफ., एम.ओ.ए., भारत सरकार के पत्रांक 27035-19/2015-एफ.वाई.(4), दिनांक 1 जनवरी 2018 और मंत्रालय के अनुमोदनों/आदेशों के पत्र संख्या 27035-19/2015-एफ.वाई.(4) दिनांक 28 सितम्बर, 2017 के क्रमानुसार, संशोधित प्रशासनिक अनुमोदन निम्नानुसार संप्रेषित किया जा चुका है:
4.4 नीली क्रान्ति के घटकों में, जहाँ लाभार्थियों की पहचान प्रत्यक्ष रूप से की गई है और इसके परिणामस्वरूप, सरकारी सहायता उनको सीधे-सीधे दी जानी है तो परियोजना के ऐसे प्रस्ताव उपरोक्त 4.1 पैरा के निबंधनों और व्यय विभाग के दिनांक 12.9.2017 की सहमति को ध्यान में रखते हुए, उन पर विचार किया जायेगा।
4.5 यह योजना, मछली के बंदरगाहों (एफ.एच.) और मछली की उतराई वाले केंद्रों (एफ.एल.सी.), मछली के बाजारों, राष्ट्रीय ब्रूड बैंकों, राज्य के मछली के फार्मों इत्यादि जैसी मात्स्यिकी की बुनियादी सुविधाओं का सृजन करने के लिये, जहाँ व्यक्तिगत लाभार्थियों की पहचान किये जाने योग्य नहीं होती है क्योंकि ऐसी परियोजनाओं के लाभ एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में सभी मछुआरों/शेयरहोल्डरों द्वारा प्राप्त किये जाते हैं, वहाँ राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्रों को केंद्रीय वितीय सहायता प्रदान करने की परिकल्पना भी करती है। क्रिया-कलाप की इस विशिष्ट प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय सहायता, जैसी कि पैरा 4.2 में निर्धारित की गई है, सामान्य राज्यों के लिये वह परियोजना की लागत का 50%, उत्तर-पूर्वी-पहाड़ी राज्यों के लिये 80% और संघ-शासित क्षेत्रों के लिये 100% होगी। शेष 50% एवं 20%, सी.एस.एस. का कार्यान्वयन करने के लिये क्रमशः संबंधित सामान्य राज्य एवं उत्तर-पूर्वी पहाड़ी राज्य सरकारों के द्वारा पूरी की जायेगी। इस रूप में, वित्त-पोषण के स्वरूप, जैसे कि उपरोक्त पैरा 4.2 में बताये गये हैं, वे एन.एफ.डी.बी. को शामिल करते हुए, राज्यों, संघ-शासित क्षेत्रों, राज्य के अभिकरणों और केंद्रीय सरकार के संगठनों द्वारा सीधे कार्यान्वित किये जाने वाली सभी परियोजनाओं के लिये लागू होंगे।
4.6 राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.) वह अभिकरण होगा जो एस.एल.ए.एम.सी.(डाटाबेस, मात्स्यिकी के संस्थानों और एम.सी.एस. के संबंध में प्रस्तावों को छोड़कर) की अनुशंसा के साथ राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्रों से एफ.एच./एफ.एल.सी. एवं कल्याण के प्रस्तावों को शामिल करते हुए सभी प्रस्ताव स्वीकार करेगा। एन.एफ.डी.बी. तब तकनीकी - वित्तीय कोणों से प्रस्तावों की संवीक्षा करेगा और व्यवहार्य प्रस्तावों के अनुमोदन के लिये डी.ए.डी.एफ. को अपनी अनुशंसाएं प्रस्तुत करेगा। एन.एफ.डी.बी., चालू परियोजनाओं का अनुश्रवण एवं मूल्यांकन भी करेगा और, जैसा अनिवार्य हो, अपनी रिपोर्ट/अनुशंसाएं आगे की कार्रवाई के लिये डी.ए.डी.एफ. को प्रस्तुत करेगा। व्यवहार्य प्रस्तावों का अनुमोदन और स्वीकार्य केंद्रीय निधियों का राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों और अन्य लाभार्थी संगठनों इत्यादि को सीधा निर्गम, डी.ए.डी.एफ. द्वारा किया जाना जारी रहेगा।
4.7 सी.एस.एस. के दिशा-निर्देशों की शर्तों के अनुपालन में, सी.एस.एस. के अंतर्गत अनुमोदित परियोजनाओं का मूल्यांकन, अनुमोदन हेतु अनुशंसा, पुनरीक्षा और अनुश्रवण करने के लिये राज्य स्तरीय अनुमोदन एवं अनुश्रवण समिति (एस.एल.ए.एम.सी.) तथा केंद्रीय अनुमोदन एवं अनुश्रवण समिति (सी.ए.एम.सी.) का गठन करने का निर्णय लिया गया है। एस.एल.ए.एम.सी. और सी.ए.एम.सी. की भूमिका, मात्स्यिकी की विकास संबंधी भावी परियोजनाओं/प्रस्तावों का संसाधन करने के लिये उनके गठन की तारीख से प्रभावी होगी।
4.8 चूँकि मछली मारने वाले बंदरगाह और मछलियों की उतराई वाले केन्द्र, बड़ी पूँजी-निवेश वाली परियोजनाएं हैं, प्रकृति में ऊँची तकनीक वाली हैं और भारत सरकार की सागरमाला और अन्य योजनाओं, जहाँ कहीं व्यवहार्य हों, के साथ अभिबिंदुता उसमें शामिल है, अतः परियोजना की संस्वीकृत देने वाली समिति (पी.एस.सी.) के माध्यम से केवल मछली मारने वाले बंदरगाह और मछलियों की उतराई वाले केंद्र की परियोजनाओं के मूल्यांकन और अनुमोदन के लिये विद्यमान प्रणाली जारी रखने का निर्णय लिया गया है। इस मामले में भी, (1) सी.सी.ई.ए. दिनांक 12.11.2015 के पैरा 9.1 के अनुपालन की तर्ज पर सभी नये प्रस्ताव एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत किये जायेंगे और (2) मात्स्यिकी के लिये समुद्रतटीय इंजीनियरिंग का केंद्रीय संस्थान (सी.आई.सी.ई.एफ.), बेंगलूर और अन्य मंत्रालयों/विभागों/संगठनों इत्यादि जैसे विशेषज्ञ अभिकरणों से इनपुट लेने के बाद एन.एफ.डी.बी. द्वारा तकनीकी एवं वित्तीय मूल्यांकन/संवीक्षा की जायेगी और पी.एस.सी. को निर्णय करने के लिये अनुशंसा की जायेगी।
4.9 एन.एफ.डी.बी. द्वारा 20 नवम्बर 2017 के बाद प्राप्त सभी उत्तरवर्ती परियोजनाओं के लिये, निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जायेगी:
(क) सभी राज्य सरकारें/संघ-शासित क्षेत्र अपनी संबंधित राज्य स्तरीय अनुमोदन एवं अनुश्रवण समिति (एस.एल.ए.एम.सी.) का गठन करेंगे/करेंगी जिसकी अध्यक्षता संबंधित राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों के मात्स्यिकी के प्रभारी सचिव, अनिवार्य विशेषज्ञों के साथ-साथ सदस्यों में से एक के रूप में राज्य/संघ-शासित क्षेत्र के मात्स्यिकी के निदेशक/आयुक्त द्वारा, जैसा कि राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों द्वारा निर्णय किया जा सकता है, की जायेगी।
(ख) एस.एल.ए.एम.सी. संबंधित राज्य के प्रस्तावों पर विचार करेगी और सी.एस.एस. के दिशा-निर्देशों के पैरा-15.3, जो इस विभाग के आदेश दिनांकित 30.06.2016 के द्वारा जारी किये गये हैं और इस प्रशासनिक आदेश में उल्लिखित संशोधनों के अनुसार वांछित प्रथम किश्त की धनराशि के साथ-साथ एन.एफ.डी.बी. को व्यवहार्य प्रस्ताव/परियोजनाओं की संस्तुति करेगी।
(ग) एन.एफ.डी.बी., राज्यों/संघ-शासित प्रदेशों के द्वारा प्रस्तुत तथा एस.एल.ए.एम.सी. द्वारा संस्तुति किये गये प्रस्तावों की एक विस्तृत तकनीकी संवीक्षा करेगा और डी.ए.डी.एफ. द्वारा इस उद्देश्य हेतु गठित केंद्रीय अनुमोदन एवं अनुश्रवण समिति (सी.ए.एम.सी.) को व्यवहार्य/संभाव्य प्रस्ताव मूल्यांकन/संस्वीकृति हेतु अनुशंसा करेगा।
(घ) संयुक्त सचिव (मात्स्यिकी) की अध्यक्षता में एक केंद्रीय अनुमोदन एवं अनुश्रवण समिति (सी.ए.एम.सी.) का गठन, डी.ए.डी.एफ. द्वारा किया जायेगा। सी.ए.एम.सी. का सदस्य-सचिव, संयुक्त आयुक्त (मात्स्यिकी) होगा जबकि मात्स्यिकी विकास का आयुक्त, डी.ए.डी.एफ. के मात्स्यिकी के सभी संस्थान (अर्थात् एफ.एस.आई., सी.आई.एफ.एन.ई.टी., सी.आई.सी.ई.एफ. और एन.आई.एफ.पी.एच.ए.टी.टी.) और एन.एफ.डी.बी. का एक नामिती सदस्य होंगे। आई.सी.ए.आर. के संस्थानों की विशेषज्ञता का, जब कभी अपेक्षित हो, समुचित उपयोग किया जायेगा। संयुक्त सचिव (मात्स्यिकी), सी.ए.एम.सी. का अध्यक्ष होने के नाते किसी सदस्य को उसकी क्षेत्र में विशेषज्ञता के आधार पर, यदि इस आशय की जब कभी जरुरत पड़े, सहयोजित कर सकता है।
(च) सी.ए.एम.सी. दोनों - प्रशासनिक और वित्तीय कोणों से (एफ.एच. एवं एफ.एल.सी. को छोड़कर) प्रस्तावों का परीक्षण करेगी, मूल्यांकन करेगी और व्यवहार्य/संभाव्य प्रस्तावों को अनुमोदन के लिये अनुशंसा करेगी।
(छ) एन.एफ.डी.बी. से प्राप्त प्रस्तावों का निस्तारण करने के लिये सी.ए.एम.सी. नियमित आधार पर महीने में कम से कम एक बार अपनी बैठक आयोजित करेगी। सी.ए.एम.सी. भी प्रस्तावों की प्राप्ति के आधार पर अपनी बैठक किसी भी समय आहूत कर सकती है। एक बार जब सी.ए.एम.सी. अनुमोदन देने के लिये प्रस्ताव पर अनुशंसा करती है तो डी.ए.डी.एफ. आवश्यक प्रशासनिक अनुमोदन प्रदान कर देगा और एस.एल.ए.एम.सी. की अनुशंसाओं को ध्यान में रखते हुए सी.ए.एम.सी. द्वारा अनुशंसा की गई केंद्रीय अनुदान/सहायता की पहली किश्त सीधे संबंधित राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों को जारी कर देगा। एन.एफ.डी.बी. द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रस्तावों में कमियाँ (दोनों-अनुमोदित और अनुमोदन न किये गये प्रस्ताव), यदि कोई हैं, वे एन.एफ.डी.बी. को संसूचित की जायेंगीं और डी.ए.डी.एफ. द्वारा केंद्रीय अनुदान की उत्तरवर्ती किश्तें जारी करने से पहले एन.एफ.डी.बी. से संशोधित करा ली जायेंगीं।
(ज) एक बार अनुमोदन किये गये प्रस्तावों की/का एस.एल.ए.एम.सी. और सी.ए.एम.सी. के द्वारा भी पुनरीक्षा/अनुश्रवण की/किया जायेगी/जायेगा। एस.एल.ए.एम.सी. और सी.ए.एम.सी. की अनुश्रवण करने की बैठकें, नीली क्रान्ति योजना के अंतर्गत हाथ में ली गई परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा करने के लिये तिमाही आधार पर आयोजित की जायेंगीं। इसके अतिरिक्त, प्रभावी और गुणवत्तापरक कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये, एन.एफ.डी.बी. एवं डी.ए.डी.एफ. (मात्स्यिकी प्रभाग) भी नीली क्रान्ति योजना के कार्यान्वयन की सीधे ही समीक्षा करेंगे जैसा कि इस समय किया जा रहा है।
4.10 राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्र के प्रशासनों/एन.एफ.डी.बी. से उनके संबंधित राज्यों/संघशासित क्षेत्रों में मछुआरों के विकास और प्रबंध के लिये विशिष्ट कार्य योजना, रणनीति और रोडमैप बनाने का निवेदन किया जाता है। राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्रों से योजना के प्रावधानों के बारे में राज्य के अभिकरणों/ संगठनों, निगमों, परिसंघों, मछुआरा सहकारी समितियों, निजी उद्यमियों, व्यक्तिगत लाभार्थियों इत्यादि जैसे मात्स्यिकी के सभी संबंधित शेयरहोल्डरों को संवेदनशील बनाने का भी निवेदन किया जाता है।
4.11 सी.एस.एस. के अंतर्गत केंद्रीय वित्तीय सहायता का लाभ उठाने के लिये, सी.एस.एस. के प्राविधानों और दिशा-निर्देशों के अनुसार वांछित घटक के संबंध में स्वयं-धारित परियोजना के प्रस्ताव राज्य सरकारों के माध्यम से प्रस्तुत किये जा सकते हैं। राज्य के बजट में पर्याप्त समानता वाले बजट संबंधी प्राविधान की उपलब्धता, अनिवार्य अनापत्तियाँ और भूमि जहाँ कहीं अनिवार्य हो, उनका विशिष्ट रूप से प्रस्ताव में संकेत किया जाना जरुरी है।
4.12 यह संशोधित प्रशासनिक अनुमोदन भी निम्नलिखित निबंधनों और शर्तों के अधीन जारी किया गया है:
(क) अब से आगे सामान्य वित्तीय नियम, 2017 के प्राविधान लागू होंगे।
(ख) बजट प्रभाग, आर्थिक कार्य विभाग, वित्त मंत्रालय के ओ.एम.सं.15(39)-बी.(आर.)/2016, दिनांक 21.08.2017 के द्वारा जारी किये गये नकदी प्रबंधन प्रणाली की दिशा-निर्देशों के अनुसार निधियाँ जारी की जायेंगीं।
(ग) निधियों का प्रवाह, पी.एफ.एम.एस./डी.बी.टी. के मंचों के माध्यम से सुनिश्चित किया जाना है।
(घ) मुख्य लेखा-नियंत्रक, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के द्वारा इस संबंध में जारी किये गये दिशा-निर्देशों के अनुसार केवल पी.एफ.एम.एस. के माध्यम से उपयोग प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किये जायेंगे।
4.13 किसी प्रस्ताव के भूतलक्षी अनुमोदन के लिये किसी भी प्रकार के निवेदन पर विचार नहीं किया जायेगा।
4.14 प्रतिबद्ध देयताओं/विभाग द्वारा पूर्व में ही संस्वीकृत परियोजनाओं के लम्बित निर्गम, सी.एस.एस. के संबंधित लेखा-शीर्षक से पूरे किये जायेंगे।
यह योजना, निम्नलिखित अभिकरणों के माध्यम से लागू की जायेगी:
(1) केंद्रीय सरकार, केंद्रीय सरकार के संस्थान/अभिकरण, एन.एफ.डी.बी., आई.सी.ए.आर. के संस्थान इत्यादि।
(2) राज्य सरकारें तथा संघ-शासित क्षेत्र।
(3) राज्य सरकार के अभिकरण, संगठन, निगम, परिसंघ, परिषदें, पंचायतें और स्थानीय शहरी निकाय।
(4) मछुआरा सहकारी समितियाँ/मछुआरों के पंजीकृत निकाय।
(5) व्यक्तिगत लाभार्थी/मछुआरे, उद्यमी, अनुसूचित जातियाँ (अनु.जा.), अनुसूचित जनजातियाँ (अनु.जन.जा.) के समूह, महिलाएं और उनकी सहकारी समितियाँ, स्वयं-सहायता समूह तथा मत्स्य-कृषक और मछुआरों के विविध निकाय
6.1 राज्यों/संघ-शासित राज्यों में मात्स्यिकी का विभाग अपने संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र में योजना का नियोजन करने तथा लागू करने के लिये नोडल विभाग होगा। किंतु, योजना को द्रुतपथ पर तथा परिणामोन्मुख तरीके से योजना का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये, राज्य सरकारें/संघ-शासित क्षेत्र निधियों के प्रेषण, प्रशासनिक एवं वित्तीय सुविधा हेतु तथा कार्यान्वयन को आसान बनाने के लिये राज्य के कार्यान्वयन अभिकरण (एस.आई.ए.) के रूप में किसी विद्यमान अभिकरण की पहचान कर सकते हैं या एक नये अभिकरण का सृजन कर सकते हैं।
6.2 वहाँ भी, जहाँ ऐसे एस.आई.ए. का सृजन किया गया है या अधिसूचना की गई है, वहाँ भी योजना का समुचित नियोजन और कार्यान्वयन सुनिश्चित करने का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व उस राज्य/संघ-शासित क्षेत्र के मात्स्यिकी विभाग का होगा।
7.1 यह योजना प्राथमिक रूप से परियोजना पर आधारित है और इसलिये, परियोजना की विस्तृत रिपोर्टे (डी.पी.आर.)/स्वयं-धारित प्रस्ताव तैयार किये जाने चाहिये और डी.ए.डी.एफ. को प्रस्तुत किये जाने चाहिये। डी.पी.आर./स्वयं धारित प्रस्तावों में निम्नलिखित विस्तृत अनिवार्य तत्व शामिल होंगे:
(1) स्वायत्तशासी अभिकरणों, उद्यमियों के मामले में पिछले तीन वर्षों के वित्तीय विवरणों को शामिल करते हुए कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण की पृष्ठभूमि (राज्य/संघ-शासित क्षेत्र के विभाग को छोड़कर) और उनके/उनकी प्रत्यय-पत्र तथा क्षमताएं।
(2) आशयित लाभों की माँग और आपूर्ति के अंतर का मूल्यांकन करने के लिये, विशेष रूप से परियोजना के स्थान पर, जहाँ कहीं भी अपेक्षित हो, व्यवहार्यता के अध्ययन।
(3) परियोजना के उद्देश्य।
(4) मापने योग्य शर्तों में प्रत्याशित लाभ।
(5) लागत के लाभ का विश्लेषण, जहाँ कहीं अपेक्षित हो (विशेष रूप से बैंक को स्वीकार्य परियोजनाओं के मामले में)।
(6) जैव-सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताएं।
(7) भूमि की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य और सांविधिक निकासियाँ/अनुमतियाँ/लाइसेंस, जहाँ कहीं अपेक्षित हो।
(8) परियोजना के कार्यान्वयन हेतु निधि प्राप्त करने के स्रोत (केंद्रीय सहायता, राज्य का अंशदान, अपना निजी अंशदान/बैंक का ऋण इत्यादि, जैसा भी मामला हो)
(9) परियोजना के पूर्ण होने के लिये स्पष्ट समय-सीमाएं (पट्टी वाले चार्ट के रूप में)
(10) इस आशय का वचन-पत्र कि उसी अभिकरण द्वारा उसी स्थान पर वैसी ही मिलती-जुलती परियोजना के केंद्रीय वित्तपोषण या कार्यान्वयन की पुनरावृत्ति नहीं होगी।
(11) राज्य की दरों की नवीनतम अनुसूची (एस.ओ.रु.) पर आधारित लागत के विस्तृत अनुमान
7.2 किंतु, उपरोक्त विस्तृत अनिवार्य तत्व, स्थानीय दशाओं, परियोजना की आवश्यकताओं, परियोजना के परिमाण और गर्भावधि इत्यादि के आधार पर एक परियोजना से दूसरी परियोजना के लिये भिन्न हो सकते हैं।
7.3 आवेदक/ लाभार्थी राज्य/ संघ-शासित क्षेत्र/ अभिकरण तीन प्रतिलिपियों में डी.पी.आर./ स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे।
8.1 उद्दिष्ट परियोजना के कार्यान्वयन के लिये अपेक्षित भूमि के अधिग्रहण/ क्रय/ अंतरण/ पट्टे पर लेने के लिये इस योजना के अंतर्गत केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान नहीं की जायेगी। परियोजना के प्रस्तावकों से, इस योजना के अंतर्गत केंद्रीय वित्तीय सहायता के लिये प्रस्ताव प्रस्तुत करने से पहले उनकी अपनी निजी लागत पर आवश्यक भूमि का अधिग्रहण करने (उनके पास भूमि की अनुपलब्धता के मामले में) और भूमि के अधिग्रहण के लिये अपेक्षित सभी प्रक्रियाएं पूरी करने की अपेक्षा की जाती है।
8.2 दीर्घ अवधि के पट्टे पर ली गई भूमि के लिये भी इस योजना के अंतर्गत केंद्रीय वित्तीय सहायता हेतु विचार किया जायेगा। किंतु, पट्टे/करार की अवधि, न्यूनतम 10(दस) वर्ष की अवधि से कम नहीं होनी चाहिये।
8.3 यदि, परियोजना का प्रस्तावक बीच में ही (पट्टे की सहमत अवधि से पहले) पट्टा-करार समाप्त कर देता है और किन्हीं अपरिहार्य परिस्थितियों में, चाहे जो भी हों, भूमि तथा इस योजना के अंतर्गत प्राप्त वित्तीय सहायता से सृजन की गई सुविधाओं का विक्रय कर देता है, तो उसे सम्पूर्ण केंद्रीय वित्तीय सहायता जिसका उसने उस समय तक उपभोग किया है, उसे, उस पर लागू ब्याज के साथ, एक किश्त में लौटायेगा।
8.4 आवेदकों/लाभार्थियों से उद्दिष्ट परियोजना के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक सांविधिक निर्गमों, परमिटों और लाइसेंसों को, चाहे जो कुछ हों, और जब कभी उनकी जरुरत हो, प्राप्त करने की अपेक्षा भी की जाती है। वे व्यय, यदि इन प्रक्रियाओं में शामिल हैं, उन्हें आवेदकों/लाभार्थियों द्वारा वहन किया जायेगा।
8.5 भूमि और सांविधिक अनुमतियों की उपलब्धता पर (जहाँ कहीं आवश्यक हो) आवश्यक दस्तावेजी साक्ष्य के साथ पुष्टिकरण, डी.पी.आर./स्वयं-धारित प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से इंगित किया जायेगा।
9.1 यह योजना, निम्नलिखित योजनाओं/कार्यक्रमों के साथ उपयुक्त संधि और अभिबिन्दुता प्रदान करती है:
(क) जहाज-रानी मंत्रालय की सागरमाला परियोजना
(ख) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा),
(ग) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर.के.वी.वाई.)
(घ) राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.) इत्यादि।
9.2 अतः, राज्य सरकारें, संघ-शासित क्षेत्र और अन्य अभिकरण ऊपर उल्लिखित योजनाओं या किसी अन्य योजना, जहाँ कहीं संभव हो, के साथ उपयुक्त अभिबिन्दुता की संभावना तलाश करेंगे जिनका स्थानीय रूप से कार्यान्वयन किया जा रहा है। ऐसे प्रस्तावों में, प्रत्येक योजना के अंतर्गत शामिल किये जाने वाले क्रिया-कलापों तथा वित्तीय भागीदारी करने की प्रस्तावित मात्रा का भी डी.पी.आर./स्वयं धारित प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जायेगा।
10.1 केंद्रीय क्षेत्र की योजना, पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान करते हुए, मछुआरा समितियों, सहकारी निकायों, महिलाओं, अनुसूचित जाति (अनु.जा.) तथा अनुसूचित जन-जातियों (अनु.जन.जा.) तथा विकसित क्षेत्रों इत्यादि के अंतर्गत विशेष ध्यान प्रदान करते हुए, सम्मिलित विकास का चक्कर लगाती है। पूँजी-निवेश एवं उद्यमिता विकास को प्रोत्साहित करने, संस्थागत वित्त प्रदान करने हेतु प्रबंध करने, पिछले और अगले संयोजनों को सुकर बनाने, प्रशिक्षण और क्षमता-निर्माण इत्यादि पर भी जोर दिया जा सकता है।
10.2 राज्य/संघ-शासित क्षेत्र मछुआरों, मत्स्य-कृषकों, मछुआरों की सहकारिता समितियों अनु.जा./अनु.जन.जा. एवं महिलाओं तथा उनके स्वयं सहायता समूहों, सहकारी समितियों तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों के प्रस्तावों को उच्च प्राथमिकता भी देंगे ताकि ऐसे लाभार्थियों का पर्याप्त रूप से शामिल किया जाना सुनिश्चित किया जाए जैसा कि योजना में उद्दिष्ट किया गया है।
10.3 यह योजना, मात्स्यिकी के विकास में राज्यों/लाभार्थियों के अंशदान की पूर्ति करने के लिये वित्तीय संस्थानों को शामिल करते हुए, विभिन्न स्रोतों से अपेक्षित वित्तीय संसाधन जुटाने के लिये अत्यंत लचीलापन तथा विस्तृत क्षेत्र-विस्तार प्रदान करती है।
11.1 परियोजना के निर्माण के लिये अपेक्षित पूँजी-निवेश के पूर्व अनिवार्य क्रिया-कलापों को पूरा करने के लिये व्यय, रा.स. को प्रस्ताव प्रस्तुतीकरण के केवल 6 महीने पहले अपने हाथ में लिये गये क्रिया-कलापों के वास्ते योजना की वित्तपोषण की पद्धति के अनुसार हिस्सेदारी आधार पर केंद्रीय सहायता के लिये विचार किये जायेंगे।
11.2 पूँजी-निवेश के पूर्व अनिवार्य क्रिया-कलापों के पूर्ण होने पर, केंद्रीय वित्तपोषण, कुल अनुमानित परियोजना लागत का 1% (बहु-करोड़ की बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं के लिये रु.50 लाख की सीमा तक) होगा जिसे योजना की वित्त-पोषण पद्धतियों के अनुसार हिस्सेदारी में बाँटा जायेगा।
11.3 परियोजना के निर्माण और योजना के अंतर्गत सहायता हेतु शामिल किये जाने वाले वृहद् क्रिया-कलाप ये हैं (1) सभी प्रकार के सर्वे तथा अन्वेषण, (2) व्यवहार्यता से पूर्व के अध्ययन, (3) व्यवहार्यता के पूर्व की रिपोर्टों की तैयारी (पी.एफ.आर.), (4) परियोजना का नियोजन और डिज़ाइन किया जाना, (5) व्यवहार्यता की रिपोर्टों की तैयारी (व्य.रिपोर्दै), (6) परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट (डी.पी.आर.)/स्वयं-धारित प्रस्ताव, (7) टेक्नो-आर्थिक व्यवहार्यता की रिपोर्ट (टी.ई.एफ.आर.) तथा (8) ढाँचे संबंधी डिज़ाइन और लागत के विस्तृत अनुमान इत्यादि।
11.4 लाभार्थियों/आवेदकों से परियोजना के निर्माण की अवधि के दौरान पूँजी-निवेश से पूर्व के अनिवार्य क्रिया-कलापों को पूर्ण करने के लिये व्यय अपने ऊपर लेने की अपेक्षा की जायेगी। परियोजना का निर्माण कम से कमतर अवधि के अंदर पूर्ण किया जाना चाहिये। ऐसे व्यय, योजना के अंतर्गत विचारार्थ, समर्थन करने वाले दस्तावेजों/प्रमाण-पत्रों/रसीदों इत्यादि के साथ व्यक्तिगत रिपोर्ट में शामिल किये जायेंगे। पूँजी-निवेश से पूर्व के ऐसे व्यय के केंद्रीय हिस्से की प्रतिपूर्ति परियोजना के प्रस्तावक को सक्षम प्राधिकारी द्वारा परियोजना अनुमोदन किये जाने और उसके सफलतापूर्वक पूर्ण होने के बाद ही की जायेगी।
11.5 यदि प्राधिकारी द्वारा प्रस्ताव का अनुमोदन नहीं किया जाता है या वह प्रस्ताव अपनी तकनीकी संभाव्यता/व्यवहार्यता/क्षेत्र-विस्तार से परे/योजना की परिधि से परे तैयार किये जाने, अपेक्षित अनापत्ति प्रमाण-पत्रों के प्रस्तुत न किये जाने, भूमि की अनुपलब्धता, पर्यावरणीय और धारणीयता की चिंताओं या किसी अन्य कारण से, चाहे वह कुछ भी हो, के कारण अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने में असफल हो जाता है, तो पूँजी-निवेश से पूर्व के क्रिया-कलापों के पूर्ण करने के लिये किये गये खर्च की योजना के अंतर्गत प्रतिपूर्ति नहीं की जायेगी।
11.6 संभाव्य/व्यवहार्य तथा परिणामोन्मुख प्रस्ताव इत्यादि तैयार करने का उत्तरदायित्व लाभार्थियों/आवेदकों का ही है। असंभाव्य और स्वीकार न किये जाने योग्य प्रस्तावों के बनाने में परियोजना के प्रस्तावकों द्वारा किये गये खर्च की प्रतिपूर्ति करने में भारत सरकार की कोई प्रतिबद्धता नहीं होगी।
12.1 जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि मात्स्यिकी के विकास के लिये योजना बनाने में निम्नलिखित विस्तृत घटक हैं:
(1) राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.)
(2) अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जल-कृषि का विकास
(3) समुद्री मात्स्यिकी, बुनियादी ढाँचा और फसलोत्तर परिचालनों का विकास
(4) डाटाबेस का मजबूत बनाया जाना एवं मात्स्यिकी के क्षेत्र की भौगोलिक सूचना-प्रणाली
(5) मात्स्यिकी के क्षेत्र के लिये संस्थागत प्रबंध
(6) अनुश्रवण, नियंत्रण और निगरानी (एम.सी.एस.) तथा आवश्यकता पर आधारित अन्य हस्तक्षेप
(7) मछुआरों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय योजना
12.2 उपरोक्त घटक सं. (1), (2) तथा (3) के संबंध में नये प्रस्ताव मुख्य कार्यपालक, राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.) को निम्नलिखित पते पर प्रस्तुत किये जायेंगे:
मुख्य कार्यपालक, राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड, मत्स्य भवन स्तंभ सं.235 के समीप, पी.वी.एन.आर. एक्सप्रेसवे, एस.वी.पी. राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (डाकघर), हैदराबाद-500052 (फैक्स: 040-24015568/24015552)
12.3 अन्य घटकों (अर्थात् 4 से 7 तक) के संबंध में प्रस्ताव और पूर्व में संस्वीकृत चालू परियोजनाओं के संबंध में प्रस्ताव (उपरोक्त (2) से (7) तक के घटकों के अंतर्गत) पशुपालन, डेयरी एवं मात्स्यिकी विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, कृषि भवन, नई दिल्ली को सीधे प्रस्तुत किये जायेंगे।
13.1 केंद्रीय क्षेत्र की योजना के प्रत्येक घटक और उप-घटक के संबंध में इकाई की लागत, लागत के मानदंड और परियोजना की विशिष्ट अपेक्षाओं को वित्तपोषण की विस्तृत पद्धतियों और सी.एस.एस. के अंतर्गत निर्धारित लक्ष्यों को ध्यान में रखकर रुपायित किया गया है।
13.2 लागत के मापदंड और परियोजना के विशिष्ट दिशा-निर्देश इसके परिशिष्टों में दिये गये हैं, जैसे कि विस्तार में नीचे दिये गये हैं: परिशिष्ट –
परिशिष्ट - 1 |
समुद्री मात्स्यिकी, बुनियादी ढाँचा और फसलोत्तर परिचालनों का विकास |
परिशिष्ट - 2 |
मछुआरों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय योजना |
परिशिष्ट - 3 |
अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जल-कृषि का विकास |
परिशिष्ट - 4 |
राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.) और इसके क्रिया-कलाप |
परिशिष्ट - 5 |
अनुश्रवण, नियंत्रण और निगरानी (एम.सी.एस.) और आवश्यकता पर आधारित अन्य हस्तक्षेप |
परिशिष्ट - 6 |
डाटाबेस का मजबूत किया जाना तथा मात्स्यिकी के क्षेत्र की भौगोलिक सूचना -प्रणाली |
परिशिष्ट - 7 |
मात्स्यिकी-क्षेत्र के लिये संस्थागत व्यवस्था |
13.3 ऊपर उल्लिखित इकाई की लागतें, लागत के मापदंड व्यक्तिगत, प्रस्तावों को केंद्रीय वित्तीय सहायता के रूप में अनुदान की स्वीकार्य धनराशि का निर्णय करने के आधार होंगे।
13.4 राज्य/संघ-शासित क्षेत्र और अन्य लाभार्थी, परियोजनाओं के बनाने और कार्यान्वयन के लिये संबंधित परिशिष्ट में संकेत की गई इन इकाईयों की लागतों, लागत के मानदंडों और परियोजना के विशिष्ट दिशा-निर्देशों का उपयोग कर सकते हैं।
14.1 सी.एस.एस. के प्रत्येक घटक में आबंटित बजट का 5% तक, योजना का प्रबंध करने के लिये चिन्हित किया जायेगा।
14.2 प्रशासनिक व्ययों के अंतर्गत चिन्हित निधियाँ इन कार्यों के लिये उपयोग की जायेंगीं (क) सूचना शिक्षा संचार (आई.ई.सी.) के क्रिया-कलाप और इलेक्ट्रॉनिक और मुद्रण-सामग्री को शामिल करते हुए आई.ई.सी. सामग्री की तैयारी के लिये (ख) सेमिनारों, कार्यशालाओं, सम्मेलनों, कार्यालयीन बैठकों, कृषक-बैठक इत्यादि की लागत (ग) इलेक्ट्रॉनिक और मुद्रण मीडियाओं के माध्यम से प्रचार के क्रिया-कलाप, (घ) सफलता की कहानियों और प्रबंध के सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों पर वीडियो-रिकार्डिंग एवं फोटोग्राफी, (च) पर्यवेक्षण, अनुश्रवण और मूल्यांकन की लागत, (छ) अनिवार्य हार्डवेयर/सॉफ्टवेयर के साथ-साथ अपेक्षित एम.आई.एस. की तैयारी, (ज) सामाजिक अंकेक्षण यदि कोई अपेक्षित हो, (झ) संविदा पर कार्मिक को किराये पर लेने की लागत, (ट) निर्धारणों और मूल्यांकन के अध्ययनों की लागत; (ठ) परियोजना के प्रबंधन के सलाहकारों का किराये पर लिया जाना, (ड) राज्य और राष्ट्रीय वार्षिक योजनाओं तथा दृष्टि में आने वाले दस्तावेजों इत्यादि की तैयारी।
14.3 इन निधियों का उपयोग राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों की सहायता करने में भी, जो अपनी कार्य-योजनाओं की तैयारी करने के लिये, विकास की योजनाओं को प्राथमिकता देने, परियोजना के सलाहकारों के माध्यम से प्रस्तावों की तैयारी इत्यादि के लिये सहायता चाहते हैं, उपयोग किया जा सकता है।
15.1 परियोजना की योजना के अंतर्गत केंद्रीय वित्तीय सहायता संबंधित राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्रों/केंद्रीय सरकार के संगठनों/संस्थानों/एन.एफ.डी.बी. और आई.सी.ए.आर. के संस्थानों, जैसा भी मामला हो, के माध्यम से निर्गत की जायेगी।
15.2 केंद्रीय निधियाँ, राज्य के कार्यान्वयन करने वाले अभिकरणों (एस.आई.ए.) के माध्यम से भी, जहाँ कहीं भी राज्य सरकारें/संघ-शासित क्षेत्र ऐसे संस्थानों/संगठनों की पहचान करती/करते हैं/अधिकृत करती/करते हैं, निर्गत की जायेंगीं। एस.आई.ए. होंगे- राज्य की मात्स्यिकी के निगम, मात्स्यिकी के परिसंघ, मात्स्यिकी के विकास बोर्ड, मत्स्य का विपणन करने वाले बोर्ड और कोई अन्य अभिकरण जिसकी राज्य/संघ-शासित क्षेत्र अनुशंसा करते हैं।
15.3 परियोजना/प्रस्ताव के अनुमोदन पर, योजना के अंतर्गत स्वीकार्य केंद्रीय वित्तीय सहायता किश्तों में जारी की जायेगी और किश्तों का आकार और संख्या परियोजना के परिमाण और केंद्रीय सहायता की कुल मात्रा, वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता, परियोजना का कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण की निधियों की खपत करने की क्षमता और परियोजना की प्रगति के मूल्यांकन को ध्यान में रखकर निर्धारित की जायेगी। वरीयतः, केंद्रीय अंशदान की प्रथम किश्त की अनुशंसा एस.पी.ए.सी./एस.पी.एस.सी. द्वारा की जायेगी और प्रस्ताव के अनुमोदन पर जारी की जायेगी।
15.4 प्रथम किश्त के जारी किये जाने के बाद, केंद्रीय अंशदान के उत्तरवर्ती निर्गम के लिये प्रस्तावों पर निम्नलिखित बातों के पूर्ण होने के बाद ही विचार किया जायेगा।
(क) केंद्रीय निधियों का उपयोग उस उद्देश्य के लिये जिसके वास्ते यह जारी की गई थी और उसका उपभोग प्रमाण-पत्र (उ.प्र.) जी.आर.एफ. के अंतर्गत निर्धारित प्रारुप के अनुसार।
(ख) लाभार्थी राज्य सरकार/संगठन/अभिकरणों के आनुपातिक अंशदान के योगदान के दस्तावेजी साक्ष्य का प्रस्तुतीकरण
(ग) भौतिक और वित्तीय प्रगति रिपोर्टों का प्रस्तुत किया जाना
(घ) व्यय का लेखा-परीक्षित विवरण, जहाँ कहीं लागू हो।
15.5 लाभार्थी/आवेदक संस्वीकृति के नियमों और शर्तों के अनुसार केंद्रीय निधियों का दृढ़ता से उसी उद्देश्य के लिये उपयोग करेंगे जिस उद्देश्य से इसे जारी किया गया था और केंद्रीय निधियों के किसी अन्य उद्देश्य के लिये परिवर्तन की अनुमति नहीं दी जायेगी। यदि, परियोजना का प्रस्तावक इस उद्देश्य के लिये केंद्रीय निधियों का उपयोग नहीं करता है, तो वह उसे 12% वार्षिक या बैंक की प्रोद्भूत ब्याज, जो भी उच्चतर हो, के साथ उसे वापस करेगा।
15.6 लागत में वृद्धि, यदि कोई हो, जो अनुमोदित परियोजना के प्रारम्भ होने में अनुचित प्रशासनिक और प्रक्रिया-संबंधी देरी, परियोजना के निष्पादन और पूर्ण होने में देरी, लाभार्थी का अंशदान समय पर उपलब्ध न होने, भारत सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना प्रस्तावों में किये गये विचलन या किसी अन्य कारण से हुई हो, उसकी अनुमति नहीं दी जायेगी और उसे परियोजना के प्रस्तावक द्वारा पूर्ण रुप से वहन किया जायेगा।
15.7 परियोजना का प्रस्तावक, अनुमोदित प्रस्ताव/परियोजना के कार्यान्वयन में किये गये खर्च के समुचित अभिलेखों का कठोरता से रख-रखाव करेगा एवं उसका संरक्षण करेगा और उन्हें उस समय प्रस्तुत करेगा जब कभी उसकी निधि प्रदान करने वाले मंत्रालय/विभाग/बोर्ड या संबंधित राज्य सरकार/एस.आई.ए. के द्वारा भी माँग की जाती है।
15.8 परियोजना के प्रस्तावक द्वारा केंद्रीय निधियों की प्राप्ति और अनुमोदित परियोजना के कार्यान्वयन में उनके धन के उपयोग के संबंध में रख-रखाव किये गये लेखे निरीक्षण के लिये खुले रहेंगे जब कभी उनकी संस्वीकृति प्राधिकारी और लेखा-परीक्षा, दोनों ही भारत के नियंत्रक और महा लेखा-परीक्षक तथा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के प्रधान लेखा अधिकारी के आंतरिक लेखा-परीक्षा के द्वारा माँग की जाती है।
16.1 इस योजना के अंतर्गत हाथ में ली गई परियोजनाओं का दो स्तर वाली प्रणाली के माध्यम से अनुश्रवण किया जायेगा जो संयुक्त सचिव (मात्स्यिकी), डी.ए.डी.एफ. की अध्यक्षता में केंद्रीय अनुमोदन एवं अनुश्रवण समिति (सी.ए.एम.सी.) और मात्स्यिकी के राज्य के प्रभारी सचिव की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय अनुमोदन एवं अनुश्रवण समिति (एस.एल.ए.एम.सी.) से मिलकर बनती है।
16.2 एस.एल.ए.एम.सी. तथा सी.ए.एम.सी. तिमाही आधार पर आवधिक आधार पर प्रगति की समीक्षा करेंगीं और वे नील-क्रान्ति योजना के अंतर्गत ली गई परियोजनाओं का समुचित और त्वरित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये कार्यान्वयन करने वाले अभिकरणों का मार्गदर्शन करेंगीं। इसके अतिरिक्त, डी.ए.डी.एफ.(मात्स्यिकी)/एन.एफ.डी.बी. भी भौतिक निरीक्षण/सत्यापन करने के लिये परियोजना के स्थल पर नियमित रुप से अपने प्रतिनिधियों को प्रतिनियुक्ति करेंगे।
16.3 सामान्य तौर पर, परियोजना के अनुमोदित प्रस्ताव में किन्हीं भी विचलनों की अनुमति नहीं दी जायेगी। यदि, किन्हीं प्राकृतिक आपदाओं या किन्हीं अन्य अपरिहार्य तकनीकी बाध्यताओं के कारण, परियोजना के अनुमोदित प्रस्ताव में किसी बढ़ोत्तरी/कमी/अनुमोदित मदों में किसी संशोधन का पुनरीक्षण किया जाना है तो ऐसे प्रस्ताव एस.एल.ए.एम.सी. और सी.ए.एम.सी. के समक्ष प्रस्तुत किये जायेंगे। मध्यावधि में सूचित किये गये/सी.ए.एम.सी. द्वारा अनुशंसा किये गये सुधार, विचारार्थ। अनुमोदन के लिये डी.ए.डी.एफ. के समक्ष रखे जायेंगे।
16.4 जब तक परियोजना पूर्ण नहीं हो जाती है, तब तक लाभार्थी/आवेदक तिमाही आधार पर एक विस्तृत प्रगति रिपोर्ट (दोनों-वित्तीय और भौतिक) और जब परियोजना सभी प्रकार से पूर्ण हो जाती है तो परियोजना के पूर्ण होने की रिपोर्ट पशुपालन, डेयरी और मात्स्यिकी विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और एन.एफ.डी.बी. को, जैसा भी मामला हो, प्रस्तुत करेंगे।
16.5 डी.ए.डी.एफ./एन.एफ.डी.बी., इस योजना के अंतर्गत अपने हाथ में ली गई परियोजनाओं का मूल्यांकन और अनुश्रवण भी एक स्वतंत्र अभिकरण, परियोजना प्रबंधन के परामर्शदाता समूह (पी.एम.ए.जी.)/सलाहकारों, यदि कोई हों, यदि आवश्यकता हो तो डी.ए.डी.एफ./एन.एफ.डी.बी. इत्यादि के द्वारा नियुक्त अभिकरण के माध्यम से करेगा। डी.ए.डी.एफ./एन.एफ.डी.बी. भी इस योजना के अंतर्गत परियोजना का मूल्यांकन एवं अनुश्रवण करने के लिये अपने प्रतिनिधियों को परियोजना स्थल पर, जब कभी जरुरत हो, प्रतिनियुक्त कर सकते हैं।
17.1 इस योजना के अंतर्गत केंद्रीय सहायता से सृजन की गई सुविधाओं के विकासोत्तर प्रबंधन/निर्माण-प्रबंधन का पूर्ण उत्तरदायित्व लाभार्थी अभिकरण/राज्य/संघ-शासित क्षेत्र का होगा। इस योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता से सृजित सुविधाओं के विकास, परिचालन, रख-रखाव और प्रबंधन में निर्माण की अवधि में परिचालन की लागतों, हानि, यदि कोई हो, के लिये भारत सरकार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय उत्तरदायी नहीं होगा।
17.2 परियोजना का प्रस्तावक इस योजना के अंतर्गत सृजित सुविधाओं के रख-रखाव, प्रबंधन और परिचालन के लिये अपेक्षित सभी खर्चे भी एक दक्ष तरीके से और मानक वाणिज्यिक परिचालन/रख-रखाव के अभ्यासों/प्रक्रियाओं के अनुसार वहन करेगा। लाभार्थी/आवेदक यह सुनिश्चित करेगा कि इन सुविधाओं का परिचालन संबंधी दशाओं में रख-रखाव किया जाता है।
17.3 लाभार्थी अभिकरण/आवेदक/राज्य/संघ-शासित क्षेत्र, इस योजना के अंतर्गत सृजित सुविधाओं के समुचित परिचालन, रख-रखाव और प्रबंध के लिये अपेक्षित पर्याप्त/आवश्यक और सुसंगत योग्य जन-शक्ति उपाप्त करेंगे और उसका रख-रखाव करेंगे। तैनात की गई जन शक्ति से होने वाले उत्तरदायित्व/देयता जैसे मजदूरी, भत्ते, प्रभार या किन्हीं अन्य संविधिक या अन्य देयों के लिये परियोजना का प्रस्तावक उत्तरदायी होगा। भारत सरकार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, किसी भी कारण के लिये, चाहे जो भी हो, (सुविधाओं के विकासोत्तर/निर्माण प्रबंध पर) के संबंध में किसी देयता/उत्तरदायित्व के लिये जिम्मेदार नहीं होगी।
17.4 इस योजना के अंतर्गत केंद्रीय सहायता से सृजित बुनियादी ढाँचे/सुविधाओं से उत्पन्न होने वाले कानूनी विवादों, यदि कोई हों, के हल करने और न्यायालय के फैसलों के कार्यान्वयन का पूर्ण उत्तरदायित्व संबंधित राज्य सरकार / संघ-शासित क्षेत्र / कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण / लाभार्थी संगठनों का होगा। इन क्रिया-कलापों में वित्तीय उलझाव, यदि कोई हों, भी संबंधित राज्य सरकार/संघ-शासित क्षेत्र/कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण/लाभार्थी संगठनों का होगा।
1. समुद्री मात्स्यिकी, बुनियादी सुविधाएं और फसलोत्तर परिचालन
क्र.सं. |
घटक |
इकाई की लागत |
नियम और शर्ते |
(1) |
(2) |
(3) |
(4) |
1.1
|
परम्परागत नावों का मोटरीकरण
|
रु.1.20 लाख तक/नाव (मछली मारने वाले उपस्कर तथा नोदक के साथ) |
(1) लाभार्थी मछुआरे के पास परम्परागत नाव होनी चाहिये और आर.ई.ए.एल. क्राफ्ट (एक समान पंजीकरण प्रमाणतथा पत्र) के अंतर्गत एक वैध पंजीकरण प्रमाण-पत्र तथा मछली मारने का वैध लाइसेंस होना चाहिये। (2) 10 अश्व शक्ति की क्षमता तक के आई.बी.एम./ओ.बी.एम. (2-आघात और 4-आघात) की अनुमति है। (3) 5 वर्ष से अधिक पुराने इंजन (आई.बी.एम./ओ/बी.एम.) के प्रतिस्थापन के लिये भी वित्तीय सहायता प्रदान की जायेगी। (4) लाभार्थियों को यह सहायता 5 वर्ष में केवल एक बार प्रदान की जायेगी (5) संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र उपाप्ति की अनिवार्य प्रक्रिया और सांकेतिक औपचारिकताओं को अपना कर आई.बी.एम. /ओ.बी.एम. प्राप्त करेंगे और उनकी आपूर्ति करेंगे। (6) राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों से स्वयं-धारित प्रस्तावों और उनमें शेष 50% राज्य/लाभार्थी के अंशदान का भी संकेत करते हुए, उनके आधार पर केंद्रीय सहायता प्रदान की जायेगी। |
1.2 |
समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा |
रु.2.00 लाख प्रति किट |
(1) सुरक्षा किट, जी.पी.एस., संचार का उपकरण, प्रतिध्वनि सुरक्षा करने वाला यंत्र, जीवन-रक्षक जैकेट, जीवन-रक्षक पेटी, संकट से सावधान करने वाला ट्रांसमीटर (डी.ए.टी.), जीवन-रक्षक उपकरण (वी.एच.एफ. रेडियोटेलीफोन), मछली-अन्वेषक, बैक अप बैटरी, खोज एवं बचाव प्रकाश इत्यादि से मिलकर बनेगी। (2) संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्रों से प्रस्ताव में लागत के अनुमान को शामिल करते हुए, मछली मारने वाले एक विशेष जलयान के लिये, उपरोक्त (1) में उल्लिखित मदों की विशिष्ट और अनिवार्य आवश्यकता का मूल्यांकन करने की अपेक्षा की जाती है। (3) लाभार्थी के पास होना चाहिये - वैध (क) स्वामित्व प्रमाण-पत्र, (ख) आर.ई.ए.एल.क्राफ्ट के अंतर्गत पंजीकरण प्रमाण-पत्र, (ग) मछली मारने का लाइसेंस तथा (घ) बायो-मीट्रिक आई.डी. मछुआरों का आई.डी. कार्ड |
1.3 |
परम्परागत /कारीगर मछुआरों को सहायताः क) जालों को शामिल करते हुए परम्परागत/लकड़ी की नावों के प्रतिस्थापन के रूप में 10 एम., ओ.ए.एल. तक एफ.आर.पी. नावों की उपाप्ति (ख) मछलियाँ / वर्फ रखने की कुसंवाहक पेटियों की उपाप्ति |
(क) रु.4.00 लाख प्रति नाव की अधिकतम सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार (ख) रु.25,000/- प्रति नाव की अधिकतम सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार।
|
(1) इस घटक के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने के लिये केवल परम्परागत/कारीगर मछुआरे ही पात्र हैं। (2) लाभार्थी के पास होना चाहिये वैध (क) स्वामित्व प्रमाण-पत्र, (ख) आर.ई.ए.एल. क्राफ्ट के अंतर्गत पंजीकरण प्रमाण-पत्र, (ग) मछली मारने का लाइसेंस तथा (घ) बायोमीट्रिक आई.डी. मछुआरों का आई.डी. कार्ड। (3) प्रत्येक एफ.आर.पी. नाव के लिये वित्तीय सहायता 500 कि.ग्रा. से 1000 कि.ग्रा. तक की क्रमश: मछलियों की या वर्फ की क्षमता धारण करने वाली अधिकतम 2 कुसंवाहक पेटियों तक सीमित होगी। (4) राज्य सरकारें/संघ-शासित क्षेत्र मछलियाँ मारने की पुरानी नावों (जिनके स्थान पर नई प्रतिस्थापित की जा रही है) का उपयुक्त रूप से निस्तारण सुनिश्चित करेंगीं/करेंगे। |
1.4 |
मछुआरों के लिये हाई स्पीड डीजल (एस.एस.डी.) पर छूट |
|
(1) लाभार्थी के पास होना चाहिये - 20 एम.ओ.ए.एल. का मछली मारने वाले जलयान का वैध स्वामित्व प्रमाणपत्रे, आर.ई.ए.एल. क्राफ्ट के अंतर्गत पंजीकरण प्रमाणपत्र, मछलियाँ मारने का लाइसेंस और बायोमीट्रिक आई.डी. मछुआरे का आई.डी. कार्ड (2) केंद्रीय छूट के लिये केवल बी.पी.एल. श्रेणी के लाभार्थी पात्र होंगे। (3) केंद्रीय छूट, एक वर्ष में मछलियाँ मारने के 9(नौ) सक्रिय महीनों में प्रति माह, मछली मारने की प्रति नाव के लिये 500 लीटर तक प्रतिबंधित होगी। |
1.5 |
जलयान के अनुश्रवण करने की प्रणाली की स्थापना एवं परिचालन (वी.एम.एस.) |
वास्तविक लागत
|
(1) यह परियोजना कार्यान्वित करने के लिये एफ.एस.आई./डी.ए.डी.एफ. नोडल एजेंसी है। (2) पोरबंदर में विकसित /स्थापित किये गये हब-स्टेशन, एंटीना और अन्य उपस्करों के रख-रखाव तथा परिचालन की लागतें। (3) अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और सूचना-प्रणाली के यंत्रों का उपयोग करते हुए मछली मारने वाले जलयानों का अनुश्रवण करना और निगरानी करना। (4) प्रसार के संबंध में क्रिया-कलाप (क) मौसम की भविष्यवाणी एवं पूर्व-चेतावनी तथा (ख) समुद्री मछुआरों इत्यादि के लिये मछली मारने के क्षेत्र (पी.एफ.जेड.) की संभावना (5) उपरोक्त (2) तथा (3) में उल्लिखित क्रिया-कलाप संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों /विभागों/संस्थानों जैसे एम.एच.ए., अर्थ विज्ञान मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, आई.एस.आर.ओ., आई.एन.सी.ओ.आई.एस., एन.आई.सी., एफ.एस.आई., सी.आई.एफ.एन.ई.टी. और अन्य केंद्रीय सरकारी संस्थानों के समन्वय से (जहाँ कहीं अपेक्षित हो) किये जायेंगे। (6) इन मंत्रालयों/ विभागों/ संस्थानों (जहाँ कहीं व्यवहार्य हों) की योजनाओं की अभिबिन्दुता पर भी विचार किया जायेगा। (7) मछली मारने वाले जलयानों पर एक चरणबद्ध तरीके से आवश्यक सॉफ्टवेयर का विकास, संसूचना के उपयुक्त उपायों / ट्रांसपोंडरों और अनिवार्य उपस्करों की उपाप्ति और स्थापना। |
1.6
|
पर्यावरण के अनुकूल मछली मारने के अभ्यासों के लिये गैर- परम्परागत ऊर्जा (एन.सी.ई.) के स्रोतों का प्रोत्साहन करना
|
वास्तविक लागत |
(1) मछली मारने वाले जलयानों पर प्रकाश करने, प्रशीतन इत्यादि में सौर-ऊर्जा/एन.सी.ई. के अन्य स्रोतों के प्रयोग के लिये सहायता (2) लाभार्थी के पास होना चाहिये - वैध स्वामित्व वाला प्रमाण-पत्र, आर.ई.ए.एल. क्राफ्ट के अंतर्गत पंजीकरण प्रमाण-पत्र, मछली मारने का लाइसेंस और बायोमीट्रिक आई.डी. मछुआरों का आई.डी. कार्ड (3) सहायता का लाभ उठाने के लिये राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों और केंद्रीय मात्स्यिकी के संस्थानों/संगठनों से स्वयं-धारित परियोजना के प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जाती है। |
1.7
1.7.1 |
इस रूप में मारीकल्चर को प्रोत्साहन:
खुले समुद्र में पिंजड़े की कृषि |
प्रत्येक वृत्ताकार पिंजड़े के मामले में न्यूनतम 6 मीटर व्यास और 4 मीटर की गहराई वाले प्रत्येक पिंजड़े के लिये 5 लाख और प्रत्येक आयताकार पिंजड़े (6 मी. X 4 मी. X 4 मी. के मामले में 96 घनमीटर आयतन) |
(1) समुद्र में पिंजड़े स्थापित करने के लिये आवेदक को संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार से और अन्य सक्षम प्राधिकारियों से आवश्यक पूर्व अनुमतियाँ प्राप्त करनी होंगी। (2) मछुआरा सहकारी समितियाँ, अनु.जा./ अनु.जन.जाति - सहकारी समितियाँ, महिलाओं के स्वयं-सहायता समूह, पंजीकृत कम्पनियाँ या निजी उद्यमी इत्यादि एक विशिष्ट स्थान पर प्रत्येक 5 पिंजड़ों की 4 बैटरियों (20 पिंजड़े) के लिये केंद्रीय सहायता के लिये पात्र होंगी/होंगे। (3) इकाई की लागत में एकबारगी आधार पर पूँजी, परिचालन संबंधी और रख-रखाव की लागतें शामिल हैं। (4) आवेदकों से सहायता की सुविधा उठाने के लिये अनिवार्य अनुमतियों तथा तकनीकी जानकारी के दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ-साथ स्वयं-धारित परियोजना के प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जाती है। |
1.7.2 |
समुद्री शैवालों की कृषि |
प्रति तरापा रु.1000/- (3 मी. X 3 मी. वाला)
|
(1) आवेदक तरापों की स्थापना के लिये संबंधित राज्य आकार संघ-शासित क्षेत्र की सरकार और अन्य सक्षम प्राधिकारियों से अनिवार्य पूर्व-अनुमतियाँ प्राप्त करेगा। (2) मछुआरा सहकारी समितियाँ, अनु.जा. / अनु.जन.जाति - सहकारी समितियाँ, महिलाओं के स्वयं-सहायता समूह, निजी उद्यमियों की पंजीकृत कम्पनियाँ इत्यादि उपयुक्त स्थलों/स्थानों पर अधिकतम 500 तरापों तक के एक समूह के लिये केंद्रीय सहायता के लिये पात्र होंगीं। (3) इकाई की लागत में पूँजी, परिचालन संबंधी और रख-रखाव की लागतें एकबारगी आधार पर शामिल हैं। (4) आवेदकों से सहायता की सुविधा का लाभ उठाने के लिये अनिवार्य अनुमतियों और तकनीकी जानकारी के दस्तावेजी साक्ष्य के साथ परियोजना के स्वयं-धारित प्रस्तावों के प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जाती है। (5) प्रस्ताव, स्पष्ट अनुशंसा के साथ संबंधित राज्य सरकार/संघ-शासित प्रदेश के प्रशासन के माध्यम से भेजे जायेंगे। |
1.7.3 |
द्विकपाटी की कृषि |
रु.15,000/- बाँस का प्रति तरापा (आकार 5 मी. X 5 मी.) |
(1) आवेदक, रैकों की स्थापना के लिये संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार तथा अन्य सक्षम प्राधिकारियों से अनिवार्य पूर्व-अनुमतियाँ प्राप्त करेगा। (2) मछुआरा सहकारी समितियाँ, अनु.जा./अनु.जन.जाति की सहकारी समितियाँ, महिलाओं के स्वयं-सहायता समूह, निजी उद्यमियों की पंजीकृत कम्पनियाँ इत्यादि उपयुक्त स्थलों / स्थानों पर अधिकतम 40 रैकों तक के लिये बैटरी की केंद्रीय सहायता के लिये पात्र होंगीं। (3) इकाई की लागत में पूँजी, परिचालन संबंधी और रख-रखाव की एकबारगी आधार पर लागतें शामिल हैं। (4) आवेदकों से, सुविधा का लाभ उठाने के लिये अनिवार्य अनुमतियों और तकनीकी जानकारी के दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ परियोजना के स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जायेगी। (5) स्पष्ट अनुशंसाओं के साथ प्रस्ताव संबंधित राज्य सरकार/संघ-शासित क्षेत्र के माध्यम से भेजे जायेंगे। |
1.7.4 |
मोती की कृषि (समुद्री एवं मीठा पानी) |
रु.25 लाख प्रति परियोजना की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार
|
(1) आवेदक, मोती की कृषि के तरापों की स्थापना के लिये संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार और अन्य सक्षम प्राधिकारियों से अनिवार्य पूर्व-अनुमतियाँ प्राप्त करेगा। (2) मछुआरा सहकारी समितियाँ, अनु.जा. /अनु.जन.जाति की सहकारी समितियाँ, महिलाओं के स्वयं-सहायता समूह, निजी उद्यमियों की पंजीकृत कम्पनियाँ इत्यादि उपयुक्त स्थलों / स्थानों पर प्रत्येक समूह के लिये एक परियोजना के लिये केंद्रीय सहायता के लिये पात्र होंगे/होंगी। (3) इकाई की लागत में पूँजी, परिचालन संबंधी और रख-रखाव की एकबारगी आधार पर लागतें शामिल हैं। (4) आवेदकों से, सुविधा का लाभ उठाने के लिये अनिवार्य अनुमतियों और तकनीकी जानकारी के दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ परियोजना के स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जायेगी। (5) स्पष्ट अनुशंसाओं के साथ प्रस्ताव संबंधित राज्य सरकार/संघ-शासित क्षेत्र के माध्यम से भेजे जायेंगे। |
1.8 |
समुद्री मात्स्यिकी का प्रबंधन |
रु.5 लाख प्रति परियोजना की सीमा के साथ वास्तविक लागत
|
निम्नलिखित क्रिया-कलाप करने के लिये 100% केंद्रीय सहायता: (क) मात्स्यिकी के धारणीय अभ्यासों पर मात्स्यिकी के संरक्षण एवं प्रबंधन, समुदा को हद से परे जाने वाले कार्यक्रमों पर आयोजन किया जाना। (ख) उत्तरदायी मात्स्यिकी के लिये आचार संहिता (सी.सी.आर.एफ.) का कार्यान्वयन किया जाना (ग) लघु स्तर की मात्स्यिकी पर एफ.ए.ओ. के दिशा-निर्देशों का कार्यान्वयन किया जाना (घ) मछली मारने वाले विभिन्न प्रकार के जलयानों के अनुकूलतम आकार के बेड़े की शर्तों के अनुसार मछली मारने की क्षमता का मूल्यांकन और मात्स्यिकी के धारणीय अभ्यासों का सुझाव दिया जाना। (च) मात्स्यिकी के संसाधनों पर जलवायु-परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं, प्रदूषण इत्यादि के प्रभाव पर अध्ययन। |
1.9 |
समुद्र तटीय राज्यों/ संघ-शासित क्षेत्रों में परम्परागत मछुआरों और उनकी समितियों के लिये मध्यम आकार (18-22 मी.ओ.ए.एल.) गहरे समुद्र में मछली मारने वाले जलयान के लिये सहायता |
अधिकतम रु.40 लाख मछली मारने वाले प्रति जलयान की शर्त के साथ वास्तविक लागत
|
(1) उपरोक्त घटक (क), (ख) और (ग) आई.सी.ए.आर., केंद्रीय सरकार के संगठनों/विभागों इत्यादि को शामिल करते हुए राज्य सरकारों, संघ-शासित क्षेत्रों, राज्य के अभिकरणों/संगठनों, निगमों, परिसंघों, परिषदों, मछुआरा सहकारी समितियों, केंद्रीय मात्स्यिकी संस्थानों इत्यादि के माध्यम से कार्यान्वित किये जायेंगे। (2) उपरोक्त घटक (घ) तथा (च) केंद्रीय सरकार के अभिकरणों/संगठनों/विभागों, केंद्रीय मात्स्यिकी संस्थानों, आई.सी.ए.आर., राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्रों और इस क्षेत्र में मान्यता प्राप्त विशेषज्ञ अभिकरणों के माध्यम से कार्यान्वित किये जायेंगे। (3) परियोजना के प्रस्तावकों से स्पष्ट रूप से उद्देश्यों, वर्थ्य-विषय, कार्यान्वयन करने का क्षेत्र, शामिल किये जाने वाले लाभार्थियों, कार्यान्वयन की अनुसूची, प्रत्याशित प्रतिफलों/लाभों इत्यादि का संकेत करते हुए डी.पी.आर. प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जायेगी। |
2. बुनियादी ढाँचे और फसलोत्तर परिचालनों का विकास |
|||
2.1 |
मछली मारने वाले बंदरगाहों और मछली की उतराई वाले केंद्रों की स्थापना |
वास्तविक लागत के अनुसार |
आवेदकों से निम्नलिखित औपचारिकताएं पूरी करने की अपेक्षा की जाती है: (1) उपयुक्त स्थल/स्थान की/का पहचान/चयन। (2) आवश्यक इंजीनियरिंग और समाजिक-आर्थिक अन्वेषण और सर्वेक्षण, (3) मछली मारने वाले बंदरगाह/मछली की उतराई वाले केंद्र की योजना एवं डिज़ाइन बनाना। (4) हाइड्रोलिक मॉडल के अध्ययन, जहाँ कहीं अपेक्षित हों। (5) ई.आई.ए./ई.एम.पी. के अध्ययन, जो पर्यावरणीय अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिये अपेक्षित हों। (6) मछली मारने वाले प्रस्तावित बंदरगाह/ मछली की उतराई वाले केंद्र के विकास के लिये अपेक्षित भूमि अधिग्रहण। (7) लागत के अनुमान, परियोजना के क्षेत्र में नवीनतम स्वीकार्य एस.ओ.आर.एस. पर आधारित होंगे। (8) आवेदकों से, सहायता की सुविधा का लाभ उठाने के लिये उपरोक्त (1) से (7) तक के दस्तावेजी साक्ष्य को शामिल करते हुए स्वयं-धारित परियोजना के प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जाती है। |
2.2 |
मछली मारने वाले बंदरगाहों / मछली की उतराई वाले केंद्रों के समुद्र के तलमार्जन के लिये सहायता
|
वास्तविक लागत के अनुसार |
समुद्र-तल का मार्जन करने वाली परियोजनाओं के लिये, आवेदकों से निम्नलिखित औपचारिकताएं पूरी करने की अपेक्षा की जाती है: (1) अनिवार्य इंजीनियरिंग के अन्वेषण और सर्वेक्षण। (2) समुद्र तल के मार्जन करने के रख-रखाव की मात्रा का मूल्यांकन और परियोजना के क्षेत्र में ग्राह्य नवीनतम एस.ओ.आर.एस. पर आधारित लागत के अनुमानों की तैयारी। (3) सहायता की सुविधा का लाभ उठाने के लिये उपरोक्त (1) तथा (2) के दस्तावेजी साक्ष्य को शामिल करते हुए परियोजना के स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करें। |
3. फसलोत्तर बुनियादी सुविधाओं का मजबूत किया जाना |
|||
3.1
|
इस उप-घटक के अंतर्गत केंद्रीय वित्तीय सहायता के लिये पात्र फसलोत्तर बुनियादी ढाँचे के विकास ये हैं: (1) वर्फ के संयंत्र (2) शीत-भंडार गृह (3) वर्फ के संयंत्र –सह शीत भंडार गृह |
रु.2.50 लाख प्रति टन |
(1) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता और अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों इत्यादि के दस्तावेजी साक्ष्य, डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) लागत के अनुमान, परियोजना के क्षेत्र में ग्राह्य नवीनतम एस.ओ.आर.एस. और बाजार में प्रचलित दरों पर आधारित होंगे। (3) लाभार्थी यह प्रमाणित करेंगे कि बुनियादी ढाँचे की सुविधाओं के परिचालन संबंधी और रख-रखाव की लागतें, भविष्य में उनके द्वारा वहन की जायेंगीं। (4) लाभार्थी उपरोक्त (1) से (2) तक के संबंध में दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे। (5) स्पष्ट अनुशंसाओं के साथ प्रस्ताव, संबंधित राज्य सरकारों / संघ-शासित क्षेत्रों के माध्यम से भेजे जायेंगे। |
3.2
|
विद्यमान मदों का पुनरुद्धार / आधुनिकीकरण (क) वर्फ के संयंत्र ख) शीत भंडार-गृह और (ग) वर्फ के संयंत्र-सह-शीत भंडार-गृह
|
रु.1.50 लाख प्रति टन |
(1) विद्यमान संयंत्रों के पुनरुद्धार/ आधुनिकीकरण के बड़े - बड़े मदों में विद्यमान संयंत्र की प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करने के दृष्टिकोण से ये शामिल होंगे - विद्यमान भवन के सिविल कार्य, संयंत्रों एवं मशीनरियों की प्रतिस्थापना, विद्युतीकरण एवं जलापूर्ति एवं सफाई के और कार्य इत्यादि। (2) लाभार्थियों का विद्यमान बुनियादी ढाँचे वाले/वाली संयंत्र/सुविधाओं पर स्वामित्व होना चाहिये। (3) केवल न्यूनतम 10 वर्ष पुराने विद्यमान एवं परिचालन वाले संयंत्रों का पुनरुद्धार / आधुनिकीकरण, एकबारगी आधार पर करने के लिये वित्तपोषण हेतु विचार किया जा सकता है। (4) लाभार्थियों को, परियोजना के लिये बकाया वित्तपोषण का स्रोत स्पष्ट रूप से इंगित करना चाहिये। (5) लागत के अनुमान, परियोजना के क्षेत्र में ग्राह्य नवीनतम एस.ओ.आर.एस. और बाजार में प्रचलित दरों पर आधारित होंगे। (6) लाभार्थी यह पुष्टि करेंगे कि आधुनिकीकृत संयंत्र/बुनियादी ढाँचे की सुविधा की परिचालन संबंधी और रख-रखाव की लागतें उनके द्वारा वहन की जायेंगीं। (7) लाभार्थी उपरोक्त (2) से (6) तक के संबंध में दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे। (8) प्रस्ताव, स्पष्ट अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्रों के माध्यम से भेजे जायेंगे। |
3.3 |
मछली के फुटकर भूमि बाजारों और सम्बद्ध बुनियादी ढाँचे का विकास (मदः सामान्य शीत गृह की सुविधा, कचरे के इकट्ठा करने और निस्तारण की इकाईयों, मछलियों के धोने और सफाई करने के स्थान, नीलामी करने के चबूतरे, पानी और विद्युत आपूर्ति की सुविधाएं इत्यादि के साथ फुटकर की न्यूनतम 10 दुकानों, फुटकर की 20 दुकानों और फुटकर की 50 इकाईयों वाला आधुनिक स्वच्छ मछ्ली का बाज़ार)
|
निम्नानुसार सीमा के साथ वास्तविक के अनुसारः (क) फुटकर दुकानों की 10 इकाईयों के मछली के बाजार के लिये रु.100 लाख, (ख) फुटकर दुकानों की 20 इकाईयों के मछली के बाजार के लिये रु.200 लाख, (ग) फुटकर दुकानों की 50 या इससे अधिक इकाईयों के मछली के बाज़ार के लिये रु.500 लाख
|
(1) लाभार्थी सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता और अनिवार्य अनापत्तियों / अनुमतियों इत्यादि के साथ-साथ वित्तीय संसाधनों के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। भूमि कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) लाभार्थी, बाजार की सुविधाओं की योजना और डिज़ाइन उस विषय के पेशेवरों के माध्यम से तथा लागत के अनुमान पूरा करेंगे। (3) लागत के अनुमान, परियोजना के क्षेत्र में स्वीकार्य नवीनतम एस.ओ.आर.एस. और बाजार में प्रचलित दरों पर आधारित होंगे। (4) बुनियादी ढाँचे की सुविधा के निर्माणोत्तर परिचालन संबंधी और रख-रखाव की लागतें लाभार्थियों द्वारा वहन की जायेंगीं। (5) लाभार्थी, उपरोक्त (1) से (4) तक के संबंध में दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे। (6) स्पष्ट अनुशंसाओं के साथ प्रस्ताव संबंधित राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्रों के माध्यम से भेजे जायेंगे। (7) एन.एफ.डी.बी., व्यवहार्य स्थानों पर वाणिज्यिक पहुँच के साथ मछली के बाजारों का विकास और प्रबंधन संभालेगा। |
3.4
|
चल/मछली की फुटकर दुकान की स्थापना (गुमटी) (मछली के भंडार-गृह/ प्रदर्शन की कोठरी, एक विसि कूलर, तौलने की मशीन/ मछलियों को काट कर साफ करने की सुविधाओं हेतु वर्तन/सुविधाएं
|
रु.10 लाख प्रति इकाई की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार।
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(1) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि (जहाँ कहीं अपेक्षित हो) की उपलब्धता और अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों के साथ-साथ वित्तीय संसाधनों (जहाँ कहीं अपेक्षित हो) इत्यादि के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ नहीं दी जायेंगीं। (2) मछली की फुटकर दुकान/गुमटी के निर्माण के लिये लागत के अनुमान, परियोजना के क्षेत्र में ग्राह्य नवीनतम एस.ओ.आर.एस. पर आधारित होंगे और चल दुकान के लिये लागत के अनुमान बाजार की प्रचलित दरों पर आधारित होंगे। (3) मछली की फुटकर दुकान/गुमटी/मछली की चल फुटकर दुकान के निर्माणोत्तर परिचालन और रख- रखाव संबंधी लागतें लाभार्थियों द्वारा वहन की जायेंगीं। (4) लाभार्थी उपरोक्त (1) से लेकर (3) तक के संबंध में दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे। (5) स्पष्ट अनुशंसाओं के साथ प्रस्ताव संबंधित राज्य सरकारों / संघ-शासित क्षेत्रों के माध्यम से भेजे जायेंगे। (6) मछली की फुटकर दुकान/गुमटी न्यूनतम 100 वर्ग फुट (स्थिर) के फर्श के क्षेत्रफल की होगी। (7) अनु.जातियों/ अनु.जन-जातियों /महिलाओं /बेरोजगार युवकों को प्राथमिकता दी जायेगी। |
3.5 मत्स्य-परिवहन की बुनियादी सुविधाओं के लिये सहायता |
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3.5.1 |
न्यूनतम 10 टन क्षमता का प्रशीतित ट्रक/कंटेनर |
रु.25 लाख प्रति ट्रक की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार
|
(1) मछली के परिवहन के वाहनों के रख-रखाव एवं परिचालन संबंधी लागतें लाभार्थियों द्वारा अपनी निजी लागत पर पूरी की जायेंगीं। (2) मछली के परिवहन की सुविधाओं की उपाप्ति, परिचालन, रख-रखाव और प्रबंधन पर अपने ऊपर ली गई किन्हीं हानियों के लिये भारत सरकार उत्तरदायी नहीं होगी। (3) लाभार्थियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि मछलियों के परिवहन की सुविधाओं का परिचालनयुक्त दशा में रख-रखाव किया जाता है। (4) लाभार्थियों को मछलियों की परिवहन की सुविधाओं के रख-रखाव और परिचालन पर संबंधित राज्य/संघशासित क्षेत्र तथा केंद्रीय सरकार के द्वारा अधिरोपित नियमों/विनियमों, यदि कोई हों, का पालन करना होगा। (5) लाभार्थी यह सुनिश्चित करेंगे कि इस योजना के अंतर्गत उपाप्त किये गये/की गई मछली परिवहन के वाहनों/सुविधाओं का उपयोग केवल मछलियों और मात्स्यिकी से संबंधित मदों के परिवहन के लिये ही किया जायेगा और किसी अन्य उद्देश्यों के लिये नहीं। (6) यदि, किसी समय यह पाया जाता है कि इस योजना के अंतर्गत प्राप्त किये गये मत्स्य परिवहन के वाहन मात्स्यिकी के उद्देश्यों के अतिरिक्त किन्हीं अन्य उद्देश्यों के लिये प्रयोग किये जा रहे हैं, तो भारत सरकार लाभार्थियों से सम्पूर्ण केंद्रीय सहायता ब्याज सहित वसूल करेगी। (7) लाभार्थी इस आशय का स्थायी रूप से प्रदर्शन करेंगे कि मत्स्य परिवहन का वाहन, भारत सरकार, कृषि मंत्रालय, पशुपालन, डेयरी और मात्स्यिकी विभाग की वित्तीय सहायता से प्राप्त किया गया है। |
3.5.2 |
न्यूनतम 10 टन क्षमता का कुसंवाहक ट्रक |
रु. 20 लाख प्रति ट्रक की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
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3.5.3 |
न्यूनतम 6 टन की क्षमता का कुसंवाहक ट्रक
|
रु.15 लाख प्रति ट्रक की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
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3.5.4 |
वर्फ की पेटी के साथ ऑटो-रिक्शा |
रु.2 लाख प्रति इकाई की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
|
3.5.5 |
वर्फ की पेटी सहित मोटरसाईकिल |
रु.0.60 लाख प्रति इकाई की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
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3.5.6 |
वर्फ की पेटी के साथ साईकिल |
रु.3000/- प्रति इकाई की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
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4. नवोन्मेषी क्रिया-कलाप |
|||
4.1 |
नवोन्मेषी क्रिया-कलाप |
वास्तविक
|
(1) मछलियों को हड्डी रहित करने की मशीन इत्यादि, फसलोत्तर प्रसंस्करण करने तथा मूल्य-वर्धित उत्पाद, प्रोत्साहजनक क्रिया-कलाप और किन्हीं अनपेक्षित क्रिया-कलापों इत्यादि को शामिल करते हुए, एफ.एच./एफ.एल.सीओं. इत्यादि, मात्स्यिकी का कचरा प्रबंधन, फसलोत्तर बुनियादी सुविधाओं की स्वच्छ दशाओं में सुधार जैसी स्वतः भोजन की प्रौद्योगिकी, फसलोत्तर बुनियादी ढाँचे की सुविधाओं के ऊर्जा-क्षम परिचालन को शामिल करते हुए, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिये प्रजातियों का विविधीकरण, मारीकल्चर में नई प्रौद्योगिकियाँ, मत्स्य-कृषि, 500 टन/वर्ष की न्यूनतम क्षमता के साथ पुनः संचरणीय जल-कृषि की प्रणालियाँ (आर.ए.एस.), पिंजड़े/पेन की कृषि, मात्स्यिकी प्रबंधन, संरक्षण, मछलियाँ मारने और सम्बद्ध क्रिया-कलापों में नई प्रौद्योगिकियों का प्रारम्भ किया जाना, मछलियों का जहाज पर प्रबंधन - ये सभी नवोन्मेषी क्रिया-कलापों में विस्तृत रूप से शामिल होंगे। (2) राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों/अभिकरणों से नवोन्मेषी क्रिया-कलापों, कार्यान्वयन करने वाले अभिकरणों की क्षमताओं, प्रत्याशित परिणामों/ उत्पादनों (गुणवत्तापरक तथा मात्रात्मक - दोनों में) और स्थानीय मात्स्यिकी पर दीर्घावधि का विस्तृत प्रभाव इत्यादि का स्पष्ट रूप से संकेत करते हुए, स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जाती है। |
मछुआरों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय योजना
क्र.सं.
|
घटक |
इकाई की लागत |
केंद्रीय वित्तीय सहायता |
नियम और शर्ते |
(1) |
(2) |
(3) |
(4) |
(5) |
1. |
बचत-सह-राहत (दोनों-अंतर्देशीय और समुद्री मछुआरों के लिये) |
रु.3,000/- प्रति मछुआरा प्रति वर्ष (केंद्र तथा सामान्य राज्यों में से प्रत्येक के मध्य समान रूप से अंशदान की जानी है)
|
100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ डी.ए.डी.एफ. में कार्यान्वयन
|
पात्रता का मापदंड: (1) लाभार्थी, पूर्ण कालिक एक सक्रिय मछुआरा होना चाहिये। (2) लाभार्थी को एक क्रियाशील स्थानीय मछुआरा सहकारी समिति/परिसंघ/पंजीकृत किसी अन्य निकाय का सदस्य होना चाहिये। (3) लाभार्थी, गरीबी रेखा से नीचे (बी.पी.एल.) का तथा 18 से 60 वर्ष की आयु के मध्य का होना चाहिये। (4) लाभार्थी मछुआरे अपने वार्षिक अंशदान के प्रति, मछली मारने वाले मौसम की अवधि में 9 महीनों से अधिक की अवधि में वार्षिक रु.1500/- की बचत करेंगे। लाभार्थी को एक या दो महीनों के एकमुश्त अंशदान को मुक्त किया जा सकता है। (5) राज्य/संघ-शासित क्षेत्र आर्थिक सहायता प्राप्त रसद, ईंधन इत्यादि जैसे किन्हीं अतिरिक्त लाभों की पूर्ति कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, लाभार्थी पी.डी.एस. के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने के पात्र हैं। (6) राज्यों / संघ-शासित क्षेत्रों से, कमजोर / प्रतिबंध के महीनों की अवधि, नामांकित लाभार्थी और उनका अंशदान, मछुआरों की श्रेणी (अनु.जा./अनु.जनजाति), राज्य के बजट में बजट संबंधी आबंटन की उपलब्धता इत्यादि जैसे अन्य विवरणों के साथ-साथ क्रमांक (1) से (4) तक के दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जाती है। (7) रु.4500/- की संचित धनराशि प्रतिवर्ष 3 महीनों की कमजोर/प्रतिबंध की अवधि के दौरान नामांकित मछुआरों में 3 समान किश्तों में वितरित कर दी जायेगी। |
2. |
मछुआरों के लिये आवास |
मैदानी क्षेत्रों में रु.1,20,000/- और उत्तर-पूर्व हिमालयीन राज्यों में रु.1,30,000/- की दर से नये आवासों का निर्माण* *प्र.मं.आ.यो. की नीति पर
|
100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ डी.ए.डी.एफ. में कार्यान्वयन |
(1) आवास की इकाई में स्वास्थ्य-रक्षा की सुविधा को शामिल करते हुए न्यूनतम 25 वर्ग मी. का कुर्सी का क्षेत्रफल होना चाहिये। (2) लाभार्थियों को मछलियाँ मारने के क्रिया-कलापों में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिये। (3) गरीबी रेखा से नीचे (बी.पी.एल.) रहने वाले मछुआरों प्रति आवास की को वरीयता दी जानी है। (4) कच्चे मकान वाले लाभार्थियों को पक्के मकान देने पर भी विचार किया जा सकता है। (5) कम से कम 20 घरों के समूह पर आधारित विकास का अंगीकरण किया जाना चाहिये। (6) राज्य/संघ-शासित क्षेत्र, स्वास्थ्य-रक्षा, पानी, ऊर्जा इत्यादि के लिये सहायता जैसे किन्हीं अतिरिक्त लाभों की पूर्ति कर सकते हैं। (7) राज्य/संघ-शासित क्षेत्रों से राज्य के बजट संबंधी आबंटन की उपलब्धता के बारे में दस्तावेजी साक्ष्य और पुष्टिकरण के साथ-साथ परियोजना के स्वयंधारित प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जाती है। |
3.
|
मछुआरों के लिये अन्य मूलभूत सुविधाएं |
सामान्य राज्यों में रु.0.50 लाख और उ.पू. एवं हिमालयीन राज्यों में रु.0.60 लाख की दर से ट्यूबवेल की इकाई की लागत |
100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ डी.ए.डी.एफ. में कार्यान्वयन
|
(1) न्यूनतम 20 घरों के प्रत्येक समूह के लिये एक ट्यूबवेल प्रदान किया जायेगा। नोट: उन समूहों/मछुआरों के ग्रामों को पीने के पानी का वैकल्पिक स्रोत दिया जा सकता है यदि वहाँ व्यावहारिक रूप से व्यवहार्य नहीं हैं। ऐसे मामलों में, अतिरिक्त व्यय, यदि कोई हो, तो उसे संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र के द्वारा वहन किया जायेगा। |
3.1
|
पीने के पानी की सुविधा |
|||
3.2
|
स्वास्थ्य-रक्षा, जलापूर्ति और विद्युतीकरण की सुविधाओं के साथ सामुदायिक हॉल का निर्माण
|
रु.4.00 लाख प्रति इकाई |
100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ डी.ए डी.एफ. में कार्यान्वयन
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(1) 75 या उससे अधिक घरों के समूह/मछुआरों के ग्राम, न्यायसंगत समुदायिक क्रिया-कलापों के वास्ते एक के लिये पात्र होंगे। (2) सामुदायिक हॉल का कुर्सी का न्यूनतम क्षेत्रफल 200 वर्ग मी. होना चाहिये। (3) सामुदायिक हॉल का निर्माणोत्तर रख-रखाव/प्रबंधन, हॉल का ग्राम पंचायतों/मछुआरा समितियों के निर्माण प्रबंधाधिकरण/निकायों में निहित होगा। (4) राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों से अनिवार्य दस्तावेजों और इस पुष्टिकरण के साथ कि सामुदायिक हॉल की ऐसी सुविधाएं उस समूह/मछुआरों के ग्राम में उपलब्ध नहीं हैं, के साथ-साथ स्वयं-धारित परियोजना के प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा की जायेगी। |
4. |
सक्रिय मछुआरों के लिये सामूहिक दुर्घटना बीमा *( जब तक कि पी.एम.एस.बी. आई. के साथ इस योजना के अभिसरण का अंतिम निर्णय सक्षम प्राधिकारी द्वारा नहीं ले लिया जाता है)
|
रु.20.34/- प्रति मछुआरा प्रति वर्ष की दर से बीमा का प्रीमियम (बीमा के प्रीमियम की दर वर्षानुवर्ष आधार पर परिवर्तन के अधीन है)
|
100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ डी.ए.डी.एफ. में कार्यान्वयन
|
1) लाइसेंस-प्राप्त/पंजीकृत मछुआरे मृत्यु या स्थायी पूर्ण विकलांगता पर रु.2.00 लाख, स्थायी आंशिक विकलांगता पर रु.1.00 लाख के बीमा हेतु और रु.10,000/- अस्पताल में भर्ती होने के व्यय के पात्र होंगे। (2) बीमा का आच्छादन 12 महीनों की अवधि के लिये होगा। (3) यह घटक फिशकोपफेड या अन्य नामांकित अभिकरणों/संस्थानों के माध्यम से कार्यान्वित किया जायेगा। बीमाकृत मछुआरों के संबंध में प्रीमियम की धनराशि की केंद्रीय देयता ऐसे अभिकरणों/संस्थानों को सीधे ही निर्मुक्त की जायेगी। (4) उन राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों के मामले में जो फिशकोपफेड या अन्य पदनामित अभिकरणों/संस्थानों के माध्यम से इस घटक का कार्यान्वयन नहीं कर रहे हैं, तो प्रीमियम की धनराशि का केंद्रीय भाग निम्नतम प्रीमियम तक प्रतिबंधित होगा। | |
5. |
फिशकोपफेड को अनुदान-सहायता |
रु.50 लाख वार्षिक
|
- |
(1) फिशकोपफेड, मछुआरों का बीमा, बीमा के अंतर्गत आच्छादित मछुआरों के डाटाबेस के सृजन इत्यादि को शामिल करते हुए, समय-समय पर डी.ए.डी.एफ. द्वारा समनुदेशित मात्स्यिकी से संबंधित क्रियाकलापों/कार्यों के लिये इस अनुदान का उपयोग करेगा। (2) फिशकोपफेड परम्परागत मछुआरों के लिये कौशल पर आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम के संचालन के लिये अनुदान की धनराशि का भी उपयोग करेगा। इन क्रिया-कलापों के लिये यदि वित्त की कोई कमी हो, तो उन्हें अन्य चालू योजनाओं से पूरा किया जायेगा। (3) फिशकोपफेड, क्रिया-कलापों, लागत के अनुमानों, परियोजना की अवधि, शामिल किये गये लाभार्थियों, प्रत्याशित लाभों, कार्यान्वयन के प्रकारों का स्पष्ट रूप से संकेत करते हुए, वार्षिक योजना के स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करेगा। |
अंतर्देशीय मात्स्यिकी और जल-कृषि का विकास
क्र.सं. |
घटक |
इकाई की लागत |
नियम और शर्ते |
(1) |
(2) |
(3) |
(4) |
1. मीठे पानी/ खारे पानी की जल-कृषि का विकास |
|||
1.1 |
नये तालाबों / टैंकों का निर्माण (जल- कपाटों का निर्माण, जलापूर्ति हेतु सिविल कार्य और वातक के उपकरण, भोजन के भंडारित करने का शेड इत्यादि को शामिल करते हुए)
|
रु.7 लाख प्रति हे. की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार
|
(1) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता और अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों इत्यादि के साथ वित्तीय संसाधनों के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) निर्मित किये गये तालाबों की पानी की न्यूनतम गहराई 1.5 मीटर होगी। (3) केंद्रीय वितीय सहायता, व्यक्तिगत लाभार्थी के लिये न्यूनतम 2 हे., सहकारी समितियों/सामुदायिक समूहों के लिये सदस्यों की संख्या X 2 हे. के क्षेत्रफल के हिसाब से बशर्तें तालाब के आकारों की व्यवहार्यता और समूह/ सामुदायिक समूहों के लिये 20 हे. की सीमा तक प्रतिबंधित होगी। इस श्रेणी के परियोजना के प्रस्ताव समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (4) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि के लिये हेक्टेयर की मात्रा हेतु वित्तीय सहायता संबंधित आवेदक के परामर्श से प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। |
1.2 |
विद्यमान तालाबों/टैंकों का पुनरुद्धार (तटबंधों की मरम्मत एवं उनका मजबूत किया जाना, बिजली और जलापूर्ति के कार्यों और अन्य सहायक उपकरणों / उपस्करों की मरम्मत, गाद का निकाला जाना, जल- कपाटों की मरम्मत एवं स्थापना, स्थल की सफाई करना, पानी का निकाला जाना इत्यादि)
|
रु.3.5 लाख प्र./हे. |
(1) लाभार्थी, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों (यदि कोई अपेक्षित हों), वित्तीय संसाधनों इत्यादि के साथ-साथ विद्यमान तालाबों/टैंकों के स्वामित्व के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। (2) विद्यमान तालाबों/टैंकों के/की पुनरुद्धार/मरम्मत/गाद निकालने, अन्य संबंधित सिविल कार्य इत्यादि को केवल 5 वर्ष बाद एकबारगी आधार पर वित्तपोषण करने के लिये विचार किया जा सकता है। (3) केंद्रीय वित्तीय सहायता, व्यक्तिगत लाभार्थी के लिये न्यूनतम 2 हे., के क्षेत्रफल, सहकारी समितियों/सामुदायिक समूहों के लिये सदस्यों की संख्या X 2 हे. के क्षेत्रफल के हिसाब से बशर्तें तालाब के आकारों की व्यवहार्यता और समूह/ सामुदायिक समूहों के लिये 20 हे. की सीमा तक प्रतिबंधित होगी। (4) परियोजना के प्रस्ताव (केंद्रीय सरकार के संगठनों/पदासीनों को छोड़कर) समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। |
1.3
|
मनरेगा के तालाबों और टैंकों का पुनरुद्धार, दलदल विकास विभाग इत्यादि को शामिल करते हुए राज्य सरकार/केंद्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत सृजित नये जल निकाय
|
रु.3.5 लाख/हे. |
(1) लाभार्थी, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों (यदि कोई अपेक्षित हों), वित्तीय संसाधनों इत्यादि के साथ-साथ विद्यमान तालाबों/टैंकों के स्वामित्व के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। (2) विद्यमान तालाबों/ टैंकों के/की पुनरुद्धार/मरम्मत/गाद निकालने, अन्य संबंधित सिविल कार्य इत्यादि को केवल 5 वर्ष बाद एकबारगी आधार पर वित्तपोषण करने के लिये विचार किया जा सकता है। (3) केंद्रीय वितीय सहायता, व्यक्तिगत लाभार्थी के लिये न्यूनतम 2 हे. के क्षेत्रफल, सहकारी समितियों/सामुदायिक समूहों के लिये सदस्यों की संख्या X 2 हे. के क्षेत्रफल के हिसाब से बशर्तें तालाब के आकारों की व्यवहार्यता और समूह/ सामुदायिक समूहों के लिये 20 हे. की सीमा तक प्रतिबंधित होगी। (4) परियोजना के प्रस्ताव (केंद्रीय सरकार के संगठनों/पदासीनों को छोड़कर) समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। |
1.4 |
मछली की कृषि के लिये शहरी /अर्द्ध शहरी/ग्रामीण झीलों / टैंकों का कायाकल्प
|
रु.3.5 लाख/हे. |
(1) लाभार्थी, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों (यदि कोई अपेक्षित हों), वित्तीय संसाधनों इत्यादि के साथ-साथ विद्यमान तालाबों/टैंकों के स्वामित्व के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। (2) विद्यमान तालाबों/टैंकों के/की पुनरुद्धार/मरम्मत/गाद निकालने, अन्य संबंधित सिविल कार्य इत्यादि को केवल 5 वर्ष बाद एकबारगी आधार पर वित्तपोषण करने के लिये विचार किया जा सकता है। (3) केंद्रीय वितीय सहायता, व्यक्तिगत लाभार्थी के लिये न्यूनतम 2 हे. के क्षेत्रफल, सहकारी समितियों/सामुदायिक समूहों के लिये सदस्यों की संख्या X 2 हे. के क्षेत्रफल के हिसाब से बशर्तें तालाब के आकारों की व्यवहार्यता और समूह/ सामुदायिक समूहों के लिये 20 हे. की सीमा तक प्रतिबंधित होगी। (4) परियोजना के प्रस्ताव (केंद्रीय सरकार के संगठनों/पदासीनों को छोड़कर) समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। |
1.5 मीठे पानी की मत्स्य -कृषि और खारी पानी की मत्स्य /श्रिंप की कृषि की इनपुट की लागतें (उपरोक्त 1.1 से 1.4 तक के मद) |
|||
1.5.1 |
मीठे पानी की मत्स्य-कृषि के लिये (इकाई की लागत में मछली/झींगा मछली के बीज, चारा, खाद, रोग-निरोधक उपाय, परिवहन के प्रभार इत्यादि शामिल हैं) (एकबारगी अनुदान) |
(क) पंखवाली मछलियों की कृषिः रु.1.50 लाख/हे. की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार (ख) मीठे पानी की झींगा मछली/ट्राउट की कृषिः रु.2.50 लाख/हे. की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) इनपुट की यह लागत उपरोक्त क्र.सं. 1.1 से 1.4 तक में उल्लिखित तालाबों/जलनिकायों में उनमें इंगित की गई सीमा के साथ प्रदान की जायेगी। (2) लाभार्थियों को नव-निर्मित/पुनरुद्धार किये गये तालाबों/टैंकों में केवल प्रारम्भिक फसल के लिये इनपुट की लागतों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जायेगी। (3) इनपुट की लागतों के लिये केंद्रीय सहायता केवल तभी जारी की जायेगी जब तालाब/टैंक कृषि करने के लिये तैयार हो जाते हैं। |
1.5.2
|
खारे पानी की मत्स्य /श्रिंप की कृषि के लिये (इकाई की लागत में मछली /श्रिंप के बीज, भोजन, खाद, रोग निरोधक उपाय, परिवहन के प्रभार इत्यादि शामिल हैं) (एक बारगी अनुदान) |
(क) पंखवाली मछली की कृषि रु. 2.00 लाख/हे. की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार (ख) एल. वेन्नामई/ पी. मोनोडोन इत्यादि जैसी श्रिंप की कृषिः रु.3.00 लाख/हे. की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार |
(क) इनपुट की यह लागत उपरोक्त क्र.सं. 1.1 से 1.4 तक में उल्लिखित तालाबों/जलनिकायों में उनमें इंगित की गई प्रदान की जायेगी। (ख) लाभार्थियों को नव-निर्मित/पुनरुद्धार किये गये तालाबों/टैंकों में केवल प्रारम्भिक फसल के लिये इनपुट की लागतों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जायेगी। (ग) इनपुट की लागतों के लिये केंद्रीय सहायता केवल तभी जारी की जायेगी जब तालाब/टैंक कृषि करने के लिये तैयार हो जाते हैं। |
1.6 |
भारतीय मेजर कार्पों तथा कृषि की जाने वाली अन्य पंख वाली मछलियों के लिये मत्स्य-बीज की हैचरियों की स्थापना
|
2 हे. क्षेत्रफल वाली प्रति हैचरी के लिये रु. 25.00 लाख की सीमा सहित वास्तविक लागत के अनुसार |
(1) लाभार्थी जैव-सुरक्षा के उपायों को शामिल करते हुए, पूर्ण तकनीकी विवरणों, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों के साथ वित्तीय संसाधनों और वाली सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रस्तुत करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) व्यक्तिगत लाभार्थियों, सहकारी समितियों/समूहों से परियोजना के प्रस्ताव, समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (3) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि से प्रस्ताव सीधे ही एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत किये जा सकते हैं। (4) मस्त्य की हैचरी की न्यूनतम 2 हे. के क्षेत्रफल में न्यूनतम 10 मिलियन फ्राई/वर्ष की क्षमता होनी चाहिये। (5) मछली की हैचरी में ब्रूडर का तालाब, नर्सरी के तालाब, मछली पालने के टैंक, छोटी प्रयोगशाला, जल एवं बिजली की आपूर्ति, अपेक्षित बुनियादी ढाँचे की सुविधाएं शामिल होंगीं। (6) मछली की हैचरी का प्रबंध अपेक्षित योग्य तकनीकी स्टॉफ के द्वारा किया जाना चाहिये। (7) लाभार्थी संगठन केंद्रीय सहायता प्राप्त हैचरियों से उत्पादित बीज की आपूर्ति खरीद पाने/समुचित कीमत पर किसानों को आपूर्ति सुनिश्चित करेंगे। (8) निर्माणोत्तर परिचालन, हैचरियों का प्रबंधन एवं रख-रखाव लाभार्थियों द्वारा संतोषजनक तरीके से उनकी लागत पर किया जायेगा। (9) एन.एफ.डी.बी. भी उपयुक्त स्थानों पर वाणिज्यिक पहुँच के साथ सीधे ही हैचरियों की स्थापना करेगा और प्रबंध करेगा। |
1.7 |
मीठे पानी/खारे पानी की झींगा मछली की हैचरियाँ |
न्यूनतम 5 मिलियन लार्वोत्तर प्रति वर्ष की क्षमता के साथ प्रति इकाई रु.50 लाख की सीमा वास्तविक के अनुसार |
(1) लाभार्थी जैव-सुरक्षा के उपायों को शामिल करते हुए, पूर्ण तकनीकी की विवरणों, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों के साथ वित्तीय संसाधनों और सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रस्तुत करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) मछुआरा सहकारी समितियाँ/समूह केंद्रीय सहायता के लिये पात्र होंगे और उनके प्रस्ताव संबंधित राज्य/संघ-शासित प्रदेश की सरकार की समुचित के साथ अनुशंसाओं के साथ उनके माध्यम से भेजे जाने चाहिये। (3) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि से प्रस्ताव सीधे ही एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत किये जा सकते हैं। (4) लाभार्थी के पास हैचरी के निर्माण, परिचालन और प्रबंधन के लिये अपेक्षित तकनीकी विशेषज्ञता और प्रशिक्षित जन-शक्ति होनी चाहिये। (5) मछली की हैचरी में ब्रूडर का तालाब, मछली पालने के टैंक, छोटी प्रयोगशाला, जल एवं बिजली की आपूर्ति, जैव-सुरक्षा के प्रबंध और अपेक्षित बुनियादी ढाँचे की सुविधाएं शामिल होंगी। (6) लाभार्थी संगठन केंद्रीय सहायता प्राप्त हैचरियों से उत्पादित बीज की आपूर्ति खरीद पाने/समुचित कीमत पर किसानों को आपूर्ति सुनिश्चित करेंगे। (7) निर्माणोत्तर परिचालन, हैचरियों का प्रबंधन एवं रख-रखाव लाभार्थियों द्वारा संतोषजनक तरीके से उनकी लागत पर किया जायेगा। (8) एन.एफ.डी.बी. भी उपयुक्त स्थानों पर वाणिज्यिक पहुँच के साथ ही हैचरियों की स्थापना करेगा और प्रबंध करेगा। |
1.8 |
जल-कृषि हेतु सौर- ऊर्जा की सहायता की प्रणाली |
रु.15.00 लाख प्रति इकाई की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) मत्स्य-कृषि और मात्स्यिकी में पानी का पम्प एवं वातक चलाने और अन्य उपयोगों हेतु सौर-ऊर्जा की प्रणाली। (2) लाभार्थियों को मात्स्यिकी के लिये एकबारगी आधार पर सौर-ऊर्जा की सहायता की प्रणाली की उपाप्ति एवं स्थापना के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जायेगी। (3) इनपुट की लागत के लिये केंद्रीय सहायता केवल तभी जारी की जायेगी जब तालाब/टैंक कृषि हेतु तैयार हो जाए। |
2. शीतल जल की मात्स्यिकी और जल-कृषि |
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2.1 |
कृषि करने की स्थायी इकाईयों और धावनपथों का निर्माण
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50 घनमीटर के न्यूनतम आयतन की प्रति इकाई रु.2 लाख की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) लाभार्थी जैव-सुरक्षा के उपायों को शामिल करते हुए, पूर्ण तकनीकी विवरणों, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों के साथ वित्तीय संसाधनों और सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रस्तुत करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) केंद्रीय वित्तीय सहायता, व्यक्तिगत किसान/लाभार्थी के लिये 4 इकाईयों के अधिकतम क्षेत्रफल तक मछुआरा सहकारी समितियों/परिसंघों और उद्यमियों के लिये 10 इकाईयों तक प्रतिबंधित होगी। इस श्रेणी के परियोजना के प्रस्ताव, समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (3) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि के लिये वित्तीय सहायता और कृषि करने की इकाईयाँ प्रत्येक मामले में संबंधितों के परामर्श से निर्णय की जायेंगीं। |
2.2 |
मिट्टी वाली इकाईयों में बहते हुए शीतल जल में मछली की कृषि |
रु.1 लाख / न्यूनतम 100 घन मीटर के आयतन वाली इकाई की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) लाभार्थी जैव-सुरक्षा के उपायों को शामिल करते हुए, पूर्ण तकनीकी विवरणों, में अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों के साथ वित्तीय संसाधनों और सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रस्तुत करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) केंद्रीय वित्तीय सहायता व्यक्तिगत किसान/लाभार्थी के लिये अधिकतम 4 इकाईयों, मछुआरा सहकारी समितियों/परिसंघों और उद्यमियों के लिये 40 इकाईयों तक प्रतिबंधित होगी। इस श्रेणी के परियोजना के प्रस्ताव समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (3) केंद्रीय तथा राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि के लिये वित्तीय सहायता और मछली की कृषि करने की इकाईयाँ प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्तियों के परामर्श से निर्णय की जायेंगीं। |
3. जलभराव वाले क्षेत्रों का विकास |
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3.1 |
जलभराव वाले क्षेत्रों का विकास
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रु.5.00 लाख हेक्टेयर की हेक्टेयर की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार |
(1) लाभार्थी जैव-सुरक्षा के उपायों को शामिल करते हुए, पूर्ण तकनीकी विवरणों, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों के साथ वित्तीय संसाधनों और सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रस्तुत करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) केंद्रीय वित्तीय सहायता व्यक्तिगत किसान/लाभार्थी के लिये अधिकतम 5 हे., 5x सदस्यों की संख्या वाली मछुआरा सहकारी समितियों/परिसंघों और उद्यमियों के लिये तालाबों के आकार की व्यवहार्यता के अधीन होगी। इस श्रेणी के परियोजना के प्रस्ताव समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (3) केंद्रीय तथा राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि के लिये हेक्टेयर की मात्रा हेतु प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्तियों के परामर्श से निर्णय की जायेंगीं। |
3.2 |
इनपुट की लागतें (इकाई की लागत में मछली/झींगा मछली के बीज, चारा, खाद, रोग निरोधक उपाय, परिवहन के प्रभार इत्यादि शामिल हैं) (एकबारगी अनुदान) |
क) पंखवाली मछली की कृषि: रु.1.50 लाख/हे. की की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार ख) मीठे पानी की झींगा मछली/ ट्राउट की कृषि: रु.2.50 लाख/हे. की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार |
(1) लाभार्थियों को, नवनिर्मित/पुनरुद्धार किये गये तालाबों/टैंकों में केवल प्रारम्भिक फसल के लिये इनपुट की लागतों के लिये केंद्रीय सहायता प्रदान की जायेगी। (2) इनपुट की लागत के लिये, केंद्रीय सहायता तालाबों/टैंकों को कृषि हेतु तैयार हो जाने के बाद ही, जारी की जायेगी।
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4. जल-कृषि के लिये अंतर्देशीय खारे/नमकीन जलों का उत्पादक उपयोग |
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4.1 |
| नये तालाबों/टैंकों का निर्माण |
रु.7 लाख प्रति हे. की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार
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(1) लाभार्थी जैव-सुरक्षा के उपायों को शामिल करते हुए, पूर्ण तकनीकी विवरणों, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों के साथ वित्तीय संसाधनों और सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रस्तुत करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) निर्मित तालाबों के जल की न्यूनतम गहराई 1.5 मीटर होनी चाहिये। (3) केंद्रीय वित्तीय सहायता व्यक्तिगत किसान/लाभार्थी के लिये अधिकतम 5 हे., 5xसदस्यों की संख्या मछुआरा सहकारी समितियों/परिसंघों और उद्यमियों के लिये 40 इकाईयों तक प्रतिबंधित होगी। इस श्रेणी के परियोजना के प्रस्ताव समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (4) केंद्रीय तथा राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि के लिये हेक्टेयर की मात्रा वित्तीय सहायता और मछली की कृषि करने की इकाईयाँ प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्तियों के परामर्श से निर्णय की जायेंगीं। |
4.2 |
इनपुट की लागत (इकाई की लागत में मछली/झींगा मछली के बीज, चारा, खाद, रोग निरोधक उपाय, परिवहन के प्रभार इत्यादि शामिल हैं। (एकबारगी अनुदान) |
(क) पंखवाली मछली की कृषि: रु.1.50 लाख/ हे. की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार (ख) मीठे पानी की झींगा मछली/ ट्राउट की कृषिः रु.2.50 लाख/हे. की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार |
(1) लाभार्थियों को, इनपुट की लागतों केलिये नवनिर्मित/पुनरुद्धार किये गये तालाबों/टैंकों में केवल प्रारम्भिक फसल के लिये केंद्रीय सहायता प्रदान की जायेगी। (2) इनपुट की लागत के लिये केंद्रीय सहायता केवल तभी जारी की जायेगी जब तालाब/टैंक कृषि के लिये पूरी तरह से तैयार हो जाए।
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5. अंतर्देशीय मछली की पकड़ वाली मात्स्यिकी (ग्राम के तालाब, टैंक इत्यादि)। |
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5.1 |
मत्स्य-बीज पालन की इकाईयाँ |
रु.6.00 लाख/ हे. की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार
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(1) लाभार्थी जैव-सुरक्षा के उपायों को शामिल करते हुए, पूर्ण तकनीकी विवरणों, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों के साथ वित्तीय संसाधनों और सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रस्तुत करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) लाभार्थियों को जलाशयों/टैंकों इत्यादि के आस-पास मछली मारने तथा अपेक्षित सुविधाओं का विकास करने के लिये सक्षम प्राधिकारियों से मछलियाँ मारने के अधिकारों/अनुमतियों की उपलब्धता पर दस्तावेजी साक्ष्य भी प्रस्तुत करने होंगे। (3) केंद्रीय वित्तीय सहायता व्यक्तिगत लाभार्थी के लिये अधिकतम 2 हे. के क्षेत्रफल, मछली पालने की इकाईयों की व्यवहार्यता की शर्त के साथ सहकारी समितियों/समूहों के सदस्यों की संख्या और उनके आकार के अनुसार x 2 हे. तक प्रतिबंधित होगी। इस श्रेणी में परियोजना के प्रस्ताव, समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित प्रदेश की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (4) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि के लिये मछली पालने की इकाईयों के हेक्टेयर की मात्रा के लिये वित्तीय सहायता संबंधित व्यक्ति के परामर्श से प्रति मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। (5) मछली पालने की इकाईयाँ, योग्य तकनीकी विशेषज्ञों के पर्यवेक्षण में नियोजित की जायेंगीं, परिकल्पित की जायेंगीं और प्रबंध की जायेंगीं। |
5.2
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इनपुट की लागत (इकाई की लागत में मछली/झींगा मछली के बीज, चारा, खाद, रोग निरोधक उपाय, परिवहन के प्रभार इत्यादि शामिल हैं) (एकबारगी अनुदान) |
क) पंखवाली मछली की कृषिः रु.1.50 लाख/हे. की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार ख) मीठे पानी की झींगा मछली/ ट्राउट की कृषिः रु. 2.50 लाख/हे. की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार |
(1) लाभार्थियों को, नवनिर्मित मत्स्य-पालन की इकाईयों में केवल प्रारम्भिक फसल के लिये इनपुट की लागतों के लिये केंद्रीय सहायता प्रदान की जायेगी। (2) इनपुट की लागत के लिये, केंद्रीय सहायता केवल तभी जारी की जायेगी जब मछली पालने वाली इकाईयों के टैंक मछली पालन के लिये तैयार हो जाए।
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5.3 |
नाव और उपस्कर की इकाईः (मछली मारने वाले जालों, मछली और वर्फ रखने की पेटियों इत्यादि को शामिल करते हुए समुचित आकारों की नावें)
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रु.1.00 लाख प्रति इकाई की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार
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(1) लाभार्थी को सक्षम प्राधिकारी द्वारा मछली मारने के वैध लाइसेंस की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य प्रदान करना चाहिये। (2) व्यक्तिगत लाभार्थी (समेकित), सहकारी समितियों/समूहों के परियोजना के प्रस्ताव, समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (3) लाभार्थी, सक्षम प्राधिकारियों से जलाशयों/टैंकों इत्यादि में मछलियाँ मारने के अधिकारों/अनुमतियों की उपलब्धता का दस्तावेजी साक्ष्य भी प्रस्तुत करेंगे। (4) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि के लिये वित्तीय सहायता, संबंधित के परामर्श से प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। (5) मछलियाँ मारने वाली नाव/नावों में मछुआरों/समूहों के एक समूह द्वारा हिस्सेदारी भी की जा सकती है। (6) लाभार्थी नाव/क्राफ्ट और जालों इत्यादि के आकार एवं प्रकार के उपयोग के बारे में मछलियाँ मारने के विनियमों (यदि कोई हों) का पालन करेंगे। (7) 5 वर्ष से अधिक पुरानी विद्यमान नावों के प्रतिस्थापन के लिये भी केंद्रीय सहायता प्रदान की जायेगी। |
5.5
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नदी-तटवर्ती मत्स्यिकी का संरक्षण और जागरूकता कार्यक्रम |
रु.4.00 लाख वार्षिक की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार |
(1) राज्य और संघ-शासित क्षेत्र, संरक्षण और नदी पर फार्म लगाने इत्यादि के लिये पूर्ण औचित्य और तकनीकी विवरणों के साथ स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे।
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6. जलाशयों का एकीकृत विकास |
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6.1 |
जलाशयों का एकीकृत विकास (प्रस्ताव में इन विस्तृत क्रिया- कलापों के, जो नीचे दिये गये हैं, आवश्यकता पर आधारित क्रिया-कलाप शामिल होंगे: कृषि से पूर्व की तैयारी, तटबंधों का मजबूत बनाया जाना, गाद निकाला जाना, शैवालों का निकाला जाना इत्यादि, हैचरियाँ, मछली पालने की इकाईयां, मछलियों का भंडारण करना, पिंजड़े की कृषि, चारा मिलें, नावें और जाल, मछलियों की उतराई वाले केंद्र, शीट भंडार-गृह, वर्फ के संयंत्र, मत्स्य-परिवहन की सुविधाएं इत्यादि)
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रु.2 करोड़ प्रति परियोजना की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) इस घटक का वाणिज्यिक पहुँच के साथ एन.एफ.डी.बी. द्वारा कार्यान्वयन किया जायेगा। (2) लाभार्थी, पूर्ण औचित्य एवं तकनीकी विवरणों (डी.पी.आर.) इत्यादि के साथ स्वयं धारित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। (3) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता, वित्तीय संसाधनों, अनिवार्य अनापतियों/अनुमतियों एवं मछलियाँ मारने के अधिकारों इत्यादि के दस्तावेजी साक्ष्य, डी.पी.आर में प्रदान करेंगे। भूमि के लिये किसी भी प्रकार की निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (4) डी.पी.आरों में, प्रत्याशित प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार के सृजन, मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि, स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार, परियोजना के कार्यान्वयन के लिये विशिष्ट समय-सीमा इत्यादि के विवरण भी डी.पी.आरों में शामिल होंगे। (5) सहकारी समितियों/समूहों/सर्वग्राहियों/उद्यमियों के परियोजना के प्रस्ताव एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत किये जायेंगे। (6) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इकाईयाँ, मछलियों का इत्यादि के लिये वित्तीय सहायता, संबंधित व्यक्ति के साथ परामर्श करके भंडारण करना, पिंजड़े प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। (7) केंद्रीय निधियाँ बाद में समाप्त हुई सहायता के रूप में प्रदान की जायेंगीं। |
7. मत्स्य-चारा-मिलों/संयंत्रों की स्थापना किया जाना |
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7.1 |
चारे की छोटी मिल (क्षमता 1 से 5 क्विंटल/दिन) |
रु.10 लाख प्रति इकाई की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) लाभार्थी, पूर्ण औचित्य एवं संयंत्र के तकनीकी विवरणों इत्यादि के साथ स्वयं-धारित परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट (डी.पी.आर.) प्रस्तुत करेंगे। (2) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता, वित्तीय संसाधनों, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों इत्यादि के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। भूमि के लिये किसी भी प्रकार की निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (3) लाभार्थी संगठन, केंद्रीय निधि से वित्तपोषित चारा मिलों के संयंत्रों से उत्पादित मछली के चारे की सस्ती/उचित कीमत पर किसानों को आपूर्ति सुनिश्चित करेंगे। (4) चारे के मिलों के निर्माणोत्तर परिचालन, प्रबंधन और रख-रखाव लाभार्थियों द्वारा अपने निजी खर्चे पर एक संतोषजनक तरीके से संचालित किये जायेंगे। (5) सहकारी समितियों/समूहों/उद्यमियों की परियोजनाओं के प्रस्ताव, समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (6) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठन/परिसंघ/निगम/अभिकरण इत्यादि प्रस्ताव सीधे डी.ए.डी.एफ. को प्रस्तुत करेंगे और संबंधित के साथ परामर्श करके प्रत्येक मामले के आधार पर वित्तीय सहायता निर्धारित की जायेगी। (7) एन.एफ.डी.बी. भी उपयुक्त स्थान पर वाणिज्यिक पहुँच के साथ चारा मिलों के संयंत्र सीधे ही स्थापित करेगा। |
7.2 |
चारे की टिकिया बनाने का बड़ा संयंत्र (10 टन/दिवस या इससे अधिक की न्यूनतम क्षमता वाला) |
रु.2 करोड़/ इकाई की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) यह घटक, वाणिज्यिक पहुँच के साथ एन.एफ.डी.बी. द्वारा कार्यान्वित किया जायेगा। (2) सहकारी समितियों/समूहों/सर्वग्राहियों/उद्यमियों की परियोजना के प्रस्ताव, एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत किये जायेंगे। इन अभिकरणों के लिये वित्तीय सहायता बाद में समाप्त हुई सहायता के रूप में प्रदान की जायेगी। (3) लाभार्थी, पूर्ण औचित्य एवं संयंत्र के तकनीकी विवरणों इत्यादि के साथ स्वयं-धारित परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। (4) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता, वित्तीय संसाधनों का अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों इत्यादि के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (5) लाभार्थी संगठन, केंद्र से वित्तपोषित चारे के मिलों के संयंत्र से उत्पादित मछलियों के चारे की किसानों को सस्ती/उचित कीमत पर आपूर्ति करना सुनिश्चित करेंगे। (6) चारा मिलों के निर्माणोत्तर परिचालन, प्रबंधन और रख-रखाव लाभार्थियों द्वारा अपने निजी खर्चे पर संतोषजनक ढंग से कराये जायेंगे। (7) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठन/परिसंघ/निगम/अभिकरण इत्यादि सीधे ही एन.एफ.डी.बी. को प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे और वित्तीय सहायता संबंधित के साथ परामर्श करके प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। |
8. जलाशयों और अन्य खुले जल-निकायों में पिंजड़ों/पेनों की स्थापना |
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8.1 |
जलाशयों और अन्य खुले जल-निकायों में इनपुटों के साथ पिंजड़े /पेन
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स्थापना और पहली फसल के लिये इनपुटों को शामिल करते हुए प्रति पिंजड़ा रु.3.00 लाख |
(1) यह घटक वाणिज्यिक पहुँच के साथ एन.एफ.डी.बी. के द्वारा कार्यान्वित किया जायेगा। (2) सहकारी समितियों/समूहों/सर्वग्राहियों/उद्यमियों के परियोजना के प्रस्ताव एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत किये जायेंगे। (3) जलाशयों और अन्य जल-निकायों में पिंजड़ों की स्थापना के लिये, आवेदक संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार और अन्य सक्षम प्राधिकारियों से अनिवार्य पूर्व अनुमतियाँ प्राप्त करेगा। (4) मछुआरा सहकारी समितियाँ, अनु.जा./अनु.जन-जाति की सहकारी समितियाँ, महिलाओं के स्वयं-सहायता समूह, पंजीकृत उद्यमी इत्यादि एक विशेष स्थान पर प्रत्येक में अधिकतम 6 पिंजड़ों की 4 बैटरियों (24 पिंजड़े) के लिये बाद में समाप्त होने वाली सहायता के लिये पात्र होंगीं/होंगे। (5) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठन/परिसंघ/निगम/अभिकरण इत्यादि के लिये पिंजड़ों की संख्या एवं वित्तीय सहायता की मात्रा, संबंधित से परामर्श करके प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। (6) इकाई की लागत में पूँजी, परिचालन संबंधी और रख-रखाव की एकबारगी आधार पर लागतें शामिल हैं। (7) सहायता की सुविधा का लाभ उठाने के लिये, आवेदकों से आवश्यक अनापत्तियों, अनुमतियों इत्यादि के दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ परियोजना के स्वयं-धारित प्रस्ताव किये जाने की अपेक्षा की जाती है। |
9. पुन:-परिसंचरणीय जल-कृषि की प्रणालियाँ (आर.ए.एस.) |
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9.1 |
कम लागत वाली पुन:-परिसंचरणीय जल-कृषि की प्रणाली (आर.ए.एस.): 5x5x4 मी. सीमेंट के टैंक (प्रत्येक 100 घन मीटर), 2 टन मत्स्य उत्पादन की न्यूनतम क्षमता
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रु.15.00 लाख प्रति इकाई की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) लाभार्थी, पूर्ण औचित्य एवं तकनीकी विवरणों के साथ स्वयं-धारित परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट (डी.पी.आर.) प्रस्तुत करेंगे। (2) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि की उपलब्धता, वित्तीय संसाधनों, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों इत्यादि के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (3) डी.पी.आरों. में स्थानीय व्यक्तियों के लिये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रत्याशित रोजगार के सृजन, मत्स्य-उत्पादन की वृद्धि, परियोजना के कार्यान्वयन के लिये विशिष्ट समय-सीमाएं इत्यादि के विवरण भी शामिल होंगे। (4) सहकारी समितियों/समूहों/सर्व ग्राहियों/उद्यमियों के परियोजना के प्रस्ताव एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत किये जायेंगे। इन लाभार्थियों के लिये केंद्रीय सहायता बाद में समाप्त होने वाली सहायता के रूप में प्रदान की जायेगी। (5) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों के लिये वित्तीय सहायता की मात्रा संबंधित से परामर्श करके प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। (6) आर.ए.एस. के निर्माणोत्तर परिचालन, प्रबंधन और रख-रखाव के खर्चे लाभार्थियों द्वारा अपने निजी खर्चे पर संतोषजनक ढंग से किये जायेंगे। (7) एन.एफ.डी.बी. भी उपयुक्त स्थान पर वाणिज्यिक पहुँच के साथ आर.ए.एस. की स्थापना करेगा तथा प्रबंध करेगा। (8) जल के उपचार की इकाईयों को शामिल करते हुए आर.ए.एस. के लिये सृजित किये गये बुनियादी ढाँचे में अनिवार्य अपेक्षाएं होनी चाहिये। |
9.2
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मध्यम आकार की पुन:-परिसंचरणीय जल-कृषि की प्रणाली (आर.ए.एस.); के न्यूनतम 8 टैंकः प्रत्येक टैंक का न्यूनतम आकार 7.65x7.65x1.5 मी. (प्रत्येक 90 घन मीटर); 5 टन मत्स्य प्रति टैंक की न्यूनतम उत्पादन क्षमता
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न्यूनतम 8 टैंकों की प्रति इकाई के लिये रु.50.00 लाख की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार। मध्यम आकार की आर.ए.एस.की इकाई में लगभग रु.31 लाख पूँजी की लागत और रु.19.00 लाख परिचालन संबंधी लागत शामिल है। परिचालन की लागत के लिये एकबारगी आधार पर केंद्रीय सहायता भी प्रदान की जाती है। |
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10. बीलों / आर्द्रभूमियों में मत्स्य-अंगुलिकाओं का भंडारण किया जाना |
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10.1 |
आर्द्रभूमियों (बीलों, चौरों इत्यादि) में 2000 नग प्रति हेक्टेयर की दर से आई.एम.सी. की अंगुलिकाओं का भंडारण किया जाना
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रु. 2.50 प्रति अंगुलिका की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित आर्द्रभूमि (बील, जील, चौर इत्यादि), अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों इत्यादि के साथ-साथ वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रस्तुत करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (2) केंद्रीय वित्तीय सहायता, व्यक्तिगत लाभार्थी के लिये अधिकतम 2 हे. के क्षेत्रफल, सहकारी समितियों/समूहों के सदस्यों के लिये - 2 हे. X सदस्यों की संख्या तक प्रतिबंधित रहेगी। इस श्रेणी के अंतर्गत परियोजना के प्रस्ताव, समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (3) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठनों/ परिसंघों/ निगमों/ अभिकरणों इत्यादि के लिये वित्तीय सहायता हेतु हेक्टेयर की मात्रा संबंधित आवेदक से परामर्श करके प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। |
11. मोबाईल और इंटरनेट पर किसानों के लिये परामर्शदात्री सेवाओं हेतु पोर्टल का सृजन (100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ) |
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11.1 |
मोबाईल के उपकरणों शामिल / अनुप्रयोगों इंटरनेट (आई.ई.सी.), किसानों, आपूर्तिकर्ताओं, व्यापारियों और मात्स्यिकी में आवश्यकता पर आधारित सभी सेवाओं को एक सिरे से दूसरे सिरे तक आपूर्तिकर्ताओं, व्यापारियों के लिए ई-कॉमर्स के माध्यम से मत्स्य-कृषकों को परामर्शदात्री सेवाएँ प्रदान करने के लिए पोर्टल का सृजन |
वास्तविक के अनुसार |
(1) यह क्रिया-कलाप/घटक, आई.सी.ए.आर. के संस्थानों इत्यादि को शामिल करते हुए केंद्रीय सरकार के संस्थानों/ अभिकरणों/ निगमों जैसे एन.आई.सी., एन.आई.सी.एस.आई., केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सी.पी.एस.यू.), मात्स्यिकी के संस्थानों के माध्यम से किया जायेगा। (2) परामर्श, सूचना का प्रसार, मछली के बाजारों और मछलियों की उतराई वाले केंद्रों का नेटवर्किंग, मछुआरों से संबंधित विभिन्न डाटाबेसों के संकलन, आपूर्तिकर्ताओं के लिये किसानों को एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक की सेवाएँ प्रदान करने और मात्स्यिकी इत्यादि में आवशयकता पर आधारित सेवाएँ प्रदान करने के लिए मछुआरों केलिए एक समर्पित पोर्टल का सृजन किया जाएगा। (3) अभिकरण, तकनीकी और वित्तीय विवरणों इत्यादि के साथ स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे। |
12. दोनों - समुद्री और अंतर्देशीय मात्स्यिकी में मात्स्यिकी से संबंधित सभी क्रिया-कलापों में किसानों और अन्य शेयरहोल्डरों का प्रशिक्षण, कौशल विकास और क्षमता-निर्माण (100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ) |
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12.1 |
महँगाई भत्ता (डी.ए.) |
रु.500/प्रति प्रशिक्षु/दिन |
(1) मत्स्य-कृषकों एवं मछुआरों तथा अन्य शेयरहोल्डरों के लिये प्रशिक्षण, कौशल विकास एवं क्षमता-निर्माण के कार्यक्रम के.वी.केओं., आई.सी.ए.आर. के संस्थानों, ए.टी.एम.एओं., ए.टी.ए.आर.आईयों., मात्स्यिकी के संस्थानों, राज्य/संघ-शासित के स्वामित्व वाले संगठनों, राज्य की कृषि/ पशु चिकित्सा/ मात्स्यिकी के विश्वविद्यालयों, मात्स्यिकी के परिसंघों, निगमों इत्यादि जैसे राज्य सरकारों, संघ-शासित क्षेत्रों, केंद्रीय सरकार के संगठनों/संस्थानों के माध्यम से आयोजित किये जायेंगे। (2) प्रशिक्षण का दल, 50 प्रशिक्षु प्रति बैच से कम नहीं होगा। (3) प्रशिक्षण संस्थान, प्रशिक्षुओं के विवरणों, प्रशिक्षण के पाठ्यक्रमों, स्थान, उस उद्देश्य के लिये उपलब्ध बुनियादी सुविधाओं, प्रशिक्षण कार्यक्रम की अवधि, आवास और भोजन की सुविधाओं, संसाधन वाले व्यक्तियों के विवरणों, प्रत्याशित प्रतिफलों इत्यादि का संकेत करते हुए प्रशिक्षण के संगठन स्वयं-धारित प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे। (4) वरीयतः, प्रशिक्षुओं की पहचान, संबंधित राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्रों के द्वारा की जायेगी। केंद्रीय सरकार भी संबंधित राज्य सरकारों/संघ-शासित क्षेत्र के परामर्श से (यदि आवश्यकता हुई तो) प्रशिक्षुओं की पहचान करेगी।
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12.2 |
यात्रा-भत्ता |
आने-जाने का वास्तविक किराया परंतु रेलवे की दूसरी श्रेणी के किराये तक प्रतिबंधित
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12.3 |
आवास
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रु.600/- प्रति प्रशिक्षु प्रति दिन की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार
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12.4 |
प्रशिक्षण सामग्री का वितरण (रु.200/- प्रति प्रशिक्षु प्रति कार्यक्रम
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न्यूनतम 50 प्रशिक्षुओं के एक बैच के लिये रु.10,000/- प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार
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12.5 |
प्रशिक्षण की कक्षाओं इत्यादि की अवधि में सहभागियों/ प्रशिक्षुओं को भोजन, चाय, हल्का नाश्ता (रु.300/- प्रति प्रशिक्षु प्रतिदिन) |
न्यूनतम 50 प्रशिक्षुओं के एक बैच के लिये रु.15,000/- प्रति दिन की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
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12.6 |
प्रदर्शन/स्थानीय क्षेत्र का दौरा (रु.200 प्रति प्रशिक्षण प्रति कार्यक्रम)
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न्यूनतम 50 प्रशिक्षुओं के एक बैच के लिये रु.10,000/- प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
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12.7 |
लेखन-सामग्री और अन्य अनपेक्षित मदें (रु.100/- प्रति प्रशिक्षु प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम
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न्यूनतम 50 प्रशिक्षुओं के एक बैच के लिये रु.5,000/- प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार
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राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड और उसके क्रिया-कलाप
क्र.सं. |
घटक |
इकाई की लागत |
निबंधन और शर्ते |
(1) |
(2) |
(3) |
(4) |
1. ब्रूड बैंकों के विकास (राष्ट्रीय और क्षेत्रीय) को शामिल करते हुए मस्त्य-बीज का उत्पादन |
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1.1 |
हैचरियाँ |
हैचरियों की स्थापना किया जाना, अंतर्देशीय घटक में शामिल हैं। एन.एफ.डी.बी., क्षेत्र की जरुरतों और वित्तपोषण करने की विस्तृत पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए, डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से किन्हीं अन्य अपेक्षित हैचरियों को शामिल करेगा। |
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1.2 |
मीठे पानी/ खारे पानी की मछली/ श्रिंप/ ट्राउट के ब्रूड बैंकों की स्थापना |
5 हे. के क्षेत्रफल वाले प्रति ब्रूड बैंक के लिये रु.500 लाख की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) लाभार्थी, पूर्ण औचित्य एवं तकनीकी विवरणों के साथ स्वयं-धारित परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। (2) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि, वित्तीय संसाधनों, अनिवार्य अनापत्तियों/अनुमतियों इत्यादि (जहाँ कहीं अपेक्षित हो) की उपलब्धता के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (3) ब्रूड बैंक की बुनियादी सुविधाओं का निर्माणोत्तर परिचालन, प्रबंधन और रख-रखाव, लाभार्थियों द्वारा उनके अपने निजी खर्चे पर संतोषजनक ढंग से किया जायेगा। (4) सहकारी समितियों/समूहों/उद्यमियों के परियोजनाओं के प्रस्ताव, समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (5) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठन/ परिसंघ/ निगम/ अभिकरण इत्यादि सीधे एन.एफ.डी.बी. को प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे और वित्तीय सहायता संबंधित के परामर्श से प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। (6) एन.एफ.डी.बी., उपयुक्त स्थान पर वाणिज्यिक पहुँच के साथ ब्रूड बैंकों की सुविधाओं की स्थापना करेगा और प्रबंध करेगा। |
2. |
चारे के मिलों की स्थापना को शामिल करते हुए मत्स्य-चारा |
यह अंतर्देशीय घटक में शामिल है। एन.एफ.डी.बी., इस क्षेत्र की जरुरतों और वित्तपोषण की विस्तृत पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए. डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से कुछ अपेक्षित अतिरिक्त मद जोड़ेगा। |
|
3. |
फसलोत्तर, मूल्य-वर्धन की बुनियादी सुविधा और विपणन का विकास |
यह समुद्री घटक में शामिल है। एन.एफ.डी.बी., इस क्षेत्र की जरुरतों और वित्तपोषण की विस्तृत पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए. डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से कुछ अपेक्षित अतिरिक्त मद जोड़ेगा।
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4. शीत-श्रृंखला का विकास |
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4.1 |
वर्फ के संयंत्र, शीत भंडार गृह, मत्स्य विपणन जैसे मात्स्यिकी के शीत श्रृंखला के कुछ मद समुद्री घटक के अंतर्गत शामिल किये गये हैं। एन.एफ.डी.बी., इस क्षेत्र की जरुरतों और वित्तपोषण की विस्तृत पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए, डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से कुछ अपेक्षित अतिरिक्त मद जोड़ेगा। |
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4.2 |
प्रसंस्करण करने से पूर्व का कार्य करने और मछलियों का प्रसंस्करण करने, मछलियों का परिवहन (कुसंवाहक और प्रशीतित वाहन) फुटकर दुकानें, मछली के चल बाजार, गुमटी इत्यादि जैसे फ्राई से लेकर फ्राईपेन तक के क्रिया-कलापों को शामिल करते हुए शीत-श्रृंखला का विकास |
रु.500 लाख प्रति परियोजना की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
(1) लाभार्थी, पूर्ण औचित्य एवं तकनीकी विवरणों के साथ स्वयं-धारित परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। (2) लाभार्थी, सभी ऋणग्रस्तताओं से मुक्त अपेक्षित भूमि, वित्तीय संसाधनों, अनिवार्य अनापत्तियों/ अनुमतियों इत्यादि (जहाँ कहीं अपेक्षित हों) की उपलब्धता के दस्तावेजी साक्ष्य डी.पी.आर. में प्रदान करेंगे। भूमि के लिये कोई भी निधियाँ प्रदान नहीं की जायेंगीं। (3) एकीकृत शीत श्रृंखला की बुनियादी सुविधाओं का निर्माणोत्तर परिचालन, प्रबंधन और रख-रखाव, लाभार्थियों द्वारा उनके अपने निजी खर्चे पर संतोषजनक ढंग से किया जायेगा। (4) सहकारी समितियों/ समूहों/ उद्यमियों के परियोजनाओं के प्रस्ताव, समुचित अनुशंसाओं के साथ संबंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सरकार के माध्यम से भेजे जायेंगे। (5) केंद्रीय और राज्य सरकार के संगठन/ परिसंघ/ निगम/ अभिकरण इत्यादि सीधे एन.एफ.डी.बी. को प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगे और वित्तीय सहायता संबंधित के परामर्श से प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय की जायेगी। (6) एन.एफ.डी.बी., उपयुक्त स्थान पर वाणिज्यिक पहुँच के साथ ब्रूड बैंकों की सुविधाओं की स्थापना करेगा और प्रबंध करेगा। |
5. |
अंतर्देशीय मात्स्यिकी का विकास
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यह अंतर्देशीय घटक में शामिल है। एन.एफ.डी.बी., इस क्षेत्र की जरुरतों और वित्तपोषण की विस्तृत पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए, डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से कुछ अपेक्षित अतिरिक्त मद जोड़ेगा। |
|
6. |
लघु पैमाने की मात्स्यिकी का प्रोत्साहन |
यह समुद्री और अंतर्देशीय घटक में शामिल है। एन.एफ.डी.बी., इस क्षेत्र की जरुरतों और वित्तपोषण की विस्तृत पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए, डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से कुछ अपेक्षित अतिरिक्त मद जोड़ेगा। |
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7. |
वैकल्पिक आजीविका का प्राविधान |
यह समुद्री और अंतर्देशीय घटक में शामिल है। एन.एफ.डी.बी., इस क्षेत्र की जरुरतों और वित्तपोषण की विस्तृत पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए, डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से कुछ अपेक्षित अतिरिक्त मद जोड़ेगा। |
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8. |
मात्स्यिकी के क्षेत्र में शेयरहोल्डरों के कौशल का स्तरोन्नयन |
यह अंतर्देशीय घटक में शामिल है। एन.एफ.डी.बी., इस क्षेत्र की जरुरतों और वित्तपोषण की विस्तृत पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए, डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से कुछ अपेक्षित अतिरिक्त मद जोड़ेगा। |
अनुश्रवण, नियंत्रण और निगरानी (एम.सी.एस.) और आवश्यकता पर आधारित अन्य हस्तक्षेप
1. समुद्रतटीय राज्यों और संघ-शासित क्षेत्रों को सहायता
क्र.सं.
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मदों का विवरण
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इकाई की लागत
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1. |
डाटा एंट्री के मानकीकृत प्रारुपों/फार्मों का/की मुद्रण, साइक्लोस्टाइल तथा फोटोग्राफी करने की लागत |
प्रति एफ.एम.सी.एस./वार्षिक रु.5 लाख की सीमा के साथ वास्तविक लागत।
|
2. |
पर्सनल कम्प्यूटरों, लैपटापों, प्रिंटरों, फोटोकापियर स्कैनरों, फोटोकैमरों, बायोमीट्रिक पकड़ने वाले उपस्करों और सम्बद्ध सॉफ्टवेयर एवं उपस्करों इत्यादि बुनियादी ढाँचे की समर्थन करने वाली सुविधाओं की उपाप्ति। |
प्रति एफ.एम.सी.एस. (एकबारगी पूँजी-लागत) रु.10 लाख की सीमा के साथ वास्तविक लागत |
3. |
आउटसोर्सिंग अभिकरणों के माध्यम से शुद्धतः अनुबंध के आधार पर डाटा एंट्री आपरेटर और कार्यालय सहायक/ एम.टी.एस. की नियुक्ति। डी.ई.ओ., एम.टी.एस./कार्यालय सहायक इत्यादि को वेतन का भुगतान |
कुल 5 डी.ई.ओ./एम.टी.एस./कार्यालय सहायक प्रति एफ.एम.सी.एस. का केंद्र। उस स्थान में रु.20,000/- माह/डी.ई.ओ. प्रति डी.ई.ओ. और एम.टी.एस./कार्यालय सहायक इत्यादि को रु.15,000/- की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार। |
4. |
आँकड़ों के एकत्रीकरण, आँकड़ों के संकलन के लिये अपेक्षित लेखन- सामग्री के क्रय करने एवं कार्ड धारकों के बैंक के खाते मोबाईल और आधार संख्याओं के एकत्रीकरण एवं सूत्रपात करने (उन मछुआरों के संबंध में जिनके कार्ड पहले ही जारी किये जा चुके हैं) और आँकड़ों का प्रबंधन/रख-रखाव। |
रु.5 लाख वार्षिक प्रति एफ.एम.सी.एस. का केंद्र |
5. |
सम्बंधित राज्य/संघ-शासित क्षेत्र के नियमों के अनुसार उपयुक्त मानदेय, मील-भत्ता, वाहन भत्ता, समयोपरि भत्ते इत्यादि का भुगतान |
प्रति एफ.एम.सी.एस. केंद्र के लिये रु.2.50 लाख वार्षिक की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार। |
6. |
बायोमीट्रिक विवरणों के ग्रहण करने/आँकड़े के संकलन और बैठकों की व्यवस्था करने इत्यादि के दौरान चयनित दुकानदारों के लिये तार्किक समर्थन प्रदान करना |
प्रति एफ.एम.सी.एस. केंद्र के लिये रु.1 लाख | वार्षिक की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
7. |
आई.डी.कार्डों का जारी किया जाना, मछली मारने वाले जलयानों का पंजीकरण, सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन के अभ्यासों का कार्यक्रम (बी.एम.पी.), परिचालन करने के मानक अभ्यास (एस.ओ.पी.एस.), राज्य स्तरीय / राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न कार्यशालाओं/सेमिनारों इत्यादि में स्टॉलों की स्थापना जैसे एम.सी.एस. के क्रिया-कलापों के बारे में समय-समय पर मछुआरों को संवेदनशील बनाने के लिये समाचार-पत्रों, रेडियो और टी.वी. के क्षेत्रीय चैनलों, नेटवर्को, सोशल मीडिया इत्यादि जैसे स्थानीय जन-संचार माध्यमों से प्रचार, विज्ञापन। |
प्रति एफ.एम.सी.एस. केंद्र के लिये रु.5 लाख वार्षिक की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
8. |
आँकड़ा एकत्रीकरण के शिविरों की अवधि के दौरान परिवहन कर्मियों और सामग्रियों के लिये स्थानीय वाहन, मछलियाँ मारने वाले जलयानों के पंजीकरण के शिविर, राज्य स्तर/राष्ट्रीय स्तर की/के विभिन्न कार्यशालाओं/सेमीनारों में स्टॉल लगाना ताकि एम.सी.एस. के क्रियाकलापों इत्यादि को लोकप्रिय बनाया जाए और प्रोत्साहित किया जाए। |
एफ.एम.सी.एस. के प्रत्येक केंद्र के लिये वार्षिक रु.2 लाख की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार
|
9. |
बुनियादी ढाँचे का सृजन जैसे एफ.एम.सी.एस. केंद्र (यदि कोई अपेक्षित हो) के लिये नये भवन का निर्माण, विद्यमान भवन/कमरों का आधुनिकीकरण। इसमें सभी सिविल कार्य, बिजली, नलसाजी, जलापूर्ति, प्रकाश-व्यवस्था, वातानुकूलन, फर्नीचर और अन्य मदें, यदि कोई अपेक्षित है, शामिल हैं ताकि एफ.एम.सी.एस. केंद्र शामिल हैं ताकि एफ.एम.सी.एस. केंद्र परिचालन के लिये उपयुक्त बनाया जा सके। |
एफ.एम.सी.एस. के प्रत्येक केंद्र के लिये रु.100 लाख (एकबारगी पूँजी-लागत) की सीमा के साथ वास्तविक लागत के अनुसार |
10. |
राज्य स्तरीय सर्वर (प्रत्येक राज्य/संघ-शासित क्षेत्र में एक सर्वर की डिज़ाइन बनाना, उपाप्ति और स्थापना) के अपेक्षित हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की स्थापना, कार्ड पढ़ने वाले/हाथ में पकड़े जाने वाले उपकरणों की उपाप्ति, बार कोड पढ़ने वाले की स्थापना की लागत, एफ.एम.सी.एस. में उपाप्त और स्थापित किये गये सभी और अनिवार्य उपस्करों की वार्षिक रख-रखाव की संविदा (ए.एस.सी.) की लागत टेलीफोन, इंटरनेट एवं बिजली के बिलों इत्यादि जैसी प्राथमिक सुविधाओं के परिचालन की लागत |
(क) राज्य स्तरीय सर्वर और अन्य जरुरी उपस्करों की उपाप्ति और स्थापना के लिये प्रारम्भिक एक वर्ष की पूँजीगत, पूँजी-निवेश के रूप में प्रत्येक राज्य/संघ-शासित क्षेत्र के लिये रु.10 लाख प्रति राज्य/संघ-शासित क्षेत्र की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार। (ख) ए.एम.सीओं. और अन्य आवर्ती व्ययों के लिये प्रति एफ.एम.सी.एस. केंद्र के लिये वार्षिक रु. 2 लाख की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार
|
11. |
स्टॉफ और लाभार्थियों/शेयरहोल्डरों इत्यादि को प्रशिक्षित करने के लिये प्रशिक्षण, जागरुकता उत्पन्न करने के कार्यक्रम और सेमीनार/कार्यशाला इत्यादि |
एफ.एम.सी.एस. के प्रति केंद्र के लिये रु. 2 लाख वार्षिक की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार |
12. |
आकस्मिक व्यय तथा ऊपरी या अन्य अनपेक्षित मदें
|
एफ.एम.सी.एस. के प्रति केंद्र के लिये रु.1 लाख वार्षिक की सीमा के साथ वास्तविक के अनुसार। |
2. डी.ए.डी.एफ., कृ.एवं कि.क.मं. के द्वारा केंद्रीय स्तर पर एम.सी.एस. के क्रिया-कलापों का (सी.एस.एस. के अधीन 100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ) किया जाना ।
क्र.सं. |
मदों का विवरण |
संकेतक सूचना-प्रदाता / अभिकरण |
1. |
डाटा की प्रविष्टि, डाटा का अंकीकरण, बायोमीट्रिक विवरण (जहाँ कहीं भी राज्यों/ संघ-शासित क्षेत्रों के द्वारा पकड़ा नहीं जाता है), मानवीकरण, डाटा का पुनरावृत्तिकरण रहित किया जाना, 64 के.बी. चिप के साथ कार्यों की डिज़ाइन बनाना एवं उत्पादन करने के लिये परामर्शदात्री प्रभारों की लागत। |
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बी.ई.एल.), बंगलौर के नेतृत्व में तीन केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सी.पी.एस.यू.) के संघ के माध्यम से कार्यान्वित करना जारी रखना। संघ के अन्य दो सदस्य हैं - आई.टी.आई. पलक्कड़ और ई.सी.आई.एल., हैदराबाद। |
2. |
उन मछुआरों का डाटाबेस अद्यतन करने के लिये, जिन्हें कार्डधारकों का आधार, खाता संख्याओं, वोटर का और मोबाईल संख्याओं इत्यादि को आधार मानते हुए बायोमीट्रिक आई.कार्ड पहले से ही जारी किये जा चुके हैं, उस सॉफ्टवेयर का ग्राहकीकरण किया जाना। |
तीन सी.पी.एस.यू. और राज्यों/ संघ-शासित क्षेत्रों का संघ |
3. |
विद्यमान कार्ड धारकों के आधार कार्डी, बैंक के खातों और मोबाईल संख्याओं का सूत्रपात करने, के लिये अपेक्षित सॉफ्टवेयर, आधार के डाटाबेस के संयोजन एवं पहुँच, एन.पी.आर. या अन्य का डाटाबेस का अंगीकरण और विकास, जहाँ कहीं व्यवहार्य हो, ताकि बायोमीट्रिक आई.डी. के कार्यों को जारी करने के लिये विद्यमान डाटाबेस से मछुआरों का अपेक्षित डाटा लिया जा सके। केंद्रीय और राज्य स्तर- दोनों पर विभिन्न प्राधिकृत अभिकरणों द्वारा मछुआरों के डाटाबेस के प्रभावी उपयोग को सुकर बनाने के लिये जे.डब्ल्यू.सी., एन.एम.डी.ए. के केंद्रों और अन्य जैसे राष्ट्रीय डाटा केंद्रों, राज्य और केंद्रीय सर्वरों के मध्य मछुआरों के डाटाबेस के संयोजनों के लिये अपेक्षित सॉफ्टवेयर का विकास। |
तीन सी.पी.एस.यू. का संघ और एन.आई.सी./ एन.आई.सी.एस.आई. या किसी राज्य के स्वामित्व वाले अभिकरण |
4. |
कार्डों के निजीकरण और मुद्रण को शामिल करते हुए बायोमीट्रिक कार्डों(नये कार्डों) का निर्माण, विद्यमान कार्डों का संशोधन, विद्यमान डाटाबेस में परिवर्तन, अनुलिपि वाले कार्डों का जारी किया जाना। |
तीन सी.पी.एस.यू. और एन.आई.सी./ एन.आई.सी.एस.आई. के संघ के माध्यम से डी.ए.डी.एफ.। |
5. |
नई दिल्ली या किसी अन्य स्थान पर, जैसा कि डी.ए.डी.एफ. द्वारा निर्णय किया जाए, केंद्रीय सर्वर की स्थापना और प्रबंधन। इसमें अपेक्षित विद्यमान सर्वरों, यदि कोई हो, का स्तरोन्नयन भी शामिल है। |
तीन सी.पी.एस.यू. के संघ या एन.आई.सी., एन.आई.सी.एस.आई., सी.पी.डब्ल्यू.डी. या किसी अन्य केंद्रीय सरकार के विभाग/ संस्थानों के माध्यम से डी.ए.डी.एफ.।
|
6. |
बायोमीट्रिक आई.डी. कार्डों के लिये कार्ड के विवरणों का मानकीकरण एवं बायोमीट्रिक नामांकन (यदि कोई जरुरत हो, तो), विकास/ स्तरोन्नयन विकास/ अनुकूलन और मुख्य प्रबंधन प्रणाली (के.एम.एस.) का परिचालन, के.एम.एस. और एम.सी.एस. के अन्य क्रिया-कलाप तथा सुरक्षित पर्यावरण के रूप में सुरक्षा के अन्य संबंधित पहलुओं को करने के लिये बायोमीट्रिक के आई.डी. के लिये नई दिल्ली या किसी अन्य स्थान पर करने के लिये सुरक्षित एम.सी.एस. का केंद्र/ वातावरण की स्थापना |
एन.आई.सी., एन.आई.सी.एस.आई., तीन सी.पी.एस.यू. के संघ, केंद्रीय संस्थानों, राज्य के संगठनों/अभिकरणों के माध्यम से डी.ए.डी.एफ.।
|
7. |
मछली मारने वाले जलयानों के पंजीकरण के लिये आर.ई.ए.एल. क्राफ्ट प्रणाली का स्तरोन्नयन, संशोधन और रख-रखाव। इसमें शामिल हैं- ए.एम.सी., आर.ई.ए.एल. क्राफ्ट प्रणाली के स्तरोन्नयन के लिये अपेक्षित सॉफ्टवेयर का विकास, आपदा वसूली सुविधाओं/ सर्वरों की स्थापना एवं परिचालन करना, आर.ई.ए.एल. क्राफ्ट के प्रयोगों पर क्षमता-निर्माण और प्रशिक्षण, कार्यशालाएं/ सेमीनार, सुरक्षा अंकेक्षण, विद्यमान सॉफ्टवेयर का अनुकूलन, जहाँ कहीं वर्तमान और स्थानीय आवश्यकताओं का अनुकूलन करने के लिये अपेक्षित हो, आर.ई.ए.एल. क्राफ्ट प्रणाली के सुचारु संचालन के लिये अपेक्षित अन्य क्रियाकलाप। मछली मारने वाले जलयानों इत्यादि के पंजीकरण के संबंध में क्रिया-कलापों का जारी रखा जाना। |
एन.आई.सी., एन.आई.सी.एस.आई. या केंद्रीय सरकार के कोई अन्य विभाग/ संस्थान, राज्य/ संघ-शासित क्षेत्रों और उनके स्वामित्व वाले अभिकरण
|
8. |
एम.सी.एस. के संबंध में सभी क्रिया-कलाप एक समन्वयात्मक ढंग से करने के लिये डी.ए.डी.एफ., एम.ओ.ए. एवं एफ. डब्ल्यू. के नियंत्रण में आँकड़ों का केंद्रीयकृत प्रसंस्करण करने के एफ.एम.सी.एस. केंद्र की स्थापना करना। इसमें डाटाबेस का प्रबंधन, विभिन्न शेयरहोल्डरों इत्यादि से आमने-सामने सम्पर्क करना भी शामिल है। |
केंद्रीय संस्थानों, मात्स्यिकी के संस्थानों, तीन सी.पी.एस.यू. के संघ, सी.पी.डब्ल्यू.डी., बताये गये संगठन/ अभिकरण, फिशकोपफेड इत्यादि के माध्यम से डी.ए.डी.एफ। |
9. |
मछली मारने वाले सभी जलयानों/ नावों के रंग के कूट संकेतन के कार्यान्वयन से संबंधित क्रिया-कलाप, मछलियों की उतराई वाले बिंदुओं की अधिसूचना, नावों का निर्माण करने वाले सभी अहातों (पंजीकरण को शामिल करते हुए) के डाटाबेस का सृजन करना और रख-रखाव करना, मछिलयों की उतराई वाले केंद्रों एवं मछलियों के थोक बिक्री के बाजारों इत्यादि को एक समान मंच पर जोड़ा जाना, संबंधित राज्य के समुद्री मात्स्यिकी विनियमन अधिनियमों (एम.एफ.आर.ए.) के प्राविधानों का कार्यान्वयन, समुद्रतटीय मात्स्यिकी और समुद्रतटीय सुरक्षा से संबंधित मामलों पर प्रोत्साहन संबंधी क्रिया-कलाप, मात्स्यिकी के विनियमन करने और प्रबंधन करने से संबंधित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मात्स्यिकी का अनुपालन। |
राज्य सरकारें/ संघ-शासित क्षेत्र, केंद्रीय और राज्य के मात्स्यिकी के संस्थान, एन.आई.सी., एन.आई.सी.एस.आई. तीन सी.पी.एस.यू. का संघ, राज्य के संगठन/ अभिकरण। |
10. |
एम.सी.एस. से संबंधित सभी क्रिया-कलापों को करने के लिये मात्स्यिकी प्रभाग में आउटसोर्सिंग अभिकरणों के माध्यम से शुद्धतः संविदात्मक आधार पर विशेषज्ञ सलाहकारों (5 संख्या), डाटा एंट्री ऑपरेटर (5 संख्या )/ कार्यालय सहायक / एम.टी.एस. की नियुक्ति। प्रति डी.ई.ओ. रु.20,000/- तक और एम.टी.एस./ कार्यालय सहायक इत्यादि के लिये रु.15,000/- माह तक का वेतन प्रतिबंधित होगा। |
एन.आई.सी., एन.आई.सी.एस.आई., केंद्रीय मास्त्यिकी संस्थानों, सी.पी.एस.यू. के संघ, फिशकोपफेड इत्यादि के माध्यम से डी.ए.डी.एफ.। |
11. |
अपेक्षित पी.सीओ., लैपटॉपों, आई-पैड़ों, टेबलेटों, फोटोकॉपी की मशीनों, स्कैनरों, फैक्स मशीनों, प्रिंटरों इत्यादि का क्रय। हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर के वार्षिक रख-रखाव के अनुबंध, वाहनों का किराये पर मात्स्यिकी प्रभाग के स्टॉफ का प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण उन्हें समर्थ बनाया जाए ताकि वे एम.सी.एस. को सुचारु रूप से सक्रिय कर सकें। |
एन.आई.सी., एन.आई.सी.एस.आई., केंद्रीय मात्स्यिकी संस्थान, सी.पी.एस.यू. का संघ, फिशकोपफेड इत्यादि के माध्यम से लेना, डी.ए.डी.एफ.। |
स्त्रोत:
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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