मोती एक प्राकृतिक रत्न है जो सीप से पैदा होता है। भारत समेत हर जगह हालांकि मोतियों की माँग बढ़ती जा रही है, लेकिन दोहन और प्रदूषण से इनकी संख्या घटती जा रही है। अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के लिए भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार से हर साल मोतियों का बड़ी मात्रा में आयात करता है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर ने ताजा पानी के सीप से ताजा पानी का मोती बनाने की तकनीक विकसित कर ली है जो देशभर में बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं।
प्राकृतिक रूप से एक मोती का निर्माण तब होता है जब कोई बाहरी कण जैसे रेत, कीट आदि किसी सीप के भीतर प्रवेश कर जाते हैं और सीप उन्हें बाहर नहीं निकाल पाता, बजाय उसके ऊपर चमकदार परतें जमा होती जाती हैं। इसी आसान तरीके को मोती उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है।
मोती सीप की भीतरी सतह के समान होता है जिसे मोती की सतह का स्रोत कहा जाता है और यह कैल्शियम कार्बोनेट, जैपिक पदार्थों व पानी से बना होता है। बाजार में मिलने वाले मोती नकली, प्राकृतिक या फिर उपजाए हुए हो सकते हैं। नकली मोती, मोती नहीं होता बल्कि उसके जैसी एक करीबी चीज होती है जिसका आधार गोल होता है और बाहर मोती जैसी परत होती है। प्राकृतिक मोतियों का केंद्र बहुत सूक्ष्म होता है जबकि बाहरी सतह मोटी होती है। यह आकार में छोटा होता और इसकी आकृति बराबर नहीं होती। पैदा किया हुआ मोती भी प्राकृतिक मोती की ही तरह होता है, बस अंतर इतना होता है कि उसमें मानवीय प्रयास शामिल होता है जिसमें इच्छित आकार, आकृति और रंग का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में आमतौर पर सीपों की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं- लैमेलिडेन्स मार्जिनालिस, एल.कोरियानस और पैरेसिया कोरुगाटा जिनसे अच्छी गुणवत्ता वाले मोती पैदा किए जा सकते हैं।
इसमें छह प्रमुख चरण होते हैं- सीपों को इकट्ठा करना, इस्तेमाल से पहले उन्हें अनुकूल बनाना, सर्जरी, देखभाल, तालाब में उपजाना और मोतियों का उत्पादन।
1. सीपों को इकट्ठा करना: तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा किया जाता है और पानी के बरतन या बाल्टियों में रखा जाता है। इसका आदर्श आकार 8 सेंटी मीटर से ज्यादा होता है।
2. इस्तेमाल से पहले उन्हें अनुकूल बनाना: इन्हें इस्तेमाल से पहले दो-तीन दिनों तक पुराने पानी में रखा जाता है जिससे इसकी माँसपेशियाँ ढीली पड़ जाएं और सर्जरी में आसानी हो।
3. सर्जरी: सर्जरी के स्थान के हिसाब से यह तीन तरह की होती है- सतह का केंद्र, सतह की कोशिका और प्रजनन अंगों की सर्जरी। इसमें इस्तेमाल में आनेवाली प्रमुख चीजों में बीड या न्यूक्लियाई होते हैं, जो सीप के खोल या अन्य कैल्शियम युक्त सामग्री से बनाए जाते हैं।
इस प्रक्रिया में 4 से 6 मिली मीटर व्यास वाले डिजायनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध आदि के आकार वाले सीप के भीतर उसके दोनों खोलों को अलग कर डाला जाता है। इसमें सर्जिकल उपकरणों से सतह को अलग किया जाता है। कोशिश यह की जाती है कि डिजायन वाला हिस्सा सतह की ओर रहे। वहाँ रखने के बाद थोड़ी सी जगह छोड़कर सीप को बंद कर दिया जाता है।
यहाँ सीप को दो हिस्सों- दाता और प्राप्तकर्त्ता कौड़ी में बाँटा जाता है। इस प्रक्रिया के पहले कदम में उसके कलम (ढके कोशिका के छोटे-छोटे हिस्से) बनाने की तैयारी है। इसके लिए सीप के किनारों पर सतह की एक पट्टी बनाई जाती है जो दाता हिस्से की होती है। इसे 2/2 मिली मीटर के दो छोटे टुकड़ों में काटा जाता है जिसे प्राप्त करने वाले सीप के भीतर डिजायन डाले जाते हैं। यह दो किस्म का होता है- न्यूक्लीयस और बिना न्यूक्लीयस वाला। पहले में सिर्फ कटे हुए हिस्सों यानी ग्राफ्ट को डाला जाता है जबकि न्यूक्लीयस वाले में एक ग्राफ्ट हिस्सा और साथ ही दो मिली मीटर का एक छोटा न्यूक्लीयस भी डाला जाता है। इसमें ध्यान रखा जाता है कि कहीं ग्राफ्ट या न्यूक्लीयस बाहर न निकल आएँ।
इसमें भी कलम बनाने की उपर्युक्त प्रक्रिया अपनाई जाती है। सबसे पहले सीप के प्रजनन क्षेत्र के किनारे एक कट लगाया जाता है जिसके बाद एक कलम और 2-4 मिली मीटर का न्यूक्लीयस का इस तरह प्रवेश कराया जाता है कि न्यूक्लीयस और कलम दोनों आपस में जुड़े रह सकें। ध्यान रखा जाता है कि न्यूक्लीयस कलम के बाहरी हिस्से से स्पर्श करता रहे और सर्जरी के दौरान आँत को काटने की जरूरत न पड़े।
इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है। रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों और न्यूक्लीयस बाहर कर देने वाले सीपों को हटा लिया जाता है।
ताजा पानी में सीपों का पालन देखभाल के चरण के बाद इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्हें नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बाँस या पीवीसी की पाइप से लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। इनका पालन प्रति हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीप के मुताबिक किया जाता है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए तालाबों में जैविक और अजैविक खाद डाली जाती है। समय-समय पर सीपों का निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों को अलग कर लिया जाता है। 12 से 18 माह की अवधि में इन बैगों को साफ करने की जरूरत पड़ती है।
गोल मोतियों का संग्रहणपालन अवधि खत्म हो जाने के बाद सीपों को निकाल लिया जाता है। कोशिका या प्रजनन अंग से मोती निकाले जा सकते हैं, लेकिन यदि सतह वाला सर्जरी का तरीका अपनाया गया हो, तो सीपों को मारना पड़ता है। विभिन्न विधियों से प्राप्त मोती खोल से जुड़े होते हैं और आधे होते हैं; कोशिका वाली विधि में ये जुड़े नहीं होते और गोल होते हैं तथा आखिरी विधि से प्राप्त सीप काफी बड़े आकार के होते हैं।
ध्यान रखने योग्य बातें-
क्रम संख्या |
सामग्री |
राशि(लाख रुपये में) |
I. |
व्यय |
|
क . |
स्थायी पूँजी |
|
1. |
परिचालन छप्पर (12 मीटर x 5 मीटर) |
1.00 |
2. |
सीपों के टैंक (20 फेरो सीमेंट/एफआरपी टैंक 200 लीटर की क्षमता वाले प्रति डेढ़ हजार रुपये) |
0.30 |
3. |
उत्पादन इकाई (पीवीसी पाइप और फ्लोट) |
1.50 |
4. |
सर्जिकल सेट्स (प्रति सेट 5000 रुपये के हिसाब से 4 सेट) |
0.20 |
5. |
सर्जिकल सुविधाओं के लिए फर्नीचर (4 सेट) |
0.10 |
|
कुल योग |
3.10 |
|
|
|
ख . |
परिचालन लागत |
|
1. |
तालाब को पट्टे पर लेने का मूल्य (डेढ़ साल के फसल के लिए) |
0.15 |
2. |
सीप (25,000 प्रति 50 पैसे के हिसाब से) |
0.125 |
3. |
डिजायनदार मोती का खाँचा (50,000 प्रति 4 रुपये के हिसाब से) |
2.00 |
4. |
कुशल मजदूर (3 महीने के लिए तीन व्यक्ति 6000 प्रति व्यक्ति के हिसाब से) |
0.54 |
5. |
मजदूर (डेढ़ साल के लिए प्रबंधन और देखभाल के लिए दो व्यक्ति प्रति व्यक्ति 3000 रुपये प्रति महीने के हिसाब से |
1.08 |
6. |
उर्वरक, चूना और अन्य विविध लागत |
0.30 |
7. |
मोतियों का फसलोपरांत प्रसंस्करण (प्रति मोती 5 रुपये के हिसाब से 9000 रुपये) |
0.45 |
|
कुल योग |
4.645 |
|
|
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ग. |
कुल लागत |
|
1. |
कुल परिवर्तनीय लागत |
4.645 |
2. |
परिवर्तनीय लागत पर छह महीने के लिए 15 फीसदी के हिसाब से ब्याज |
0.348 |
3. |
स्थायी पूँजी पर गिरावट लागत (प्रतिवर्ष 10 फीसदी के हिसाब से डेढ़ वर्ष के लिए) |
0.465 |
4. |
स्थायी पूँजी पर ब्याज (प्रतिवर्ष 15 फीसदी के हिसाब से डेढ़ वर्ष के लिए |
0.465 |
|
कुल योग |
5.923 |
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|
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II. |
कुल आय |
|
1. |
मोतियों की बिक्री पर रिटर्न (15,000 सीपों से निकले 30,000 मोती यह मानते हुए कि उनमें से 60 फीसदी बचे रहेंगे) |
|
|
डिजायन मोती (ग्रेड ए) (कुल का 10 फीसदी) प्रति मोती 150 रुपये के हिसाब से 3000
|
4.50 |
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डिजायन मोती (ग्रेड बी) (कुल का 20 फीसदी) प्रति मोती 60 रुपये के हिसाब से 6000
|
3.60 |
|
कुल रिटर्न |
8.10 |
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III. |
शुद्ध आय (कुल आय- कुल लागत) |
2.177 |
स्रोत-
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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