फसल प्रबंधन जैसे भूमि की तैयारी, बीज दर, बुआई का समय, बीज उपचार, उर्वरक प्रबंधन, जल प्रबंधन को विभिन्न परिदृश्यों में उगाए गए धान, गेहूँ, मक्का एवं मूंग के लिए मानक मापदंडों/प्रक्रियाओं के अनुसार ही अनुसरण किया गया। परिदृश्य 1 में पारंपरिक रूप से जोते हुए खेत में गेहूँ के बीजों का छिड़काव किया गया जबकि शेष परिदृश्यों में गेहूँ को टर्बो हैप्पी सीडर तथा जीरो-टिल सीड-कम-फर्टिलाइजर ड्रिल की मदद से बोया गया। टर्बो हैप्पी सीडर फसल के भारी अवशेषों में भी बीज तथा उर्वरक दोनों को ठीक से डालने में सक्षम है। परिदृश्य 1 और 2 में धान को मानव श्रम की मदद से प्रतिरोपित किया जाता है तथा परिदृश्य 3 एवं 4 में टर्बो हैप्पी सीडर की मदद से फसलों को लगाया गया है। मूंग के लिए 65 दिन की अवधि वाली किस्म समर मूंग लुधियाना-668 को गेहूँ की कटाई तथा धान के रोपण के बीच में उपलब्ध समय में लगाया गया है। गेहूँ तथा धान की किस्मों का चयन उनकी निष्पादन क्षमता के आधार पर किया गया है। प्रथम वर्ष में गेहूँ की कटाई के बाद मूग को 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के बीज दर से टर्बो हैप्पी सीडर की मदद से ड्रिल किया गया जबकि दूसरे वर्ष में मूंग को गेहूँ की अंतिम सिंचाई से पहले (गेहूँ की कटाई से 15 दिन पहले) 30 किग्रा प्रति हैक्टेयर की बीज दर से पूर्व अंकुरित बीजों का छिड़काव कर गेहूँ के साथ रेिले फसल के रूप में लगाया गया था। परिदृश्य 3 और 4 में परिदृश्य 2 की तुलना में 15-20 दिन पहले ही धान तथा मक्का की सीधी बुआई करने के कारण मूंग की रिले फसल की एक या दो तुड़ाई ही हो पाती है। परिदृश्य 3 और 4 में मूंग की फसल को परिपक्व होने के लिए पर्याप्त समय नही मिल पाता है जिसका प्रभाव उसकी उत्पादन क्षमता पर दिखाई देता है।
पानी के सही इस्तेमाल और माप के लिए प्रत्येक प्लाट में 6 इंच पोलीविनाईल क्लोराइड (पीवीसी) पाइप लाइन को स्थापित किया गया है। पीवीसी पाइप लाईन को ट्यूबवैल से जोड़कर एक छोर पर 6 इंच के व्यास वाले फ्लो वाटर मीटर से जोड़ा गया है। सिंचाई के अंतराल के बीच में किसी भी प्रकार के पानी के नुकसान से बचने के लिए एक नोन रिर्टन वाल्व को ट्यूबवैल वितरण आउटलेट पर एयर-टाईट बटर फ्लाई वाल्व लगाया गया है। सिंचाई में इस्तेमाल हुए पानी के माप के लिए वाटर मीटर रीडिंग सिंचाई के शुरू और अंत में दर्ज की जाती है। सभी प्रकार की फसलों में पानी की गहराई को सिंचाई के समय 5 सेमी. तक रखने का प्रयास किया गया है तथा सिंचाई जल की मात्रा को मिलीमीटर प्रति हैक्टेयर की तर्ज पर दर्ज किया जाता है। मिट्टी की मैट्रिक क्षमता की निगरानी करने के लिए गेज टाईप टेनशियोमीटर को फसल बोने के तुरंत बाद 15 सेमी तथा 30 सेमी. की गहराई तक सभी प्लाटो में स्थापित किया गया है। धान एवं मक्का के मौसम (खरीफ) में टेनशियोमीटर रीडिंग के आधार पर ही सिंचाई के लिए पानी लगाया जाता है। हालांकि गेहूँ के मौसम के दौरान पानी को गेहूँ के विकास के चरणों के आधार पर लगाया जाता है परन्तु मिट्टी की मैट्रिक क्षमता पर लगातार निगरानी रखी जाती है। कुल फसल प्रणाली उत्पादकता की तुलना के लिए धान के अलावा शेष सभी फसलों को धान के बराबर उपज में परिवर्तित किया गया है। प्रणाली उत्पादकता (धान समतुल्य) की गणना के लिए प्रणाली की सभी फसलों की उपज (धान समतुल्य) को जोड़ा गया है।
फसल अवशेषों का समावेश
चारों परिदृश्यों में पुनः चक्रित फसल अवशेषों की मात्रा में काफी अंतर पाया गया (तालिका 2) । परिदृश्य 1 में फसल अवशेष नहीं थे वहीं दूसरी ओर परिदृश्य 2, 3 और 4 में तीन वर्षों में क्रमशः 34.05, 44.35 तथा 49.89 टन प्रति हैक्टेयर फसल अवशेष थे। गेहूँ तथा मूंग की बुवाई के समय क्रमशः परिदृश्य 2 में तीन वर्षों में 1571 टन प्रति हैक्टेयर एंकर्ड चावल के ढूंठ तथा 775 टन प्रति हैक्टेयर गेहूँ के ढूंठ को मिट्टी की सतह पर बरकरार रखा गया था जबकि धान के लिए तप्पड़ भूमि तैयार करते समय मूंग के तीन वर्षों में 1059 टन प्रति हैक्टेयर अवशेषों को मिट्टी में मिलाया गया था। इसी तरह तीन वर्षों में परिदृश्य 3 में धान (2679 टन प्रति हैक्टेयर) और मूंग (96 टन प्रति हैक्टेयर) के सम्पूर्ण अवशेषों को मिट्टी में मिलाया गया। परिदृश्य 4 में भी तीन वर्षों में धान (332 टन प्रति हैक्टेयर) तथा मूंग (888 टन प्रति हैक्टेयर) के सम्पूर्ण अवशेषों को मिट्टी में मिलाया गया था तथा गेहूँ (776 टन प्रति हैक्टेयर) के एंकर्ड ढूंठ को ही मिट्टी में बरकरार रखा गया था।
तालिका 2 : सीसा परियोजना के विभिन्न परिदृश्यों के तहत् तीन वर्षों में फसल अवशेषों का टर्न-ओवर
परिदृश्य | फसल प्रणाली | धान | गेहूँ | मूंग | कुल अवशेष |
---|---|---|---|---|---|
1. | धान (कद्दू करके प्रत्यारोपित)—गेहूँ | - | - | - | - |
2. | धान (कद्दू करके प्रत्यारोपित)—गेहूँ-मूंग | 15.71 | 7.75 | 10.59 | 34.05 |
3. | धान (तप्पड़ भूमि में धान की सीधी बुआई) –गेहूँ-मूंग | 26.79 | 7.96 | 9.60 | 44.35 |
4. | मक्का-गेहूँ-मूंग | 33.20 | 7.76 | 8.88 | 49.84 |
विभिन्न परिदृश्यों में फसल उत्पादकता में भी काफी अंतर पाया गया (लेखाचित्र 2)। तीन वर्षों के परिणामों से पता चलता है कि परिदृश्य 2 में धान की सबसे ज्यादा उपज (8.06 टन प्रति हैक्टेयर) पायी गयी जो परिदृश्य 1, 3 तथा 4 से क्रमशः 134, 4.5 और 11.3 प्रतिशत ज्यादा है। परिदृश्य 4 में धान समतुल्य मक्का की उपज (724 टन प्रति हैक्टेयर) परिदृश्य1 (711 टन प्रति हैक्टेयर) के बराबर पायी गयी। जीरो-टिल गेहूँ की उपज पारंपरिक जुताई की तुलनां में ज्यादा पायी गयी। परिदृश्य 2, 3, 4 में गेहूँ की उपज परिदृश्य1 की तुलना में क्रमशः 4.86, 12.35 तथा 1535 प्रतिशत ज्यादा पायी गयी।
धान समतुल्य प्रणाली उत्पादकता विभिन्न परिदृश्यों में अलग-अलग थी जोकि परिदृश्य 2 में सबसे ज्यादा थी। (158 टन प्रति हैक्टेयर) तथा परिदृश्य 3 और4 एक-दूसरे से भिन्न नहीं थी। परिदृश्य1 में सबसे कम प्रणाली उत्पादकता (130 टन प्रति हैक्टेयर) दर्ज की गई थी।
तीन वर्षों के औसत परिणामों के आधार पर गेहूँ में सिंचाई जल का प्रयोग परिदृश्य 1 में 410 मिलीमीटर से लेकर परिदृश्य 3 में 451 मिलीमीटर तक हुआ है। हालांकि विभिन्न परिदृश्यों के बीच आपस में एक दूसरे से बहुत ज्यादा अंतर नहीं था। धान/ मक्का में सिंचाई जल का प्रयोग सबसे ज्यादा परिदृश्य 1 (2275 मिलीमीटर प्रति हैक्टेयर) में हुआ था, उसके बाद परिदृश्य 2 (1533 मिलीमीटर प्रति हैक्टेयर) तथा परिदृश्य 3 (1232 मिलीमीटर प्रति हैक्टेयर) में किया था और सबसे कम सिंचाई जल का प्रयोग परिदृश्य 4 (216 मिलीमीटर प्रति हैक्टेयर) में हुआ था जहां मक्का की फसल ली गयी थी। परिदृश्य 2 में पानी को वैकल्पिक शुष्क तथा नम की विधि के अनुसार लगाया गया था जिसके कारण इसमें 31 प्रतिशत तक परिदृश्य 1 की तुलना कम सिंचाई जल की आवश्यकता हुयी ।
विभिन्न फसल प्रणालियों में तीन वर्षों में सिंचाई जल का उपयोग परिदृश्य 4 < परिदृश्य 3 < परिदृश्य 2 < परिदृश्य 1 के अनुसार पाया गया। परिदृश्य 1 में सबसे ज्यादा पानी की खपत (2687 मिलीमीटर प्रति हैक्टेयर) तथा परिदृश्य 4 में सबसे कम (766 मिलीमीटर प्रति हैक्टेयर) थी जबकि परिदृश्य 2 में 1533 मिलीमीटर प्रति हैक्टेयर तथा परिदृश्य 3 में 1232 मिलीमीटर प्रति हैक्टेयर रही। परिदृश्य 3 में जीरो टिल में धान की सीधी बुवाई से परिदृश्य 1 की तुलना में 46 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत हुई थी। परिदृश्य 4 जिसमें धान की जगह मक्का उगाई गई थी। सिंचाई जल का प्रयोग परिदृश्य 1 से 91 प्रतिशत तक कम था तथा परिदृश्य 2 और 3 से क्रमशः 86 प्रतिशत और 82 प्रतिशत कम था। कुल प्रणाली जल प्रयोग की परिदृश्य 1 की तुलना में परिदृश्य 2, 3 और 4 में क्रमशः 23, 33 तथा 71 प्रतिशत की बचत हुई (लेखाचित्र 3) ।
तीन वर्षों के औसत परिणामों के आधार पर विभिन्न परिदृश्यों में ऊर्जा का प्रयोग आपस में काफी विविध था (लेखाचित्र 4)। गेहूँ के संबंध में यह परिदृश्य 1 में अधिकतम 24,797 मेगा जूल प्रति हैक्टेयर से लेकर परिदृश्य 2 में न्यूनतम 20920 मेगा जूल प्रति हैक्टेयर तक पाया गया था। धान/मक्का के अन्तर्गत परिदृश्य 4 में अन्य परिदृश्यों की तुलना में ऊर्जा की कम खपत हुई थी (15888 मेगा जूल प्रति हैक्टेयर)। अगर हम समस्त परिदृश्य प्रणालीयों की बात करें तो भविष्यवादी परिदृश्य में सबसे अधिक ऊर्जा की बचत हुई तथा किसानों द्वारा अभ्यास (परिदृश्य 1) में ऊर्जा की अत्यधिक खपत दर्ज की गई थी। परिदृश्य 1 की तुलना में ऊर्जा की बचत गेहूँ में परिदृश्य 2 में 16 प्रतिशत थी तथा परिदृश्य 3 और 4 में 12 एवं 13 प्रतिशत थी। धान/ मक्का में ऊर्जा की बचत परिदृश्य 2, 3 व 4 में परिदृश्य 1 से 27, 38 तथा 68 प्रतिशत तक ज्यादा पायी गयी । फसल प्रणाली ऊर्जा बचत की बात करें तो परिदृश्य 1 की तुलना में भविष्यवादी परिदृश्य 46 प्रतिशत ऊर्जा बचत के साथ सबसे अच्छा साबित हुआ तथा उसके बाद परिदृश्य 3 और 2 में ऊर्जा बचत क्रमशः 26 और 19 प्रतिशत रही। ऊर्जा बचत के हिसाब से परिदृश्य 4 सबसे अच्छा पाया गया ।
संरक्षण खेती में मृदा कार्बन की मात्रा में आशातीत वृद्धि दर्ज की गयी। प्रारम्भिक विश्लेषण के अनुसार मृदा में कार्बन की मात्रा 045 प्रतिशत थी। जो 3 वर्षों बाद भी परिदृश्य 1 में ज्यों की त्यों बनी रही (046 प्रतिशत) । जबकि परिदृश्य 2, 3 एवं 4 में कार्बन की मात्रा में लगभग 15, 25 एवं 30 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी पायी गई। परिदृश्य 2, 3 एवं 4 में मृदा के भौतिक गुणों जैसे मृदा संरचना, जल धारण क्षमता, मृदा भार घनत्व, मृदा एकत्रीकरण, मृदा पारगम्यता दर आदि में परिदृश्य 1की तुलना में सुधार देखा गया । परिदृश्य 3 एवं 4 में मृदा भार घनत्व में बढ़ोत्तरी पायी गयी। वहीं दूसरी ओर मृदा पारगम्यता दर (इनफिल्ट्रेशन रेट) परिदृश्य 3 एवं 4 में परिदृश्य 1 एवं 2 की तुलना में दोगुनी (लगभग 0.30 सेंटीमिटर प्रतिदिन) दर्ज की गयी। परिदृश्य 3 एवं 4 में मृदा समुच्चय (एग्रेिग्रेशन) के आकार (025 मिलीमिटर से ज्यादा) में 3 साल बाद लगभग 30–35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी पायी गयी तथा लगभग 100–150 प्रतिशत की वृदि मध्यम भार व्यास में पायी गयी । परिदृश्य 2, 3 एवं 4 में जल धारण क्षमता परिदृश्य 1 की तुलना में अधिक होती है।
परिणामों से स्पष्ट होता है कि कृषि संरक्षण पर आधारित कृषि के बेहतर फसल प्रबंधनों एवं संसाधनों (श्रम, पानी, जुताई तथा फसल स्थापना लागत) के इस्तेमाल से उपज, जल और ऊर्जा के प्रयोग पर सकारात्मक प्रभाव देखें गये हैं। सिंचाई जल तथा ऊर्जा खपत का कम उपयोग करते हुये परिदृश्य 2, 3 और 4 में धान समतुल्य प्रणाली उत्पादकता, परिदृश्य 1 की तुलना में अधिक दर्ज की गई। पानी एवं मानव श्रम की बढ़ती कमी और सिंचाई की बढ़ती लागत से निपटने के लिए आने वाले समय में धान की सीधी बुआई एक संभावित विकल्प है। भूमि के घटते जलस्तर को रोकने, फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने एवं खाद्य सुरक्षा को हासिल करने के लिए मक्का एक अच्छा विकल्प है। कृषि संरक्षण पर आधारित सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन के अभ्यासों का मृदा के स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव दिखाई पडता है जो दीर्घकालिक स्थिरता के स्थायित्व के लिए महत्वपूर्ण है।
स्त्रोत : केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान(भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद),करनाल,हरियाणा।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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