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टमाटर की वैज्ञानिक खेती

परिचय

टमाटर सब्जियों कि खेती में एक मुख्य फसल है क्योंकि इसमें खाद्य पौष्टिक पदार्थ प्रचूर मात्रा में मिलते हैं। एक अत्यंत लोकप्रिय सब्जी होने के कारण देश भर में सफलता पूर्वक उगाई जाती है। इसके फल शहरों में प्राय: सालभर उपलब्ध रहते हैं। दूसरे विश्व के हर भाग में पैदावार कि हिसाब से आलू के उपरान्त टमाटर का ही स्थान है।

टमाटर के उपयोग

सूप, सलाद, चटनी, सॉस और दूसरी सब्जी के साथ मिलाकर खाद्य पदार्थ तैयार करने में आता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज पदार्थ, कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन, निकोटेनिक अम्ल आदि प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं।

जलवायु

कड़ी सर्दी तथा पाला में टमाटर के फलन में बाधा होती है। इसके लिए औसत तापमान 18-27 डिग्री सें. है। टमाटर कि गुणवत्ता उसके पौधे कि बढ़ोत्तरी से कम हो जाती है। टमाटर की गुणवत्ता उसके रंग और आकार से आंकी जाती है और यह दोनों जलवायु से प्रभावित होते हैं। 10 डिग्री सें. से नीचे टमाटर में लाल और पीला रंग बनना बंद हो जाता है और 30 डिग्री सें. से उपर भी लाल रंग बनना कम हो जाता है। 40 डिग्री सें. पर लाल रंग का बनना तो बिल्कुल बंद हो जाता है। गर्म व् शुष्क हवा से टमाटर के फूल झड़ जाते हैं।

मिटटी

टमाटर प्राय: सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जाता है। परन्तु हल्की अम्लीय से लेकर, दोमट मिटटी विशेष उपयुक्त है। मिटटी में जैविक पदार्थ की अधिक मात्रा एवं पानी के निकास का उचित प्रबंध रहना काफी जरूरी है।

उन्नत प्रभेद

पूसा रूबी, पूसा गौरब, एव.एस.-102, हिसार अरुण, हिसार लालिमा, हिसार ललित, मारग्लोब, पंजाब छुहारा, पंजाब केसरी, एन.डी.टी.-3, एन.डी.टी.-4, एन.डी.टी.-11, स्वीट-72, पूसा सदाबहार, पंत बहार।

शंकर

वैशालनी, रुपाली, नवीन, रजनी, अविनाश-2, अर्काविशाल, कंचन, पूसासंकर-1, पूसा संकर-2 एंड पूसा संकर-4।

पौधा तैयार करना

टमाटर के पौधे नर्सरी में तैयार की जाती है। इसके लिए लगभग 400-500 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर किTomatoजरूरत होती है। संकर किस्मों के बीज की मात्र प्रति हेक्टेयर 200 ग्राम है। पौधों को गलने से रोकने के लिए बीज को एग्रोसन जी.एन.से शोधित करना चाहिए। 2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होती है। बीज के क्यारियों में जिसमें पानी की समुचित निकास कि व्यवस्था हो उसमें बीज को छि छिंटकर बोना चाहिए क्योंकि पंक्तियों में बोये गये बीजों में आर्द्रगलन रोग अधिक लगता है। बीज को बोने के समय इन्हें मिट्टी में भली भांति मिलाकर बोना चाहिए और गोबर की सड़ी खाद तथा हल्की बालू कि परत से ढक देना चाहिए। अगर आवश्यकता हो तो फब्बारे से हल्की सिंचाई कर देना चाहिए। जब बीजों का अंकुरण हो जाय, तब 0.2% डाईथेन एम-45 का घोल का नियमित रूप से छिड़काव करना चाहिए ताकि पौधों को कोई फफूंदजनित रोग न  लग सके।

खेत की तैयारी

खेत को 3-4 बार जोतकर अच्छी तरह तैयार कर लें। पहली जुताई जुलाई माह में मिट्टी पलटने वाले हल अथवा देशी हल से करें। खेत की जुताई के बाद समतल करके 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद को समान रूप से खेत में बिखेरकर पुन: अच्छी जुताई कर लें और घास-पात को पूर्णरूप से हटा दें।

उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए। किसी कारण से अगर मिट्टी का जांच संभव न हो तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर नेत्रजन-100 किलोग्राम, स्फूर-80 किलोग्राम तथा पोटाश-60 किलोग्राम कि दर से डालना चाहिए।

एक तिहाई नेत्रजन, स्फूर और पोटाश की पूरी मात्रा का मिश्रण बनाकर, प्रतिरोपण से पूर्व मिट्टी में बिखेर कर अच्छी तरह मिला देना चाहिए। शेष नेत्रजन को दो बराबर भागों में बांटकर, प्रतिरोपण के 25 से 30 और 45 से 50 दिन बाद उपरिवेशन (टॉपड्रेसिंग) के रूप में डालकर मिट्टी में मिला देनी चाहिए। जब फूल और फल आने शुरू हो जाए, उस स्थिति में 0.4-0.5 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करना चाहिए। लेकिन सांद्रता पर काफी ध्यान देना चाहिए। अधिक सान्द्र होने पर छिड़काव से फसलों की पूरी बर्बादी होने की संभावना रहेगी।

हल्की संरचना वाली मृदाओं में फसल के फल फटने की संभावनाएं रहती हैं। प्रतिरोपण के समय 20-25 किलोग्राम बोरेक्स प्रति हेक्टेयर, की दर से डालकर, मिट्टी में भली भांति मिला देना चाहिए।

फलों कि गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए 0.3 प्रतिशत बोरेक्स का घोल फल आने पर 3-4 छिड़काव किया जाना अनिवार्य है।

दूरी

कमजोर खेत में दूरी कम रखें। पौधों की औसत दूरी 60 से 70 सेंमी. दोनों ओर से रखें। जब खेत अधिक उपजाऊ हो तो दो पौधे एक जगह रोपें। इन दिनों 60 x 45 सेंमी. दूरी यानि अपेक्षाकृत कम दूरी लाभप्रद है।

सिंचाई

पहली सिंचाई प्रतिरोपण के तुरंत बाद करनी चाहिए। टमाटर में 15-20 दिनों पर सिंचाई करें। जाड़े में पाला तथा गर्मी में ‘लू’ से बचाव के लिए 10-12 दिनों पर सिंचाई करें।

खरपतवार नियन्त्रण

प्रतिरोपण के 35-40 दिन बाद खरपतवार नियन्त्रण बहुत जरूरी है, क्योंकि यह स्थिति एक संकट कि घड़ी होती है। यदि एस समय खरपतवार नियन्त्रण नहीं किया गया तो उससे पौधों की बढ़वार और विकास दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि खेत में कम खरपतवार हो, तो उन्हें उखाड़ कर निकाल देना चाहिए। यदि फसल अधिक क्षेत्र में उगाना हो और उसमें खरपतवार अधिक होने की सम्भावना हो तो उस स्थिति में खरपतवार नाशी दवा का उपयोग नितांत आवश्यक है। इसके लिए ‘लासो’ 2 किलोग्राम/हें. कि दर से प्रतिरोपण से पूर्व डालना चाहिए। यह सबसे अधिक प्रभावशाली दवा है। आजकल रोपण के 4-5 दिन बाद स्टाम्प 1.0 किलोग्राम प्रति हें. की दर से इस्तेमाल करना अत्यंत प्रभावशाली पाया गया है और ऊपज पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है।

वृद्धि नियंत्रक

विषाणु रोग को कम करने, अधिक या कम तापमान में फल निर्माण, और फलों कि परिपक्वता बढ़ाने के लिए वृद्धि नियंत्रकों का उपयोग काफी जरूरी है। 50-100 पी.पी.एम. का छिड़काव करने से अधिक या कम तापमान की स्थिति में फलों का निर्माण बढ़ जाता है। छिड़काव फूलों के गुच्छों पर करना अधिक प्रभावशाली पाया गया है, क्योंकि ऐसा करने से पौधे कि बढ़वार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

500 पी.पी.एम. साइकोसेल का पौधशाला के पौधों पर प्रतिरोपण के 3-4 दिन पहले पर्णीय छिड़काव करना और प्रतिरोपण के 25-30 दिन बाद करने से विषाणु नामक रोग में कमी हो जाती है और अगेती फसल मिलती है। यदि फलों को पकाना है तो उसके लिए 1000 पी.पी.एम इथ्रेल का छिड़काव उत्तम पाया गया है।

पौधों संरक्षण

कीट की रोकथाम

फल छेदक: यह टमाटर का सबसे बड़ा शत्रु है। पत्तों और फूलों को खाने के बाद यह फल से छेदकर अंदर से खाना शुरू कर देता है।

जैसिड: यह हरे रंग के छोटे-छोटे कीट होते हैं, जो पौधों से रस चूस लेते हैं, जिसके कारण पौधों की पत्तियाँ सूख जाती हैं।

सफेद मक्खी: ये सफेद छोटे-छोटे कीड़े होते हैं जो पौधों से उनका रस चूस लेते हैं। इनसे पत्तियों के मुड़ जाने वाली बीमारी (मोजेक) फैलती है।

रोकथाम के लिए फसल बढ़वार की आरंभिक अवस्था में 0.05 प्रतिशत रोगी या मेटासिस्टॉक्स का छिड़काव करना चाहिए। फल छेदक से प्रभावित फलों और एस कीड़े के अण्डों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें फिर छिड़काव करें। एक पखवाड़े के अंतराल पर यह छिड़काव दूबारा करना चाहिए।

बीमारियाँ

यह फसल को नर्सरी में सबसे हानि पहुंचाता है। रोकथाम के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम कैप्टाफ या वैविस्टिन  से उपचारित करना चाहिए। क्यारियों की मिट्टी में 2 ग्राम थीरम या कैप्टाफ एक लीटर पानी में घोलकर हर 10-15 दिनों में छिड़काव करना चाहिए।

अगेती झुलसा

पत्तों और फलों में गहरे भूरे रंग के धब्बे आते हैं। रोकथाम के लिए 10-15 दिन के अंतराल पर 0.2 प्रतिशत डाइथेन एम-45 के घोल का एक छिड़काव करें।

ऊपज

उपरोक्त तथ्यों पर ध्यान रखते हुए उन्नत प्रभेदों से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 300 से 400 क्विंटल उपज मिल जाती है। तथा संकर किस्मों से प्रति हें. 500 से 600 क्विंटल उपज मिलती है।

बीज उत्पादन

टमाटर, स्वपरागित फसल है। शुद्ध बीज पैदा करने के लिए दो किस्मों के बीच कम से कम 25 से 50 मीटर दूरी होनी चाहिए। मुख्य फसल से भिन्न पौधों को उखाड़ दें। बीज पूरी तरह पके टमाटर से लिया जाता है। फल से बीज निकालने की मुख्य दो विधियां हैं:

  1. फलों के गूद्दे को पानी में 2-3 दिन तक लगाकर, साफ़ पानी में धोये तथा बीज को छाया में सुखायें।
  2. फल के गूद्दे को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल 100 मिली. प्रति 10 किलो गूद्दे के साथ मिलाकर 30 मिनट तक रखें। गूद्दे को हिलायें और बाद में 2-3 बार साफ़ पानी से धोयें।

प्रति हेक्टेयर 100 से 125 किलोग्राम बीज की उपज मिलती है।

स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, बिहार सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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