पश्चिम उत्तर प्रदेश के नये जिले हापुड़ के बाहरी भाग में स्थित सूदना गांव अब 'गाजर गांव' के रूप में विख्यात है। इसका श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित एक उन्नत किस्म 'पूसा रुधिर' को जाता है। खेत के उत्पादन और लाभ को बढ़ाने तथा एक 'मॉडल' गांव के रूप में विकसित करने के लिए भाकृअनुस ने वर्ष 2010 में चार गांवों को चुना, जिनमें से सूदना गांव एक है। यहां गेहूं-धान-गन्ना-सब्जियों की पारम्परिक फसल प्रणाली का चलन था। इस गांव के किसान सब्जियों में गाजर भी उगाया करते थे। हालांकि 'पूसा रुधिर' गाजर की खेती से पहले यहां गाजर का उत्पादन फायदे का सौदा नहीं माना जाता था। गांव में गाजर उत्पादन की क्षमता के मद्देनजर वर्ष 2011-12 में भाकृअनुसं ने इस गांव के एक सीमांत कृषक श्री चरण सिंह के 1.75 एकड़ के खेत में 'पूसा रुधिर' गाजर उगाने की शुरूआत की।
गाजर की फसल में आदानों के अधिकतम उपयोग के लिए किसान को नियमित सलाह दी गयी। कृषक को ‘पूसा रुधिर’ गाजर की 393.75 क्विं/है. की दर से उम्दा फसल मिली, यह प्रचलित किस्म से 10 क्विं/है. अधिक थी। इससे 264,286 रु./है. का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ, यह लाभ स्थानीय किस्म से 37 प्रतिशत अधिक है। इस नयी किस्म के श्रेष्ठ गुणों की वजह से स्थानीय बाजार में 18 प्रतिशत अधिक दाम भी प्राप्त हुआ। ‘पूसा रुधिर’ गाजर को 928 रु./क्विं. का मूल्य मिला, यह मूल्य प्रचलित किस्म से 140 रु./है. अधिक है। आकर्षक लंबी लाल जड़ें, चमकता लाल रंग, समान आकार और अधिक मिठास इसका कारण है। इसका टीएसएस मान 9.5 ब्रिक्स है।
अधिक उत्पादन और लाभ के साथ ‘पूसा रुधिर’ के बेहतर प्रदर्शन से उत्साहित होकर गांव के अन्य किसानों ने भी इसमें रुचि दिखाई। वर्ष 2012 के शीतकाल में अन्य 20 कृषकों ने ‘पूसा रुधिर’ के बीज मांगे और भाकृअनुसं द्वारा 200 कि.ग्रा. बीज लागत मूल्य पर दिये गये। तत्पश्चात एक वर्ष में ही ‘पूसा रुधिर’ गांव के लगभग 60 प्रतिशत (90 एकड़) क्षेत्र में उगाई गई। ‘पूसा रुधिर’ के लाभ से प्रभावित होकर, गाजर उत्पादकों ने सामुदायिक आधार पर तीन सफाई मशीनें लगाकर, गाजर की यांत्रिक सफाई शुरु कर दी। इससे गाजरें जल्दी धुलती हैं और गाजरों को कम से कम नुकसान होता है। ‘पूसा रुधिर’ के अधिक उत्पादन और अगले वर्ष के लिए प्रीमियम मूल्य के कारण कृषकों को 2,22,690 रु./है. का आकर्षक मूल्य प्राप्त हुआ।
पूसा रुधिर' की लोकप्रियता अब दिल्ली और एनसीआर के विभिन्न बाजारों तक पहुंचती है। रबी 2013-14 में यह किस्म लगभग 120 एकड़ (75 प्रतिशत) क्षेत्र में उगाई गयी है। आगामी वर्षों में 'पूसा रुधिर' और अधिक क्षेत्र में फैलकर सर्वाधिक लोकप्रिय किस्म बन जायेगी। इसके परिणामस्वरूप 'पूसा रुधिर' की मांग लगातार बढ़ रही है। श्री कमल सिंह और श्री जयभगवान सैनी (दोनों सीमान्त कृषक) ने इसके बीजोत्पादन का कार्य आरम्भ किया है। भाकृअनुसं के वैज्ञानिक इन्हें तकनीकी मार्गदर्शन और सहायता प्रदान कर रहे हैं। पिछले वर्ष के 145 कि.ग्रा. गाजर बीज उत्पादन से 58,000 रु. की अतिरिक्त आमदनी की उम्मीद है। अचरज की बात नहीं कि ये कृषक निकट भविश्य समय में समर्थ उद्यमी बन सकेंगे।
अन्य किस्मों की तुलना में ‘पूसा रुधिर’ पौष्टिक गुणों में अधिक समृद्ध है। परीक्षण में कैरिटोनोयड 7.41 मि.ग्रा. और फिनोल 45.15 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्रा. पाया गया। इन तत्वों का प्राथमिक गुण इनका एंटी ऑक्सीडेंट गुण है, जो कोशिकाओं की असाधारण वृद्धि को सीमित करके कई तरह के कैंसर से बचाव करते हैं। अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘पूसा रुधिर’ कृषकों और उपभोक्ताओं के लिए वरदान है।
स्त्रोत : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर).
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस भाग में अतिरिक्त आय एवं पोषण सुरक्षा हेतु वर्ष ...
इस भाग में अंतर्वर्ती फसलोत्पादन से दोगुना फायदा क...
इस भाग में झारखण्ड में समेकित कीट प्रबंधन पैकेज के...
इस पृष्ठ में केंद्रीय सरकार की उस योजना का उल्लेख ...