झारखंड में ज्यादातर वर्षा जून से सितम्बर तक होती है। इसलिए किसान भाई सिंचाई के अभाव में प्राय: खरीफ में ही फसल लेते हैं और रबी में कम खेती करते है। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय स्थित अखिल भारतीय सूखी खेती अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ऐसी तकनीकों का विकास किया गया है, जिससे मिटटी, जल एवं फसलों का उचित प्रबंधन कर असिंचित अवस्था में भी ऊँची जमीन में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
अरहर – मकई (एक – एक पंक्ति दोनों की, दूरी: 75 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति)
अरहर – ज्वार (एक – एक पंक्ति दोनों की, दूरी: 75 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति)
अरहर – मूंगफली (दो पंक्ति अरहर 90 सें.मी. की दूरी पर, इसके बीच तीन पंक्ति मूंगफली)
अरहर – गोड़ा धान (दो पंक्ति अरहर 75 सें.मी. की दूरी पर, इसके बीच तीन पंक्ति धान)
अरहर – सोयाबीन (दो पंक्ति अरहर 75 सें.मी. की दूरी पर, इसके बीच दो पंक्ति सोयाबीन)
अरहर – उरद (दो पंक्ति अरहर 75 सें.मी. की दूरी पर, इसके बीच दो पंक्ति उरद)
अरहर – भिण्डी (दो पंक्ति अरहर 75 सें.मी. की दूरी पर, इसके बीच एक पंक्ति भिण्डी)
धान – भिण्डी (दो पंक्ति धान के बाद दो पंक्ति भिण्डी)
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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