झारखंड में ज्यादातर वर्षा जून से सितम्बर के मध्य होती है। इसलिए किसान सिंचाई के अभाव में प्राय: खरीफ फसल की ही बुआई करते और रबी की कम खेती करते हैं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय स्थित अखिल भारतीय सूखा खेती अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ऐसी तकनीक का विकास किया गया है, जिसके अनुसार मिट्टी, जल एवं फसलों का उचित प्रबंधन कर असिंचित अवस्था में भी ऊँची जमीन में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
मिट्टी एवं नमी संरक्षण
खरीफ फसल कटने के बाद नमी संरक्षण के लिए खेत में पुआल या पत्तियाँ बिछा दें ताकि खेत की नमी नहीं उड़ने पाये। इस तकनीक को मल्चिंग कहते हैं। यह तकनीक बोआई के तुरन्त बाद भी अपना सकते हैं।
जल छाजन (वाटर शेड) के अनुसार भूमि का वर्गीकरण करें। उसके समुचित उपयोग से भूमि एवं जल का प्रबंधन सही ढंग से किया जा सकता है।
भूमि प्रबंधन में कन्टूर बांध , टेरेसिंग और स्ट्रीप क्रॉपिंग शामिल हैं।
जल प्रबंधक में गली प्लगिंग, परकोलेशन टैंक तथा चेक डैम इत्यादि शामिल है।
वर्षा जल को तालाब में या बाँधकर जमा रखें। इस पानी से खरीफ फसल को सुखाड़ से बचाया जा सकता है और रबी फसलों की बुआई के बाद आंशिक सिंचाई की जा सकती है।
खरीफ फसल कटने के तुरन्त बाद रबी फसल लगायें ताकि मिट्टी में बची नमी से रबी अंकुरण हो सके।
फसल प्रबंधन
पथरीली जमीन में वन वृक्ष के पौधे, जैसे काला शीसम, बेर, बेल, जामुन, कटहल, शरीफा तथा चारा फसल में जवार या बाजरा लगायें।
कृषि योग्य ऊँची जमीन में धान, मूंगफली, सोयाबीन, गुनदली, मकई, अरहर, उरद, तिल, कुलथी, एवं मड़ुआ खरीफ में लगायें।
रबी में तीसी, कुसुम, चना, मसूर, तोरी या राई एवं जौ लगायें।
सूखी खेती में निम्नलिखित दो फसली खेती की अनुशंसा की जाती है-
अरहर-मकई (एक-एक पंक्ति दोनों की, दूरी : 75 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति)
अरहर-ज्वार (एक-एक पंक्ति दोनों की, दूरी : 75 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति )
अरहर-मूंगफली (दो पंक्ति अरहर 90 सें. मी. की दूरी पर, : इसके बीच तीन पंक्ति मूंगफली)
अरहर-गोड़ा धान (दो पंक्ति अरहर 75 सें. मी. की दूरी पर, इसके बीच तीन पंक्ति धान)
अरहर-सोयाबीन (दो पंक्ति अरहर 75 सें. मी. की दूरी पर, इसके बीच दो पंक्ति सोयाबीन)
अरहर-उरद (दो पंक्ति अरहर 75 सें. मी. की दूरी पर, इसके बीच दो पंक्ति उरद)
अरहर-भिण्डी (दो पंक्ति अरहर 75 सें. मी. की दूरी पर, इसके बीच एक पंक्ति भिण्डी)
धान-भिण्डी (दो पंक्ति धान के बाद दो पंक्ति भिण्डी)
मानसून का प्रवेश होते ही खरीफ फसलों की बोआई शुरु कर दें। साथ ही 90 से 105 दिनों में तैयार होने वाली फसलों को ही लगायें । हथिया नक्षत्र शुरु होते ही रबी फसलों का बोआई प्रारम्भ कर दें।
खरीफ फसलों में नाइट्रोजन , फॉस्फोरस एवं पौटैश को अनुशंसित मात्रा में दें। साथ ही वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करें । इससे खेत की जलधारण क्षमता बढ़ती है।
जुताई के बाद खेत को खर-पतवार से पूर्णरुप से मुक्त करें और जरुरत पड़े तो फसल बोने के 1 से 2 दिन के अंदर शाकनाशी का उपयोग करें।
उन्नत किस्में
सूखी खेती के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही बीज दर, अन्तराल एवं उर्वरक की मात्रा का भी महत्व कम नहीं है।
झारखंड राज्य की मिट्टी अम्लीय है। इस लिए मकई मूंगफली और सोयाबीन की उपज क्षमता बढ़ाने के लिए 120 से 160 कि.ग्राम चूना प्रति एकड़ देने से उपज काफी हद तक बढ़ जाती है।
शुष्क भूमि के लिए रॉक फॉस्फेट का उपयोग बीज बोने से 20 से 25 दिन पहले करने से रॉक फॉस्फेट की मात्रा के बराबर फॉस्फोरस की मात्रा घट जाती है।
शुष्क भूमि में दलहनी फसलों में राईजोबियम कल्चर का उपयोग करने से नाइट्रोजन पर निरर्भता बहुत हद तक कम हो जाती है।
बुआई के लिए भूमि की तैयारी
किसी भी फसल की बुआई के पहले सामान्य रूप से एक बार मिट्टी पलटने बाले हल एवं तीन-चार बार देशी हल से आवश्यकतानुसार जुताई करके खर-पतवारों को निकाल देना चाहिए।