झारखण्ड राज्य के कुल 80 लाख हेक्टेयर भूमि खेती योग्य है। इन मिट्टियों में फसल उत्पादन के लिए पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है। मिट्टी जाँच के आधार पर यह पाया गया है कि अनेक जगहों में पोषक तत्वों का समुचित प्रंबधन नहीं किया जा रहा है। कुछ पोषक तत्वों की कमी से फसलों के उपज में आशानुकूल वृद्धि नहीं हो पा रही है, इसे दूर करना आवश्यक है।
सर्वक्षण के आधार पर पता चला है कि रांची, सिंहभूम, पलामू तथा संथाल परगना क्षेत्र की मिट्टी में नेत्रजन तथ स्फुर के साथ-साथ पोटाश, गंधक, बोरन तथा मेलिव्डेनम की कमी है।
जिला |
मिट्टी में कमी (% में) |
|
|
|
|
पोटाश |
सल्फर |
बोरन |
मेलिव्डेनम |
रांची |
30.2 |
74.0 |
36.0 |
84 |
सिंहभूम |
48.5 |
42.8 |
36.0 |
58 |
पलामू |
5.0 |
72.6 |
46.0 |
38 |
संथाल परगना |
29.0 |
19.3 |
|
|
गुमला |
|
57.0 |
|
|
लोहरदगा |
|
53.0 |
|
|
इसी तरह शोध के आधार पर राज्य के विभिन्न फसल-चक्रों में भी पोषक तत्व की कमी पाई गयी है।
तालिका-२: झारखण्ड राज्य के कुछ फसल-चक्रों में भी पोषक तत्व की कमी
फसल चक्र |
पोषक तत्व की कमी |
वर्ष में तीन से चार बार एक ही खेत में सब्जी उगने वाले क्षेत्र |
बोरन, कैल्सियम, सल्फर, मेलिव्डेनम |
धान-परती |
फास्फोरस, पोटाश |
सोयाबीन-गेंहू, धान-मटर |
फास्फोरस, कैल्सियम, सल्फर, |
मुगफली-अरहर |
फास्फोरस, कैल्सियम, बोरन |
धान-सब्जी |
पोटाश |
मक्का-गेंहू |
नेत्रजन, फास्फोरस, |
झारखण्ड राज्य की लगभग 16 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि ऊँचा या मध्यम है। मृदा सर्वक्षण के आधार पर यह पाया गया है कि 4 लाख हेक्टेयर जमीन में अम्लीयता की समस्या (पी. एच. 5.5 से कम) संथाल परगना की २ लाख हेक्टेयर जमीन में इस तरह की समस्या है। इस प्रकार की मिट्टी अम्लीय प्रक्रति की है। अम्लीय मिट्टी में गेंहू, मक्का, दलहनी एवं तेलहन फसलों की उपज संतोषजनक नहीं हो पाती है। भूमि में अम्लीय की समस्या मुख्य रूप से अधिक वर्षा के साथ मिट्टी के कटाव एवं केवल नेत्रजन युक्त खाद के प्रयोग के कारण है। इस प्रकार की मिट्टी में अनेक पोषक तत्वों की उपलब्धता में कमी हो जाती है। अधिक मृदा अम्लता के कारण एल्युमिनियम, मैगनीज तथा लोहा से हानिकारक प्रभाव पड़ता है। अम्लिक मिट्टी में मुख्यतः फस्फोट की कमी तथा कैल्सियम की कमी के कारण फसल उत्पादन में कमी होती है। इसका निराकरण चूना के प्रयोग से किया जाता है।
मिट्टी की अम्लीयता में सुधार करने और उससे पौधों की बढ़वार के लिए अनुकूल परिस्थति उत्पन्न करने के लिए चूना का प्रयोग किया जाता है। जब फसलों की बुवाई के लिए कुंड खोला जाता है उसमें चूना का चूर्ण २ से 4 किवंटल प्रति हेक्टेयर की दर से डालने के बाद उसे पैर से ढँक दिया जाता है। उसके बाद फसलों के लिए अनुशंसित उर्वरकों एंव बीज की बुवाई की जाती है। चूना, डोलोमाईट तथा बेसिक स्लेग का उपयोग आम्लिक मिट्टी के सुधार के लिए करना चाहिए।
अम्लीय मृदाओं के उचित विकास के लिए फास्फोरस की उपलब्धता बहुत अघुलनशील एल्युमिनियम तथा आयरन फास्फेट में परिणत हो जाता है। इससे पौधों को फास्फोरस की उपलब्धि कम हो जाती है। फास्फोरस की कमी को दूर करने के लिए मिट्टी में रॉकफास्फेट का प्रयोग अनुशंसित है।
इसके लिए निम्नलिखित की अपनाया जाता है:
कम्पोस्ट बनाने की उन्नत विधि
गढ्डे का आकार |
1 मी. |
सामग्री |
खरपतवार, कूड़ा-कचरा, फसलों के डंठल, जलकुम्भी , पशुओं के मल-मूत्र एंव इनसे सने पुआल इत्यादि। |
मात्रा |
100 कि.ग्रा प्रति गड्ढा |
यूरिया खाद |
1/२ कि.ग्रा प्रति गड्ढा |
फास्फोरस |
5 कि.ग्रा म्यूरेट रॉकफास्फेट प्रति गड्ढा |
गोबर का पतला घोल |
100 कि.ग्रा (प्रारभ में) |
आद्रता |
80 से 100% |
अवशिष्ठ की पलटाई |
15, 30, और 45 दिनों पर |
तैयार होने का समय |
4 महिना |
कम्पोस्ट के व्यवहार में उसकी गुणवक्ता तथा उसकी परिपक्वता का ध्यान देना आवश्यक है। अच्छे कम्पोस्ट में कम से कम 16-20% जैविक कार्बन, 0.8% नेत्रजन अनुपात 20:1 से कम होना चाहिए। दलहनी फसलों में 0.5 कि.ग्रा/हे. राइजोबियम कल्चर का प्रयोग कर 25 से 30 कि.ग्रा नेत्रजन उर्वरक प्रति हेक्टेयर बचत किया जा सकता है। धान की फसलों में जहाँ पानी का जमाव होता है वहाँ 10 कि.ग्रा नील हरित शैवाल का प्रयोग कर 30 कि.ग्रा नेत्रजन उर्वरक प्रति हेक्टेयर बचाया जा सकता है। उपरोक्त दोनों जीवाणु खाद का उत्पादन बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञानं एवं कृषि रसायन विभाग में किया जाता है। जिसे किसान भाई आठ रूपये प्रति पैकेट (100 ग्राम) की दर से खरीफ एवं रबी मौसम में प्राप्त कर सकते हैं।
अम्लीय मिट्टी में प्रायः बोरन अरु मोलिव्डेनम की उपलब्धता पौधों के लिए कम होता है। इस प्रकार के मिट्टी में उनकी कमी को दूर करने के लिए 1 से 1.5 कि.ग्रा मोलिव्डेनम (अमोनियम मोलिव्डेट) का प्रयोग प्रति हेक्टेयर के दर से किया जाता है। यदि अमोनियम मोलिव्डेट का 0.1% घोल का छिड़काव् पौधों पर किया जाए तो इसकी कमी दूर हो सकती है। बोरन की कमी दूर करने के लिए 1.5 कि.ग्रा बोरन प्रति हेक्टेयर (15 कि.ग्रा बोरेक्स) सब्जी उगाने वाले क्षेत्रों में डालना चाहिए। 0.2% बोरेक्स का छिड़काव् भी किया जा सकता है।
एक लंबे समय से विभिन्न उर्वरकों पर किये गए अनुसंधान के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि सोयाबीन, मक्का, धान एवं गेंहू की अच्छी उपज के लिए अनुशंसित नेत्रजन, फास्फोरस एंव पोटाश के साथ-साथ चूना एवं गोबर की खाद के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता में ह्रास नहीं होता है। यहाँ पर आवश्यक होगी कि किसान भाई खाद का व्यवहार मिट्टी जाँच के आधार पर ही करें।
झारखण्ड राज्य में मिट्टी जाँच की सुविधा में बहुत कमी है। इसके 22 जिलों जाँच के आधार पर संतुलित मात्रा में खाद का व्यवहार करने की जरूरत पूरी होगी।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञानं एवं कृषि रसायन विभाग के मृदा परीक्षण इकाईयों में मिट्टी की जाँच की जाती है। विभाग द्वारा किसानों को निःशुल्क मिट्टी जाँच की सुविधा दी जाती है।
मिट्टी की जाँच की सुविधा के लिए तर्कसंगत प्रयास की आवश्कता
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : समेति, कृषि विभाग , झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
इस पृष्ठ में अच्छी ऊपज के लिए मिट्टी जाँच की आवश्य...
इस पृष्ठ में 20वीं पशुधन गणना जिसमें देश के सभी रा...
इस पृष्ठ में अंगूर की किस्म की विस्तृत जानकारी दी ...
इस भाग में अधिक फसलोत्पादन के लिए लवणग्रस्त मृदा स...