लम्बे समय तक सुगंधित तथा ताजा बने रहने के कारण रजनीगंधा के खुले फूलों और कर्त्तन फूलों का पुष्पविन्यास बनाने, माला बनाने, फूलदान में रखने तथा सजाने में बहुतायत में उपयोग होता है। इसके फूलों से अच्छी और शुद्ध किस्म के 0.08 से 0.135% तेल भी प्राप्त होता है, जिसका उपयोग इत्र या परफ्यूम बनाने में किया जाता है, जो दूसरे इत्र या परफ्यूम से महँगे होते हैं। इन्हीं सभी कारणों से बाजार में इसकी माँग ज्यादा होती है।
रजनीगंधा (पोलोएंथस ट्यूबरोज लिन) की उत्पति मैक्सिको देश में हुई है। यह फूल एमरिलिडिएसी कुल का पौधा है। भारतीय जलवायु में अच्छी वृद्धि के साथ फूल खिलने के कारण पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तामिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, इत्यादि जगहों में इसकी खेती सफलतापूर्वक होती है। भारत में इस फूल की खेती लगभग 20000 हेक्टर क्षेत्र में हो रही है। फ्रांस, इटली, दक्षिणी अफ्रीका, अमेरिका इत्यादि देशों में भी इसकी खेती बहुतायत में होती है।
रंजनीगंधा के पौधे 60 से 120 सें.मी. लम्बे होते हैं जिनमें 6 से 9 पत्तियाँ जिनकी लम्बाई 30-45 सें.मी. और चौड़ाई 1.3 सें. मी. होती है। पत्तियाँ चमकीली हरी होती हैं तथा पत्तियों के नीचे लाल बिंदिया होती है। फूल लाउड स्पीकर के चोंगे के आकार के एकहरे, तथा दोहरे सफेद रंगों के होते हैं।
एकहरी किस्म
इस किस्म में पंखुड़ियाँ एक ही कतार में होती हैं। किस्में हैं – रजत रेखा, श्रीनगर, सुभाषिणी, प्रज्ज्वल, मैक्सिकन सिंगल।
दोहरी किस्म
इस किस्म में पंखुड़ियाँ 3 से 5 कतारों में होती हैं। किस्में हैं – कलकत्ता डवल, स्वर्ण रेखा, पर्ल।
अच्छे वायुसंचार एवं जलनिकास युक्त 6.5 से 7.5 पी. एच. मान वाली, दोमट और बलुई दोमट मिट्टी रजनीगंधा की खेती के लिए उपयुक्त होती है। अच्छी वृद्धि एवं फूल के लिए उपजाऊ, कार्बनिक खाद एवं नमी युक्त जमीन अच्छी मानी जाती है।
गमले में रजनीगंधा लगाने के लिए बगीचे की मिट्टी, गोबर की खाद और पत्ती की खाद के मिश्रण 2:1:1 का प्रयोग करना चाहिए। रजनीगंधा एक शीतोष्ण जलवायु का पौधा है, किन्तु यह पूरे वर्ष मध्यम जलवायु में उगाया जाता है। भारत में समशीतोष्ण जलवायु में गर्म और आर्द्र जगहों पर इसकी अच्छी वृद्धि होती है। 20 से 350 सेंटीग्रेट तापमान रजनीगंधा के विकास और वृद्धि के लिए उपयुक्त होता है। हल्के धूप युक्त खुली जगहों में इसे अच्छी प्रकार से उगाया जा सकता है। छायादार स्थान इसके लिए उपयुक्त नहीं होता है।
(1) बल्व: व्यापारिक स्तर पर कंदा या राइजोम द्वारा ही प्रसारण किया जाता है। 2 से 2.5 सें.मी. लम्बे और 1.5 सें. मी. से अधिक मोटे रोगमुक्त कंद को ही लगाना चाहिए।
(2) विभाजन: जब बल्व गुच्छे में हो जाते हैं तो इसे अलग-अलग कर फफूंद नाशक दवा से उपचारित कर जड़ निकलने तथा अंकुरण के लिए बालू में लगा दिया जाता है। अंकुरण हो जाने पर तथा जड़ निकल जाने पर इसे खेत में लगाया जा सकता है।
(3) सूक्ष्म प्रसारण: तने के भागों का “एम एस माध्यम” में उत्तक संवर्धन द्वारा पौधा तैयार कर लगाया जाता है। नई किस्मों तथा वायरस मुक्त पौधों को ज्यादा संख्या में बनाने के लिए इस विधि का उपयोग किया जाता है।
(4) बीज: उपयुक्त जलवायु में एकहरे किस्मों में ही बीज बनने की प्रक्रिया पाई जाती है। भूमि तापमान 260 से 300 सेंटीग्रेट पर अंकुरण अच्छा होता है। अंकुरित पौधे को मुख्य खेत में लगा सकते हैं। बेड़ में कतार से कतार की 10 सें. मी. दूरी रखकर 1.5 से 2 सें.मी. की दूरी पर बीज को बोना चाहिए।
दो तीन बार खेत की जुताई कर 6-8 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से मिलानी चाहिए। खेत की तैयारी ऐसी होनी चाहिए कि मिट्टियाँ भुरभुरी हो जाएँ। खेत में खरपतवार तथा पुरानी फसल के अवशेष को निकाल कर अपनी आवश्यकता अनुसार क्यारियाँ बनानी चाहिए, जिससे कि सिंचाई की व्यवस्था अच्छी हो सके।
बल्व लगाने का समय
भारत में रजनीगंधा को मैदानी भागों में फरवरी-मार्च तथा पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल-मई में लगाया जता है। मार्च-जून में लगाए गए पौधे में लम्बे और अच्छे फूल खिलते हैं।
दूरियाँ
पौधों की संख्या पर उपज, गुणवत्ता निर्भर करती है तथा बल्व के उत्पादन पर भी प्रभाव डालती है। ज्यादा घनत्व वाले पौधों में फूल तथा बल्व ज्यादा निकलते हैं। 20 X 20 सें.मी. की दूरी पर पौधे को लगाने से अच्छी पैदावार ली जा सकती है। इतनी दूरी रखकर एक लाख पौधे प्रति एकड़ में लगाए जाते हैं। फूलों से तेल उत्पादन के लिए 20 X 15 सें.मी. की दूरी पर पौधों को लगाना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
खाद एवं उर्वरक की जरूरत जलवायु एवं मिट्टी पर निर्भर करती है। खाद एवं उर्वरक का उपयोग प्रयोगशाला की अनुशंसा अनुसार मिट्टी जाँच के आधार पर करना चाहिए। अच्छे फूल उत्पादन के लिए प्रति एकड़ 6 से 8 टन गोबर की खाद, 200 से 225 किलो यूरिया, 500 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा 130 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश देना चाहिए। यूरिया को दो भागों में कर खेत की तैयारी समय एक भाग तथा पौधा लगाने के 30 दिनों बाद दूसरा भाग देना चाहिए और 15 दिनों के अंतराल पर 0.1% यूरिया, ओर्थोफास्फोरिक अम्ल और पोटाशियम साइट्रेट का छिड़काव करने से फूल अच्छे खिलते हैं।
सिंचाई
जमीन में नमी पौधे के विकास एवं वृद्धि के साथ-साथ फुल के लिए आवश्यक होती है। अंकुरित बल्व लगाने के लिए खेत में उचित नमी होने पर पौधे अच्छे निकलते है, तब सिंचाई की तुरन्त आवश्यकता नहीं होती है। पौधे निकलने के बाद अप्रैल से लेकर जून महीने में 7 से 10 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए। वर्षा ऋतु में सिंचाई की कम आवश्यकता होती है।
खरपतवार नियन्त्रण
खरपतवार रजनीगंधा खेती के लिए बहुत बड़ी समस्या है। पौधा लगाने के पहले खेत में डायुरान (80%) 1.12 किलो/एकड़ या एट्राजीन 1.2 किलो/एकड़ की दर के व्यवहार करने से खरपतवार कम निकलते हैं।
(1) तना सड़न: यह स्क्लेरोटियम रोल्फसी फफूंद से होने वाला मिट्टी जनित रोग है। पत्तियों पर हरे रंग का दाग होकर सड़ने लगता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पुरानी सड़ी पत्तियों को खेत से निकाल देना चाहिए तथा कॉपर आक्सीक्लोराइड दवा 2.5 ग्राम/ली. पानी में घोल कर पौधा के पास जड़ों में देना चाहिए।
(2) कली सड़न: यह रोग इरबीनी स्पेसिडा के फफूंद के कारण होता है तथा इस रोग में कलियाँ भूरी होकर सूखने तथा सड़ने लगती हैं। स्ट्रेप्टोसाइकिलन दवा का 500 मि.ग्राम प्रति ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(3) ट्यूबरोज माइल्ड मोजेक वायरस: यह वायरस रोग लगने पर पौधा नष्ट हो जाता है। रोग मुक्त बल्व या उत्तक संवर्धित पौधे का उपयोग करना चाहिए।
(1) ग्रास हॉपर: यह कीट पत्तियों तथा फूलों को खाकर नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान या रोगर 2 मि. ली./ली. पानी में घोल कर 15 दिनों पर छिड़काव करना चाहिए।
(2) विविल: यह कीट रात में पौधे की पत्तियों को किनारे से खाकर नुकसान पहुँचता है। इसकी सुड़ियाँ जड़ तथा बल्व को छेद कर नुकसान पहुँचाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए क्लोरीपायरिफ़ॉस दवा 5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर जडोँ के आस पास देना चाहिए।
(3) माहू और थ्रिप्स: यह कीट पत्तियों, फूलों तथा डंठलों का रस चूस कर उसे भद्दा बना देता है। इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफ़ॉस दवा 1.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(4) रेड स्पाइडर माइट: इस कीट के प्रकोप से पत्तियाँ पीली, चाँदी जैसी जिससे पौधे मर जाते हैं। इसकी रोक थाम के लिए डायकोफाल दवा 2.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(5) निमेटोड: यह कीट जड़ों तथा कंदों को खाकर नुकसान पहुँचाता है। जिससे पौधे मर जाते हैं। इसकी रोक थाम के लिए कार्बोफ्यूरान या थाइमेट दवा का 500 -600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
रजनीगंधा में रोपण के 3 से 5 महीने बाद फूल आते हैं। फूलों को तभी तोड़ना चाहिए जब वह पूर्ण तरह से खिल गए हों तथा कट फ्लावर के लिए उस समय काटना चाहिए जब नीचे के एक-दो जोड़े फूल खिल गए हों। फूलों को काटने का अच्छा समय प्रात: काल या शाम होता है। फूल के डंडे को सकती स्केटियर की सहायता से पौधे के ऊपर 4-5 सें.मी. की दूरी से काटना चाहिए। इससे बल्व को नुकसान नहीं होता है। काटने के शीघ्र बाद उन्हें पानी में डालकर रखना चाहिए।
फूल उत्पादन
अच्छी खेती से 80 से 120 क्विंटल खुले फूल का उत्पादन होता है। यह उत्पादन किस्म पर भी निर्भर करता है।
कंदों को निकालना
फूल काट लेने के बाद जब पौधे की पत्तियाँ सूख जाए, कंद सुषुप्ता अवस्था में चले जाएं, तब पत्तियों को काट कर कंद को निकाल लेना चाहिए। प्रति एकड़ 100 क्विंटल बल्व का उत्पादन होता है। बल्व को निकाल कर 2 ग्राम कार्बेन्डाजीम दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 30 मिनट तक उपचारित कर संरक्षित रखना चाहिए। दो से तीन महीने तक संरक्षित कर उस बल्व को फिर से लगाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
फूलों का संरक्षण
फूलों को तोड़ने के बाद उन्हें मंडियों में टोकरी में भर कर भेजा जाता है, लेकिन दूर जगहों पर भेजने के लिए काटून बॉक्स में भरकर भेजा जाता है। खुले तथा कर्त्तन फूल को 100 सेंटीग्रेट तापमान पर 3 से 4 दिनों तक संरक्षित रखा जा सकता है।
फूलदान जीवन
रजनीगंधा को कर्त्तन फूल के लिए लम्बे समय (17 दिन) तक संरक्षित और ताजा बनाए रखने के लिए स्पाइक को 4% सुक्रोज तथा 200 मि.ग्रा. 8 हाइड्रोक्युनोलाइन सल्फेट के घोल में रखा जाता है।
(एक एकड़ खेत के लिए)
(खर्च रुपयों में)
क्र.सं. |
विवरण |
प्रथम वर्ष |
द्वितीय वर्ष |
तृतीय वर्ष |
|
(क) आरंभिक लागत |
|
|
|
1 |
खेत की तैयारी |
2000 |
- |
- |
2 |
रोपन सामग्री – कंद 1 लाख/एकड़ (1 रूपये प्रति कंद की दर से) |
100000 |
- |
- |
3 |
बोवाई मजदूरी |
4000 |
- |
- |
4 |
खाद उर्वरक व कीटनाशक दवायें |
6000 |
6000 |
6000 |
5 |
निकाई-गुड़ाई |
5000 |
5000 |
5000 |
6 |
फूल-कटाई/तुड़ाई मजदूरी |
7000 |
7000 |
7000 |
7 |
अन्य खर्चे (संग्रह ढुलाई इत्यादि) |
1000 |
1000 |
1000 |
|
कुल लागत |
125000 |
19000 |
19000 |
(रुपयों में)
क्र.सं. |
विवरण |
प्रथम वर्ष |
द्वितीय वर्ष |
तृतीय वर्ष |
|
(ख) कुल आय |
|
|
|
1 |
फूल (80 क्विंटल) (बिक्रीदर 20 रु. प्रति कि.ग्रा. की दर से) |
160000 |
160000 |
160000 |
2 |
रोपण सामग्री (बल्ब) (100 क्विंटल) बिक्रीदर 3 रू. प्रति किलो की दर से |
30000 |
30000 |
30000 |
|
कुल आय |
190000 |
190000 |
190000 |
शुद्ध लाभ (प्रथम वर्ष में)
(कुल आय- कुल लागत) 190000 – 125000 = 65000
दूसरे एवं तीसरे वर्ष में 190000 – 19000 = 171000 (प्रति वर्ष)
स्त्रोत: रामकृष्ण मिशन आश्रम, दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र, राँची।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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