एन्थुरियम अपने फूलों की सुन्दरता एवं पौधे की शोभायमान प्रकृति के कारण कट फ्लावर के रूप में तथा गमलों में लगाने के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसके फूलों में ज्यादा दिनों तक तरो-ताजा रहने का गुण होता है। भारत में इसे केरल, तामिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल इत्यादि जगहों में प्रचुर मात्रा में उगाया जाता है। एन्थुरियम नाम ग्रीक शब्द एन्थोस (फूल) और ओरा (पूंछ) के मिलने से बना है। इसे पूंछ वाला फूल भी कहा जाता है। इसके फूल लाल, गुलाबी, सफेद, नारंगी, क्रीम इत्यादि रंगों में खिलते है। इसके पौधे पेड़ों, पत्थरों और जमीन पर भी उगते और बढ़ते हैं। इसकी जड़ हवा से नमी लेकर पौधे की पानी की आवश्यकता पूरी करती है। एन्थुरियम वंश में लगभग 600 जातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें फूल उत्पन्न करने वाले और पत्तियों की सुन्दरता वाले पौधे होते है।
एन्थुरियम एंड्रेनम, एन्थुरियम स्केरजेरेनम जाति को ही फूल उत्पादन के लिए उगाया जाता है। एन्थुरियम एरोसी कुल का पौधा है। इन दोनों जातियों के फूल दिल के आकृति के होते हैं, जिनका आकार 10-15 सें.मी. लम्बा होता है। इसे स्पेथ कहते हैं। फूल में पूंछ, जो सफेद, लाल, या पीला रंग का होता है, को स्पाइडेक्स कहते है।
लाल: मिक्की माउस, चार्मी, इन्टी, टोटोरा, ओसाकी, कोजोहारा, कुमाना, टोयामो, रीओ, प्रोन्टी, मिरजाम, इनग्रीड, इत्यादि।
नारंगी: नीटा, सनब्रस्ट, डायमंड जुबली, हवाई, फ्ला आरेन्ज, एवोगिन्गो, हॉर्निग ऑरेन्ज, हॉर्निग रुवीन, इत्यादि।
सफेद: मेनोआ मिस्ट, कार्मेलोन, पर्ल, कोटोपेक्सी, एक्रोपोलिस, जमाइका, मैरून मुनी, लीमा, जीसा, क्युबी, हिडन ट्रेजरर, इत्यादि।
गुलाबी: एब पीक, ब्लुस, मारिमान, कैन्डी स्ट्रीप, एवो एन्की, होनीटी, सरप्राइज, वीटनी सरीना, लुन्टी, लेडी जानी, पाराडाइज पिंक, पैसन, इत्यादि।
एन्थुरियम छाया पसंद करने वाला पौधा है। खुली जगहों में, जहाँ छाया रहती हो, पौधे की वृद्धि और विकास अच्छा होता है। खुली जगहों पर 75% शेड नेट का व्यवहार कर इसे अच्छी तरह उगाया जा सकता है। मौसम में 80% आर्द्रता और 25-280 सें.मी. तापमान रहने पर फूल उत्पादन अच्छा होता है।
एन्थुरियम के विकास के लिए मिट्टी के मिश्रण का माध्यम उचित होना चाहिए जिससे वायु का संचार अच्छा हो तथा पानी संरक्षण ज्यादा हो। इसके मिश्रण में चारकोल, नारियल छिलका, पेड़ की छाल, चावल की कुन्नी, कोको पीट, बालू, ईंट, पत्ती की खाद, नीम खल्ली के मिश्रण का प्रयोग किया जाता है। इस मिश्रण का पी.एच. मान 5.7-6.2 के बीच रखा जाता है।
(1) बीज: पके हुए बीज को जमा कर तुरन्त ही पानी में 4 दिनों तक सड़ने के लिए छोड़ देते हैं, जिससे बीज से छिलका अलग हो जाए। तब उसे सीड बेड में डालकर अंकुरण करा लेते है। यह अंकुरण 10 दिनों में पूरा हो जाता है और पौधे 4-6 महीने में लगाने लायक हो जाते हैं, जो दो साल बाद फूल देना प्रारंभ करते हैं।
(2) विभाजन: पौधे के किनारे से नए पौधे निकलते हैं जिसे आफसूट कहते हैं। इसे अलग कर नए पौधे बनाए जाते हैं। एक पौधे से एक साल में लगभग 8-12 आफसूट निकलते हैं। इसके द्वारा बने पौधों से 3-4 माह में फूल खिलते हैं।
(3) कटिंग: पौधे के तीनों को छोटे-छोटे टुकड़ों में ऐसे काटा जाता है जिसमें 2-3 गांठें हों। उसे रुटेक्स से उपचारित कर बलुई मिट्टी और गोबर खाद के मिश्रण (1:1) में लगा कर नए पौधे बना लेते हैं।
(4) उत्तक संवर्धन: प्रयोगशाला में पौधे की पत्ती, स्पाइडेक्स, पर्ण कली, तनों की कोशिकाओं से नए पौधे बनाए जाते हैं, जो रोगमुक्त और जल्द फूल उत्पादन करने वाले होते हैं।
नए पौधों को गमले या बेड में लगाया जाता है। 30 सें.मी. के गमले में मिट्टी के मिश्रण को भर कर एक पौधा लगाया जाता है। बेड में 30 X 30 या 40 X 40 सें.मी. की दूरी पर पौधों को नमी वाले मौसम जैसे बरसात के बाद लगाना अच्छा होता है।
गर्मियों में पौधों की सुबह शाम हल्की सिंचाई करनी चाहिए। जाड़े में दिन में एक बार आवश्यकता अनुसार पानी देना चाहिए। ज्यादा सिंचाई से पौधे को नुकसान पहुँचता है और बीमारियाँ होने की संभावना होती है। खाद-उर्वरक को सिंचाई के साथ देना पौधों के लिए लाभदायक होता है।
एन्थुरियम को वृद्धि और फूल उत्पादन के लिए खाद एवं उर्वरक की संतुलित मात्रा की आवश्यकता होती है। 200-250 किलो नाइट्रोजन, 200-150 किलो फास्फोरस और 250-300 किलो पोटाश प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर भूमि में मिलाना चाहिए। सूक्ष्म पोषक तत्व मिश्रण खाद को 10 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिट्टी में मिलाना चाहिए। इससे फूल अच्छे खिलते हैं और पौधों का विकास अच्छा होता है। अगर सिंचाई के साथ उर्वरक देना हो तो 8 किलो नाइट्रोजन, 12 किलो फास्फोरस और 24 किलो पोटाश के मिश्रण से 200 ग्राम, पोटाशियम सल्फेट 20 ग्राम, मैग्निशियम सल्फेट 40 ग्राम को 100 लीटर पानी में घोल कर उसमें 500 लीटर पानी मिला कर दिन में दो बार सिंचाई करनी चाहिए। सप्ताह में एक बार कैल्सियम नाइट्रेट आधा ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल कर पौधे को देना चाहिए।
उपज प्रति पौधा से प्रति वर्ष 5-7 फूल प्राप्त होते है। यह उत्पादन किस्मों पर भी निर्भर करता है। जब फूल के स्पाइडेक्स पूर्ण खिल जाएँ तब ही फूलों को डंडी के साथ पौधे से काट कर पानी से भरी बाल्टी में रखना चाहिए। एन्थुरियम को 21.6 X 50.8 X 91.4 सें.मी. या 27.9 X 43.2 X 101.6 सें.मी. के कॉरुगेटेड फाइवर बोर्ड के बॉक्स में पैकिंग कर बाजार में भेजा जाता है।
(1) एन्थेकनोज: पत्तियों, फूलों पर भूरे और काले रंग के दाग दिखाई देते हैं। यह रोग ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्र और अधिक आर्द्रता वाली जगहों पर ज्यादा होता है। इस रोग की रोकथाम के लिए 2 ग्राम वेवस्टीन या 3 ग्राम डाइथेन एम-45 दवा का प्रति लीटर पानी में घोल कर 7-10 दिनों पर छिड़काव करना चाहिए।
(2) वैक्टीरियल ब्लाइट: यह रोग होने पर पत्तियों के किनारे पीले होने लगते हैं। यह पीलापन पूरी पत्तियों पर दिखाई देने लगता है। वैक्टेरियम से मुक्त पौधों को लगाना ही इसकी रोकथाम का उपाय है।
(3) जड़ गलन: वर्षा ऋतु में होने वाला यह रोग जड़ों को सड़ाने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए रिडोमिल दवा 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर जड़ों के पास तर-बतर कर देना चाहिए।
(4) पर्ण दाग: इस रोग में पत्तियों पर काले-भूरे दाग दिखाई देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए मिट्टी में जल निकास की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए तथा कॉपर आक्सिक्लोराइट दवा के 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में बने घोल से मिट्टी को उपचारित करना चाहिए तथा पौधों पर डाइथेन एम-45 दवा का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बना कर 7 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
(1) लाही या एफिड: यह नन्हा कीट पौधों का रस चूसकर कमजोर बना देता है। कीट के स्त्राव से सुटीमोल्ड फफूंद का विकास हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए रोगर दवा को 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(2) स्पाइडर माइट: यह हरा पारदर्शी कीट पौधे का रस चूस कर रंगहीन बना देता है। इस कीट की रोकथाम के लिए सल्फेक्स को 3 ग्राम या कैलाथेन 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(3) घोघा: इसकी रोकथाम के लिए मेटएल्डिहाइट दवा का छिड़काव करना चाहिए।
(4) स्केल: यह कीट पौधे से चिपक कर पौधे का रस चूसता है। इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान दवा को 2 मि.ली./ली. पानी में घोल कर तथा उसमें मेटल्डिहाइट दवा मिला कर छिड़काव करना चाहिए।
स्त्रोत: रामकृष्ण मिशन आश्रम, दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र, राँची।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
इस पृष्ठ में अच्छी ऊपज के लिए मिट्टी जाँच की आवश्य...
इस पृष्ठ में 20वीं पशुधन गणना जिसमें देश के सभी रा...
इस पृष्ठ में फसलों के अधिक उत्पादन हेतु उन्नतशील फ...
इस पृष्ठ में अंगूर की किस्म की विस्तृत जानकारी दी ...