पादप जैव विनियामकों एवं सस्यक्रियाओं द्वारा फलों की क्वालिटी में सुधार।
भा. कृ. अ. सं. द्वारा मानसूनी वर्षा प्रारंभ हाने से पहले ही अंगूरों की अगेती तुड़ाई कर लेने की तकनीक विकसित की गयी है। जनवरी के प्रथम सप्ताह में छंटाई के तुरन्त पश्चात अंगूर बेलों पर डार्मेक्स अथवा डॉरब्रेक (30 मि.ली. का एक छिड़काव किया जाता है। इस उपचार से फल 2 से 3 सप्ताह पूर्व ही कलियां खिल जाती है तथा अंगूर पक जाते है।
लंबे अंगूर प्राप्त करने के लिए पुष्पगुच्छों के आधा खिलने के समय उन्हें जिब्रेलिक एसिड में डुबोने सिफारिश की जाती है। ब्यूटी सीडलेस किस्म 45 पीपीएम वाले जीए3 के प्रति, तथा पर्लेट, पूसा उर्वशी और पूसा सीडलेस किस्में 25-30 पीपीएम वाले जीए3 के प्रति इस संबध में अनुकूल प्रतिक्रिया प्रदर्शित करती हैं।
फल के रंग और मिठास की दृष्टि से अंगूर की क्वालिटी में सुधार लाने के साथ-साथ फलों को शीघ्र पकाने हेतु अंगूरों को मटर के दानों के बराबर के आकार में बनाए गए घोल में डुबोया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त, फल क्वालिटी में सुधार लाने के लिए मुखय तने की गर्डलिंग और गुच्छों में अंगूरों की सघनता कम करने जैसी क्रियाएं (थिनिंग) भी लाभदायक पाई गई है। फल आने के 4-5 दिन पश्चात गर्डलिंग चाकू की मदद से तने के चारों ओर भू-सतह से 30 सें. मी. ऊंचाई तक पतली छाल (0.5-1.0 सें. मी.) को गोलाकार हटा दिया जाता है। कैंची अथवा ब्रशिंग द्वारा पुष्पगुच्छ के एक तरफ से फलों को पूरी तरह हटाकर गुच्छों की थिनिंग की जाती है। अकेले गर्डलिंग करने से फल के भार में वृद्धि की जा सकती है लेकिन थिनिंग (छरहरापन) के साथ गर्डलिंग करने से अंगूर की मिठास (टीएसएस) में 2-3 प्रतिशत वृद्धि होती है और उन्हें एक सप्ताह अगेती पकाया जा सकता है।
छंटाई के तुंरत बाद जनवरी के अंतिम सप्ताह में नाइट्रोजन एवं पोटाश की आधी मात्र एवं फास्फोरस की सारी मात्र दाल देनी चाहिए। शेष मात्र फल लगने के बाद दें। खाद एवं उर्वरकों को अच्छी तरह मिट्टी में मिलाने के बाद तुंरत सिंचाई करें। खाद को मुख्य तने से दूर १५-२० सेमी गहराई पर डालें।
अच्छी किस्म के खाने वाले अंगूर के गुच्छे मध्यम आकर, मध्यम से बड़े आकर के बीजरहित दाने, विशिष्ट रंग, खुशबू, स्वाद व बनावट वाले होने चाहिए। ये विशेषताएं सामान्यतः किस्म विशेष पर निर्भर करती हैं। परन्तु निम्नलिखित विधियों द्वारा भी अंगूर की गुणवत्ता में अपेक्षा से अधिक सुधार किया जा सकता है।
फसल निर्धारण के छंटाई सर्वाधिक सस्ता एवं सरल साधन है। अधिक फल, गुणवत्ता एवं पकने की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव छोड़ते हैं। अतः बेहतर हो यदि बाबर पद्धति साधित बेलों पर 60 - 70 एवं हैड पद्धति पर साधित बेलों पर 12 - 15 गुच्छे छोड़े जाएं। अतः फल लगने के तुंरत बाद संख्या से अधिक गुच्छों को निकाल दें।
इस तकनीक में बेल के किसी भाग, शाखा, लता, उपशाखा या तना से 0.5 से.मी. चौडाई की छाल छल्ले के रूप में उतार ली जाती है। छाल कब उतारी जाये यह उद्देश्य पर निर्भर करता है। अधिक फल लेने के लिए फूल खिलने के एक सप्ताह पूर्व, फल के आकर में सुधार लाने के लिए फल लगने के तुंरत बाद और बेहतर आकर्षक रंग के लिए फल पकना शुरू होने के समय छाल उतारनी चाहिए। आमतौर पर छाल मुख्य तने पर 0.5 से.मी चौड़ी फल लगते ही तुंरत उतारनी चाहिए।
पत्ती लपेटक इल्लियां पत्ती के किनारों को मध्यधारी की ओर लपेट देती है। ये इल्लियां पत्तियों की निचली बाह्य सतह पर पलती हैं। इस नाशीजीव के नियंत्रण हेतु 2 मि. ली. मेलाथियॉन अथवा डाइमेथोएट को प्रति लीटर पानी में 2 मि. ली. की दर से डाइमेथोएट अथवा मेलाथियॉन का छिड़काव करने से लीफ हॉपर (पात-फुदके) को भी नियंत्रित किया जा सकता है। अंगूर की बेलों पर शल्क (स्केल) भी दिखाई पड़ते हैं जिन्हें प्रति ली. पानी में 1 मि. ली. डाइजिनॉन मिलाकर बेलों की छंटाई के तुरंत बाद छिड़कने से सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है। दीमकों के हमले से बचने के लिए 15-20 दिन के अन्तराल पर एक बार 5 मि. ली. क्लोरोपायरीफॉस को प्रति लिटर जल में घोलकर तने पर छिड़कना तथा मिट्टी को इस घोल से भिगोना लाभदायक है।
अन्य फफूंद बीमारियों की अपेक्षा यह शुष्क जलवायु में अधिक फैलाती है। प्रायः पत्तों, शाखाओं, एवं फलों पर सफ़ेद चूर्णी दाग देखे जा सकते हैं। ये दाग धीरे - धीरे पुरे पत्तों एवं फलों पर फ़ैल जाते हैं। जिसके कारण फल गिर सकते हैं या देर से पकते हैं। इसके नियंत्रण के लिए 0.2% घुलनशील गंधक, या 0.1% कैरोथेन के दो छिडकाव 10 - 15 दिन के अंतराल पर करें।
उपोष्ण क्षेत्र में अंगूर की फसल प्रायः चूर्णी फफूंद तथा एथ्रेक्नोज के प्रकोप से बच जाती है क्योंकि इनका संक्रमण भारी वर्षा हाने पर ही देखने में आया है। जून-सितम्बर के दौरान 1-1 पखवाड़े के अन्तराल पर 3 ग्रा. ब्लीटॉक्स अथवा बेविस्टिन को प्रति लीटर जल में मिलाकर बने घोल का छिड़काव करने से इन बीमारियों को नियंत्रण में रखा जा सकता है।
स्त्रोत-
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान।भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारत सरकार कृषि मंत्रालय अधीन कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग एक स्वायत्त संगठन।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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