भूमिका
आधी आबादी हर वह काम कर सकती है जो पुरुष करते हैं। चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों ना हो। यह भी सच है कि वजर्नाएं जब टूटती हैं तो इतिहास बनता है। मछली मारना और मत्स्यपालन जैसे कार्य को आमतौर पर पुरुषों ही करते हैं लेकिन अब इस काम में भी महिलाओं ने अपने कड़ी मेहनत के दम पर समाज के सामने एक मिसाल पेश किया है।
संस्था ने दिखाया रास्ता, महिलाओं ने चुनी मंजिल
- मधुबनी जिले का अंधराठाढ़ी प्रखंड एक नजीर बन गया है। उनके लिए जो लीक से हट कर कुछ करने में यकीन रखते हैं। यहां समाज के अंतिम पायदान से ताल्लुक रखने वाले वर्ग की महिलाएं अपनी मेहनत की इबारत लिख रही हैं। दरअसल इन महिलाओं ने मछलीपालन कर अपने घर परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के साथ जिंदगी जीने के तौर-तरीके को भी बदल दिया है। यह भी सच है कि इतनी बड़ी पहल करने में एक संस्था का अहम योगदान है, लेकिन मेहनत तो केवल इन महिलाओं का है। इनके हालात में सुधार लाने के लिए कार्यरत संस्था ‘सखी बिहार’ ने इन को बेहतरी का रास्ता दिखाया।
आसान नहीं था अब तक का सफर
- इन महिलाओं ने कैसे अपनी सफलता की कहानी लिखी? संस्था की सचिव सुमन सिंह बताती हैं कि यह प्रोजेक्ट सन् 1990 में शुरू किया गया था। उससे पहले सन् 1984-85 में महिला सशक्तीकरण के लिए केंद्र सरकार प्रायोजित ‘द्वाकरा’ ने इनको स्वावलंबी करने के लिए काम शुरू किया था। पांच साल बाद जब ‘द्वाकरा’ द्वारा कराये जा रहे काम की तहकीकात की गयी तो कोई खास नतीजा सामने नहीं आया। इस बीच इन पांच सालों के दौरान ही इस क्षेत्र को प्रकृति के दो कहर भी ङोलने पड़े। साल 1987 का भूकंप और 1989 के बाढ़ में सब कुछ तबाह हो गया था।
तालाब से दिखा रास्ता
- मिथिलांचल में तालाबों की भरमार है। इन तालाबों का सही उपयोग नहीं हो पाता था। मछली का उत्पादन तो होता था लेकिन बहुत सीमित। मछुआरे इसी के सहारे अपने परिवार का पेट पालते थे। चौखट के बाहर कदम रखने पर भी पाबंदी थी। यह मछुआरे जिनके तालाब में मत्स्यपालन करते थे, उनके ही घरों में ये औरतें घरेलू काम करती थी। कुल मिला कर हालत बहुत दयनीय थी। संस्था ने इन महिलाओं को ही जागरूक करने का निश्चय किया। उन्हें यह बताया गया कि वह मछलीपालन द्वारा घर-परिवार की हालत सुधार सकती हैं।
बदली सत्ता तो बदला जीवन
- सन् 2005 में बिहार के राजनैतिक घटनाक्रम में बदलाव हुआ। यह इस क्षेत्र के लिए बदलाव वरदान साबित हुआ। नयी सरकार के तत्कालीन मत्स्यपालन मंत्री ने पुराने नियमों में संशोधन किया। इसमें हर वो बाधा दूर करने की कोशिश की गई जिससे इस जैसी योजनाओं को लागू करने में परेशानी आ रही थी। नियमों में लचीलापन होने से नयी ऊर्जा के साथ महिलाओं को समझाने की प्रक्रिया फिर शुरू हुई। साल 2006 में करीब 10 महिलाओं ने अपनी रुचि दिखाई। इनको काम के बारे में बताया गया। उन्होंने मत्स्यपालन शुरू कर दिया। इनकी मेहनत रंग लाने लगी साथ ही इनकी चर्चा भी होने लगी। इसका सुखद परिणाम दूसरे साल में देखने को मिला। इनकी संख्या 10 से बढ़ कर दो सौ हो गई। इस बीच अरसे से लटके कॉपरेटिव को भी सरकारी मान्यता मिल गई।
मिला साथ तो बन गया कारवां
- अंधेराठाढ़ी प्रखंड के ठाढ़ी, पथार, उसरार, बटौला, महरैल, भगवतीपुर, कर्णपुर गांव समेत पूरे ब्लॉक की लगभग सात हजार महिलाएं रोहू, कतला, नैन, कमलकार, ग्रास जैसी कई किस्मों की मछलियों का उत्पादन कर रही हैं। सभी महिलाओं की उम्र 26 साल से 45 साल तक है। आमतौर पर महिलाओं को मछली बेचते देखा जा सकता है। पश्चिम बंगाल और कई दूसरे राज्यों में औरतें ऑर्नामेंटल मछलियों का उत्पादन एक्वेरियम को सजाने के लिए करती हैं। अंधराठाढ़ी के मछलीपालन में एक सबसे रोचक बात यह हैं कि संभवत: देश में पहली बार ऐसा मिथिलांचल में ही हो रहा है जहां महिलाएं तालाबों को पट्टे पर लेने, उसमें मछली का जीरा डालने, रख-रखाव करने और बिक्री का काम खुद करती हैं।
नाजुक कंधों पर टिके रहते हैं मजबूत इरादे
- मछलीपालन का सारा काम महिलाएं खुद संभालती हैं। तालाबों को पट्टे पर लेकर सफाई करने के बाद मछलीपालन के योग्य बनाती हैं, फिर तालाब का पानी बदलती हैं। मधुबनी स्थित हैचरी से मछली का जीरा महिलाएं ही लाती हैं। इसमें ‘सखी बिहार’ मदद करता है। जीरा डालने के बाद समय पर दाना देना, गोबर डालने के साथ-साथ वक्त पर जाल डाल कर मछलियों की वृद्धि और तालाब के पानी की गुणवत्ता को जांचने का काम भी यही करती हैं। जाल भी यह खुद ही बनाती हैं। इन सभी प्रक्रियाओं में कम से कम छह महीने लगते हैं। इस दरम्यान एक मछली करीब एक किलो तक वजनी हो जाती है। इस तरह से एक तालाब से लगभग आठ से दस क्विंटल तक मछली का उत्पादन होता है। कुछ दिन पहले तक इन मछलियों की बिक्री जहां 40 से 50 रुपये प्रति किलो तक होती थी। मछलियों की उन्नत किस्में होने के कारण यह दो सौ रुपये प्रति किलो तक बिक रही हैं। बाजार में बड़े व्यापारियों को मछली बेचने काम भी यही संभालती हैं। इनकी मांग इतनी है कि बिहार में ही इनकी खपत हो जाती है।
कंगाली से खुशहाली तक
- पानी से पैसा निकालने के इस काम से इनके जीवन में बदलाव आ गया है। कल तक यह महिलाएं जो भूमिहीन थी, जो किसी के घर काम कर के दो जून का खाना बमुश्किल जुटा पाती थी। आज उनके पास अपना मकान है। बैंकों में निजी खाते और मोबाइल फोन है। इन महिलाओं में शिक्षा के प्रति भी जागरूकता आयी है। अंगूठा छाप महिलाएं अब शिक्षित हो कर अपना भला-बुरा खुद समझने लगी हैं। घर के पुरुष सदस्य जो इनकी कार्यक्षमता पर ऊंगली उठाते थे, आज वही इनका साथ दे रहे हैं।
कई बाधाओं के बाद मिली मंजिल
- सुमन कहती हैं कि इन महिलाओं की सफलता के पीछे बाधाओं की लंबी सूची है। हमने यह तो सोच लिया कि इन महिलाओं को जागरूक करेंगे लेकिन इस प्रयास को धरातल पर उतारने में कितनी दिक्कत होगी? उसे कैसे दूर करेंगे? यह नहीं सोचा था। सबसे पहले इनसे मिल कर मछलीपालन के बारे में बताया गया। उन्हे विश्वास दिलाया गया कि यह काम कर सकती हैं। गांव के लोगों भी कई तरह के सवाल करते थे। जैसे यह काम तो पुरुषों का है। महिला मत्स्यपालन कैसे करेंगी? परिवार के पुरुषों को भी विश्वास दिलाया गया। सरकार की मत्स्यपालन संबंधी नियम कानून भी राह में रोड़ा बन रहे थे। इसके अनुसार तालाब में वही मछलीपालन कर सकता था, जो उसका मालिक हो। एक परेशानी यह थी कि इन तालाबों पर गैर-मछुआरे और दबंगों का कब्जा था। वह किसी प्रकार से बात करने को तैयार नहीं होते थे। समझने, समझाने में ही नौ साल निकल गया। इन सब कोशिशों में साल 1991 से साल 2000 हो गया। इसी दौरान मत्स्यपालन के लिए कॉपरेटिव का गठन किया गया। सरकार से इसकी मान्यता लेने की कोशिश की गई लेकिन प्रक्रियाएं इतनी धीमे थी कि कब कैसे क्या होगा? कुछ पता ही नहीं चलता था। उम्मीद नहीं थी कि मछलीपालन कर के हम इतना कुछ कर लेंगे। हमारी जिंदगी में हर चीज की कमी थी। मछलीपालन कर के हमने धीरे-धीरे जरूरत का सामान एकत्र कर लिया है। पहले हम भूमिहीन थे। जिनकी तालाब में हमारे पति मछली मारा करते थे। उनके यहां ही रहते थे। अब हमारा अपना मकान है।
उरिया देवी, उसरार
- मेरे पति दूसरे प्रदेश में काम करते थे। इस काम को करने से हमारे जीवन में बदलाव आ गया है। मेरे जैसी कई औरते हैं जो मछलीपालन कर के अपने आर्थिक हालात को बदल रही हैं। अब मेरे घर से कोई दूसरे राज्य में नौकरी करने के लिए नहीं जाता है। अंधराठाढ़ी मछुआरिन महिला मत्स्यजीवी सहयोग समिति मत्स्यनगर, भगवतीपुर, पोस्ट-रुद्रपुर, थाना-रुद्रपुर, अंधराठाढ़ी, मधुबनी,
स्त्रोत : संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना बिहार ।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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