अभी तक सोयाबीन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहा मध्यप्रदेश सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। मध्यप्रदेश अब उच्च कोटि के गेहूं के अधिकतम उत्पादन के लिए भी जाना जाने लगा है। मध्यप्रदेश के किसान अब वैज्ञानिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसमें कृषि विज्ञान केन्द्र (केवीके) किसानों की पूरी मदद भी कर रहा है। यहां के किसानों ने देश में सबसे उच्च कोटि के गेहूं का उत्पादन किया है। राज्य के सैकड़ों किसानों के बीच मालवा क्षेत्र के उज्जैन जिले का एक किसान तो गेहूं उत्पादन के मामले में मिसाल बन गया। स्वाद और गुणवत्ता के कारण मध्यप्रदेश के शर्बती गेहूं की महानगरों में सबसे ज्यादा मांग है। इस किस्म के गेहूं की कीमत भी सबसे ज्यादा है। इसे मुम्बई, पुणे, अहमदाबाद और हैदराबाद जैसे महानगरों की थोक और खुदरा बाजारों में गोल्डेन या प्रीमियम गेहूं के नाम से जाना जाता है। वहीं, उत्तर भारत के शहरों और दिल्ली की बाजार में इसे एमपी का गेहूं नाम से भी जाना जाता है।
मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के गांव अजदावड़ा के रहने वाले श्री योगेन्द्र कौशिक (61) ने वर्ष 1971 में अपनी उच्च शिक्षा पूरी की। नौकरी तलाशने के बजाय योगेन्द्र अपनी 9.5 एकड़ भूमि पर खेती करने लगे। लेकिन वह पारंपरिक खेती से छुटकारा पाना चाहते थे जिसमें वह ज्यादातर सोयाबीन, चना और गेहूं ही उगाते थे। वह खेती में ही कुछ नया करना चाहते थे। इसके वह काफी परिश्रम भी कर रहे थे। हालांकि उनके खेतों में इन फसलों का उत्पादन भी जिले के औसत उत्पादन से कुछ अधिक ही था। खरीफ में सोयाबीन का 15 क्विंटल प्रति हैक्टर और गेहूं का उत्पादन 52 क्विंटल प्रति हैक्टर था। लेकिन वर्ष 2005 में योगेन्द्र केवीके के सम्पर्क में आए। तभी से वैज्ञानिक खेती के बारे में उनके विचार, नजरिया और दृष्टिकोण में परिवर्तन आया। योगेन्द्र ने केवीके के कई शिविरों में भाग लेकर वैज्ञानिक खेती का प्रशिक्षण लिया और अपना सपना साकार कर लिया जो वह करीब चार दशक से देख रहे थे।
अनुबंध किसान होने के कारण योगेन्द्र केवीके उज्जैन के सम्पर्क में थे। बीज आधारित कई तकनीकी मूल्यांकन के बाद पाया गया कि HI-8663 (पोषण्) गेहूं की सबसे अच्छी और ज्यादा उपज देने वाली किस्म थी। केवीके उज्जैन से HI-8663 (पोषण) का 50 किलोग्राम ब्रीडर बीज लेकर इसे नवंबर में 0.4 हेक्टेयर खेत में बोया गया। राजस्व अधिकारी, पटवारी, एसडीओ, आरएडीओ और ग्रामीणों की मौजूदगी में की गई फसल की कटाई में 95.32 क्विंटल प्रति हैक्टर गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड किया गया।
हाल ही में जारी इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाईमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2080-2100 तक भारत और दक्षिण एशिया में तापमान बढ़ने और सिंचाई योग्य पानी की कमी होने के कारण फसलों का उत्पादन 10-14 प्रतिशत तक कम हो जाएगा। पूरी फसल अवधि के दौरान तापमान में प्रति एक डिग्री सेल्सियस बढ़ोत्तरी होने पर भारत में गेहूं का उत्पादन 40-50 लाख टन कम हो जाएगा। यहां तक कि कार्बन देने का भी इसमें कोई लाभ नहीं मिल पाएगा।
HI-8663 (पोषण) एक जीनोटाइप विशेषज्ञता वाला उच्च गुणवत्ता और अधिक उत्पादकता वाला गेहूं है। प्राकृतिक रूप से दोहरे गुण वाले इसे गेहूं से पौश्टिक चपाती के साथ ही सूजी भी बनाई जाती है जो कि फास्ट फूड बनाने में काम आती है। इसमें मौजूद उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन और उच्च स्तर के पोषक तत्व के कारण यह पास्ता के लिए भी उपयुक्त है। प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में बुआई के लिए यह किस्म मई 2008 में अधिसूचित की गई थी। यह व्यापक रूप से अनुकूलित और उच्च उत्पादकता वाली किस्म है। MACS 2846, NIDW 295, GW1189 किस्मों से तुलना करने पर पाया गया कि HI-8663 किस्म 1.4 से 28.4 प्रतिशत तक की ज्यादा उपज देता है। यह कटाई के लिए अपेक्षाकृत जल्दी तैयार हो जाता है और गर्मी को भी आसानी से सह सकता है। यह गेहूं उत्पादन में स्थिरता और कम सिंचाई उपलब्धता वाले क्षेत्रों में भी बेहतर उत्पादन सुनिश्चि करता है।
स्त्रोत : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर).
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
इस पृष्ठ में अच्छी ऊपज के लिए मिट्टी जाँच की आवश्य...
इस पृष्ठ में अंगूर की किस्म की विस्तृत जानकारी दी ...
इस पृष्ठ में फसलों के अधिक उत्पादन हेतु उन्नतशील फ...
इस भाग में अधिक फसलोत्पादन के लिए लवणग्रस्त मृदा स...