हिमाचल के जिला कांगडा तथा ऊना में चलाई गई समेकित जलागम परियोजना के अंतर्गत ऊना गाँव धार गुजरों तथा कांगडा के 17 बाडी खड्ड क्षेत्र के घुमंतू पशुपालक तथा ग्रामीण महिलाओं को कृषि विज्ञान केंद्र में वर्ष 2004 में पशुपालन के विभिन्न पहलुओं में प्रशिक्षित किया गया।
यह पशुपालक मुख्यतः भैसों को ही पालते हैं और इनमें से मुख्यतः के पास जमीन न होने के कारण एक जगह से दूसरी जगह अपनी भैसों के साथ घूमते हैं। इनके द्वारा रखी गयी भैसों की नस्ल का भी कोई पता नहीं तथा खिलाई-पिलाई, रख-रखाव पर भी इन्हें कुछ ज्ञान नहीं था।
प्रशिक्षण उपरांत ऊना जिला के गाँव धार गुजरों में पाया कि प्रशिक्षित गुर्जर पशुपालक जिनके पास कुछ जमीन है, ने वैज्ञानिक पद्धतियों का अनुसरण किया है वह भैसों से अधिक दूध प्राप्त कर रहा है तथा उनकी भैसें अच्छे रखरखाव से तथा उचित पशु पोषण से समय से गर्भित हो रही है। इस गाँव की श्रीमती नसीरा तथा नसीबों के अनुसार अब उनकी भैसों से प्रतिदिन 70 किलो दूध बेचा जाता है।
इस परियोजना के सहायक परियोजना निदेशक के अनुसार 17 बाडी खड्ड के घुमंतू गुजरों को मुर्राह नस्ल के श्रेष्ठ झोटे उपलब्ध कराए गये हैं जिनसे प्रजनन करा के इन घुमंतू पशु पालकों कि भैसों की नस्ल में सुधार हुआ है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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