प्राथमिक पशु चिकित्सा का उद्देश्य दुर्घटनाग्रस्त पशु की कुशलतापूर्वक सहायता करना है जिससे उसका दर्द कम हो और पशु चिकित्सक के आने तक उसकी दशा और ख़राब न हो। कभी – कभी पशु पशु अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं जिससे अत्यधिक खून निकला, जख्म होना, हड्डी का टूटना एवं फफोले आदि का पड़ जाना आम बात होती है। इनकी प्राथमिक चिकित्सा करने पर पशु को तात्कालिक राहत मिलती है तथा पशु चिकित्सक के आने तक उनकी दशा अधिक ख़राब नहीं होती है।
कारण – किसी धारधार हथियार को लगने या दुर्घटना होने से शरीर की खाल, खून की नली या कोशिकाओं का कट या फट जाना।
लक्षण – 1. खाल काटना, 2. मांस पेशियों का कटना तथा 3. खून बहना
प्राथमिक उपचार – सर्वप्रथम प्रभावित अंग में पट्टी बांधकर खून को बंद करना चाहिए। घाव को साफ कर टिंचर बेन्जाइन का फाहा रखकर पट्टी कर देना चाहिए। यदि खून नहीं निकल रहा हा तो घाव को पोटाश के पानी से साफ़ कर जिंक मलहम या लोरीक्जीन क्रीम या सेल्फानिलेमाइट चूर्ण (पाउडर) लगाकर पट्टी बांधना चाहिए।
प्राथमिक उपचार – खरोंच लगे स्थान को पोटाश के पानी से साफ कर टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए। इसमें पट्टी नहीं चाहिए।
लक्षण – 1) घाव में पपड़ी पड़ना 2) घाव से दुर्गंध आना 3) घाव में मवाद पड़ना अथवा कीड़े पड़ जाना।
प्राथमिक उपचार – घाव को पोटाश के पानी से अच्छी तरह साफ करना चाहिए। सफाई के बाद जिंक, नीम, लोरेक्जिन मलहम या एक्रीफ्लोबिन अथवा टिंचर आयोडीन लगाकर पट्टी बांधना चाहिए। जख्म में यदि सूजन है तो आयोडीन मलहम लगाना चाहिए।
हड्डी का चोट, मोच आना, हड्डी उतरना या हड्डी टूटना
कारण – ऊंची – नीची जगह पर पैर पड़ने से तथा चोट लगने से।
लक्षण – चोट लगे स्थान या मोच के स्थान पर अधिक दर्द होना तथा सूजन आना।
प्राथमिक उपचार – यदि मोच है तो तत्काल ठंडे पानी या बर्फ से सिकाई करना चाहिए। सिकाई के बाद काला मलहम (आयोडीन या आयोडेक्स) लगाकर सिकाई करना चाहिए। हड्डी टूटने की स्थिति तत्काल पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए।
कारण – पशुओं के आपस में लड़ने से या पेड़ व झाड़ी में उलझने से।
प्राथमिक उपचार – यदि टूटे सींग से खून बह रहा हो तो स्प्रिट, एल्कोहल अथव मरक्यूरोक्रीम (लाल दवा या एस.सी. लोशन) में साफ रूई भिगोकर पहले उस भाग की सफाई कर दें। तत्पश्चात उस पर टिंचर बेन्जाइन अथव टिंचर फेरिपरक्लोराइड से भीगी रूई चिपका दें, खून का बहना बंद हो जयेगा।
लक्षण – आँख से पानी निकलना, कीचड़ आना या आँख लाल होना।
प्राथमिक उपचार – बोरिक एसिड मिले पुराने गुनगुने पानी से आँखों की सफाई करना चाहिए। मरक्योरोक्रीम या एक्रीफ्लेबीन घोल लोशन या अन्य आँख की दवा पशु चिकित्सक से परामर्श लेकर डालनी चाहिए।
प्राथमिक उपचार – सबसे पहले जले हुए स्थान साफ व ठंडा पानी डालना चाहिए इससे जलन कम होगी। पशु को छाया में ठंडे स्थान पर बंधे और घाव में मक्खियाँ न बैठने दें। जले स्था पर चूने के पानी में खाने वाला तेल मिलाकर लगाना चाहिए। यदि जलने से घाव बन गया है तो बरनाल या सल्फनिलेमाइड चूर्ण (पाउडर) लगाना चाहिए।
लक्षण – खुजली होना, बाल गिरना, खाल मोटी हो जाना, दाद या खुजली के स्थान पर खाल का रंग हो जाना तथा गोल – गोल दाग दिखाई देना।
प्राथमिक उपचार – सफाई करना तथा गंधक का मलहम लगाना या टिंचर आयोडीन लगाना।
कारण – गाय अथवा भैंस द्वारा अधिक मात्रा में बरसीम, लोबिया, लूसर्न, अनाज खाने से तथा बासी खाना खा लेने के कारण।
लक्षण – गैस बनना तथा पेट फूलना।
प्राथमिक उपचार – पशु को पानी बिल्कुल नहीं पिलाना चाहिए तथा उसको बैठने नहीं देना चाहिए। पेट के बाई तरफ की कोख के ऊपर की ओर जहाँ गैस भरी हो, तेज धार वाले चाकू से छेद कर देना चाहिए। कोख में छेद करने से पूर्व चाकू को खूब गर्म करके ठंड कर लेना चाहिए, जिससे इसके उपयोग से घाव में कोई जीवाणु संक्रमण न हो सके। काला नमक 100 ग्राम, हींग 30 ग्राम, तारपीन का तेल 100 मि. ली. व अलसी का तेल 500 मि. ली. में घोल बनाकर पशु को पिलाना चाहिए।
पशु काई बार बड़े आकार के फल आदि निगलने का प्रयास करते हैं जो कि उनके गले में फंस जाता है।
लक्षण – मुहं में लार गिरना, बेचैन रहना तथा पेट फूल जाना।
उपचार – गले में हाथ डालकर फल को तोड़ देना चाहिए। यदि वस्तु टूटने फूटने वाली न हो तो तत्काल पशु चिकित्सक की राय लेनी चाहिए।
कारण – बछड़े के दांत लगने, थन पर पैर पड़ जाने से, मक्खी द्वारा काटने से बैठने पर किसी नुकीली वस्तु के चुभने से।
लक्षण – ठंड के मौसम में दूध निकालने में थन की खाल चटक जाती है या कट जाती है अथवा उस पर फुंसी निकल आती है।
प्राथमिक उपचार – थन तथा आयन को पोटाश के पानी से सफाई कर उसे सुखा लेना चाहिए। उसके बाद जिंकबोरिक मरहम दूध निकालने के बाद सुबह – शाम लगायें तथा थन को साफ रखें एवं गंदगी से बचाएं। साधारण जख्म होने की स्थिति में गर्म पानी को ठंड करके थन को धोना चाहिए तथा पानी सूखने के बाद थन जीवाणुनाशक (एंटीसेप्टिक) क्रीम का लेप करना चाहिए। जिंक आक्साइड ½ भाग (5 ग्राम), बोरिक एसिड 1 भाग (10 ग्राम), सफेद या पीली वैसलीन 6 भाग (60 ग्राम) लेकर तीनों को भली भांति मिलाकर एक रूप करके ढक्कनदार चौड़े मुंह वाली शीशी में भरकर रखें जिससे आवश्यकता पड़ने पर उसका प्रयोग किया जा सके।
लक्षण – मुंह से लार निकलना, बार – बार जीभ बाहर निकालना, मसूढ़े लाल होना तथा छाले पड़ना।
प्राथमिक उपचार – पोटाश के ठंडे पानी से मुंह की सफाई करना या फिटकरी लगाना चाहिए तथा ग्लिसरीन में बोरिक एसिड मिलाकर छालों में लगाना चाहिए।
प्राथमिक उपचार – घाव को साफ पानी तथा साबुन से अच्छी तरह धोकर शराब का फाहा रखें। तत्पश्चात कार्बोलिक एसिड की फूरहरी बनाकर काटे हुए स्थान पर रखें। नित्य खुले घाव पर उसकी मरहम पट्टी भी करें। साथ ही एंटीरैबिज इंजेक्शन भी पशु को लगवाएं।
प्राथमिक उपचार – जहाँ पर सांप ने काटा हो, तत्काल उसके ऊपर तथा नीचे कास कर बाँध कर सांप काटे स्थान पर + निशान बनाकर तेज चाकू या ब्लेड से चीरा लगाकर वहां का थोड़ा खून निकाल देना चाहिए और घाव में पोटाश का पाउडर भर देना चाहिए\ एंटीस्नेकवेनम सीरम का त्वचा के नीचे टिका देकर पशु को बचाया जा सकता है। पशु को ढोल या पीपा बजाकर जगाकर रखें और उसे विष के प्रभाव में सोने न दें।
प्राथमिक उपचार – जी स्थान पर बिच्छू का डंक लगा हो, वहां पर साफ चाकू या ब्लेड से छोटा सा चीरा लगाकर उसमें पोटाश का पाउडर भर दें। पशु को पानी खूब पिलाएं।
प्राथमिक उपचार – रोगी पशु को निम्नलिखित विधि से तत्काल उलटी कराएँ। गुनगुने पानी में पिसी सरसों मिलाकर पिलायें। गुनगुने पानी में थोडा सा जिंक सल्फेट मिलाकर पिलाने से भी उल्टी हो जाती है। गुनगुने पानी में नमक मिलाकर पिलायें, इससे भी उल्टी हो जाती है। मुंह के अंदर अंगुली या पंख डालने से भी उल्टी हो जाती है। उल्टी कराने के आड़ रोगी पशु को तीसी की चाय, जौ का पानी, दूध ठंडे पानी में 4 से 5 अण्डों की सफेदी फेंट कर पिलायें जिससे विष का शोषित होना रूक जायेगा और अमाशय तथा आतड़ी की दीवारों में जलन तथा कटाव नहीं होगा।
एट्रोपीन सल्फेट का इंजेक्शन देकर पशु को ग्लूकोज चढ़वायें तथा विटामिन बी – काम्प्लेक्स का टिका लगवाएं। आवश्यकता पड़ने पर एंटीबायोटिक, कार्टिजोन औषधियां भी दी जा सकती है। ऐसी स्थिति में पशु को पानी खूब पिलाना चाहिए।
प्राथमिक उपचार – पोटाश के पानी से जानवर को नहलाना चाहिए। तम्बाकू की पत्तियों को पानी में उबाल कर नहलाना चाहिए। जहाँ जूं पड़ गये हो, वहां के बालों को काटकर जला देना चाहिए। डी. डी. टी. या गेमेक्सिन को खड़िया या राख में मिलाकर प्रभावित स्थान में लगाना चाहिए परंतु ध्यान रहे कि पशु इसको चाटने न पाए।
कारण – अधिक मात्रा में दाना या हरी घास खा लेने से अथवा कीटाणुओं द्वारा पशु के पेट में प्रवेश करने से।
लक्षण – पशु को बार – बार दस्त आना।
प्राथमिक उपचार – अधिक से अधिक पानी पिलाना चाहिए। गुड, नमक जौ का पका हुआ आटा, पानी में घोलकर पिलाना चाहिए। खड़िया 100 ग्राम तथा कत्था 200 ग्राम मिलाकर पशु को पिलाना चाहिए।
पशुओं को निम्नलिखित विधियाँ से दवाएं दी जा सकती है –
I. मुंह के द्वारा दवा पिलाना – अधिकांश औषधियां पानी अथवा तेल में मिलाकर पशु के मुख द्वारा पिलाई जाती है।
II. दवा चटाना (चटनी के रूप में) – कई दवाइयां ऐसी होती है, जिनको कि पशु को पिलाने के बजाए चटाना अधिक आसान होता है।
III. खुराक के साथ दवाई देना – संतुलित पशु आहार अथवा खली – चोकर के साथ मिलाकर भी पशुओं को दवाईयां खिलायी जाती है।
IV. सूई (इंजेक्शन द्वारा) – पशुओं के रोग की गंभीर स्थिति के कारण जब उन्हें एंटीबायोटिक देने होते है तो उन्हें सूई (इंजेक्शन) द्वारा दिए जाते हैं।
V. पैर धोना (फुटबाथ) - सामान्यता जब पशु में खुर संबंधी बीमारियाँ होती है तो उन्हें दवाईयों के घोल में खड़ा किया जाता है।
VI. मालिश द्वारा – पशुओं के मोच आने की स्थिति में काले मलहम या बेलाडोना लिनिमेंट या तारपीन लिनिमेंट की मालिश करने से पशु को लाभ होता है।
VII. सिंकाई करना – पशुओं को चोट लगने से जब उनके मुख में सूजन आ जाती है उस पर सेंक करना उपयोगी होता है।
IX. एनिमा लगाना – पशु द्वारा गोबर न करने अथवा कब्ज होने की स्थिति में उसे एनिमा दिया जाता है जिससे उसके मल बाहर आ जाता है।
X. आँख – कान में दवा डालना – पशुओं के आँख तथा कान के रोगों में द्रव अथवा मलहम लगाया जाता है। दवा लगाने अथवा डालने से पहले आँख तथा कान को अच्छा तरह से रूई के फाहे अथवा डालने से पहले आँख तथा कान को अच्छी तरह से रूई के फाहे से साफ कर लेना चाहिए।
ग्रामीण क्षेत्रों के रहन – सहन में पशुओं में दुर्घटनाएं होना एक स्वाभाविक एवं आम बात है। इन दुर्घटनाओं का यदि समय से प्राथमिक उपचार किसी अनुभवी एवं प्रशिक्षित व्यक्ति या पशु चिकित्सक द्वारा कराया जाता है तो इन छोटी मोटी बीमारियों की रोकथाम व उपचार आसानी से सुनिश्चित हो सकता है। समय से उपचार न मिलने पर छोटी – मोटी बीमारियाँ या दुर्घटनाएं भयानक रूप धारण कर लेती है और उनसे पशु की मृत्यु भी हो सकती है। अत: प्राथमिक उपचार की जानकारी पशुपालकों को अवश्य होनी चाहिए। यदि सचिव प्रशिक्षण के माध्यम से यदि पशुओं का प्राथमिक उपचार सीख लेता है तो प्राथमिक पशु चिकित्सा की दवाईयां दुग्ध संघ से प्राप्त कर इस महत्वपूर्ण कार्य में अपना सहयोग प्रदान कर सकता है और इस अतिरिक्त कार्य के लिए उसको समिति गाँव से अतिरिक्त आमदनी भी हो सकती है।
नोट: उपरोक्त प्राथमिक उपचार किसी अनुभवी एवं प्रशिक्षित व्यक्ति या पशु चिकित्सक द्वारा ही कराएं।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
इस लेख में कृत्रिम गर्भाधान का पशु विकास कार्य में...
इस पृष्ठ में कैसीन से व्युत्पन्न जैव सक्रिय पेप्टा...
इस पृष्ठ में 20वीं पशुधन गणना जिसमें देश के सभी रा...
इस पृष्ठ में अजोला –पशुधन चारे के रूप में के बारे ...