पशु हमारे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का तथा कृषि का मुख्य आधार है। पशु से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करना, उनकी नस्ल, जाति तथा उसकी मूल क्षमता पर निर्भर करता है। इसलिए पशु विकास हेतु नस्ल सुधार कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है. जिससे पशु प्रजनन किस प्रकार संभव है।
उन्नत नस्ल के चुने हुए उच्च कोटि के सांड से प्राप्त बछड़े – बछियों में अधिक उत्पादन क्षमता होती है। इसलिए निरंतर पशु विकास हेतु हर समय उन्नत के उच्च कोटि के सांड से पशुओं को प्रजनन कराना चाहिए। इसलिए उच्च कोटि के चुने हुए कीमती सांडों का क्रय, उनकी देखभाल, पालन – पोषण की जिम्मेदारी शासन एवं विभिन्न अन्य समस्याओं ने ली है और इन उच्च कोटि के सांडों द्वारा अनेक पशुओं में प्रजनन हेतु कृत्रिम गर्भाधान की पद्धति को क्यों अपनाया जाता है?
कृत्रिम गर्भाधान द्वारा अनेक पशुओं में गर्भाधान द्वारा अनेक पशुओं में गर्भाधान कराने हेतु कम सांडों की आवश्यकता होती है, क्योंकि एक सांड द्वारा कृत्रिम गर्भाधान विधि से 10,000 तक मादाओं में प्रजनन हेतु कराना संभव होता है इसलिए उच्च कोटि में सांडों का चयन, करना चुने हुए उच्च कोटि के सांडों का उपयोग हजारों मादाओं में प्रजनन हेतु कराना तथा हजारों की संख्या में उन्नत बछड़े – बछिया उत्पन्न कराना कृत्रिम गर्भाधान से ही संभव है। इसलिए कृत्रिम गर्भाधान को पशु विकास के मुख्य आधार तथा पशु विकास की कुंजी कहा जाता है। सारी दुनिया ने इस पद्धति से ही पशु पालन के क्षेत्र में विकास किया है।
क्या प्राकृतिक विधि से सांडों के उपयोग से बड़े पैमाने पर पशु विकास संभव है? प्राकृतिक पद्धति से एक सांड द्वारा एक वर्ष में 60 से 100 पशुओं में ही प्रजनन संभव होता है। इसलिए प्राकृतिक विधि से प्रजनन कराने के लिए अनेक सांडों की आवश्यकता होती है। इए सभी सांड उच्च कोटि के नहीं हो सकते, इसलिए इनसे उत्पन्न संतानें उच्च कोटि की नहीं होगी, परंतु उच्च कोटि का सांड चयन कर कृत्रिम गर्भाधान द्वारा उच्च कोटि की संतानें हजारों की संख्या में उत्पन्न की जा सकती है।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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