स्थायी हिंद महासागर जैवरसायन और पारिस्थितिक अनुसंधान (सीबर) और जिओट्रेसिस कार्यक्रम, 5 वर्ष की अवधि के लिए वित्तीय वर्ष 2010-11 में आरंभ किया गया था। संबंधित बजट शीर्ष के तहत सीमित धन उपलब्ध होने के कारण इस राष्ट्रीय कार्यक्रम के सभी विज्ञान घटकों को एक साथ आरंभ नहीं किया जा सका और केवल प्राथमिकता वाले विज्ञान घटकों को वित्तीय सहायता दी गई।
राष्ट्रीय कार्यक्रम के सभी विज्ञान घटक ''स्थायी हिंद महासागर जैवरसायन और पारिस्थितिक अनुसंधान (सीबर)'' और जिओट्रेसिस कार्यक्रम क्रमिक प्रयोगों के साथ जुड़े हुए हैं। इन वैज्ञानिक गतिविधियों को 12वीं योजना अवधि के दूसरे भाग में जारी रखने की आशा है और इस कार्यक्रम में कुछ नए विज्ञान घटकों को शामिल किया जा सकता है, जैसे विभिन्न प्रोक्सी का उपयोग करते हुए पेलियोक्लाइमेटिक पुन: निर्माण।
जैव – भू-रासायनिक और पारिस्थितिक अनुसंधान के लिए समय – श्रृंखला स्थापित करना।
प्रक्रियाओं की पहचान करना, प्रवाह की मात्रा ज्ञात करना जो हिंद महासागर, अरब सागर और दक्षिणी महासागर के हिस्सों में प्रमुख ट्रेस तत्वों और आइसोटोप के वितरण पर नियंत्रण रखती हैं और पर्यावरण की बदलती परिस्थितियों में इन वितरणों की संवेदनशीलता सिद्ध करना।
सीबर (भारत)
प्रस्तावित स्थायी भारतीय राष्ट्रीय महासागर जैव भू रासायनिक और पारिस्थितिक अनुसंधान कार्यक्रम (सीबर) का उद्देश्य प्रशांत महासागर में बीएटीएस (बरमूडा अटलांटिक समय श्रृंखला) और अटलांटिक महासागर और एचओटी में (हवाई महासागर समय श्रृंखला) के बराबर समय श्रृंखला स्टेशन स्थापित करना होगा।
जियोट्रेसेस (भारत)
जियोट्रेसेस (भारत) कार्यक्रम के उद्देश्य हैं प्रक्रियाओं की पहचान करना, प्रवाह की मात्रा ज्ञात करना जो हिंद महासागर, अरब सागर और दक्षिणी महासागर के हिस्सों में प्रमुख ट्रेस तत्वों और आइसोटोप के वितरण पर नियंत्रण रखती हैं और पर्यावरण की बदलती परिस्थितियों में इन वितरणों की संवेदनशीलता सिद्ध करना।
विभिन्न नौबंध के माध्यम से जैव रासायनिक अवलोकनों को स्थापित करने के लिए समर्पित सेंसर।
सीबर और जियोट्रेसेस कार्यक्रम के लिए उत्तरी हिंद महासागर (बीओबी, एबी और हिंद महासागर) में जैव भू रासायनिक प्रक्रियाओं की बेहतर समझ के लिए निरंतर महासागर आंकड़ों की आवश्यकता होती है। एनआईओटी / इंकॉइस पहले ही इन क्षेत्रों के विभिन्न विशिष्ट स्थानों पर कुछ नौबंध स्थापित करने की प्रक्रिया में है, जिन्हें सीबर और जियोट्रेसेस कार्यक्रम के उद्देश्यों के लिए डेटा संग्रह की आवश्यकता पूरी करने के लिए दिए गए अतिरिक्त विशिष्ट सेंसरों द्वारा दीर्घ अवधि आधार पर उपयोग किया जा सकता है। इस पूरे क्षेत्र को कवर करने के लिए हमें अलग अलग स्थानों पर लगभग 10 – 15 सेंसरों की आवश्यकता हो सकती है। इन सेंसरों के वित्तीय निहितार्थ दस्तावेज के अंत में दी गई तालिका में वित्तीय प्रक्षेपण में शामिल किए गए हैं।
नाइट्रोजन पर अध्ययन
तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों, भूजल में और वातावरण में बढ़ते नाइट्रोजन प्रदूषण फार्म और ईधन खपत प्रक्रियाओं से निकलने वाली एन घटकों से लीक होने के परिणाम स्वरुप हुई है, ताकि फसल और औद्योगिक विकास की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके । तटीय और समुद्री जल में नाइट्रोजन के बहाव को रोकना संभव नहीं है क्योंकि खेत में अधिक अनाज उगाने के लिए उर्वरक का अधिक उपयोग करने तथा बढ़ती आबादी की लगातार बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए अधिक ईंधन की खपत के कारण यह दबाव बढ़ता जा रहा है। भारतीय परिवेश में प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन पर आंकड़ों की उपलब्धता कम है और इसलिए नाइट्रोजन चक्र का सिमुलेशन पर्याप्त रूप से संभव नहीं है। माप, अनुसंधान और मॉडलिंग के एक समन्वित कार्यक्रम के माध्यम से भारतीय उप महाद्वीप में भूमि – वायु – भूजल धारा – नदी – तट – मुहाने – महासागर की निरंतरता में नाइट्रोजन प्रवाह का समेकन बहुत अनिवार्य है। उपरोक्त समेकन सक्रिय नाइट्रोजन के वर्तमान स्तरों के क्षेत्रीय आकलनों के ज्ञान के साथ जुड़ा है, इसमें समामेलन क्षमता की मात्रा ज्ञात करना और बढ़ती हुई नाइट्रोजन मात्रा के साथ विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में इसके फ्रेश होल्ड स्तर एवं विभिन्न विकास / नीतिगत परिवेशों पर आधारित लोडिंग दरों की जानकारी से अनिवार्य निर्णय समर्थन प्रणाली बनाने में सहायता मिलेगी ताकि समुद्री और तटीय पर्यावरण की ले जाने वाली क्षमता को जल्दी पार किया जा सकता है। एक समेकित अनुसंधान घटक से 12वीं योजना अवधि के दौरान सीबर / जियोट्रेसेस कार्यक्रम के समग्र रूप से नियंत्रण में विभिन्न पर्यावरणों के अंदर नाइट्रोजन चक्र की गतिशीलता और प्रक्रियाओं को समझा जा सकता है जिसकी शुरूआत पहले की गई है।
राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र, गोवा
राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद
भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र, हैदराबाद
एनआईओ और पीआरएल द्वारा समय श्रृंखला प्रयोग किए जाएंगे, जबकि एनसीएओआर और पीआरएल द्वारा प्रॉक्सी संकेतकों का उपयोग करते हुए पैलियो-पुनर्निर्माण अध्ययन किए जाएंगे। एनसीएओआर में कार्यक्रम के जियोट्रेसेस घटक के लिए एक स्वच्छ रसायन प्रयोगशाला को स्थापित करने का प्रस्ताव है। एनसीईएओआर कार्यक्रम से प्राप्त सभी विवरणों के लिए पुरालेख एजेंसी होगी।
प्रतिभागी संस्थान खुले महासागर क्षेत्र से उनके विशिष्ट विज्ञान घटकों के डेटा तैयार करने के लिए जिम्मेदारी उठाएंगे। सहयोगी परियोजनाओं से तटीय क्षेत्रों की पूरक जानकारी मिलेगी। सीबर / जियोट्रेसेस कार्यक्रम की संकल्पना पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के राष्ट्रीय बहु संस्थागत और बहु विषयक अनुसंधान कार्यक्रम के रूप में की गई है जहां विभिन्न संस्थान / विश्वविद्यालय समय समय पर इस कार्यक्रम में भाग लेंगे। सभी प्रतिभागी संगठन / विश्वविद्यालय लीड एजेंसी को अपने नियमित निवेश प्रदान करेंगे। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा एक समीक्षा और निगरानी समिति का गठन किया जाएगा जो इसकी नियमित समीक्षा और इन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की अवधि के दौरान मध्यावधि सुधार (यदि कोई हो) किए जाएंगे। इंकॉइस हैदराबाद इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रतिभागी संस्थानों द्वारा तैयार सभी विवरणों का संग्रह करेगा।
कार्यक्रम का वैज्ञानिक विवरण निम्नानुसार है।
खुले महासागर की समय श्रृंखला के दो स्थान पहले ही अभिज्ञात किए गए हैं -
अरब सागर के एक स्थान पर तलछट पाश / धारा मीटर मूरिंग पहले ही तैनात किया गया है, बंगाल की खाड़ी का स्थल वही स्थान है जिसे बंगाल की खाड़ी की वेधशाला के लिए इंकॉइस द्वारा चुना गया। यह योजना है कि इस स्थान पर तलछट पाश मूरिंग को स्थापित किया जाए। इन स्थलों पर अनुसंधान जहाज इस्तेमाल करते हुए समय समय के अंतराल पर दौरे किए जाएंगे। समुद्र के सभी पर्यटनों से मार्गों के मापन (खास तौर पर पीसीओ2) किए जाएंगे। इससे वायु – समुद्र फ्लक्स के अनुमानों के परिष्करण के लिए आवश्यक डेटा प्राप्त होंगे। यह बताया जाएगा कि इस क्षेत्र से सीओ2 उर्त्सजन के वर्तमान आकलन अरब सागर के लिए 7 से 94 टीजी सी वायआर1 के बीच अलग होंगे, उपलब्ध डेटा बंगाल की खाड़ी से और विरल होंगे और यह भी निश्चित नहीं होगा कि यह खाड़ी सीओ2 के निवल स्रोत या सिंक के रूप में कार्य करती है। प्रक्रम अध्ययनों के लिए प्रत्येक स्थल पर समय श्रृंखला नमूने शुरूआत में 4-6 दिनों तक चलेंगे, किन्तु लंबे नमूने की अवधि अनिवार्य नहीं होगी जब और जैसे आवश्यक हो अधिक जांचों को कार्यक्रम में शामिल किया जाता है।
कोर माप में शामिल होंगे, तापमान, लवणता, घुली हुई गैसें (ऑक्सीजन, नाइट्रस ऑक्साइड और डाइमेथिल सल्फाइड), पोषक तत्वों (नाइट्रेट, नाइट्राइट, अमोनिया, फॉस्फेट, सिलिकेट, कुल नाइट्रोजन, कुल फॉस्फोरस), घुले हुए अकार्बनिक कार्बन, घुले हुए और जैविक कार्बन कण, क्षारीयता, बायोजेनिक सिलिका, क्लोरोफिल और अन्य पादप प्लावक पिगमेंट, पादप प्लावक संरचना (आकार विभाजन और बायोमास), प्राथमिक उत्पादन (नए उत्पादन सहित), जैव प्रकाशिकी, जंतु प्लावक बायोमास (मिसो और माइक्रो) तथा संरचना सहित ग्रेजिंग के प्रयोग, बैक्टीरिया और वायरस की प्रचुरता तथा उत्पादन दरें। वायरस की आबादी पर हाइड्रोलॉजिकल कारकों के प्रभाव के अध्ययन भी इस कार्यक्रम के तहत किए जाएंगे।
मुरिंग में धारा मीटर और कुछ विशेष उपकरण (उदाहरण के लिए स्मार्ट सेम्पलर और यदि संभव हो, पोषक तत्व विश्लेषक) शामिल होंगे जिससे हस्तक्षेप की अवधियों के दौरान उच्च विभेदन के डेटा मिल सकें।
डेटा संग्रह और प्रबंधन
इस कार्यक्रम में डेटा की बड़ी मात्रा तैयार होगी। डेटा की गुणवत्ता नियंत्रण के लिए प्रावधान होगा और डेटा जमा करने, भंडारण और पहुंच के लिए एक उचित नीति होगी। सभी पीआई के पास संग्रह के पश्चात उचित समय के अंदर कोर डेटा तक पहुंच संभव होगी (जैसा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा तय किया जाए)।
नमूने
नमूने लेने की कार्यनीति पर भली भांति विचार किया जाएगा और सहमति होगी। विभिन्न परियोजना अन्वेषकों के बीच अनेक नमूने साझा किए जा सकते हैं और बहु विषय अध्ययनों के लिए नमूने की पर्याप्त संख्या जमा करने का प्रावधान होना चाहिए।
अध्ययनों से अपेक्षित उल्लेखनीय प्राप्तियां इस प्रकार हैं
(i) भारतीय उप महाद्वीप और दक्षिणी महासागर के हिंद महासागर क्षेत्र के आस पास समुद्रों में मुख्य ट्रेस तत्वों और आइसोटोप के स्थानिक और टेम्पोरल वितरण को नियंत्रित करने वाली प्रक्रियाओं को समझना और
(ii) बदलती पर्यावरण परिस्थितियों में इन ट्रेस तत्वों की प्रतिक्रियाएं।
100 करोड़ रु
योजना का नाम |
2012-13 |
2013-14 |
2014-15 |
2015-16 |
2016-17 |
कुल |
जैव- भू-रासायनिक
|
20.00 |
20.00 |
20.00 |
20.00 |
20.00 |
100.00 |
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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