बीज बचाओ आंदोलन का उदय परम्परागत बीजों की विलुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण तथा व्यावसायिक हितों के लिए कुछ ही प्रकार के बीजों - पौधों को बोने के विरोध में हुआ। इस अभियान का आरंभ 1990 के शुरू के वर्षों में गांधीवादी कार्यकर्ताओं मुख्यत: धुमसिंह नेगी, कुँवर प्रशुन तथा विजय जरधारी द्वारा टिहरी गढ़वाल क्षेत्र के हेवलघाटी क्षेत्र में हुआ।
जब सरकारी वैज्ञानिकों ने गांव-वासियों को परम्परागत मिश्रित कृषि व्यवस्था जिसमें 12 अनाजों का उत्पादन होता था, की जगह सोयाबीन तथा चावल जैसे एक प्रकार की फसल के बीजों को बोने को प्रोत्साहित किया तो हेवलघाटी के गांधीवादी कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया। इन्होने परम्परागत 12 अनाजों वाली खेती तथा प्राकृतिक खादों के उपयोग को कई आधारों पर उपयोगी सिद्ध किया। महिलाओं का इस अभियान में बहुत सहयोग मिला। इस अभियान के दौरान गांव-गांव जाकर परम्परागत बीज इक्कठे किए गए, उन्हें गांव वालों के बीच वितरित किया गया तथा उनको खेतों में जाकर बोया गया। इस अभियान से चावल की लगभग 200 किस्मों, राजमा की 150 किस्मों तथा बीजों की कई प्रजातियों को लुप्त होने से बचाया गया।
स्त्रोत: विकासपीडिया टीम
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस लेख में पर्यावरण के लिए हुए चिल्का बचाओ आंदोलन ...
इस लेख में पर्यावरण के लिए हुए चिपको आंदोलन का उल्...
इस लेख में पर्यावरण के लिए हुए अप्पिको आंदोलन का उ...
इस भाग में भारतीय उपमहाद्वीप सहित एशिया को प्रभावि...