यौन हिंसा महिलाओं और बच्चों को शारीरिक और मानसिक क्षति पहुँचाने तथा उनके दुःख का एक महत्वूपर्ण कारण है। यद्यपि यौन हिंसा ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों को प्रभावित करती है लेकिन लड़के भी बाल यौन शोषण का शिकार होते हैं। वयस्क पुरुष, विशेष रूप से जो पुलिस हिरासत या जेलों में हैं, यौन हिंसा का शिकार हो सकते हैं, इसके साथ ही लैंगिक रूप से अल्पसंख्यक, विशेष रूप से ट्रांसजेंडर (हिजड़े) समुदाय भी इसके शिकार हो सकते हैं। यौन हिंसा विविध रूपों में होती है और अपराधकर्ताओं में अजनबी से लेकर राज्य एजेंसियां और कोई करीबी साथी भी हो सकते है; ऐसा पाया गया है कि अपराधकर्ता प्राय: उत्तरजीवी का जानकार व्यक्ति होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयू.एच.ओ.) यौन हिंसा को परिभाषित करता है कि यह “किसी भी प्रकार की यौन क्रिया, यौन क्रिया करने का प्रयास, अवांछित यौन टिप्पणियां/प्रस्ताव तथा अवैध प्रयास या घर और दफ्तर सहित लेकिन उस तक ही सीमित नहीं, ऐसी किसी व्यवस्था में पीड़ित से कैसा भी संबंध होने के बावजूद किसी व्यक्ति द्वारा जबरदस्ती, नुकसान पहुँचाने की धमकी देकर या शारीरिक बल प्रयोग द्वारा किसी व्यक्ति की यौनिकता के खिलाफ किया गया कार्य है।" (डब्ल्यू.एच.ओ.,2003) यौन उत्पीड़न, जो कि यौन हिंसा का एक रूप है, एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग बलात्कार के साथ किया जाता है। तथापि, यौन उत्पीड़न में किसी व्यक्ति की सहमति के बिना गलत तरीके से उसके शरीर को छूने से लेकर जबरदस्ती संभोग तक कुछ भी शामिल किया जा सकता है - मौखिक और गुदा यौन कृत्य, बच्चों से छेड़छाड़, दुलारते हुए गलत हरकत करना और बलात्कार।
आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम (सी.एल.ए.) 2013 ने बलात्कार की परिभाषा का विस्तार किया है ताकि इसमें यौन हिंसा के सभी रूपों को शामिल किया जा सके - किसी वस्तु/हथियार/उँगली सहित किसी भी प्रकार से बेधना (मौखिक, गुदा, योनि) तथा गैर-बेधनीय (छूना, दुलारना, पीछा करना, आदि) और सभी उत्तरजीवियों/पीड़ितों/यौन हिंसा के पीड़ितों के लिए सार्वजनिक तथा निजी स्वास्थ्य परिचर्या सुविधा केंद्रों द्वारा उपचार प्राप्त करने के अधिकार को मान्यता दी है। उपचार प्रदान करने में विफल रहना कानून के तहत एक अपराध है। इसके अतिरिक्त कानून, उत्तरजीवी के पहले यौन व्यवहार के संबंध में किसी टिप्पणी की अनुमति नहीं देता।
उत्तरजीवियों/यौन हिंसा के पीड़ितों की स्वास्थ्य चिंताएं तथा स्वास्थ्य का उनका अधिकार एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। स्वास्थ्य का अधिकार भारत में कोई मूल अधिकार नहीं है। तथापि, सर्वोच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य के अधिकार की जीवन के अधिकार में समाहित होने के अर्थ में व्याख्या की है। स्वास्थ्य का अधिकार, भारत द्वारा पुष्टि किए गए कई अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेजों में प्रतिष्ठापित हुआ है जिसमें, अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उपचार (आई.सी.ई.एस.सी.आर.), महिलाओं के खिलाफ भेदभाव उन्मूलन सम्मेलन (सी.ई.डी.ए.डब्ल्यू.), बाल अधिकारों पर सम्मेलन (सी.आर.सी.), और अक्षम व्यक्तियों के अधिकारों पर सम्मेलन (सी.आर.पी.डी.) शामिल हैं।
स्वास्थ्य परिचर्या का अधिकार अपेक्षा करता है कि राज्य यह सुनिश्चित करे कि बिना किसी भेदभाव के उचित शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों तथा ये सुगम्य, स्वीकार्य और उच्च गुणवत्ता की हों। इसमें शारीरिक चोट का चिकित्सीय उपचार, प्रोफिलैक्सिस और यौन संचारित संक्रमणों की जांच, आपातकालीन गर्भनिरोधन और भावनात्मक सहयोग शामिल है। सभी व्यक्तियों के स्वास्थ्य के अधिकार को मान्यता प्रदान करने के लिए, स्वास्थ्य परिचर्या कार्यकर्ताओं को चिकित्सीय जांच और चिकित्सीय विधिक जांच आरंभ करने से पहले यौन हिंसा के उत्तरजीवियों/पीड़ितों को सूचित किए जाने की स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए। सभी प्रकार की चिकित्सीय विधिक जांच और प्रक्रियाओं के दौरान उत्तरजीवी की निजता और गरिमा का सम्मान करना चाहिए। उत्तरजीवी/पीड़ितों की स्वास्थ्य परिचर्या के स्वास्थ्य के अधिकार को लागू करने के लिए, स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे प्रत्येक उत्तरजीवी की निजता, गरिमा और स्वायत्तता के प्रति एक संवेदनशील और गैर-भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाते हुए उनकी आवश्यकताओं की उचित रूप से पूर्ति कर सकें। स्वास्थ्य कार्यकर्ता लिंग, लैंगिक अभिमुखीकरण, अक्षमता, जाति, धर्म, जनजाति, भाषा, वैवाहिक स्थिति, पेशा, राजनीतिक विश्वास या किसी अन्य स्थिति के आधार पर उपचार करने से मना या भेदभाव नहीं कर सकता। यौन हिंसा और तेजाब के हमले के उत्तरजीवी/पीड़ितों को चिकित्सा परिचर्या से मना करना, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357ग के साथ पठित भारतीय दंड संहिता की धारा 166ख के तहत एक अपराध है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, यौन हिंसा के उत्तरजीवी/पीड़ितों की परिचर्या और संगत सबूत एकत्र करने में स्वास्थ्य पेशेवरों और स्वास्थ्य प्रणाली द्वारा निभायी जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है जिसके द्वारा अभियुक्त पर मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।
नयाचार और दिशा-निर्देशों को तैयार करने के दौरान, सचिव (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण) के अन्तर्गत समिति ने कई बार मामले पर विचार-विमर्श किया और समान नयाचार के अभाव का और यौन हिंसा के उत्तरजीवी/पीड़ितों हेतु चिकित्सीय विधिक परिचर्या के मौजूदा प्रावधानों, जे.वी.सी. की सिफारिशों, सी.एल.ए. 2013 और बच्चों की यौन अपराधों से सुरक्षा (पी.ओ.सी.एस.ओ.) 2012 में पाई गई कमियों को संज्ञान में लिया। ऐसा करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय मानकों विशेष रूप से चिकित्सीय-विधिक परिचर्या पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश (2003) और करीबी साथी द्वारा हिंसा (आई.पी.वी.) तथा यौन उत्पीड़न (2013) की अनुक्रिया हेतु नैदानिक और नीति दिशानिर्देशों का संदर्भ लिया गया था। स्वास्थ्य क्षेत्र के कार्यकलापों, विधिक और अन्य विशेषज्ञों की राय तथा उत्तरजीवियों/पीड़ितों से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर समिति का गठन किया गया।
नयाचार और दिशानिर्देशों में यौन हिंसा के सभी रूपों की रोकथाम और समाप्ति के लिए विधिक ढांचे के सुदृढीकरण, समेकित और बहु-क्षेत्रीय राष्ट्रीय रणनीतियों के विकास में स्वास्थ्य क्षेत्र की भूमिका को स्वीकार किया गया है। इनके द्वारा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा, सभी प्रकार की यौन हिंसा, बलात्कार और संबंधी द्वारा बलात्कार के सभी उत्तरजीवियों और अक्षमता, लैंगिक अभिमुखता, जाति, धर्म, वर्ग के आधार पर दरकिनार किए गए व्यक्तियों हेतु तत्काल और अनुवर्ती उपचार सहित स्वास्थ्य परिचर्या सेवाओं तक तत्काल पहुँच, आपातकालीन गर्भनिरोधक सहित बलात्कार पश्चात् परिचर्या, एच.आई.वी. की रोकथाम के लिए पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलेक्सिस तथा सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक पहुँच, पुलिस सुरक्षा, आपातकालीन आवास, मामले का दस्तावेजीकरण, फोरेंसिक सेवाएं और विधिक सहायता के लिए रेफर किए जाने की सुविधा तथा अन्य सेवाएं प्रदान करना सुनिश्चित करने के लिए सभी स्वास्थ्य सेवा सुविधा केंद्रों को स्पष्ट निर्देश देने का प्रस्ताव है। यह उत्तरजीवियों/पीड़ितों के लिए एक सक्षम वातावरण का निर्माण करने की आवश्यकता को स्वीकार करता है जहां वे खुद पर इल्जाम लगाए जाने के भय के बिना अपने उत्पीड़न पर बात कर सकें, जहां वे न्याय पाने हेतु अपने व संघर्ष में सहानुभूतिपूर्ण सहयोग प्राप्त करें तथा उत्पीड़न के पश्चात् अपने जीवन को पुन: जी सकें।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय मानता है कि संवेदनशील रूप से निपटने से उत्तरजीवी द्वारा खुद को दोषी मानने की स्थिति में कमी आएगी तथा उसके जल्दी ठीक होने की स्थिति बनेगी। यह पुलिस, सी.डब्ल्य.सी. और न्यायपालिका के साथ स्वास्थ्य पेशेवरों के संपर्क के संबंध में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को भी स्वीकार करता है। ऐसा अन्तत्रीय सहयोग सेवा और न्याय प्रदान करने के लिए अनिवार्य है। स्वास्थ्य प्रणाली उत्तरजीवियों के लिए सेवाओं की स्थापना के प्रति प्रतिबद्ध है।
इन दिशानिर्देशों का लक्ष्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को, यौन हिंसा और यौन हिंसा के उत्तरजीवियों/पीड़ितों की आवश्यकताओं और अधिकारों की उचित समझ प्रदान करना तथा स्वास्थ्य पेशेवरों के चिकित्सीय और फारेंसिक उत्तरदायित्वों को उजागर करना है। जी.बी.वी. के समाधान हेतु स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करने में भी यह एक मील का पत्थर है। हमें आशा है कि जमीनी स्तर पर इन दिशानिर्देशों के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सम्मिलित प्रयास किए जाएंगे।
स्त्रोत: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 3/8/2024
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