क्षयरोग यानि तपेदिक या टी.बी.। हमारे देश में टी.बी. की स्वास्थ्य समस्या अहम है। हर हजार लोगों में बलगम में जीवाणु होनेवाले टी.बी. के 3 तीन रोगी पाये जाते है। और इतने ही कुछ रोगी जॉंच या निदान के बिना बीमारी से पीडित होते है। यह जीवाणु का एक संक्रामक रोग है। ज्यादातर यह फेफडों में होनेवाला रोग है। कभी कभी यह बीमारी मेरुदंड के कशेरुका, मस्तिष्क, गुर्दा, डिंबनलिका आदि अंगों में भी पाया जाता है। ज्यादातर टी.बी के जीवाणु श्वसनमार्ग से और हवा से फैलते है। यद्यपि टी.बी. का रोगी इसका प्रधान स्त्रोत है, टीबी ग्रस्त पालतू जानवरों से भी यह फैलता है।
तपेदिक या टी.बी. यह कुछ छिपकर चलनेवाला रोग है। दस रोगियों में केवल तीन रोगियों को ही इसके होने की जानकारी होती है। यह रोग वयस्कों में तथा महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा पाया जाता है। ये अच्छा है कि इसके लिये असरदार इलाज मौजूद है।
यह एक चिरकालीन रोग है। रोगी को थकान-कमजोरी और बीमारसा अनुभव होता है। शाम को हल्का बुखार आता है। लक्षण संभवत: छाती और श्वसन संस्थांनों से जुडे होते है।
आगे बताये कोई भी लक्षण हो तब जल्दी जॉंच और निदान होना चाहिये। तीन हफ्तों से ज्यादा टिका हुआ बुखार और खॉंसी, बलगम में खून, एक-दो महीनों में खाने की इच्छा और वजन कम होना और सांस चलना ये सब सूचक लक्षण है। डॉक्टरी जॉंच में मुख्यतः श्वसन संस्थान की जॉंच होती है। छाती में टी.बी. के २-३ प्रकार है। लेकिन आमतौर पर फेफडों में क्षत यानि गुहा होती है। या फेफडों के थैलीनुमा आवरण में पानी जमा होता है।
बलगम में या थूंक में टी.बी. के जीवाणु पाना ये सबसे पक्का निदान है। इसके लिये कॉंच के पट्टी पर बलगम का खराब हिस्सा लेकर सूक्ष्मदर्शिका से जॉंचते है। लेकिन इस टेस्ट से भी लगभग ५० प्रतिशत रोगी निदान से छूट जाते है। छाती के एक्स रे फोटोमें टी.बी. का फोडा, गुहा या पानी दिखाई देता है। लेकिन ये जॉंच भी उतनी विश्वसनीय नहीं होती। आजकल टी.बी. के जीवाणु के लिये खून की भी जॉंच की जाती है।
हर एक रोगी ने जरुर डॉक्टरी इलाज लेना चाहिये। सब सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर मुफ्त जॉंच और इलाज होते है।
डॉट्स यानि समक्ष इलाज पध्यती अब पूरे देशमें उपलब्ध है। स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के लिये ३ प्रवर्ग किये जाते है।
इलाज के पहले दो महीनों में स्वास्थ्य कर्मचारी प्रत्यक्ष खुराक देते है। अगले चार महीनों में रोगी दवा घर ले जा सकता है। इलाज में ३-४ किस्म की दवाए इकठ्ठा दी जाती है। इसके फलस्वरूप बीमारी जल्दी ठीक होती है। टी.बी. की आधुनिक इलाज प्रणाली के फलस्वरूप रोगी कुछ हफ्तों में बिलकुल ठीक हो जाता है। लेकिन बीमारी को जड से निकालने के लिये पूरे ६ महिने इलाज जरुरी है। इसमें बेफिक्र रहने से सबका नुकसान होता है।
टी.बी. की कुछ दवाओंके कारण कुछ दुष्प्रभाव भी होते है। इसमें पीलीया महत्त्वपूर्ण है। कोई भी आशंका हो तब डॉक्टर या स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करना चाहिये। रोगी अपना इलाज खुद समाप्त न करे। इसके लिये डॉक्टर की सलाह बिलकुल अनिवार्य समझे।
जच्चे बच्चे को टी.बी के रोकथाम के लिये अभी भी बी.सी.जी. का टिका दिया जाता है। इसके बारेमें विशेषज्ञों में कुछ मतांतर है।
कुपोषण के कारण प्रतिरोध क्षमता कम होकर टी.बी. को बुलावा मिलता है। इसलिये अच्छा पोषण टी.बी. रोकने के लिये जरुरी है।
टी.बी. के जीवाणु हवा के जरिये फैलते है । इसलिये रोगी को खॉंसते या छिंकते समय दस्ती का या कपडे का प्रयोग करना चाहिये। वैसे तो यह सूचना सबके लिये है। वैसेही सार्वजनिक स्थान पर थूंकना नही चाहिये।
शीघ्र निदान और इलाज होनेपर यह रोग जल्दी ठीक होता है। और इलाजसे फैलता भी कम है।
हर एक रोगी को इलाज के महिनोंमें और बाद भी नियमित रूप से जॉंच करना हितकारक है।
रोगी के संपर्क में रहनेवाले पारिवारिक और पडोसी व्यक्तीयोंकी भी हरसाल जॉंच करना जरुरी है।
टी.बी. के जीवाणु पालतू जानवरोंके दूध और गोबरसे भी फैलते है। इसलिये जानवरोंका ठिकाना अपने घर से अलग और दूर रखना उचित होगा।
एचआईवी और एड्स के रोगियों में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसलिये इन व्यक्तीयों को टी.बी. का संक्रमण होना आसान होता है, यह ध्यानमें रखना चाहिये।
स्त्रोत: भारत स्वास्थ्य
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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