सायनस सूजन में नाक के इर्दगिर्द दर्द होता है। साइनस नाक के दीवारों की हडि्डयों की गुफओं को कहते हैं। माथे, गालों और नाक के उपर और पीछे सभी जगह एक एक जोड़ी साइनस होते हैं (नाक के निचले हिस्से के बाजू में)। यह एक हाल के आठ दरवाज़ों की तरह होते हैं। अन्दर से ये सभी एक पतली झिल्ली से ढंके रहते हैं।
आम जुकाम में नाक के अन्दर साइनस की खुलने की जगह बन्द हो जाती है। ऐसा म्यूकोसा के सूज जाने के कारण होता है। इससे साइनस में भारीपन महसूस होता है। लेकिन संक्रमण को गुफओं में जानेसे भी यह सूजन कुछ हदतक रोकती है। परन्तु यह अस्थाई होता है और जुकाम ठीक होने के साथ ही ठीक हो जाता है।
यह या तो आम जुकाम के कारण होता या फिर कण्ठशालूक की संक्रमण के कारण। नाक का स्त्राव (जिसमें बैक्टीरिया भी होते हैं) एक या ज़्यादा साइनस में पहुँच जाता है। इससे साइनस की संक्रमण की शुरुआत होती है।
साइनस में भारीपन, छूने से दर्द, धड़कने वाला दर्द और पीप जैसा गाढ़ा द्रव का निकल कर नाक में आना आदि इस रोग के लक्षण हैं। यह द्रव या तो नाक से बाहर आता है या फिर नाक के अन्दर से पीछे निगला जाता है। इससे साइनोसाइटिस के निदान में मदद मिलती है। परन्तु अगर सूजन के कारण साइनस बन्द हो गए हों तो स्त्राव नहीं होता।
गाल की हडि्डयों और माथे के साईनोसाइटिस का निदान आसान है। आँखों के उपर या नीचे उँगली से टोकने पर से दर्द या दुखारुपन महसूस होने का अर्थ साइनोसाइटिस है। अगर नाक के पीछे के साइनस शोथ हुआ हो तो शुरुआती लक्षण नाक में से पानी निकलना व सिर में दर्द होंगे। अक्सर यह दर्द कान के सामने वाले भाग में होता है। आमतौर पर बुखार भी हो जाता है।
ऐमॉक्सीसिलीन की दवा मुँह से सात दिन के लिए दें। इससे बैक्टीरिया संक्रमण नियंत्रित होता है। दर्द, बुखार और शोथ के लिए एस्पिरिन दें। नाक के अन्दर सूजन कम करने के लिए 1 प्रतिशत एफेडरीन के बूँद हर २-३ घण्टों बाद नाक में डालें। इससे सिल्ली की सूजन कम होती है। इससे साइनस के दरवाजे भी खुले रहते हैं और साइनस आसानी से खाली भी हो जाते हैं।
कसरत से भी यह फायदा होता। यह तंत्रिका तंत्र द्वारा काम करता है। हल्की कसरत से बंद नाक खुल जाता है। अगर इस इलाज से फायदा न हो तो डॉक्टर की मदद की ज़रूरत है। कभी-कभी कान-नाक-गले (इ.एन.टी.) का डॉक्टर पीप को बाहर निकालने का छोटा सा छेद कर देते हैं। इसे एनट्राल पंक्चर कहते हैं। इसके बाद पिचकारी से सायनस गुफा धो दी जाती है।
नाक के बीच की दीवार काफी नाजुक होती है। इसमें केश नलियों का घना जाल होता है। यह जाल लगातार मौसम के बदलाव का सामना करता रहता है। कभी-कभी मौसम बदलाव से क्षति होकर इनमें से खून निकल जाता है। इसे नकसीर फूटना कहते हैं।
गर्मी के खून की ये नलियॉं फैल जाती हैं। ऐसा गर्म और सूखे मौसमें अक्सर हो जाता है।
नाक से खून आने के अन्य कारण हैं- खून का कैंसर, उच्च रक्तचाप और वैसे ही खून निकलने की प्रवति। नाक में जमा हुआ पदार्थ निकालते रहने की आदत से भी दीवार को क्षति हो सकती है। बच्चों में गर्मियों में नाक से खून आना सामान्य है। दूसरी ओर वयस्कों में उच्च रक्तचाप इसका कारण हो सकता है।
नाक से खून आने का इलाज काफी आसान है। परन्तु अगर जादा या बार बार खून आ रहा हो तो डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए। गर्मी के कारण नाक से खून आने पर ये करें –
नाक पर बर्फ या ठण्डा पानी लगाएँ। इससे खून की नलियॉं सिकुड़ जाती हैं। कई लोग सिर के ऊपर ठण्डा पानी डाल देते हैं। इससे सिर का खून ठण्डा हो जाता है। ऐसा करने से भी अक्सर फायदा होता है।
नाक से खून बहने वाले को कभी भी पीठ के बल न सुलाएँ ससे खून गले से जम जाएगा और श्वास नली में जाने का डर रहता है। मरीज को बैठाकर सिर सामने और नीचे की ओर झुकाएँ जैसा दिखाया गया है।
३ से ५ साल की उम्र में बहुत से बच्चों में कण्ठशालूक में शोथ हो जाता है। असल में कण्ठशालूक कीटाणुओं से रक्षा करते हैं। शोथ के कारण ये सूज जाते हैं। इससे नाक से सॉंस लेना मुश्किल हो जाता है। बच्चा सोते हुए खर्राटे लेने लग सकता है। या फिर वो मुँह खोलकर सॉंस लेने लगता है। इसे कण्ठशालूक चेहरा कहते हैं। नाक में स्त्रावों के इकट्ठे हो जाने के कारण साइनस और कान में शोथ हो जाता है। बच्चे की नाक भी बहने लगती है। यह इस उम्र की एक आम समस्या है। आवाज़ में भी नाक का असर आने लगता है।
आमतौर पर कण्ठशालूक की सूजन ५ साल का होते खतम हो जाती है। जब भी आपरेशन से टॉन्सिल निकालते हैं, कण्ठशालूक भी निकाल दिए जाते हैं। लेकिन टॉन्सिल निकालने की जरुरत बहुत कम लोगों में होती है। चित्र में दिखाया गया है कि कण्ठशालूक की सूजन से चेहरा कैसा दिखता है। इस चित्र के अनुसार हम आसानी से इसका निदान कर सकते हैं। अमॉक्सीसिलीन का पॉंच दिन का कोर्स आमतौर पर काफी होता है। पर अगर समस्या जारी रहे तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
स्त्रोत: भारत स्वास्थ्य
अंतिम बार संशोधित : 2/2/2023
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