रोग प्रतिरक्षण के बारे में अभिभावकों के दिमाग में अक्सर अनेक प्रश्न तथा भ्रांतियां होती हैं| सामान्यत: पूछे जाने वाले कुछ प्रश्नों के उत्तर नीचे दिए गए है|
उत्तर: ऐसी स्थिति में चिंता करने की कोई बात नहीं है| जो आयु तालिका न. 3 में बताई हैं, वे उन वैक्सीन (टीकों) को लगवाने की आदर्श आयु हैं| अगर किसी वैक्सीन या किसी वैक्सीन की कोई खुराक बच्चे को नहीं दी जा सकी है तो उस वैक्सीन या उस खुराक को शीघ्रातिशीघ्र दें| टीकाकरण को नये सिरे से, फिर से शुरू करने की आश्यकता नहीं हैं|
नीचे दी गई आयु तक विभिन्न वैक्सीन्स बच्चों को सुरक्षित रूप से दी जा सकती हैं|
वैक्सीन |
इसे देने की आयु की ऊपरी सीमा |
ओ. पी. वी. |
5 वर्ष |
डी.पी.टी. |
2 वर्ष |
मीजल्स (खसरा) |
3 वर्ष |
डी. टी. |
6 वर्ष |
बी.सी.जी. |
3 वर्ष |
एम्.एम्.आर. |
12 वर्ष (दिल्ली में- 5 वर्ष) |
टी.टी. |
कोई ऊपरी सीमा नहीं हैं| |
उत्तर : हाँ, ऐसे बच्चे को बाकी की बची हुई पोलियो ड्रॉप्स की खुराकें दी जानी चाहिए| पोलियो उत्पन्न करने वाला विषाणु (वायरस) 3 प्रकार का होता है| अगर एक प्रकार के विषाणु से पोलियो रोग हो भी गया है तो- बाकी की खुराकें देने से – बाकी 2 तरह के विषाणुओं से हो सकने वाले पोलियो रोग से तो बचाव रहेगा|
उत्तर: यह मात्र एक आधारहीन धारणा और अफवाह है जो कुछ शरारती/ अज्ञानी लोगों ने उड़ा रखी है| इमसें जरा सी भी सच्चाई नहीं है| इन अफवाहों पर ध्यान न दें तथा अपने बच्चों को (चाहे लड़की हो या लड़के) पोलियो ड्रॉप्स दिलवाते रहें|
उत्तर: नहीं, कभी नहीं| 5 वर्ष से छोटी आयु के बच्चों को पल्स पोलियो कार्यक्रम के अंतर्गत दी गई पोलियो ड्रॉप्स को नियमित पोलियो ड्रॉप्स की खुराक के रूप में कभी भीं गिनना चाहिए| पल्स पोलियो कार्यक्रम की खुराकों की बच्चे के रोग प्रतिरक्षण कार्ड में एंट्री नहीं करानी चाहिए|
यह भी समझा लेना महत्वपूर्ण है कि अगर नियमित पोलियो ड्रॉप्स देने की तारीख तथा पल्स पोलियो ड्रॉप्स देने में एक दिन का भी अंतर है तो भी इन्हें निश्चित तारीख पर दिलवा देना चाहिए| पल्स पोलियो ड्रॉप्स बीमार बच्चे को भी दिलवानी चाहिए|
जैसा कि आप जानते हैं, पल्स पोलियो कार्यक्रम के अंतर्गत, पूरे देश में, पांच वर्ष की आयु से छोटे प्रत्येक बच्चे को प्रतिवर्ष पोलियो ड्रॉप्स की 2, 3 या 4 खुराकें – निश्चित तिथि पर – दी जाती हैं| आगर हमें पोलियो को इस देश जड़ से मिटाना है तो देश के पांच वर्ष से छोटे हर बच्चे को – पल्स पोलियो कार्यक्रम के अंतर्गत सभी खुराकें मिलनी चाहिए| ध्यान रहे, कोई बच्चा छूट न जाए|
उत्तर: अगर आपको सौ प्रतिशत यकीन है कि वह रोग केवल खसरा ही था (तथा अन्य कोई रोग नहीं था) तो ऐसे बच्चे को मीजल्स वैक्सीन लगवाने की आवश्यकता नहीं है|
लेकिन ध्यान रखें – अगर इस रोग के निदान के बारे में जरा सी शक है तो इस बच्चे को खसरे का टीका अवश्य लगवाना चाहिए| यह याद रखना भी अच्छा है कि बच्चो को कई बीमारियों में बुखार के साथ शरीर पर लाल दाने निकल सकते हैं जिसे गलती से खसरा समझा जाता है|
उत्तर: अगर किसी वैक्सीन का इंजेक्शन लगने के बाद उस स्थान पर मवाद पड़ जाती है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि ऐसा वैक्सीन के कारण हो रहा है| ऐसा आम तौर पर इस्तेमाल की गई सीरिज व सूई को ठीक से प्रदूषण रहित न करने के कारण होता है| इसके लिए वैक्सीन को दोष न दें| दरअसल, ऐसा वैक्सीन के इंजेक्शन के कारण नहीं, बल्कि किसी भी इंजेक्शन के बाद हो सकता है|
हर स्वास्थ्य कर्मचारी को सही रूप से इंजेक्शन लगाने की तकनीक में प्रशिक्षण दिया जाता है| उन्हें कड़े निर्देश हैं कि फिर से प्रयोग की जा सकने वाली, शीशे की सिरिंजों तथा सुईयों को कम से कम 20 मिनटों तक उबाल कर कीटाणुरहित करें और एक बच्चे के लिए हमेशा ताजी सूई व सिरिंज का प्रयोग करें| अगर संभव हो तो हर व्यक्ति के लिए- इंजेक्शन देने के लिए – डिस्पोजेबल सिरिंज व सूई का प्रयोग होना चाहिए (इन्हें एक बार प्रयोग के बाद नष्ट कर दिया जाता है) | ये कीटाणुरहित होती हैं तथा बहुत महंगी भी नहीं होती है|
उत्तर: अगर बच्चे को केवल मामूली सा खाँसी – जुकाम है या हल्का बुखार है या मामूली से दस्त लगे हैं तो इन टीकों को लगाया जा सकता है| तदापि तेज बुखार या निमोनिया की हालत में बच्चे को ये वैक्सीन्स नहीं लगवाने चाहिए|
अगर व्यक्ति को कैंसर, मिरगी की बीमारी है या वह किसी रोग के उपचार के लिए स्टीरॉयड दवाओं का प्रयोग कर रहा है तो या जानकारी टीके लगवाने से पहले ही स्वास्थ्य कर्मचारी को दे देनी चाहिए| अगर कोई व्यक्ति एच.वाई.वी.पॉजिटिव अर्थात एच.वाई.वी. संक्रमित है तो इन टीकों को सावधानीपूर्वक लगाया जाता है| अगर बच्चे को दस्त लगे हुए हैं तो भी बच्चे को पोलियो ड्रॉप्स की नियमित खुराक दी जा सकती है परंतु इस खुराक की रोग प्रतिरक्षण कार्ड में एंट्री नहीं करनी चाहिए| जैसे ही बच्चे के दस्त ठीक हो जाएँ, यही खुराक फिर से देनी चाहिए तथा तब उसकी एंट्री कार्ड में करवानी चाहिए| (पल्स पोलियो की खुराक की एंट्री तो कार्ड में वैसे भी नहीं की जाती है)|
जो बच्चे बहुत कमजोर है या उनका वजन काफी कम है उन्हें भी ये सारे टीके अवश्य दिए जाने चाहिए| ऐसे बच्चों को 6 घातक रोगों से बचाना तो और भी महत्वपूर्ण है|
उत्तर : जहाँ तक पोलयो ड्रॉप्स देने के समय खान- पान में पाबंदियों का प्रश्न है, अच्छा यही है कि पोलियो ड्रॉप्स देने के समय से आधा घंटे पहले और आधा घंटे बाद, बच्चे को गर्म तरल पदार्थ या गर्म भोजन न दें| तदापि ओ.पी.वी. (पोलियो ड्रॉप्स) देने के पहले और बाद में स्तनपान कराने पर कोई पाबन्दी नहीं है|
उत्तर: नहीं| अगर किसी व्यक्ति को पूर्व कल में राष्ट्रीय टीकाकरण तालिका के अनुसार, सारे टीके, सही समय लगे हैं तो चोट लगें पर हर बार टिटेनस टॉक्साइड (टी.टी) का टीका लगवाने की आश्यकता नहीं है| केवल सही समय पर इनकी, तालिका में की गई सिफारिश के अनुसार, बूस्टर खुराकें लगवाते रहना चाहिए|
गर्भधारण से अलग, वयस्कों में टी.टी. लगवाना
अगर किसी बच्चे को राष्ट्रीय टीकाकरण तालिका के अनुसार डी.पी.टी., डी.टी. तथा टी.टी. की सारी खुराकें सही समय पर लगी है तो इस अवधि में, चोट लगने पर भी टी. टी. वैक्सीन की और खुराकें लगवाने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है|
टीकाकरण तालिका के अनुसार टी. टी. की अंतिम खुराक 15-16 वर्ष की आयु पर लगती है| इसके पश्चात् हर 10 वर्ष बाद टी.टी. की एक बूस्टर खुराक लगवाते रहें| अगर ऐसा किया जाता है तो बीच की अवधि में चोट लगने पर भी टी. टी. की और खुराक लगवाने की आवश्यकता नहीं है|
अगर किसी को अपने आप को लगवाए हुए टी.टी. की अंतिम खुराक 15-16 वर्ष की आयु पर लगती है|
इसके पश्चात् हर 10 वर्ष बाद टी.टी. की एक बूस्टर खुराक ल्ग्वातें रहें| अगर ऐसा किया जाता है तो बीच की अवधि में चोट लगने पर भी टी.टी. की और खुराक लगवाने की आवश्यकता नहीं है|
अगर किसी को अपने आप को लगवाए हुए टी.टी. इंजेक्शनों के बारे में निश्चित रूप से पता नहीं है तो उसे टी.टी. वैक्सीन का एक पूरा कोर्स एक समय सारणी के अनुसार लेना चाहिए:
पहला इंजेक्शन : आज
दूसरा इंजेक्शन : 6 सप्ताह बाद
तीसरा इंजेक्शन : 3 महीनों बाद
बूस्टर इंजेक्शन : हर 10 वर्ष बाद
बीच में : कोई आवश्यकता नहीं है
अपना टी.टी. प्रतिरक्षण हमेशा पूरा करें तथा इसका अपनी डायरी अथवा टीकाकरण कार्ड में पूरा व सही रिकार्ड रखें|
उत्तर : जी, हाँ| पिछले पृष्ठों में दी गई वैक्सीन्स में से अधिकांशत: एच. आई. वी. पॉजिटिव व्यक्तियों (बच्चों को भी) को दी जा सकती हैं| तदापि जहाँ इन्हें देने की पाबन्दी हो, वहाँ इन्हें सावधानीपूर्वक ही देना चाहिए|
बच्चों में एच. आई. वी./ एड्स तथा रोग प्रतिरक्षण
पूरे विश्व में एच. आई. वी./ एड्स महामारी का रूप धारण करता जा रहा है| दक्षिण अफ्रीका के पश्चात्, भारत विश्व में एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्तियों की सर्वाधिक संख्या (लगभग 41 लाख) वाला देश है| यह दु:ख की बात है कि अधिकाधिक युवा लोगों तथा नवजात शिशुओं को यह संक्रमण हो रहा है|
एच.आई.वी. पॉजिटिव व्यक्तियों में टीकाकरण सावधानीपूर्वक करना चाहिए| विश्व स्वास्थ्य संगठन यह सलाह देता है कि लक्षणों से मुक्त एच.आई. वी. पॉजिटिव बच्चों को – राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत दी जाने वाली सभी वैक्सीन्स (ओ. पी. वी. तथा बी.सी.जी. सहित) दी जानी चाहिए| तदापि जिन बच्चों में एड्स या एड्स रिलेटिड काम्पलेक्स के लक्षण हैं, उन्हें बी.सी.जी. तथा ओ.पी.वी. (पोलियो ड्रॉप्स) नहीं दी जानी चाहिए| ऐसे बच्चों को पोलियो ड्रॉप्स के स्थान पर इंजेक्शन से दी जाने वाली पोलियो वैक्सीन (आई.पी.वी.) दी जा सकती है| इस बात को ध्यान में रखते हुए भारत में एच. आई. वी. टेस्टिंग व्यापक रूप से करना संभव नहीं है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ समूह की सिफारिश यह है कि सभी नवजात शिशुओं को - राष्ट्रिय टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार सारी वैक्सीन्स दी जानी चाहिए|
उत्तर : हाँ, बी.सी.जी. पोलियो ड्रॉप्स, डी.पी.टी., हिपेटाइटिस “बी” तथा खसरे की वैक्सीन – सभी एक साथ, एक ही दिन, किसी बच्चे को दी जा सकती हैं| तदापि यह ध्यान रखें कि इंजेक्शन के द्वारा दी जाने वाली 2 वैक्सीन्स को एक ही हाथ या पैर में एक साथ नहीं लगाना चाहिए| यह भी याद रखें कि जिस स्थान पर एक वैक्सीन का इंजेक्शन लगाया गया है, उसी स्थान पर अगले 4-6 सप्ताह तक कोई अन्य वैक्सीन या इंजेक्शन नहीं लगना चाहिए| ऐसा होने पर वे एक दूसरे द्वारा उत्पन्न इम्यून शक्ति में बाधा डाल सकती है|
उत्तर : हालाँकि विटामिन ‘ए’ कोई वैक्सीन नहीं है, फिर भी यह काफी महत्वपूर्ण है| यह बच्चों को कुपोषण के कारण होने वाली दृष्टिहीनता (अंधापन) से बचाता है| जब बच्चा 9 महीने का हो जाए तो उसे विटामिन ‘ए’ घोल की पहली खुराक दें (= एक मि. ली. = अर्थात 1 लाख यूनिट) आम तौर पर यह पहली खुराक खसरे के टीके के साथ ही दी जाती है|
पहली खुराक के पश्चात विटामिन ‘ए’ घोल की खुराकें (हर खुराक 2 मि. ली. = 2 लाख यूनिट होगी) हर 6 महीने बाद, 2 साल की आयु तक दिलवाएं|
यह घोल अत्यंत सुरक्षित है| तदापि इसे निर्धारित खुराकों तथा मात्रा से अधिक न दें |
रोगी को पेरसिटामॉल देना बुखार, शरीर दर्द, सिरदर्द तथा जोड़ों के दर्द से राहत के लिए पेरसिटामॉल एक अति असरदार व सुरक्षित दवा है| यह गोली, सिरप तथा ड्रॉप्स के रूप में मिलती है| यदि इसे देना है तो ये निर्देश है:
वयस्कों के लिए भोजन खाने के बाद 500 मि. ग्रा. की एक गोली| यदि आवश्यक है तो हर 6-8 घंटे के बाद इस खूराक दोहराया जा सकता है|
बच्चों में गोली को खुराक के अनुसार टुकड़ों में बाँटा जा सकता है तथा उसे थोड़े से पानी में घोलकर दिया जा सकता है|
या
ऊपर बताए गए फार्मूले के अनुसार खुराक की गणना करके पेरसिटामॉल का सिरप दें| सिरप के 5 मि.ली. में सामान्यता: 125 मि.ग्रा. पेरसिटामॉल होता है| सिरप की आवश्यकता मात्रा को, हर बार बोतल को अच्छी तरह हिलाकर दें|
महत्त्वपूर्ण
यह दवा उन रोगियों को सावधानीपूर्वक दें जिन्हें लिवर (जिगर) या गुर्दे की कोई बीमारी है| इसके बारे में अपने चिकित्सक से पूछें|
12 वर्ष से कम आयु के बच्चो में बुखार कम करने के लिए एस्प्रिन कभी न दें| इससे जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं|
पारिवारिक रोग प्रतिरक्षण रिकार्ड (कृपया तारीख भरें) |
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नाम |
इंजेक्शन टी. टी. |
हिपेटाइटिस – बी वैक्सीन |
हिपेटाइटिस – ए वैक्सीन |
चिकन पॉक्सवैक्सीन |
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स्रोत: वालेंटरी हेल्थ एसोशिएशन ऑफ इंडिया/ जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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