परिचय
अगर 100 वृद्ध महिलाओं को झुक कर खांसने के लिए कहा जाए, तो हम पाएँगे कि उनमें 80-90 प्रतिशत का पेशाब निकल गया है | पेशाब की मात्रा अलग-अलग हो सकती है की यह एक काफी आम समस्या है | इसके लिए जिस चिकित्सय शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, वह है – ‘इन्कोन्टीनेन्स’ | इसका अर्थ है मूत्रमार्ग से आपकी मर्जी के खिलाफ पेशाब निकलना और आपका उसे रोक पाने से असमर्थ रहना | कुछ महिलाएँ अपनी जीवन शैली में परिवर्तन ला कर स्वयं को इस समस्या के अनुकूल ढाल लेती हैं | बहुतों में इस समस्या को कम किया जा सकता है | इसके पूरी तरह ठीक न होने की स्थिति में भी, अनेकों तरीकों से पेशाब की निकल जाने की इस समस्या से निपटा जा सकता है |
पेशाब का बनना और बाहर आना
शरीर के विभिन्न अंगों और ऊतकों की निरंतर सक्रियता के कारण हमारा शरीर अपशिष्ट पदार्थ पैदा करता है | उदर के पिछले हिस्से में पसलियों के नीचे स्थित गुर्दे इन अपशिष्टों को खून और पेशाब में से छानते हैं | पेशाब मूत्राशय में एकत्रित हो जाता है | जब यह आधे पिंट (24,436 क्यूबिक इंच) के आसपास एकत्रित हो जाता है, तो मूत्रत्याग की इच्छा पैदा होती है | यदि आसपास कोई टॉयलेट नहीं है या आप किसी काम में व्यस्त है, तो ऐसी स्थितियों में मस्तिष्क की इच्छा दबा लेता है | जब एकत्रित मूत्र की मात्रा एक पिंट या इससे ज्यादा हो जाती है आर पेशाब करना ही पड़ता है | पेशाब करने के लिए तैयार हो जाने के बाद, मस्तिष्क मूत्राशय को सिकुड़ने और मूत्रमार्ग को खुलने का सन्देश देता है और पेशाब बाहर आ जाता है | सामान्य व्यक्ति आम तौर पर दिन में 4-7 और रात में 1-2 बार पेशाब करता है | पेट से संबंधित समस्याओं, विशेषकर कब्ज, के कारण मूत्राशय से पेशाब रिस सकता है, क्योंकि मूत्राशय और मूत्रमार्ग का द्वार, गर्भाशय तथा योनि (जननांग) व मलपथ (मलाशय) को सहारा देने वाली मांसपेशियां एक ही होती हैं | एक रास्ते सहारे और क्रियाकलाप में गड़बड़ होने से दूसरे ऐसा रास्तों का सहारा और कार्य भी प्रभावित होते हैं |
नियंत्रण अक्षमता या इन्कोन्टीनेन्स के प्रकार
- दबाव के कारण अनियंत्रण : खांसते, छींकते, हंसते, व्यायाम इत्यादि करते हुए पेशाब का रिस जाना |
- मूत्रत्याग की गहन इच्छा : टॉयलेट सीट पर बैठने या वहाँ तक पहुँचने से पहले ही मूत्रत्याग की गहरी इच्छा के कारण भी ऐसा होता है | टॉयलेट के नल से बहते पानी के कारण भी पेशाब करने की गहन इच्छा पैदा हो सकती है और पेशाब की कुछ बूँद रिस सकती है |
- मिश्रित नियंत्रण अक्षमता : जब उपरोक्त कारण एक से अधिक संख्या में मौजूद हों |
- एन्यूरीसस या असयामतमूत्रता : बिस्तर में पेशाब कर देना या महिला को पेशाब कर देने का पता ही न चलना, अपना आपमें किसी तांत्रिक रोग के सूचक हैं | ऐसी महिलाएँ बिस्तर तक सीमित होती हैं और उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत होती है |
नियंत्रण अक्षमता के कारण
- दबाव जनित अनियंत्रण मूत्रमार्ग (यूरिथ्रा) के कमजोर होने के कारण होता है | आम तौर पर यह शिशु जन्म के कारण होता है, जब सहारा देने वाली मांसपेशियां खिंच/ जख्मी हो कर कमजोर हो जाती हैं | कमजोरी आम तौर पर मासिक धर्म रूक जाने (मिनोपौज) पर हर्मोस की कमी से पैदा होती है | मोटापे से भी मांसपेशियां पर दबाव बढ़ जाता है |
- मूत्रत्याग की गहन इच्छा आस्थिर मूत्राशय के कारण होती है | समान्यता: उम्र बढ़ने के साथ मूत्राशय मनमाने ढंग से व्यवहार करने लगता है | चेतावनी देने की आवधि कम होती जाती है और मूत्राशय को ज्यादा बार खाली करने की जरूरत महसूस होने लगती है | जब यह एक समस्या बन जाती है और पेशाब इच्छा के विरूद्ध रिसने लगता है, तब मदद की जरूरत होती है | कभी – कभी संक्रमण, मूत्राशय में पथरी या कैंसर, एल्जिमर रोग, पार्किन्सोनिज्म (दोनों ही मस्तिष्क संबंधी रोग हैं), स्ट्रोक और मल्टीपल सिक्लेराइसिस (बहुल ऊतक-दृढ़न) के कारण भी पेशाब को नियंत्रित करने की अक्षमता पैदा हो सकती है | इनसे मूत्र – अनियंत्रण के अतिरिक्त अन्य समस्याएँ भी पैदा हो सकती हैं – जैसे, बार – बार पेशाब आना, मूत्रत्याग की गहरी इच्छा होना और नोक्टूरियायानी रातों को कई बार पेशाब जाना |
- ऑवरफ्लो इन्कन्तिनेन्स – कई कारणों से हो सकती है :
- श्रेणि – प्रदेश (पेल्विस) में ट्यूमर के कारण मूत्रमार्ग में रूकावट आना |
- गंभीर कब्ज से मूत्राशय के द्वार में रूकावट आ सकती है |
- मधुमेह या अन्य तंत्रिक संबंधी रोगों के कारण मूत्राशय की सिकुड़ना कम हो सकती है |
- स्वयं उम्र बढ़ने कि प्रक्रिया भी मूत्राशय की सिकुड़न को कम कर सकती है | पेशाब करने के कठिनाई आ सकती है और मूत्राशय पूरी तरह खाली नहीं हो पाता |
टॉयलेट के इस्तेमाल में कठिनाइयाँ
उपरोक्त समस्याओं के अलावा, कुछ महिलाओं को निम्न कारणों से टॉयलेट इस्तेमाल करने में कठिनाई आती है |
- आथ्राइटिस की वजह से चलने – फिरने में कठिनाई |
- उम्र के कारण कमजोर हुई मांसपेशियों के कारण उठने और टॉयलेट तक पहुँचने में देरी|
- बैठने में, खासकर भारतीय शैली की सीटपर, कठिनाई |
- आँखों के कमजोर होने कर कारण भी ज्यादा वक्त लगता है |
पेशाब संबंधी दिक्कतों को बढ़ने वाली समस्याएँ
- मूत्रीय संक्रमण – इसके कारण बार - बार पेशाब आता है, जलन होती है और पेशाब बदबूदार होता है |
- किसी भी कारण हुई खाँसी |
- कम तरल पीना – पेशाब गाढ़ा हो जाता है, गर्म लगता है और पेशाब करते वक्त जलन महसूस होती है |
- बहुत अधिक तरल पीने से बहुत बार पेशाब जाना पड़ता है | इससे अनियंत्रण और भी ज्यादा बढ़ जाता है |
- अधिक चाय या कॉफ़ी पीने से भी बार बार पेशाब जाना पड़ता है |
- दवाओं का प्रयोग – कुछ दवाएँ पेशाब को मूत्राशय में रोकती हैं और कुछ के कारण अनियंत्रण की समस्या और बढ़ जाती है ऐसी दवाओं का प्रयोग अपने लाभ के लिए विवेकपूर्वक किया जाना चाहिए | इसलिए, जब आपका डॉक्टर दवाएँ तय कर रहा हो, तो उससे पूछ लेना चाहिए की उनसे आपको समस्या आएगी या नहीं |
- पोशाक / वस्त्रों को ठीक करने में दिक्क्त्त आ सकती है |
- सार्वजनिक टॉयलेट तलाश करने में दिक्कत आ सकती है, क्योंकी उनकी संख्या कम है | दुसरे, हो सकता है की व साफ न हों |
अनियंत्रण के कारण आने वाली समस्याएँ
- पेशाब की गंध के कारण सामाजिक ग्लानि महसूस हो सकती है | इस कारण, अनके महिलाएँ लोगों से मिलना – जुलना बंद कर देती हैं और अपने घर तक सीमित हो जाती हैं | बहुत सी महिलाएँ बार- बार अपने पैड/ पैंटीज बदल कर इस समस्या पर काबू पाती हैं |
- लगातार पैड्स के इस्तेमाल से जननांग क्षेत्र में खुजली हो सकती है | वह जगह लाल हो सकती है और वहाँ की त्वचा सड़ सकती है |
- जब पेशाब इन घावदार जगहों को छूता है, तो दर्द और जलन होती है |
पेशाब संबंधी समस्याओं से ग्रस्त महिलाओं की जाँच करते वक्त, डॉक्टर कुछ खास शब्दों का प्रयोग करते हैं | इन शब्दों का अर्थ जान लेना ठीक रहता है |
- फ्रीक्वेंसी – दिन के वक्त 7 से अधिक बार पेशाब करना |
- नोक्टूरिया – रात के वक्त दो से ज्यादा बार पेशाब करना |
- डिस्यूरिया – पेशाब करते वक्त दर्द होना | दर्द पेशाब शुरू होने पर या करने के दौरान हो सकता है |
- अर्जेन्सी – पेशाब करने के गहन इच्छा |
- इन्कोन्टनेन्स – अकस्मात पेशाब का रिस जाना |
अपनी सहायता स्वयं करना
आम उपाय
- रोजाना 8-10 गिलास तरल पीएं | जिन लोगों को रात में बारबार पेशाब जाना पड़ता है | (लेकिन जिन्हें मधुमेह या मूत्रीय संक्रमण नहीं है), वे शाम को तरल कम मात्रा में लें |
- कब्ज से बचें | रेशेदार भोजन पर्याप्त मात्रा में लें | अगर दवाएँ जरूरी हैं, तो प्राकृतिक रेशों वाले मृदु – रेचक (मल को मुलायम बनाने वाली चीजें) इस्तेमाल करें |
- सक्रिय और गतिशील बनें रहें |
- अपनी टॉयलेट सीट के पास रेलिंग लगवाएं ताकि आपको बैठने और उठने में मदद मिले | बाथरूम के फर्श को सूखा रखें ताकि आप आसानी से सीट तक पहुँच सकें और गिरने के खतरे से बच सकें |
- रात को पेशाब करने के लिए ऐसी खास कुर्सी का इस्तेमाल करें जिसके बीच में मूत्रपात्र लगा हो |
- अगर आप मोटापे से ग्रस्त हैं या आपका वजन ज्यादा है, तो वजन कम करने से आपको आसानी होगी |
- धूम्रपान से बचना चाहिए और शराब की मात्रा कम कर देनी चाहिए |
- अन्य बीमारियों का उपचार कराते समय, आपको अपने डॉक्टर को अपनी इस खास समस्या के बारे में बता देना चाहिए | इस बात को सुनिश्चित कर लें कि आपको ऐसी दवाएँ न दी जाएँ जिनसे आपकी समस्या और बढ़े |
विशिष्ट उपाय
- श्रेणि- प्रदेश (पेल्विक) की सतह संबंधी व्यायाम
- मूत्राशय प्रशिक्षण
पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज
- पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को सख्त करें | जैसे आप बीच में मल को निकलने से रोकने के लिए मांसपेशियां को सिकोड़ते हैं, यह भी ठीक वैसे ही किया जाता है | ऐसा भी ठीक वैसे ही किया जाता है | ऐसा खड़े रह कर, बैठ कर और लेट कर भी किया जा सकता है | दिन में कम से कम 15-20 बार ऐसा करें | नितम्ब, पेट और पैरों की मांसपेशियों को न सिकोड़ें |
- पेशाब को बीच में रोकने का अभ्यास – पेशाब करते हुए, बीच में पेशाब रोकने की कोशिश करें | इसके बाद फिर से पेशाब करना शुरू करें | ऐसा 4-5 बार और दिन में 3-4 बार करें |
यह व्यायाम उस स्थिति में मदद करता है जब खांसने, छिकनें, हंसने इत्यादि के दौरान पेशाब निकला जाता है, जैसा कि दबाव संबंधी अनियंत्रण में होता है | गहन इच्छा वाले अनियंत्रण में भी यह सहायक होता है, क्योंकी जब मूत्रत्याग की बहुत गहरी इच्छा हो रही हो, तब आदमी पेशाब को रोके रह सकता है |
मूत्राशय प्रशिक्षण
- दिन भर में लिए गए तरल और किए गए पेशाब का समय और मात्रा, दोनों नोट करें | इससे आपको उन दोनों के बीच के संबंध का पता लग जाएगा और साथ ही इस बात का भी कि आप कितनी बार पेशाब जाते हैं |
- दिन भर के लिए तरल और किए गए पेशाब का समय और मात्रा, दोनों नोट करें | इससे आपको उन दोनों के बीच के संबंध का पता लग जाएगा और साथ ही इस बात का भी आप कितनी बार पेशाब जाते हैं |
- अगर आप पाएं कि हर बार पेशाब की मात्रा कम थी और पेशाब करने जा रहे हैं, तो समय नोट करें और भले ही आपकी पेशाब करने की इच्छा हो रही हो, 40 मिनट तक टॉयलेट जाने से बचें | पेशाब को चालीस मिनट तक रोकने में सफल होने के बाद इस अवधि को और बढ़ा दें | धीरे-धीरे कुछ सप्ताहों में आप अपने मूत्राशय को 3-4 घंटो तक बिना किसी परेशानी के पेशाब को अपने में बनाए रखने में प्रशिक्षित कर सकते हैं |
डॉक्टर मदद कर सकता है
- अगर मूत्रीय संक्रमण है, तो उसका उपचार करने में |
- बाहरी चीजों (फॉरेन बाडीज) को हटाने में |
- हर्मोन क्रीम / गोलियां तय करने में जिन्हें लगाया जा सकता है या मूँह के जरिए लिया जा सकता है |
- सर्जरी के द्वारा गर्भाशय व के भ्रंश (प्रोलैप्स) को ठीक किया जा सकता है |
जब किसी निश्चित कारण का पता न लग सके, तो :
- रोगी को पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज के लिए या हल्के विद्युत उत्प्रेरक के लिए फिजियोथेरेपिस्ट के पास भेजने में | दोनों से समस्या कम हो सकती है |
- मूत्रत्याग की गहरी इच्छा पर नियंत्रण न कर पाने की स्थिति में दवाएँ सहायक हो सकती हैं |
- डॉक्टर बता सकता है की आपके लिए उपयुक्त मृदु – रेचक कौन सा है |
कुछ लोगों के मामले में मूत्र – अनियंत्रण से डायेपर और पैड बगैरा के जरिए निपटा जा सकता है | पानी और साबुन से सफाई कर लेना ही पर्याप्त होता है | बैरियर क्रीम, बैस्लिन, जिंक ऑक्साइड के लेप से त्वचा को जख्मों से बचाया जा सकता है | इस रोग सर ग्रस्त व्यक्ति बिस्तर में बार बार करवट और अपनी स्थिति बदल कर भी त्वचा पर होने वाले जख्मों से बच सकता है |
स्त्रोत: हेल्पेज इंडिया/ वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया