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कब्ज

परिचय

कब्ज वृद्धों को सबसे ज्यादा परेशान करने वाले रोगों में से एक है | विशेषज्ञों के अनुसार, नियमित रूप से पेट साफ न होने की चिंता वृद्धों में सरदर्द और थकान पैदा करती है | उसके कारण भूख भी नहीं लगती |

किस्में

  • वृद्ध व्यक्ति मलत्याग तो रोग करे, लेकिन मल सख्त व लेसदार हो |
  • मल सख्त तो न हो, लेकिन मल त्याग अनियमित हो |
  • दो- तीन दिन में एक बार पेट साफ हो |

कारण

  • भोजन  में पर्याप्त रेशेदार पदार्थ न होना |
  • आंतो में कैंसर या रूकावट, हर्निया, गुदा में बवासीर या दरारें होना, थायराइड ग्रंथियों से अपर्याप्त स्राव, शरीर में कैल्सियम की अधिकता (हाइपरकैलकेइमिया), पोटाशियम की कमी (हाइपोकेलेमिया) तथा मानसिक अवसाद |
  • बार – बार पेशाब जाने के दर से वृद्ध लोग उपयुक्त मात्रा में पानी नहीं पीते |
  • आयरन टॉनिक, दर्द – निवारक, अम्ल- प्रतिरोधक, मूत्रवर्धक, आवसादरोधी, उच्च रक्तचाप रोधी दवाएँ व नींद की गोलियों लेना |
  • उपयुक्त व्यायाम की कमी |
  • पुट्ठो व घुटनों गठिया के कारण सीमित चलना-फिरना |

परिणाम

लंबे समय तक कब्ज के कारण जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं और उनसे व्यक्ति के समूचे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है | और अधिक जटिलताओं से बचने के लिए दीर्घकालिक कब्ज पर फ़ौरन ध्यान दिया जाना चाहिए | ये जटिलताएँ जीवन के लिए खतरा भी बन सकती हैं |

वृद्ध व्यक्तियों को माल- त्याग के समय जोर लगाना पड़ सकता है | इससे सीने में दर्द का दौरा पड़ सकता है | मस्तिष्क में अस्थायी रूप से रक्त आपूर्ति की कमी होने के कारण, उन्हें बेहोशी का दौरा भी पड़ सकता है | दीर्घकालिक कब्ज में मलत्याग के लिए जोर लगाने के करण देर तक या लगातार अंत:-  दबाव बने रहने से हर्निया तथा पैरों की नसों में सूजन या फैलाव आ सकता है |

सख्त व लेसदार मल के कारण, गुदा के भीतर दरारें आ सकती हैं | इससे खून बहना शुरू हो सकता हैं | मलाशय में सूजन के कारण पेशाब के रास्ते में रूकावट आ सकती है और इससे पेशाब भीतर ही जमा होता रह सकता है, खासकर उन लोगों में जिनकी प्रोस्टैट बढ़ी हुई है |

बड़ी आंत में मल के एकत्रित हो जाने से उसमें रूकावट पैदा हो सकती है | इस स्थिति में भीतर एकत्रित अशुध्द पानी गुदा के जरिए बाहर आ सकता है | तब व्यक्ति को गलतफहमी हो सकती है कि उसे दस्त लग गए हैं |

मल को मुलायम बनाने वाली चीजें या मश्दू – रेचक लम्बें समय तक लेने से उनकी आदत बड सकती है और उससे बड़ी आंत का कोलोन नामक हिस्सा फ़ैल सकता है | रोगी अपने कब्ज को लेकर इस कदर परेशान हो सकता है की बड़ी मात्रा में पेट साफ करने वाली दवाएँ लेना शुरू कर दे | इससे उसे कब्ज की जगह का नुकसान पहुँच सकता है, जिसे फिर ठीक न किया जा सके | यानी वह एक निष्क्रिय ट्यूब में बदल सकता है | अधिक तरल और पोटाशियम शरीर से बाहर जाने के कारण गंभीर बीमारी, उदासीनता या निष्क्रियता और कमजोरी आ सकती है |

कब्ज का उपचार

प्राथमिकता कारणों का उपचार

अगर पता लग जाए कि कब्ज किसी कारण विशेष से हो रही है, तो उस कारण को दूर किया जाना चाहिए | जैसे हैपोथैरोडीज्म (थायराइड ग्रंथि की सक्रियता का कम होना ) का इलाज, अवसाद को दूर करना, पानी की कमी को पूरा करना इत्यादि | अगर ये सब किसी विशेष दवा के कारण हो रहा है, तो उसे बंद कर देना चाहिए या उसकी मात्रा कम कर देनी चाहिए |

अधिक मात्रा में तरल लें

तरल की अधिक मात्रा लेनी चाहिए | एक वृद्ध व्यक्ति को दिन में कम से कम 2 से 2.5 लीटर तरल लेना चाहिए |

नियमित व्यायाम

शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देना चाहिए | कब्ज से बचने के लिए दैनिक व्यायाम, जैसे घूमना,बहुत जरूरी है | जो किसी रोग के कारण बिस्तर से नहीं उठ सकते, उन्हें बिस्तर में ही व्यायाम कराना चाहिए | पाया गया है की पेट की मालिश कब्ज में लाभदायक होती है | पेट के कसरत कराने वाले व्यायाम भी कब्ज होने से रोकते हैं सरल योगासनों से भी कब्ज दूर होता है |

रेशेदार भोजन लें

कब्ज को रोकने में भोजन में रेशेदार पदार्थो की मजूदगी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है | ये पदार्थ पानी को सोखते हैं और उन्हें अपने में जज्ब किए रहते हैं | इस तरह वे मूल्यमान स्थूल- कारकों का काम करते हैं और आंतों में भोजन को देर तक बनाए रहते हैं प्रौढ़ व वृद्ध लोगों को प्रतिदिन अपने भोजन में 40 ग्राम रेशा लेना चाहिए |

भोजन में मौजूद रेशा न केवल कब्ज को रोकता है, बल्कि कोलोन कैंसर खतरे को भी घटाता है | साथ ही ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रोल को भी कम करता है | पित्ताशय में पथरी के जोखिम को कम करता है | हरी सब्जियों, पौधों के डंठलों, पत्तागोभी व फूलगोभी, सहिजन, करेले, खजूर, आम, अंजीर, अमरुद और सेब में काफी मोटा रेशा होता है | काली मिर्च, इलायची, सूखी लाल मिर्च, अजवाइन, मेथी में काफी रेशा होता है | दूध, चीनी, चर्बी, मैदा, अंडे, मांस और मछली में घुलनशील रेशा नहीं होता |

मश्दू – रेचक (लैक्जेटीव्स)

उपरोक्त तमात उपायों के असफल रहने पर ही मश्दू – रेचकों का उपयोग करना चाहिए | मश्दू रेचक कई तरह के होते हैं :

क) स्नेहक और मल को मुलायम बनाने वाले, जैसे तरल पराफिन

ख) स्थूलक, जैसे मिथाइल सेल्यूलोज तथा रेशा संपुरक

ग) परिसारक, जैसे सोडियम, पोटासियम, मैग्नेशियम साल्ट और लैक्टयूलोज

घ) रसायन, जैसे सनाय, फिनोलाफैथेलिन और अरंडी का तेल

छ) प्रोकइनेक्टीक्स, जैसे सिसाप्राइड मल को मुलायम करने के लिए तरल पराफिन का इस्तेमाल किया जा सकता हैं | लेकिन, इसका लम्बे समय तक उपयोग नहीं करना चाहिए | इस मश्दू- रेचक का प्रयोग केवल मल के सख्त होने की स्थिति  में ही किया जाना चाहिए |

इसबगोल और प्राकृतिक रेशों के अन्य संपुरक पानी सोखते हैं तथा मल को स्थूल बनाते हैं | इनके पूरे असर के लिए, इन्हें काफी पानी के साथ लिया जाना चाहिए | लेकिन, जिन रोगियों को निगलने में कठिनाई होती है या जिनकी छोटी या बड़ी आंत में अवरोधक दरारें हैं, उन्हें इनका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए | मल का स्थूलिकरण करने वाले मश्दू- रेचक लम्बे समय तक उपयोग के लिए सूराक्षित व अनुकूल हैं |

सनाय जैसे रासायनिक मश्दू – रेचक बश्ह्दान्त्र (कोलोन) के सीधे संपर्क में आ, उसमें सिकुड़ने पैदा करते हैं | दुसरे रासायनिक मश्दू – रेचकों के मकाबले, अरंडी का तेल ज्यादा तेजी से काम करता है | लेकिन, यह लम्बे समय तक इस्तेमाल के लायक नहीं है |

एनिमा

एनिमा में मलाशय व वक्र बश्ह्दान्त्र (सिग्मोइड कोलोन) में पानी का प्रवेश कराया जाता है | भीतर गया हुआ पानी मल के पिंडो के टुकड़े कर देता है, मलाशय की दीवारों को फैला देता है और मलत्याग की क्रिया को शुरू करता है |

एनिमा कई तरह के होते हैं | इनमें सबसे सरल हैं सफाई करने वाले एनिमा | वे बश्ह्दान्त्र को मल से पूरी तरह साफ करने में मदद देते हैं | आम तौर पर जिन एनिमाओं का प्रयोग किया जाता है, वे हैं – नल के पानी, आम लवण व उच्च लवण और साबुन के पानी के घोल के एनिमा | लेकिन पानी के एनिमा से झिल्ली में खुजली पैदा होती है | उन्हें केवल लम्बे समय तक कब्ज बने रहने की स्थिति में ही लिया जाना चाहिए | आम तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ एनिमा है – ग्लिसरीन एनिमा | वृद्धावस्था चिकित्सा के दायरे में आने वाले लोगों की लिए यह सबसे अच्छा है |

लम्बे समय तक एनिमा लेने से मलाशय में घाव, रक्तस्राव हो सकता हैं और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन पैदा हो सकता है | कमजोर वृद्ध लोगों में पानी की कमी हो जाने की स्थिति में एनिमा बहुत सावधानी से दिया जाना चाहिए, क्योंकी शरीर से और तरल बाहर जाने से पानी की पहले से मौजूद कमी और बढ़ सकती है | इससे वह व्यक्ति मर भी सकता है | इस तरह के रोगियों के मामले में जरूरी है की एनिमा किसी योग्य व्यक्ति या डॉक्टर द्वारा दिया जाना चाहिए |

बत्तियां

जो रोगी बिस्तर तक सीमित हैं या जिनका चलना फिरना बहुत कम है, उनके लिए यह सब से अच्छा ठीक है | मश्दू-रेचक लिए जाने की स्थिति में इस बात का पहले से अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि कब पाखाना आ जाए, इसलिए यह सबसे बेहतर उपाय है, क्योंकी बत्ती डाले जाने के आधे घंटे के भीतर ही उसका असर हो जाता है | लेकिन, बत्तियों के मामले में भी ठीक  वही जोखिम होते हैं, जो एनिमा लेने पर पैदा होते हैं | वृद्धों में कब्ज एक आम बात है | लेकिन, इससे बचा जा सकता है | नियमित व्यायाम, पर्याप्त मात्रा में तरल लेना, ज्यादा मात्रा में रेशेदार भोजन लेना, अनावश्यक दवाएँ लेने से बचना, कब्ज को निश्चित रूप से रोकता है |

 

स्त्रोत: हेल्पेज इंडिया/ वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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